ब्लॉग

शनि प्रदोष 24 मई : शिव और शनि दोनों होंगे प्रसन्न


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

.
.
शनि प्रदोष 24 मई : शिव और शनि दोनों होंगे प्रसन्न

भारतीय धर्म-संस्कृति में व्रत और तिथियों का गहरा आध्यात्मिक एवं लौकिक महत्व है। सप्ताह के प्रत्येक दिन से संबंधित प्रदोष व्रतों में शनि प्रदोष एक अत्यंत प्रभावशाली और पुण्यदायी तिथि मानी जाती है। जब प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ता है, तब उसे शनि प्रदोष कहते हैं। यह व्रत भगवान शिव और शनिदेव दोनों को प्रसन्न करने का श्रेष्ठ अवसर माना गया है। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में शनि प्रदोष 24 मई 2025 को आ रहा है।

प्रदोष व्रत क्या है?
प्रदोष व्रत हर महीने के दोनों पक्षों (शुक्ल और कृष्ण) की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है। “प्रदोष” शब्द का अर्थ है – दोषों का नाश करने वाला समय। यह व्रत मुख्यतः संध्या काल में किया जाता है, जो दिन के सूर्यास्त से 1.5 घंटे पहले और 1.5 घंटे बाद तक का समय होता है। यह शिव उपासना के लिए सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त होता है। जब यह व्रत शनिवार को पड़ता है तो इसे शनि प्रदोष कहते हैं। यह विशेष रूप से शनि दोष, साढ़े साती, ढैय्या, शनि की महादशा/अंतर्दशा, कर्म बंधन और न्याय संबंधी कष्टों से मुक्ति का मार्ग है।

शनि प्रदोष से जुड़ी पौराणिक कथाएं

शिव-नीलकंठ कथा
समुद्र मंथन के समय जब विष निकला, तब सारा ब्रह्मांड विष की ज्वाला से जलने लगा। सभी देवता भगवान शिव की शरण में गए। शिव ने करुणावश विष को अपने कंठ में धारण कर लिया और यही त्रयोदशी का समय था। इसीलिए प्रदोष का काल भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है।

शनि प्रदोष की विशेष कथा
एक बार शनिदेव ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और वरदान मांगा कि शिव प्रदोष के दिन जो भक्त शनिदेव और शिवजी की संयुक्त पूजा करेगा, उसके जीवन से समस्त पाप और शनि दोष समाप्त होंगे। शिवजी ने उन्हें यह वरदान दिया। इसीलिए शनि प्रदोष की पूजा में शनिदेव का विशेष आह्वान किया जाता है।

शनि प्रदोष का ज्योतिषीय महत्व
शनि कर्म, न्याय, संयम, तपस्या, विनम्रता और जीवन के संघर्षों का ग्रह है। शनिदेव ही व्यक्ति के पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार फल देते हैं। इसलिए शनि को “न्यायाधीश” कहा जाता है। जिन लोगों की कुंडली में शनि पीड़ित हो, शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही हो, उन्हें शनि प्रदोष के दिन व्रत, दान और उपासना अवश्य करनी चाहिए। शनि प्रदोष का व्रत शनि के अशुभ प्रभावों को समाप्त कर देता है।

शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि
– व्रती को व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
– प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
– दिनभर फलाहार या केवल जल ग्रहण कर व्रत रखा जाता है।
– सूर्यास्त से पहले स्नान कर शिव मंदिर जाएं।
– पूजा संध्या काल (प्रदोष काल) में की जाती है।

पूजा सामग्री
जल, दूध, दही, शहद, घी, शुद्ध घी का दीपक, बेलपत्र, भस्म, धूप, चंदन, फूल, अक्षत, काले तिल, काला कपड़ा, लोहे की वस्तु (शनि पूजन हेतु), पंचामृत, नैवेद्य, जल कलश, शिवलिंग यदि घर पर हो।

पूजा विधि
(1) स्थान की शुद्धि और शिवलिंग की स्थापना:
पूजा स्थान को गंगाजल या गोमूत्र से शुद्ध करें। शिवलिंग पर जल और पंचामृत से अभिषेक करें। बेलपत्र, पुष्प, चंदन, धूप, दीप आदि अर्पित करें।

(2) मंत्रोच्चार:
शिव मंत्र:
ॐ नमः शिवाय (108 बार)
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।

शनि मंत्र:
ॐ शं शनैश्चराय नमः
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥

(3) दीपदान और आरती:
शिवलिंग के चारों ओर दीपक जलाकर परिक्रमा करें। शनि महाराज के लिए काले तिल और तेल का दीप अर्पण करें। शिवजी और शनिदेव दोनों की आरती करें।

शनि प्रदोष के दिन किए जाने वाले विशेष उपाय
शनि प्रदोष विशेष रूप से कष्ट निवारण, शनि शांति और शुभ फल प्राप्ति का दिन होता है। इस दिन कुछ विशेष उपाय अत्यंत फलदायी माने गए हैं:

1 शनि दोष निवारण हेतु:
पीपल वृक्ष के नीचे काले तिल का दीपक जलाएं और 7 बार परिक्रमा करें।
काले तिल, काला कपड़ा, लोहे का पात्र, उड़द दाल का दान करें।
“ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें।

2 रोजगार, व्यवसाय और आर्थिक कष्ट दूर करने हेतु:
शनि प्रदोष की संध्या को शिवलिंग पर जल और शहद चढ़ाकर यह प्रार्थना करें:
“हे प्रभो, मेरी आय में वृद्धि हो, कर्ज से मुक्ति मिले और समृद्धि प्राप्त हो।”
नीले रंग के कपड़े पहनकर तेल से शनिदेव को तिलक करें।

3 संतान सुख और विवाह हेतु:
शिवलिंग पर केसर और दूध से अभिषेक करें।
“ॐ सों सोमाय नमः” तथा “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जप करें।
गरीब कन्याओं को वस्त्र दान करें।

4 रोग और मानसिक कष्ट निवारण:
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें (108 या 1008 बार)।
रुद्राभिषेक कराएं अथवा स्वयं करें।
शनिदेव के चित्र या प्रतिमा पर सरसों का तेल चढ़ाएं।

6. शनि प्रदोष की काल विशेष साधना (उपयुक्त साधकों के लिए):

तंत्र साधना प्रेमियों हेतु:
शनि प्रदोष की रात, काली हल्दी, काला धागा, लोहे की कील और काले कपड़े में लपेटकर ताबीज बनाएं।
इसे गले या बाजू में धारण करें – यह शनि से रक्षा करता है।

शिव साधना हेतु:
11 या 21 बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
“शिव सहस्रनाम” या “शिव चालीसा” का पाठ करें।

7. शनि प्रदोष के लाभ (Benefits of Shani Pradosh):
– शनि दोषों से मुक्ति
– कार्यों में सफलता
– पारिवारिक सुख-शांति
– व्यवसाय और नौकरी में उन्नति
– मानसिक शांति और रोगों से राहत
– पूर्वजों की कृपा और पितृदोष से मुक्ति
– आत्मिक बल और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति

शनि प्रदोष से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य
तत्व विवरण
प्रमुख देवता भगवान शिव और शनिदेव
दिन शनिवार
तिथि त्रयोदशी (कृष्ण या शुक्ल पक्ष)
पूजा का समय संध्या प्रदोष काल (सूर्यास्त के 1.5 घंटे पूर्व से 1.5 घंटे बाद तक)
विशेष दान काले तिल, काला कपड़ा, लोहे का बर्तन, तेल, उड़द
प्रमुख मंत्र “ॐ नमः शिवाय”, “ॐ शं शनैश्चराय नमः”
विशेष स्थान शनि मंदिर, शिव मंदिर, पीपल वृक्ष के नीचे पूजा

शनि प्रदोष व्रत आध्यात्मिक और लौकिक दृष्टि से अत्यंत शुभ अवसर है। यह दिन न केवल शिव और शनि की कृपा पाने का माध्यम है, बल्कि अपने जीवन में चल रहे गंभीर कष्टों, विशेषकर शनि से संबंधित समस्याओं का समाधान भी है। यदि श्रद्धा और नियमपूर्वक इस दिन व्रत, पूजा और उपाय किए जाएं, तो व्यक्ति का जीवन सकारात्मक दिशा में बढ़ सकता है।

——————————-
ऑनलाइन कुंडली दिखाने के लिए हमसे संपर्क करें।
वाट्सएप नंबर 9516141614 पर अपनी जानकारी भेजें-
नाम :
जन्म तारीख :
जन्म समय :
जन्म स्थान :
पांच प्रश्न :
कुडली देखने का शुल्क 500 रुपये। पेमेंट ऑनलाइन भेजकर उसका स्क्रीन शॉट वाट्सएप करें।

सूर्य का रोहिणी में प्रवेश 25 मई को, शुरू होगा नौतपा


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

.
.
भारत एक ऐसा देश है जहाँ ऋतुओं का परिवर्तन केवल मौसम की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। गर्मी से वर्षा ऋतु में प्रवेश के समय जो विशेष नौ दिन होते हैं, उन्हें नौतपा (या नव-तपा) कहा जाता है। यह समय सूर्य के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करने से प्रारंभ होता है और नौ दिनों तक चलता है। ज्योतिषीय, पर्यावरणीय, वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टियों से यह समय अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना गया है।

