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हनुमान को प्रसन्न कर लिया तो शनि की पीड़ा भी हो जाएगी दूर

हनुमानजी को अष्टसिद्धि और नौ निधियों का दाता कहा गया है। उनकी पूजा और भक्ति से जीवन में सत्कर्मों का उदय होता है और जीवन के सारे अभाव दूर हो जाते हैं। हनुमानजी की आराधना से शनि की पीड़ा से भी मुक्ति मिलती है। शनि की पीड़ा शांत करने के लिए शनि के स्तोत्र, मंत्रों का जाप करना लाभकारी होता है किंतु हनुमानजी के भक्तों को शनि कभी पीड़ा नहीं देते। जिन लोगों को शनि की साढ़ेसाती, लघु ढैया चल रहा हो या जिनकी कुंडली में शनि खराब अवस्था में हो उन्हें स्तोत्र और मंत्रों का जाप अवश्य करना चाहिए।

– सुंदरकांड, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण का पाठ शनि की पीड़ा तुरंत दूर करते हैं। इसके अलावा श्री शनैश्चर स्तोत्र-कवच, शनि अष्टोत्तर शत नामावली का पाठ, रुद्राभिषेक करना उत्तम रहता है।

– शनि के मंत्र ऊं शं शनैश्चराय नम: अथवा ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: के 23 हजार जाप और दशांश हवन लाभ देता है।

– शनिदेव की मूर्ति पर तेल चढ़ाना, शनियंत्र की पूजा और इस दिन व्रत रखने से शनि प्रसन्न होंगे।

– पीपल वृक्ष की पूजा, काले कलर की वस्तुओं का दान, काला वस्त्र, उड़द, तेल पक्वान्न पदार्थ तथा छायापात्र का दान करना चाहिए।

– जिन्हें शनि की महादशा-अंतर्दशा चल रही हो तो मध्यमा अंगुली में नीलम रत्न या इसके उपरत्न जमुनिया, कटेला, वैदूर्यमणि या फिरोजा धारण करे।

इस शनि स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करें-

ऊं नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय नमोस्तु ते ।

नमस्ते बभु्ररूपाय कृष्णाय च नमोस्तु ते ।।

नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चान्तकाय च ।

नमस्त यम संज्ञाय नमस्ते सौरये विभो ।।

नमस्त मन्द संज्ञाय शनैश्चर नमोस्तु ते ।

प्रसादं कुरू देवेश दीनस्य प्रणतस्य च ।।

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शनि का यह पौराणिक मंत्र भी जपें

ऊं नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।

छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।।

साक्षात कामदेव के समान बना देता है 13 मुखी रुद्राक्ष

शास्त्रों में 13 मुखी रुद्राक्ष को साक्षात कामदेव के समान कहा गया है। इस रुद्राक्ष को धारण करने वाले व्यक्ति की सारी इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है। जीवन में उसे किसी वस्तु का अभाव नहीं रहा जाता और वह जगत को मोहित करने की शक्ति धारण कर लेता है। 13 मुखी रुद्राक्ष पर इंद्र देव और माता महालक्ष्मी की कृपा है इसलिए जो मनुष्य इस रुद्राक्ष को धारण करता है वह अतुलनीय धन-संपदा प्राप्त करता है। यह शुक्र और चंद्रमा दोनों द्वारा शासित है और इस मनके की सतह पर 13 प्राकृतिक रेखाएं होती हैं। यह उन व्यवसायों के लोगों के लिए अच्छा है जहां उन्हें लोगों को आकर्षित करने और उनसे लाभ लेने की आवश्यकता होती है। यह रुद्राक्ष पहनने वाले को सांसारिक सुख देने में मदद करता है।

जानिए 13 मुखी रुद्राक्ष पहनने के लाभ

– यह महिलाओं की यौन और प्रजनन क्षमता मजबूत करके उत्तम संतान की प्राप्ति में मदद करता है।

– यह रुद्राक्ष पहनने वाला व्यक्ति जीवन के संपूर्ण सुखों का आनंद भोगता है।

– इस रुद्राक्ष को धारण करने से नि:संतान दंपत्तियों को उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।

– 13 मुखी रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति के चेहरे पर तेज आता है जिससे वह जगत को मोहित कर सकता है।

– दांपत्य जीवन के संकट दूर करने के लिए इस रुद्राक्ष को धारण करना चाहिए।

– यह रुद्राक्ष मंगल और शुक्र ग्रह के दुष्प्रभाव को दूर करने में मदद करता है।

– इस रुद्राक्ष को पहनने से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति तेजी से होने लगती है।

कैसे धारण करें 13 मुखी रुद्राक्ष

13 मुखी रुद्राक्ष पहनने से पहले उसका शुद्धीकरण और जागृत करना आवश्यक है वरना उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। इसे या तो किसी विद्वान पंडित से जागृत करवाना सही रहता है या स्वयं कर रहे हैं तो इस विधि का पालन करें। सबसे पहले स्नानादि से निवृत्त होकर अपने पूजा स्थान में बैठें। एक चांदी या कांसे के पात्र में रुद्राक्ष रखें और इसे पहले सामान्य जल से, फिर दूध-दही से, फिर सामान्य जल से और फिर गंगाजल से स्नान करवाएं। फिर ऊं ह्रीं नम: का जाप एक माला किसी भी रुद्राक्ष की माला से करें। इसके बाद इसे धूप-दीप, पूजन करके लाल धागे या चांदी-सोने की माला में पहन लें। रुद्राक्ष इस तरह धारण करें कि यह शरीर से स्पर्श करता रहे।