नौतपा का अर्थ और समय
‘नौतपा’ दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘नव’ यानी नौ और ‘तपा’ यानी तपना या गर्मी। इसका शाब्दिक अर्थ है – नौ दिनों की तपन। ये नौ दिन ग्रीष्म ऋतु के चरम ताप को दर्शाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है, तब से नौ दिनों तक यह काल नौतपा कहलाता है। यह सामान्यतः हर वर्ष 25 मई से 2 जून के बीच आता है, हालाँकि पंचांग के अनुसार इसमें एक-दो दिन का हेरफेर हो सकता है। इस बार भी यह 25 मई से 2 जून ही रहेगा।

ज्योतिषीय महत्व
भारतीय ज्योतिष के अनुसार, जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है, तब पृथ्वी पर गर्मी का प्रभाव अत्यधिक बढ़ जाता है। रोहिणी नक्षत्र वृषभ राशि का नक्षत्र है और इसे चंद्रमा का प्रिय नक्षत्र माना जाता है। यदि इस समय सूर्य और चंद्रमा की स्थिति अनुकूल हो, तो वर्षा ऋतु भी अधिक सुखदायी होती है। नौतपा का मौसम कैसा रहेगा, इस आधार पर पूरे वर्ष के जलवायु और कृषि पर भी अनुमान लगाया जाता है। यदि नौतपा में अधिक गर्मी पड़े और वातावरण में तेज लू चले, तो यह माना जाता है कि वर्षा अच्छी होगी और फसलें समृद्ध होंगी।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण
गर्मी के इस चरम समय में सूर्य की सीधी किरणें पृथ्वी पर पड़ती हैं। सूर्य का उत्तरायण काल अपने मध्य में होता है और पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में यह समय सबसे अधिक तापमान वाला होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार:
– इस समय भूमि का तापमान 45°C से अधिक तक पहुँच सकता है।
– गर्मी के कारण वायुमंडल में गहरे निम्न-दाब क्षेत्र (Low Pressure Zone) बनते हैं।
– ये निम्न-दाब क्षेत्र मानसून की हवाओं को खींचते हैं, जिससे मानसून समय पर आता है।

इसलिए नौतपा को प्रकृति की एक ऐसी प्रणाली के रूप में देखा जाता है जो वर्षा की तैयारी करती है। यह समय कृषि की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि किसानों को आगामी वर्षा और फसल की स्थिति का पूर्वानुमान इसी समय मिलता है।

धार्मिक और सांस्कृतिक पक्ष
भारतीय संस्कृति में नौतपा केवल मौसम परिवर्तन का समय नहीं है, बल्कि यह एक तप और संयम का समय भी है। इस समय को लेकर कई मान्यताएँ प्रचलित हैं:

सूर्योपासना: सूर्य के प्रचंड रूप की आराधना की जाती है। लोग सूर्य को जल अर्पण करते हैं और जीवनदायिनी ऊर्जा की प्राप्ति हेतु प्रार्थना करते हैं।
व्रत और उपवास: कई श्रद्धालु इस दौरान व्रत रखते हैं और हल्का, सात्त्विक भोजन करते हैं। इसका उद्देश्य शरीर को गर्मी से बचाना तथा आत्मिक शुद्धि करना होता है।
जप और ध्यान: नौतपा को आत्म-शुद्धि और साधना का समय भी माना गया है। कई साधक इस काल में विशेष तप और ध्यान करते हैं।

जीवनशैली पर प्रभाव और सावधानियाँ
नौतपा के दिनों में शरीर को गर्मी से बचाने के लिए विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है:
पानी का सेवन बढ़ाएं: अधिक गर्मी में शरीर से पसीना निकलता है जिससे डिहाइड्रेशन हो सकता है। नींबू पानी, नारियल पानी और बेल का शरबत लाभकारी होता है।
हल्का और ठंडा भोजन लें: इस दौरान तले-भुने और गरिष्ठ भोजन से परहेज करना चाहिए। ककड़ी, तरबूज, खरबूजा जैसे फलों का सेवन उपयुक्त होता है।
धूप से बचाव करें: दिन के समय विशेषकर दोपहर में बाहर निकलने से बचना चाहिए। सिर पर टोपी या कपड़ा बांधना तथा छाता रखना उचित होता है।
शारीरिक श्रम कम करें: विशेष रूप से वृद्ध, बच्चे और बीमार व्यक्ति अधिक सतर्क रहें।

कृषि और पर्यावरण पर प्रभाव
नौतपा का मौसम कृषि की दृष्टि से अत्यंत निर्णायक होता है। यदि इन नौ दिनों में तेज गर्मी और लू चलती है, तो यह माना जाता है कि:
मानसून समय पर आएगा और अच्छी वर्षा होगी। अधिक वर्षा से धान, मक्का, कपास, मूंगफली जैसी खरीफ की फसलों को लाभ मिलेगा। किसान आगामी फसलों की बुआई की योजना इसी आधार पर बनाते हैं। इसके अतिरिक्त, यह समय पर्यावरणीय संतुलन का भी प्रतीक है। गर्मी की अधिकता जलवायु के प्रवाह को नियंत्रित करती है और पृथ्वी के ताप संतुलन को बनाए रखने में सहायक होती है।

नौतपा से जुड़ी लोक मान्यताएँ और परंपराएं
आंधी-तूफान का पूर्व संकेत: माना जाता है कि यदि नौतपा के दौरान आंधी-तूफान आते हैं या बारिश होती है, तो यह अनिष्टकारी संकेत है। इससे मानसून कमजोर पड़ सकता है।
नवग्रह शांति: कई लोग इस समय नवग्रह शांति पूजा कराते हैं ताकि सूर्य की प्रखरता से उत्पन्न समस्याओं से बचा जा सके।
पौराणिक दृष्टिकोण: कुछ मान्यताओं के अनुसार यह समय सप्त ऋषियों की तपस्या का भी होता है, जो ब्रह्मांडीय संतुलन को बनाए रखने हेतु इस समय विशेष साधना करते हैं।

इस प्रकार नौतपा केवल एक मौसमीय घटना नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और जीवन शैली का अभिन्न अंग है। यह काल हमें प्रकृति के चक्र की गहराई को समझने और उसके अनुरूप जीवन जीने का संदेश देता है। ज्योतिषीय, वैज्ञानिक, धार्मिक और सामाजिक दृष्टियों से नौतपा एक अत्यंत महत्वपूर्ण समय है। यदि इस काल का सही ढंग से पालन किया जाए – आहार, विहार और व्यवहार में संतुलन रखा जाए – तो यह ना केवल मानसून की समृद्धि को सुनिश्चित करता है, बल्कि व्यक्तिगत स्वास्थ्य और समाजिक शांति का आधार भी बनता है। नौतपा को केवल तपन का समय न मानकर एक जीवन शैली के अनुशासन और प्रकृति के संकेतों को समझने का अवसर मानना चाहिए।

ऑनलाइन कुंडली दिखाने के लिए हमसे संपर्क करें।
वाट्सएप नंबर 9516141614 पर अपनी जानकारी भेजें-
नाम :
जन्म तारीख :
जन्म समय :
जन्म स्थान :
पांच प्रश्न :
कुडली देखने का शुल्क 500 रुपये। पेमेंट ऑनलाइन भेजकर उसका स्क्रीन शॉट वाट्सएप करें।

कालाष्टमी 20 मई को, काल भैरव को प्रसन्न करने का दिन


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

.
.

ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी कहा जाता है। कालाष्टमी 20 मई 2025 मंगलवार को आ रही है। इस दिन कालभैरव का पूजन किया जाता है। कालभैरव भगवान शिव का उग्र रूप हैं जिनकी पूजा करने से जीवन से सारे शत्रुओं का नाश हो जाता है। यह दिन कालभैरव को प्रसन्न करने का दिन होता है।

हिंदू धर्म में देवताओं की एक विशाल और विविध परंपरा है, जिसमें हर देवता किसी विशेष शक्ति, ऊर्जा या तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इन्हीं में एक अत्यंत रहस्यमय, रौद्र और शक्तिशाली स्वरूप हैं– भगवान काल भैरव। ये शिव के रौद्र रूप माने जाते हैं और न्याय, समय, मृत्यु, रहस्य, तंत्र और भय से जुड़े हुए हैं। ‘काल’ का अर्थ है ‘समय’ और ‘मृत्यु’, जबकि ‘भैरव’ का अर्थ है ‘भय का संहारक’। अतः काल भैरव को वह देवता माना जाता है जो समय और मृत्यु पर नियंत्रण रखते हैं।

काल भैरव की उत्पत्ति की कथा
काल भैरव की उत्पत्ति से संबंधित कई कथाएं पुराणों में वर्णित हैं। शिव महापुराण और कालभैरवाष्टक के अनुसार एक प्रमुख कथा इस प्रकार है: एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के मध्य यह विवाद उत्पन्न हुआ कि ब्रह्मांड का परम स्वामी कौन है। ब्रह्मा ने दावा किया कि वे ही सृष्टिकर्ता हैं और सबसे श्रेष्ठ हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वे पंचमुखी होकर हर दिशा में सब कुछ देख सकते हैं और शिव से श्रेष्ठ हैं। यह सुनकर भगवान शिव को क्रोध आया और उन्होंने अपने अंगुष्ठ के नाखून से काल भैरव को उत्पन्न किया। काल भैरव ने ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया।
यह कार्य ब्रह्महत्या के समान था, इसलिए काल भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए काशी (वाराणसी) जाना पड़ा। वहां पहुंचकर ही उन्हें पाप से मुक्ति मिली और वे काशी के कोतवाल यानी नगरपाल कहलाए।

काल भैरव के स्वरूप
भगवान काल भैरव का स्वरूप अत्यंत रौद्र, भयभीत करने वाला किंतु साधकों के लिए अत्यंत कृपालु माना गया है। वे काले रंग के होते हैं, उनका वाहन कुत्ता होता है और वे त्रिशूल, खड्ग, डमरू, पाश आदि अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित रहते हैं। उनकी आंखें अग्निसमान चमकती हैं और उनका रूप सभी पापों और दुष्ट शक्तियों को नष्ट करने वाला होता है।
उनके आठ प्रमुख रूपों को अष्ट भैरव कहा जाता है:
1. असितांग भैरव
2. चण्ड भैरव
3. क्रोध भैरव
4. उन्मत्त भैरव
5. कपालिनी भैरव
6. भीषण भैरव
7. संहार भैरव
8. सम्भरण भैरव
इन अष्ट भैरवों की साधना तंत्रमार्गी होती है और यह गूढ़, रहस्यमय ज्ञान से जुड़ी होती है।

काल भैरव की उपासना और पूजा विधि
काल भैरव की पूजा विशेष रूप से मंगलवार और रविवार को की जाती है। विशेष अवसरों पर जैसे कालाष्टमी और भैरवाष्टमी पर इनकी विशेष उपासना की जाती है। इनकी पूजा के लिए निम्न विधि अपनाई जाती है:
1. प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. काल भैरव की प्रतिमा या चित्र के समक्ष दीपक जलाएं।
3. उन्हें काले तिल, सरसों का तेल, नारियल, शराब (तंत्र पद्धति में) और काले वस्त्र अर्पित किए जाते हैं।
4. कुत्ते को भोजन देना, विशेष रूप से रोटी और दूध देना, पुण्यदायी माना जाता है।
5. काल भैरव अष्टक या भैरव चालीसा का पाठ करें।

प्रसिद्ध मंत्र:
ॐ कालभैरवाय नमः ॥
या
ॐ भ्रं कालभैरवाय फट् ॥

काल भैरव और तंत्र साधना
काल भैरव को तंत्र शास्त्र का अधिपति भी माना जाता है। जो साधक तंत्र, मंत्र, यंत्र, और रहस्यवाद के मार्ग पर चलते हैं, वे काल भैरव की आराधना अवश्य करते हैं। ये साधना अत्यंत कठिन होती है और गुरु के निर्देशन में ही की जाती है। यह साधक को भय से मुक्त करती है और गूढ़ शक्तियों तक पहुंचने का मार्ग देती है।

काल भैरव और काशी का संबंध
वाराणसी (काशी) में काल भैरव मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। यहां इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है। मान्यता है कि काशी में बिना काल भैरव के दर्शन के शिव की कृपा प्राप्त नहीं होती। यह भी माना जाता है कि जो व्यक्ति काशी में काल भैरव के दर्शन करता है, उसे मृत्यु के बाद यमदूत नहीं ले जाते, बल्कि स्वयं काल भैरव उसकी आत्मा को शिवलोक तक पहुंचाते हैं।

काल भैरव और न्याय
काल भैरव को ‘न्याय का देवता’ भी माना जाता है। वे दुष्टों को दंड देते हैं और धर्म पर चलने वालों की रक्षा करते हैं। अनेक तांत्रिक और साधक, यदि उनके ऊपर अन्याय होता है, तो काल भैरव से न्याय की प्रार्थना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति असत्य, अन्याय, भ्रष्टाचार और अत्याचार करता है, काल भैरव उसकी रक्षा नहीं करते, बल्कि उसे दंडित करते हैं।

काल भैरव और समय का संबंध
‘काल’ का अर्थ ‘समय’ है। भगवान काल भैरव को समय का अधिपति माना जाता है। वे यह सिखाते हैं कि समय सबसे शक्तिशाली तत्व है और जो समय का सम्मान नहीं करता, वह उसका शिकार बनता है। अतः काल भैरव की उपासना से साधक को समय का मूल्य समझ में आता है, और वह अपने जीवन को संयम और सत्कर्मों से भर देता है।

भक्ति का फल
काल भैरव की उपासना से साधक को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
1. भय और संकटों से मुक्ति
2. तांत्रिक बाधाओं से रक्षा
3. आत्मबल और निर्णय क्षमता में वृद्धि
4. समय का सदुपयोग और जीवन में अनुशासन
5. दुष्टों से सुरक्षा और न्याय की प्राप्ति
6. मृत्यु के भय से मुक्ति

——————————-
ऑनलाइन कुंडली दिखाने के लिए हमसे संपर्क करें।
वाट्सएप नंबर 9516141614 पर अपनी जानकारी भेजें-
नाम :
जन्म तारीख :
जन्म समय :
जन्म स्थान :
पांच प्रश्न :
कुडली देखने का शुल्क 500 रुपये। पेमेंट ऑनलाइन भेजकर उसका स्क्रीन शॉट वाट्सएप करें।

11 और 28 मई को आकाश में गोलाकार दिखेंगे तारे


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

.
.

मेसियर पांच और मेसियर चार तारे नजर आएंगे
मेसियर पांच पृथ्वी से लगभग 24,500 प्रकाश वर्ष दूर

इंदौर। मई में कई खगोलीय घटनाएं हो रही हैं। चांद तारों की दुनिया में रुचि रखने वाले जहां एटा लिरिड उल्का बौछार देख रहे हैं, वहीं 11 और 28 मई को तारों का गोलाकार समूह देखने को मिलेगा। आसमान में हजारों तारों का समूह एक साथ चमक बिखेरगा, जो ध्यान खींचने वाला होगा। यह गुरुत्वाकर्षण के कारण संभव होगा। इसमें क्रमश: मेसियर पांच और मेसियर चार तारे नजर आएंगे।

ये तारों के विशाल, गोलाकार समूह हैं, जो आकाशगंगा में पाए जाते हैं। मेसियर चार वृश्चिक राशि में है। पृथ्वी से लगभग 5,500 प्रकाश वर्ष दूर है। सन 1745 में फिलिप लोयस डी चेसेक्स ने इसकी खोज की थी। वर्ष 1764 में चार्ल्स मेसियर ने इसे सूचीबद्ध किया था। यह पृथ्वी के सबसे नजदीकी गोलाकार समूह में से एक है। इसी तरह मेसियर पांच सर्पेंस तारामंडल में स्थित है। पृथ्वी से लगभग 24,500 प्रकाश वर्ष दूर है। आसमान साफ होने व दूरबीन से देखने पर ही इसकी अच्छी तस्वीरें मिलेंगी। मेसियर पांच आकाशगंगा में सबसे बड़े गोलाकार समूह में से एक है। इसमें 105 ज्ञात परिवर्तनशील तारे हैं। समूह में एक बौना नोवा तारा भी है।

वर्तमान में एटा लिरिड उल्का बौछार हो रही है। इसे लिरिड्स भी कहते हैं। 14 मई तक जारी रहेगी। सबसे अधिक आठ मई की रात उल्का बारिश होगी। यह सबसे पुरानी उल्का बौछार में से एक है। इसका इतिहास लगभग 2,700 साल पुराना है। अप्रैल के अंत या मई की शुरुआत में जब पृथ्वी थैचर धूमकेतु के मलबे के रास्ते से गुजरती है तो इसे देखा जाता है। इसके अतिरिक्त राहु और केतु का गोचर 18 मई को हो रहा है। राहु कुंभ और केतु सिंह राशि में प्रवेश करेगा। अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं में 12 मई को पूर्णिमा है। इसे फुल चंद्रमा भी कहते हैं। प्राकृतिक घटनाओं के संदर्भ में इसका विशेष महत्व है। इसी समय उत्तरी अमेरिका में विशेष प्रकार के फूल खिलते हैं तो वहां के किसानों ने इसका नाम फूल चंद्रमा दे दिया।

22 को चंद्रमा शनि, 23 को शुक्र के साथ
जवाहर तारामंड ने खगोल में रुचि रखने वालों के लिए आकाश का मानचित्र जारी किया है। इसकी मदद से अपने ग्रह नक्षत्रों की पहचान आसानी से की जा सकती है। छह मई को शनि विषुव होगा अर्थात शनि विषुवत रेखा पर रहेगा। इससे उसके छल्ले नजर नहीं आएंगे। पृथ्वी पर प्रत्येक वर्ष दो विषुव होता है, उसी प्रकार शनि पर भी दो विषुव होते हैं। इसके अतिरिक्त 22 मई को चंद्रमा शनि ग्रह के निकट, 23 को शुक्र के करीब, 26 को बुध ग्रह के साथ और 28 को बृहस्पति के निकट रहेगा। माह के प्रारंभ अर्थात तीन मई को यह मंगल के करीब था।

ऑनलाइन कुंडली दिखाने के लिए हमसे संपर्क करें।
वाट्सएप नंबर 9516141614 पर अपनी जानकारी भेजें-
नाम :
जन्म तारीख :
जन्म समय :
जन्म स्थान :
पांच प्रश्न :
कुडली देखने का शुल्क 500 रुपये। पेमेंट ऑनलाइन भेजकर उसका स्क्रीन शॉट वाट्सएप करें।

बगलामुखी जयंती : शत्रु नाश कर, धन वर्षा करने वाली देवी


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

.
.
.
.

बगलामुखी देवी की साधना और हवन से जुड़ी जानकारी अत्यंत गूढ़, रहस्यमयी और शक्तिशाली होती है। इनका प्रयोग शत्रुनाश, आत्म-संयम, मानसिक शक्ति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए किया जाता है। इस लेख में हम बगलामुखी देवी की साधना, मंत्र, हवन विधि, सावधानियां और इससे होने वाले लाभों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। बगलामुखी जयंती 5 मई 2025 सोमवार को आ रही है।

बगलामुखी देवी: एक परिचय
बगलामुखी देवी दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या हैं। इनका नाम ‘बगला’ (बक = रोकना) और ‘मुखी’ (मुख = वाणी) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है– शत्रु की वाणी और बुद्धि को रोकने वाली देवी। इन्हें “स्तम्भन की देवी” भी कहा जाता है, जो किसी भी नकारात्मक शक्ति, शत्रु या विपरीत परिस्थिति को रोकने में सक्षम हैं। इनका स्वरूप पीला होता है, इसलिए इन्हें “पीताम्बरा देवी” भी कहा जाता है। देवी का रूप अत्यंत उग्र है। उनके एक हाथ में गदा होती है और दूसरे हाथ से वे शत्रु की जीभ पकड़ती हैं, जो यह दर्शाता है कि वे शत्रु की वाणी को नियंत्रित कर सकती हैं।

बगलामुखी साधना का महत्व
बगलामुखी साधना कोई सामान्य पूजा नहीं है, यह एक तांत्रिक साधना है। यह जीवन के विभिन्न संकटों– जैसे शत्रु बाधा, मुकदमा, मानसिक तनाव, तंत्र बाधा, राजकीय परेशानी, धन हानि, आदि से मुक्ति दिला सकती है। यह साधना केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक शत्रुओं– जैसे भय, मोह, लोभ, क्रोध, और असमंजस को भी समाप्त करती है।

बगलामुखी मंत्र और उनके प्रयोग
1. बीज मंत्र (Beej Mantra)
“ॐ ह्लीं”
यह मंत्र अत्यंत संक्षिप्त और शक्तिशाली है। इसका उच्चारण साधक के भीतर ऊर्जा और मानसिक शक्ति का संचार करता है। यह मंत्र तंत्र बाधाओं को समाप्त करता है। इस मंत्र का नियमित जाप करने से भूत प्रेत बाधाएं भी दूर हो जाती हैं।

2. मूल मंत्र (Mool Mantra)
“ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा”
इस मंत्र का जाप विशेष रूप से शत्रु की गतिविधियों को रोकने, मुकदमे में सफलता पाने और किसी व्यक्ति की हानिकारक योजना को निष्क्रिय करने के लिए किया जाता है।

3. स्तोत्र मंत्र (Stotra Mantra)
“ॐ ऐं ह्लीं क्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिव्हां कीलय कीटं मूषकं चूर्णय चूर्णय मारय मारय शोषय शोषय मंथय मंथय उद्पाटय उद्पाटय ह्लीं ऐं क्लीं ॐ फट्।”
यह मंत्र अधिक उग्र है और गूढ़ साधना के लिए प्रयोग होता है। इसे केवल गुरु के निर्देश से ही किया जाना चाहिए। इस मंत्र के प्रयोग में छोटी सी त्रुटि भी साधक पर भारी पड़ सकती है।

साधना की विधि (Baglamukhi Sadhana Vidhi)
सामग्री:
• पीला वस्त्र और पीला आसन
• हल्दी की माला
• पीले फूल
• पीले फल और मिठाई
• कनेर का पुष्प, हल्दी की गांठ
• बगलामुखी यंत्र (यदि हो सके)
• पूजा थाली, दीपक, धूपबत्ती
पूजा विधि:
1. स्नान करके पीले वस्त्र धारण करें और पूजा स्थान को शुद्ध करें।
2. पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
3. देवी की प्रतिमा या चित्र की स्थापना करें।
4. “ॐ ह्लीं” मंत्र से ध्यान करें।
5. पंचोपचार पूजा करें – गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
6. हल्दी माला से कम से कम 108 बार मूल मंत्र का जाप करें।
7. प्रार्थना करें और देवी से अपनी समस्या के समाधान की प्रार्थना करें।

बगलामुखी हवन विधि (Baglamukhi Havan Vidhi)
हवन बगलामुखी पूजा का एक शक्तिशाली भाग है, जो मानसिक, आध्यात्मिक एवं भौतिक लाभ देता है। यह हवन किसी विद्वान के मार्गदर्शन में ही किया जाना चाहिए।
1. हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित करें।
2. पूजा कर अग्नि देवता को प्रणाम करें।
3. “ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां…” मंत्र से आहुतियां दें।
4. कम से कम 108 आहुतियां दें। साधना में 1,250 या 10,000 आहुतियां भी दी जाती हैं।
5. अंत में पूर्णाहुति दें और हवन समाप्त करें।

बगलामुखी साधना और हवन से होने वाले लाभ
1. शत्रु नियंत्रण और विजय:
बगलामुखी साधना शत्रुओं की बुद्धि, वाणी और चालों को स्तम्भित करती है। व्यक्ति को अपने विरोधियों से राहत मिलती है।

2. न्यायिक मामलों में सफलता:
कानूनी मुकदमों, कोर्ट केस, झूठे आरोपों और पुलिस केस में देवी की साधना अत्यंत उपयोगी होती है। हवन से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिससे निर्णय अपने पक्ष में आता है।

3. मानसिक स्थिरता और आत्मबल:
देवी की साधना से चित्त स्थिर होता है। मानसिक तनाव, भ्रम, और निर्णय लेने में असमर्थता समाप्त होती है।

4. तंत्र, नजर, और ऊपरी बाधा से रक्षा:
बगलामुखी देवी की पूजा और हवन तांत्रिक शक्तियों से रक्षा करती है। यदि किसी ने बुरा तंत्र प्रयोग किया हो, तो वह निष्क्रिय हो जाता है।

5. वाणी और भाषण में शक्ति:
इस साधना से वाणी में प्रभाव आता है। यह नेताओं, वकीलों, शिक्षकों, वक्ताओं आदि के लिए अत्यंत लाभकारी है।

6. व्यापार और करियर में उन्नति:
शत्रु बाधा दूर होने से व्यवसायिक एवं करियर के रास्ते साफ होते हैं। अचानक आने वाली रुकावटें समाप्त होती हैं।

7. पारिवारिक कलह का नाश:
यदि घर में आपसी मतभेद, तनाव, और पारिवारिक शत्रुता हो, तो बगलामुखी पूजा से सामंजस्य बनता है।

8. आत्मिक शक्ति और तांत्रिक सिद्धियां:
उच्च स्तर की साधना से साधक को आत्मिक बल प्राप्त होता है। वह भयमुक्त होता है, उसकी सहजता और अंतर्ज्ञान बढ़ता है।

विशेष अवसरों पर बगलामुखी पूजा
• अमावस्या: अमावस्या की रात को की गई साधना विशेष फलदायी होती है।
• गुप्त नवरात्रि: यह समय तांत्रिक साधना का उत्तम काल है।
• मंगलवार और शनिवार: यह देवी के प्रिय दिन माने जाते हैं।

सावधानियां और नियम
• साधना के समय पूर्ण ब्रह्मचर्य और संयम का पालन करें।
• बगलामुखी मंत्रों का उच्चारण शुद्धता से करें।
• देवी की साधना किसी को हानि पहुंचाने के लिए नहीं करनी चाहिए।
• गुरु के मार्गदर्शन में साधना करना अधिक उचित होता है।
• यदि हवन की विधि नहीं आती, तो सिर्फ जप भी प्रभावी हो सकता है।

बगलामुखी देवी की साधना और हवन एक अत्यंत प्रभावशाली और गहन आध्यात्मिक प्रक्रिया है। यह न केवल बाहरी शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करती है, बल्कि आंतरिक दोषों– जैसे भय, भ्रम, मानसिक अस्थिरता, निर्णयहीनता को भी दूर करती है। उचित विधि, श्रद्धा, संयम और नियमों का पालन करते हुए यदि यह साधना की जाए, तो साधक को न केवल सांसारिक लाभ, बल्कि आत्मिक उन्नति भी प्राप्त होती है।
————–

ऑनलाइन कुंडली दिखाने के लिए हमसे संपर्क करें।
वाट्सएप नंबर 9516141614 पर अपनी जानकारी भेजें-
नाम :
जन्म तारीख :
जन्म समय :
जन्म स्थान :
पांच प्रश्न :
कुडली देखने का शुल्क 500 रुपये। पेमेंट ऑनलाइन भेजकर उसका स्क्रीन शॉट वाट्सएप करें।

वशीकरण: एक रहस्यमय और प्राचीन विद्या


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

.
.

वशीकरण एक प्राचीन तांत्रिक विद्या है, जिसका प्रयोग किसी व्यक्ति के मन, विचार, भावना और व्यवहार को प्रभावित करने के लिए किया जाता है। यह शब्द संस्कृत के “वश” धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है “वश में करना” या “काबू पाना”। वशीकरण भारतीय संस्कृति में तंत्र-मंत्र और ज्योतिष शास्त्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। हालांकि आधुनिक विज्ञान इसे अंधविश्वास या मनोवैज्ञानिक प्रभाव मानता है, फिर भी भारत के कई हिस्सों में आज भी इसका व्यापक प्रभाव और आस्था देखने को मिलती है।

वशीकरण के प्रकार
वशीकरण कई प्रकार के होते हैं, जो उद्देश्य और प्रयोग के आधार पर भिन्न-भिन्न होते हैं। कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:

प्रेम वशीकरण: यह किसी व्यक्ति को प्रेम में आकर्षित करने या पुराने प्रेम को वापस लाने के लिए किया जाता है।
विवाह वशीकरण: जब कोई विवाह संबंध बनाना चाहता है लेकिन सामने वाला व्यक्ति तैयार नहीं होता, तब इसका प्रयोग किया जाता है।
व्यवसायिक वशीकरण: व्यापार या नौकरी में सफलता पाने के लिए यह प्रयोग किया जाता है।
शत्रु वशीकरण: अपने शत्रु को नियंत्रित करने या शांत करने के लिए इसे किया जाता है।
राज्य वशीकरण: पुराने काल में राजा-महाराजा अपने दरबारियों और शत्रुओं को वश में करने के लिए इसका उपयोग करते थे।

वशीकरण की प्रक्रिया
वशीकरण एक जटिल और संवेदनशील प्रक्रिया है, जिसमें मंत्र, तंत्र और विशेष सामग्री का प्रयोग किया जाता है। इसे करने के लिए पूर्ण एकाग्रता, विश्वास और अनुशासन की आवश्यकता होती है। वशीकरण की प्रक्रिया में निम्नलिखित मुख्य तत्व शामिल होते हैं:
मंत्र: विशेष प्रकार के मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। जैसे – “ॐ नमः भगवते रूद्राय…” आदि।
साधना: मंत्रों को सिद्ध करने के लिए रात्रिकाल में या विशेष तिथियों पर साधना की जाती है।
सामग्री: कुछ विशेष वस्तुएं जैसे गुलाब की पंखुड़ियाँ, चंदन, कपूर, दीपक, और पीला वस्त्र इत्यादि प्रयोग में लाए जाते हैं।
तांत्रिक या गुरु का मार्गदर्शन: बिना योग्य गुरु या जानकार के वशीकरण करना हानिकारक हो सकता है, इसलिए अनुभवी तांत्रिक की सलाह आवश्यक होती है।

वशीकरण का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो वशीकरण को एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक प्रभाव या सम्मोहन (Hypnosis) माना जा सकता है। जब कोई व्यक्ति किसी के प्रभाव में आ जाता है, तो वह उसके अनुसार सोचने और कार्य करने लगता है। इसे ही कुछ लोग “वशीकरण” मान लेते हैं। कई बार यह केवल आत्म-सुuggestion या विश्वास का प्रभाव भी हो सकता है।

वशीकरण के फायदे और नुकसान

फायदे:
प्रेम संबंधों में सुधार या पुनः स्थापन।
शत्रुओं की मानसिकता को बदलना।
व्यवसाय या करियर में सकारात्मक बदलाव।
दांपत्य जीवन में सामंजस्य लाना।

नुकसान:
गलत उद्देश्य से किया गया वशीकरण दूसरों को मानसिक या भावनात्मक रूप से नुकसान पहुंचा सकता है।
यदि विधि त्रुटिपूर्ण हो तो साधक को मानसिक और शारीरिक हानि हो सकती है।
कर्म के सिद्धांत के अनुसार, किसी की स्वतंत्र इच्छा पर नियंत्रण करना पाप के अंतर्गत आता है।

नैतिक और सामाजिक दृष्टिकोण
वशीकरण को लेकर समाज में मिश्रित विचार हैं। कुछ लोग इसे एक आध्यात्मिक शक्ति मानते हैं तो कुछ इसे धोखा और अंधविश्वास का नाम देते हैं। नैतिक दृष्टि से किसी की इच्छा या सोच को जबरन बदलना एक प्रकार की मानसिक हिंसा मानी जा सकती है। इसलिए यदि वशीकरण का प्रयोग करना भी हो, तो उसे केवल सकारात्मक और नेक इरादों से किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष
वशीकरण एक प्राचीन विद्या है, जो आज भी रहस्य और आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। यह न केवल तांत्रिक ज्ञान का हिस्सा है बल्कि भारतीय संस्कृति की गहराइयों में समाया हुआ है। हालांकि इसका प्रयोग करते समय व्यक्ति को सतर्कता, नैतिकता और जिम्मेदारी के साथ काम लेना चाहिए। अंधविश्वास से दूर रहकर, सही मार्गदर्शन और अच्छे उद्देश्य के लिए किया गया वशीकरण ही सकारात्मक परिणाम ला सकता है।

ऑनलाइन कुंडली दिखाने के लिए हमसे संपर्क करें।
वाट्सएप नंबर 9516141614 पर अपनी जानकारी भेजें-
नाम :
जन्म तारीख :
जन्म समय :
जन्म स्थान :
पांच प्रश्न :
कुडली देखने का शुल्क 500 रुपये। पेमेंट ऑनलाइन भेजकर उसका स्क्रीन शॉट वाट्सएप करें।

रोहिणी नक्षत्र की अक्षय तृतीया पर धन धान्य का योग


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

.
.

– ज्योतिष, धर्म एवं लोक कहावतों में विशिष्ट फलदायी माना गया है रोहिणी संग इस पर्व का योग
– वैशाख शुक्ल तृतीया को पितरों के निमित्त किए स्नान-दान, सत्कर्म का पुण्य कभी नहीं होता क्षय

अक्षय तृतीया में रोहिणी नक्षत्र के संयोग को अत्यंत श्रेष्ठ माना गया है। सुयोग से इस वर्ष का अक्षय तृतीया पर्व रोहिणी नक्षत्र युक्त है। ज्योतिष, धर्मशास्त्र के अतिरिक्त लोक में भी इस संबंध में विशद वर्णन मिलता है। भड्डरी की प्रचलित लोक कहावत में कहा गया है कि – ‘आखै तीज रोहिणी न होई। पौष अमावस मूल न जोई। महि माहीं खल बलहिं प्रकासै। कहत भड्डरी सालि बिनासै।’ अर्थात् वैशाख की अक्षय तृतीया को यदि रोहिणी न हो, तो पृथ्वी पर दुष्टों का बल बढ़ेगा और उस साल धान की उपज अल्प होगी। यानी, इस वर्ष रोहिणी नक्षत्र का योग होने से दुष्टों का बल घटेगा और धान की फसल अच्छी होने की संभावना है।

अक्षय तृतीया धार्मिक आध्यात्मिक तथा सामाजिक चेतना का पर्व है। इस दिन कोई दूसरा मुहूर्त न देखकर स्वयंसिद्ध शुभ मुहूर्त के कारण अनेक मांगलिक कार्य संपन्न किए जाते हैं। इस दिन किए गए पुण्यकार्य, त्याग, दान- दक्षिणा, जप-तप, हवन, गंगा-स्नान आदि कार्य अक्षय फल को देने वाले होते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन किए गए सभी शुभ कर्मों का फल अक्षय हो जाता है, इसीलिए इस तृतीया का नाम ‘अक्षय’ पड़ा है।

इस तिथि के अक्षय फल को देखते हुए लोग इस दिन धन-संपत्ति की खरीदारी करते हैं तथा बहुत से लोग वैवाहिक बंधन में बंधने के लिए इस पवित्र तिथि की प्रतीक्षा करते हैं। इस वर्ष वैशाख शुक्ल पक्ष में तृतीया तिथि मंगलवार 29 अप्रैल, 2025 की शाम 8:09 बजे से 30 अप्रैल की शाम 5:58 तक है। इसलिए नियमानुसार अक्षय तृतीया का पर्व बुधवार 30 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस दिन प्रात: 4:00 बजे से 6:19 बजे तक वृष, प्रात: 10:51 बजे से दोपहर 1:05 बजे तक सिंह, सायं 5:34 बजे से 7:51 बजे तक वृश्चिक व रात 11:44 बजे से रात 1:00 बजे तक कुंभ जैसे स्थिर लग्न हैं। इन मुहूर्तों में किया गया कोई भी शुभ कर्म अनंत काल तक पुण्यदायी बना रहेगा।

उच्च राशियों पर होंगे ग्रह
वैसे तो अक्षय तृतीया स्वयं एक अपुच्छ मुहूर्त है जिसमें कोई भी मंगल कार्य कभी भी किया जा सकता है, फिर इस बार तो सर्वार्थ सिद्धि योग व रवि योग इसे अत्यंत विशिष्ट बना रहे हैं। यही नहीं आकाशमंडल में भी इस बार सूर्य, चंद्र एवं शुक्र जैसे महत्वपूर्ण ग्रह अपनी उच्च राशियों में विराजमान रहेंगे। सूर्य मेष राशि पर, शुक्र मीन राशि पर तथा चंद्रमा वृषभ राशि पर उच्च के होंगे। इतना अत्यंत शुभ संयोग दशकों बाद बनता दिखाई दे रहा है।

——————————-
ऑनलाइन कुंडली दिखाने के लिए हमसे संपर्क करें।
वाट्सएप नंबर 9516141614 पर अपनी जानकारी भेजें-
नाम :
जन्म तारीख :
जन्म समय :
जन्म स्थान :
पांच प्रश्न :
कुडली देखने का शुल्क 500 रुपये। पेमेंट ऑनलाइन भेजकर उसका स्क्रीन शॉट वाट्सएप करें।

14 अप्रैल को मलमास समाप्त, बजेंगे बैंड, सजेंगी बरातें


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

.
.

इस वैवाहिक सत्र के 58 दिनों में 27 दिन मुहूर्त, वैशाख में 15 तो ज्येष्ठ में 12

प्रतीक्षा के पल समाप्त हुए, अब सोमवार से 58 दिवसीय वैवाहिक सत्र शुरू हो जाएगा। बैंड बजेंगे, बरातें सजेंगी और मंगलगीत गाए जाएंगे। 13 अप्रैल से इस नवसंवत्सर का द्वितीय वैशाख माह आरंभ होते ही 14 अप्रैल को खरमास समाप्त हो जाएगा और उसी दिन से वैवाहिक लग्न आरंभ हो जाएंगे। वैशाख माह के दोनों पक्षों में कुल मिलाकर 30 दिनों में 15 दिन विवाह के मुहूर्त हैं। इसी तरह ज्येष्ठ माह में आठ जून तक कुल 12 दिन लग्न के हैं।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष, श्रीकाशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री प्रो. विनय कुमार पांडेय ने बताया कि 14 अप्रैल की भोर में 5:29 बजे खरमास समाप्त हो जाएगा और इसी दिन पहला विवाह मुहूर्त 14 अप्रैल को होगा। इसके बाद 15 को मृत्युबाण व व्यतिपात योग होने से विवाहादि मंगल कार्य नहीं होंगे लेकिन 16 अप्रैल से पुन: इसका क्रम बीच-बीच में रुक-रुक कर चलता रहेगा। वैशाख कृष्ण पक्ष में 30 अप्रैल तक कुल नौ लग्न व शुक्ल पक्ष में एक से 10 मई तक छह वैवाहिक लग्न होंगे। इसके पश्चात ज्येष्ठ माह में 14 मई से आरंभ कृष्ण पक्ष में 23 मई तक पांच तथा शुक्ल पक्ष में 28 मई से 10 जून तक छह लग्न मिलेंगे। इस तरह वैवाहिक सत्र के 58 दिनों में कुल 27 दिन विवाह के मुहूर्त रहेंगे।

इस बार देवशयनी एकादशी के 28 दिन पूर्व ही खत्म हो जाएगा लग्न
ज्येष्ठ माह में आठ जून तक ही विवाह के लग्न हैं क्योंकि इस दिन से गुरु का वार्धक्य आरंभ हो जा रहा है और वह अस्त हो जाएगा। फिर यह सात जुलाई को उदित होगा लेकिन तब तक छह जुलाई को ही देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु के चातुर्मास्य की योगनिद्रा में चले जाने के कारण मांगलिक कार्य बंद हो चुके होंगे। इस बार देवोत्थान एकादशी तो पड़ेगी एक नवंबर को लेकिन लग्न फिर भी मार्गशीर्ष द्वितीया 22 नवंबर से आरंभ हो सकेगा। सूर्य वृश्चिक में नहीं होने के कारण तथा शुक्र तुला राशि का होने के कारण कार्तिक माह में विवाह के लग्न नहीं हो सकते। 22 नवंबर को आरंभ यह लग्न प्राय: प्रतिवर्ष 14 दिसंबर तक खरमास लगने तक जाता है। इस बार यह पांच दिसंबर को खरमास आरंभ होने के पूर्व ही खत्म हो जाएगा। कारण कि उसी दिन शुक्र अस्त हो जाएंगे जबकि खरमास 16 दिसंबर से आरंभ होगा। इसके बाद लग्न अगले वर्ष 16 जनवरी से मिलने आरंभ होंगे।

अप्रैल, मई-जून में विवाह की प्रमुख तिथियां
अप्रैल – 14, 16, 18, 19, 20, 21, 26, 29, 30
मई – 1, 5, 6, 8, 9, 10 (वैशाख लग्न समाप्त), ज्येष्ठ में- 14, 15, 17, 18, 22, 23, 28 मई
जून – 01, 02, 05, 07, 08 जून। गुरु अस्त।

29 मार्च से शनि बदल रहा राशि, जानिए क्या होगा आप पर असर


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

.
.

शनि का मीन राशि में प्रवेश 29 मार्च 2025 को रात्रि 9 बजकर 41 मिनट पर होगा। शनि मीन राशि में 3 जून 2027 तक रहेगा। इन ढाई वर्षों में शनि की साढ़ेसाती का प्रथम चरण मेष राशि पर रहेगा, द्वितीय चरण मीन राशि पर रहेगा और अंतिम चरण कुंभ राशि पर रहेगा। सिंह और धनु राशि पर लघु कल्याणी ढैया चलेगा।

साढ़ेसाती वाली राशियों पर प्रभाव

मेष राशि : मेष राशि के जातकों को लोहे के पाये से मस्तक पर शानि की साढ़ेसाती का प्रथम ढैय्या प्रारंभ होगा। इस राशि के लिए शनि दसवें और ग्यारहवें स्थान का स्वामी होकर बारहवें स्थान में भ्रमण करेगा, जो शुभप्रद नहीं कहा जा सकता। शासन की तरफ से परेशानी, निरर्थक यात्राएं, व्यापार-व्यवसाय व नौकरी में अड़चनें, पारिवारिक क्लेश, आर्थिक क्षेत्र में उतार-चढ़ाव, अपव्यय, स्वयं, पति/पत्नी एवं संतान को शारीरिक कष्ट, भाग्य में कमजोरी तथा कर्जा (ऋण) लेने की स्थिति बनेगी। जन्मकालीन मंगल, शनि अथवा सूर्य पर से शनि का भ्रमण अत्यंत अरिष्टप्रद हो सकता है। आय के स्रोत में कमी आएगी, जन्मकुण्डली में शनि बलवान होगा तो उपर्युक्त अशुभ फलों में कमी आकर व्यावसायिक उन्नति, मित्रों से सहयोग तथा धनलाभ के योग बनेंगे।
उपाय : आपको हनुमानजी को अपना आराध्य बनाकर रखना होगा। नियमित दर्शन करें। अपने घर के मुख्य द्वार पर पंचमुखी हनुमान जी फोटो लगाएं। शनि का दुष्प्रभाव आपके घर में प्रवेश नहीं कर पाएगा।

मीन राशि : मीन राशि के जातकों को स्वर्ण पाद से शनि की साढ़ेसाती का दूसरा ढैय्या हृदय पर प्रारंभ होगा। मीन राशि के लिए शनि एकादश व द्वादश स्थान का स्वामी होकर प्रथम भाव में भ्रमण करने पर स्वास्थ्य में खराबी, नौकरी-धन्धे में उतार-चढ़ाव, कार्यों में रूकावट, स्वजनों का वियोग, स्थानांतर प्रवास योग, भागीदारी से हानि, नैराश्य भाव एवं पति/पत्नी को पीड़ा होगी, भाई-बहनों से मतभेद होंगे। जन्म का शनि श्रेष्ठप्रद होगा तो रूके हुए कार्य पूर्ण होंगे, आत्मबल में वृद्धि होगी, लाभकारी यात्राएं होगी और धनसुख का योग बनेगा। उच्च शिक्षा के विद्यार्थियों के लिए शनि का यह ढैया चुनौतीपूर्ण रहेगा।
उपाय : श्रीकृष्ण और भगवान विष्णु आपके आराध्य रहेंगे। इनकी पूजा और मंत्रों स्तोत्र का जाप शनि की कुदृष्टि से बचाएगा। घर में मोरपंख अवश्य रखें।

कुुंभ राशि : कुंभ राशि के जातकों को चांदी के पाये से शनि की साढ़ेसाती का अंतिम ढैया चरणों से प्रारंभ होगा। आपकी राशि के लिए शनि बारहवें और प्रथम स्थान का स्वामी होकर द्वितीय स्थान में भ्रमण करेगा जो शुभप्रद नहीं है। साढ़ेसाती के दौरान प्रियजन से विवाद, प्रियजन का वियोग, धनहानि, पैतृक संपत्ति को लेकर विवाद, परिवार से क्लेश, कदाचित गृहत्याग, पति/पत्नी को शारीरिक कष्ट, यश में कमी, नकारात्मक विचार एवं ऋण (कर्ज) लेने की स्थिति बनेगी। यदि जन्मांग में शनि बलवान होगा तो आय में वृद्धि के योग बनेंगे। कोर्ट कचहरी के मामलों में अनुकूलता होगी। स्थायी संपत्ति की प्राप्ति होगी। यशोमान में वृद्धि होगी।
उपाय : शनिदेव आपके आराध्य रहेंगे। नियमित रूप से शनि चालीसा का पाठ करें। काले घोड़े की नाल घर के मुख्य द्वार पर लगाएं।

शनि के लघु कल्याणी ढैय्या वाली राशियों पर असर

सिंह राशि : सिंह राशि वाले जातकों को शनि का लघुकल्याणी ढैय्या अष्टम स्थान में लौह पाद से प्रारंभ होगा। इस राशि के लिए शनि छठे एवं सातवें स्थान का स्वामी होकर अष्टम स्थान में भ्रमण करेगा जो शुभप्रद नहीं कहा जा सकता। स्वयं व पति/पत्नी को शारीरिक पीड़ा. नौकरी/धन्धे में परेशानी, आर्थिक हानि, कोर्ट के मामलों में प्रतिकूलता, मित्र, वाहन व पशु से हानि, निरर्थक यात्राएं, दुर्जनों से संगति होगी, बुरी संगत में पड़कर आप भी मुश्किलों में फंस सकते हैं। मानसिक संताप तथा स्वजनों को कष्ट होंगे। जन्मगत शनि की स्थिति अच्छी होने पर भागदौड़ के साथ धनलाभ-सफलता एवं रूके हुए कार्य पूर्ण होंगे।
उपाय : सिंह राशि के जातक हनुमानजी को प्रत्येक मंगलवार को एक नारियल पर सिंदूर लगाकर अर्पित करें। गुड़ चने का भोग लगाकर प्रसाद बांटें।

धनु राशि : धनु राशि के जातकों को शनि का लघुकल्याणी ढैय्या चतुर्थ स्थान में लोहे के पाये से प्रारंभ होगा। इस राशि के लिए शनि द्वितीय व तृतीय स्थान का स्वामी है।अत: स्थान परिवर्तन, यात्रा में कष्ट, सौख्यता में कमी, विरोध, माता-पिता को शारीरिक पीड़ा एवं राजकीय संकट की स्थिति बनेगी। जिन जातकों की जन्मकुण्डली में शनि बलवान होगा तो जमीन-जायदाद व वाहन सुख प्राप्त होगा, नौकरी-व्यवसाय में सफलता, फंसा हुआ- डूबा हुआ (नष्टांश) धन की प्राप्ति एवं कार्य सिद्धि होगी।
उपाय : देवी दुर्गा को हर दिन कपूर के तेल का दीया लगाएं। शनि की पीड़ा कम होगी।

अन्य राशियों पर मीन के शनि का असर

वृषभ राशि : शनि आपके नवम और दशम भाव का स्वामी होकर एकादश भाव में भ्रमण करेगा। आर्थिक दृष्टि से समय ठीक कहा जा सकता है। भाग्य के दरवाजे खुलने वाले हैं। नौकरी, व्यापार व्यवसाय में अच्छी सफलता, धन लाभ, स्त्री वर्ग, लोहा, भूमि, सीमेंट अथवा मशीनरी के कार्यों से लाभ, विवाह योग, यशोमान में वृद्धि कन्या सन्तति की प्राप्ति एवं आरोग्यता बनी रहेगी। शनि आपकी राशि पर स्वर्ण पाद से भ्रमण करेगा। जन्म कुंडली में शनि निर्बल होने पर पति/पत्नी व सन्तान पीड़ा, मित्रों व आत्मीयजनों का विश्वासघात एवं आशा भंग होगी।
उपाय : शिवजी की आराधना करें। शिवजी के सौम्य रूप की तस्वीर घर में लगाकर उसका नित्य दर्शन करें।

मिथुन राशि : शनि आपकी राशि से अष्टम और नवम का स्वामी होकर दशम भाग में गोचर करेगा। समय अनुकूल आ रहा है। कार्य स्थान में शनि आपको कर्म प्रधान बनाएगा। अटके काम चल पड़ेंगे और आप काम आगे बढ़ाने के लिए स्वयं प्रवृत्त होंगे। भाग्योदय होगा, आर्थिक लाभ, नौकरी-व्यवसाय में उन्नति, कोर्ट के मामलों में अनुकूलता, प्रभावशाली व्यक्तियों से परिचय व लाभ होगा एवं सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। जिन जातकों की जन्म कुंडली में शनि बलहीन होगा उनके माता-पिता को पीड़ा, राजभय, नौकरी-व्यवसाय में परिवर्तन-बाधा, दांपत्य जीवन व विरोध की स्थिति बनेगी।
उपाय : मिथुन राशि के जातक कौवे के लिए नित्य खाना रखें। कौवे न मिले तो काली गाय को एक रोटी हर दिन खिलाएं।

कर्क राशि : कर्क राशि के जातकों के लिए शनि सप्तम और अष्टम भाव का स्वामी होकर नवम भाग्य भाव में भ्रमण करेगा। समय तो शुभ आने वाला है। नौकरी-धन्धे में सफलता मिलेगी, धनलाभ होगा, धर्म-कर्म में रुचि बढ़ेगी, धार्मिक कार्यों में शामिल होंगे, संतों से भेंट होगी, लाभकारी यात्राएं करेंगे, यश-प्रतिष्ठा में वृद्धि एवं सन्तान सुख प्राप्त होगा। यदि जन्मगत शनि निर्बल होगा तो भाई-बहनों व मित्रों को कष्ट मिलेगा, उपेक्षा के शिकार हो सकते हैं, संतान को पीड़ा या संतान की ओर से पीड़ा होगी, शत्रुभय, आर्थिक परेशानी, अनिष्ट प्रसंग, पति/पत्नी का स्वास्थ्य खराब एवं कार्यों में विघ्न आएंगे।
उपाय : शिवजी को कच्चे दूध में बादाम का तेल डालकर अभिषेक करें। शनि की पीड़ा दूर होगी।

कन्या राशि : कन्या राशि के जातकों के लिए शनि पांचवें और छठे भाव का स्वामी होकर सातवें भाव में भ्रमण करेगा। शिक्षा में बाधा, प्रेम प्रसंगों में टकराव, पति/पत्नी को दीर्घ रोग, नौकरी-व्यवसाय में परेशानी, भागीदारी के कार्यों में हानि, शारीरिक पीड़ा, परदेश वास, कष्टदायक प्रवास होगा। कार्यों में विलंब तथा धन हानि के योग बनेंगे। इस राशि के जिन लोगों की जन्मकुंडली में शनि शुभ स्थिति में होगा उन्हें आर्थिक लाभ, व्यावसायिक उन्नति, कोर्ट के मामलों में विजय एवं द्विभार्या योग होने पर पुनर्विवाह के भी योग बनेंगे। शनि बलवान होने पर वाहन, मशीनरी, शेयर कारोबार से लाभ होगा।
उपाय : इस राशि के जातक शनि की पीड़ा दूर करने के लिए केसर का इत्र लगाएं। घर में मोरपंख रखें और काले घोड़े को प्रत्येक शनिवार को सरसों के तेल में भिगोए हुए काले चने खिलाएं।

तुला राशि : तुला राशि के जातकों के लिए शनि चतुर्थ-पंचम का स्वामी होकर छठे भाव में गोचर करने वाला है। यहां बैठकर शनि सुखों को प्रभावित करेगा। अचानक स्थान परिवर्तन की स्थिति बन सकती है। आर्थिक रुकावटें आएंगी। परिवार से दूर रहना होगा। जन्मगत शनि मजबूत होने पर शत्रु नाश, आरोग्यता, द्रव्यलाभ, कोर्ट में विजय, ऋण (कर्ज) से छुटकारा, नौकरी-व्यवसाय में सफलता, मित्रों से लाभ, स्थायी संपत्ति की प्राप्ति तथा पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
उपाय : शिवजी को कच्चे दूध में काले तिल डालकर प्रत्येक शनिवार को अभिषेक करें।

वृश्चिक राशि : वृश्चिक राशि के लिए शनि तीसरे चौथे भाव का स्वामी होकर पंचम में भ्रमण करेगा। इस दौरान संतान की चिंता, अनिष्ट प्रसंग, स्थान परिवर्तन, शेयर कारोबार में हानि, विद्या अध्ययन में रूकावट, आय से अधिक व्यय, नौकरी-धन्धे में उतार-चढ़ाव, पति/पत्नी को शारीरिक पीड़ा एवं बुद्धि भ्रम होगा। जन्मतः शनि श्रेष्ठ होने पर विद्या (शिक्षा) में पूर्ण सफलता, कन्या संतान की प्राप्ति, स्थायी संपत्ति की प्राप्ति, मित्रों से सुख एवं नौकरी-व्यवसाय में उन्नति होगी।
उपाय : प्रत्येक मंगलवार को बजरंग बाण या सुंदरकांड का पाठ करें। घर में हनुमान जी की संजीवनी लाती हुई तस्वीर लगाएं।

मकर राशि : मकर राशि के लिए शनि प्रथम और द्वितीय भाव का स्वामी होकर तृतीय में भ्रमण करेगा। समय उत्तम रहेगा। उद्योग-धन्धे-नौकरी में उत्कर्ष, धनलाभ, सर्वत्र अनुकूलता, पद-पराक्रम में वृद्धि, भातृसुख में वृद्धि, शत्रुनाश, आरोग्यता, भूमिलाभ, अभीष्ट कार्यों में सफलता एवं यशोमान की प्राप्ति होगी। जन्मकुण्डली में शनि कमजोर होने पर कष्टप्रद यात्राएं, भाई-बहन व संतान की ओर से पीड़ा. मानसिक अशांति, इच्छा विरूद्ध स्थान परिवर्तन, अपयश तथा कुटु‌म्बिक क्लेश होगा।
उपाय : शनि देव के दर्शन हर शनिवार को करें, हनुमान चालीसा का पाठ नियमित रूप से करें।

कालयुक्त नव संवत्सर 2082 का राजा-मंत्री सूर्य और सेनापति हैं शनि


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

.
.
कालयुक्त नव संवत्सर 2082 का राजा-मंत्री सूर्य और सेनापति हैं शनि

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से हिंदू नव वर्ष अर्थात् नव संवत्सर प्रारंभ होता है। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि भी प्रारंभ होती है। इस बार नव संवत्सर 30 मार्च 2025 रविवार से शुरू हो रहा है। इस संवत्सर का नाम है कालयुक्त और इसके राजा-मंत्री सूर्य और सेनापति शनि हैं।

राजा सूर्य का फल
सूर्य का स्वभाव गर्म होता है। इसलिए इस वर्ष भीषण गर्मी का प्रकोप रहने वाला है। गर्मी से प्रजा का हाल बेहाल होगा, लेकिन चूंकि सूर्य राजा भी है इसलिए वे प्रजा का ध्यान भी रखेंगे, इसी कारण इस वर्ष बारिश भी अच्छी होने वाली है ताकि खूब खाद्यान्न पैदा हो सके। विश्व के प्रमुख शासनाध्यक्षों-राष्ट्राध्यक्षों के लिए यह वर्ष अशुभप्रद होगा। कहीं छत्रभंग (सत्ताच्युत अथवा निधन) के योग बनेंगे।

मंत्री सूर्य का फल
नए संवत्सर के मंत्री भी सूर्य हैं इसलिए वे रणनीतिक रूप से निर्णय लेंगे। शासक-प्रशासक वर्ग से जनता पीड़ित रहेगी। नए कर जनता पर थोपे जा सकते हैं। देश की आर्थिक स्थिति में बड़े उतार-चढ़ाव होंगे। शेयर मार्केट में बड़े बदलाव इस साल देखने को मिल सकते हैं। धान्य व रसपदार्थों के भावों में कुछ मंदी आएगी, कहीं राजविग्रह (राजनैतिक अस्थिरता – मंत्रिमण्डलों में परिवर्तन) जैसी स्थिति सामने आ सकती है।

सस्येश बुध का फल
बुध का स्वभाव राजकुमारों जैसा होता है। राजकुमार अपनी प्रजा से अधिक प्रेम करता है। इसके अनुसार इस वर्ष वर्षा उत्तम होने के योग बनेंगे। प्रजाजन में सुख समृद्धि व शांति का वातावरण रहेगा। ब्राह्मण वर्ग के लिए यह वर्ष विशेष अनुकृपा वाला रहेगा। धार्मिक अनुष्ठानों और ज्योतिषीय कार्यों में संलग्न होकर इस वर्ष ब्राह्मण वर्ग अच्छा धन अर्जित कर पाएंगे।

धान्येश चंद्र का फल
इस वर्ष गेहूं आदि धान्य एवं सरसों, सोयाबीन आदि तिलहनी पदार्थों का उत्पादन जबर्दस्त होने का अनुमान है। दुग्ध पदार्थों में अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि होगी। प्रजा में सौख्यता बनी रहेगी। दूर देशों से व्यापार बढ़ेगा।

मेघेश सूर्य का फल
यह वर्ष फसलोत्पादन के लिए श्रेष्ठ रहेगा। चावल, जौ. चना एवं इक्षु (शक्कर) आदि का उत्पादन अच्छा होगा। किंतु प्रजा रोगभय से त्रस्त रहेगी। महंगाई बढ़ेगी। इस कारण सरकारों के प्रति जनता का गुस्सा फूटेगा।

फलेश शनि का फल
कहीं-कहीं वर्षा की कमी होने पर तृण-घास, पुष्प व फलादि की उत्पत्ति कम होगी। कुछ क्षेत्रों में ओलावृष्टि व शीतलहर (हिमपात) होने से खड़ी फसलों को नुकसान होगा। जनता संक्रामक रोगों से पीड़ित होगी। भूकंप, जलप्लावन, पश्चिमी देशों में या देश के पश्चिमी राज्यों में वायुयान दुर्घटना, दक्षिण के प्रदेशों में ट्रेन दुर्घटना होगी।।

रसेस शुक्र
रस पदार्थों का स्वामी इस बार शुक्र रहेगा। इसलिए यह वर्ष मिठास भरा रहेगा। यह मिठास रिश्तों, संबंधों में भी बनी रहेगी। क्योंकि इन सब चीजों पर शुक्र का ही अाधिपत्य होगा। हालांकि रिश्तों को कलंकित करने वाली अनेक दिल दहला देने वाली घटनाएं भी सामने आएंगी।

धनेश मंगल का फल
धन का अधिपति मंगल रहेगा। इस कारण इस साल प्रॉपर्टी के कारोबार में बेतहाशा वृद्धि होगी। शेयर मार्केट में रियल एस्टेट, कृषि, टेक्नोलॉजी के शेयरों में जबर्दस्त उछाल रहने वाला है। वस्तुओं में तेजी-मंदी अधिक होगी, विशेषकर वायदा-हाजिर शेयर के व्यापार में उतार चढ़ाव (उठापटक) बनी रहेगी। गेहूं, चना आदि तुष धान्यों की प्रकृति प्रकोप से हानि होगी। सरकार की रीति-नीति सुयोजित नहीं होने से विदेशी मुद्रा भण्डार में कुछ कमी आएगी।

दुर्गेश (सेनापति) शनि का फल
विश्व के अनेक देशों के बीच टकराव होगा। सरकारें एक-दूसरों पर बड़े करारोपण करेंगी जिससे विवादित स्थितियां पैदा होंगी। राजविग्रह (राजनीतिक लड़ाई). गृहयुद्ध उपद्रव, विरोध, हड़ताल, प्रदर्शन, रैलियां, चक्काजाम आदि से सामान्य प्रजाजन विचलित होंगे, जनता में भी वैर-विरोध बढ़ेगा।

किसको कौन सा पद
सूर्य- राजा- राष्ट्रपति राष्ट्राध्यक्ष
सूर्य- मंत्री- प्रधानमंत्री शासनाध्यक्ष
बुध- सस्येश- वर्षा ऋतु की फसलों का स्वामी
चंद्र- धान्येश- शरद ऋतु की फसलों का स्वामी
सुर्य- मेघेश- मेघ वर्षा का स्वामी
शुक्र- रसेश- रसपदार्थों का स्वामी
बुध- नीरसेश- धातु वस्त्रादि का स्वामी
शनि- फलेश- समग्र फलों का स्वामी
मंगल- धनेश- धन एवं कोष का स्वामी
शनि- दुर्गेश- रक्षा व सेनानायक

—————————–

विशेष :
ऑनलाइन कुंडली दिखाने के लिए हमसे संपर्क करें। वाट्सएप नंबर 9516141614 पर अपनी जानकारी भेजें-
नाम :
जन्म तारीख :
जन्म समय :
जन्म स्थान :
पांच प्रश्न :
कुडली देखने का शुल्क 500 रुपये। पेमेंट ऑनलाइन भेजकर उसका स्क्रीन शॉट वाट्सएप करें।