जानिए दिशाओं के ग्रह और देवता, इन्हें प्रसन्न कर लिया तो होंगे वारे-न्यारे

संपूर्ण वास्तु शास्त्र दिशाओं के आधार पर काम करता है। किसी भूमि, भवन या प्रतिष्ठान के स्थित होने की दिशाओं के आधार पर उससे मिलने वाले सुख और दुख निर्भर करते हैं। यदि आपका घर वास्तु के सिद्धांतों के आधार पर बना हुआ है तो उसमें निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा होगा, उनकी आर्थिक प्रगति होगी और उस घर में कभी कोई बड़ा संकट नहीं आएगा, लेकिन यदि घर में किसी प्रकार का वास्तु दोष है तो वहां रहने वालों का जीवन नर्क के समान हो जाएगा। वास्तु शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक दिशा का एक-एक स्वामी और ग्रह निर्धारित किया गया है। यदि हमें वास्तु के अनुरूप दिशाओं और उनके स्वामी का ज्ञान हो तो वास्तु दोष को दूर किया जा सकता है। दोष दूर होने से धन, संपदा, सुख, शांति और ऐश्वर्यशाली जीवन बिताया जा सकता है।

ज्योतिष और वास्तु दोनों ही शास्त्रों में चार मुख्य दिशाओं और चार उपदिशाओं अर्थात कुल आठ दिशाओं को मान्यता प्राप्त है। वेदों में 10 दिशाएं बताई गई हैं, इनमें उ‌र्ध्व और अधो यानी आकाश और पाताल को भी दिशाएं माना गया है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर आठ दिशाओं को गिना जाता है। ये आठ दिशाएं तथा उनसे संबंधित ग्रह-देवता इस प्रकार हैं।

दिशा- अधिपति ग्रह- देवता

1. पूर्व- सूर्य- इंद्र

2. पश्चिम- शनि- वरुण

3. उत्तर- बुध- कुबेर

4. दक्षिण- मंगल- यम

5. उत्तर-पूर्व (ईशान)- गुरु- शिव

6. दक्षिण-पूर्व (आग्नेय)- शुक्र- अग्नि देवता

7. दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य)- राहु-केतु- नैऋति

8. उत्तर-पश्चिम (वायव्य)- चंद्र- वायु देवता

पूर्व दिशा : इस दिशा का अधिपति ग्रह सूर्य और देवता इंद्र है। यह देवताओं का स्थान है। यहां से संबंधित दोष दूर करने के लिए प्रतिदिन गायत्री मंत्र और आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। यह दिशा मुख्यत: मान-सम्मान, उच्च नौकरी, शारीरिक सुख, नेत्र रोग, मस्तिष्क संबंधी रोग और पिता का स्थान होती है। इस दिशा में दोष होने से इनसे संबंधित परेशानियां आती हैं।

पश्चिम दिशा : इस दिशा का अधिपति ग्रह शनि और देवता वरुण है। यह दिशा सफलता, संपन्ता प्रदान करने वाली दिशा है। पश्चिम दिशा में दोष होने पर वायु विकार कुष्ठ रोग, शारीरिक पीड़ाएं और प्रसिद्धि और सफलता में कमी आती है। इस दिशा से संबंधित दोष दूर करने के लिए शनि देव की उपासना करना चाहिए। ऐसे घर या प्रतिष्ठान में शनि यंत्र की स्थापना करें।

उत्तर दिशा : उत्तर दिशा का अधिपति ग्रह बुध और देवता कुबेर है। इस दिशा में किसी प्रकार का दोष होने से संपूर्ण जीवन नारकीय हो जाता है। व्यक्ति और उसका परिवार जीवनभर आर्थिक तंगी से जूझता रहता है। सफलता नहीं मिलती और संकट बना रहता है। वाणी दोष, त्वचा रोग भी आते हैं। इस दिशा का दोष दूर करने के लिए बुध यंत्र की स्थापना करें। गणेश और कुबेर की पूजा करें।

दक्षिण दिशा : दक्षिण दिशा का अधिपति ग्रह मंगल और देवता यम है। इस दिशा में दोष होने पर परिवारजनों में कभी आपस में बनती नहीं है। सभी एक-दूसरे के विरोधी बने रहते हैं। सभी के बीच में लड़ाई झगड़े बने रहते हैं। संपत्ति को लेकर भाई-बंधुओं में विवाद चलता रहता है। इस दिशा के दोष दूर करने के लिए नियमित रूप से हनुमान जी की पूजा करें। मंगल यंत्र की स्थापना करें।

उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) : ईशान कोण का स्वामी ग्रह गुरु और देवता शिव हैं। यह दिशा ज्ञान, धर्म-कर्म की सूचक है। इस दिशा में दोष होने पर व्यक्ति की प्रवृत्ति सात्विक नहीं रहती। परिवार में सामंजस्य और प्रेम का सर्वथा अभाव रहता है। धन की कमी बनी रहती है। संतान के विवाह कार्य में देर होती है। दोष दूर करने के लिए ईशान कोण को हमेशा साफ सुथरा रखें। धार्मिक पुस्तकों का दान करते रहें।

दक्षिण-पूर्व दिशा (आग्नेय कोण) : इस दिशा का अधिपति ग्रह शुक्र और देवता अग्नि है। यदि इस दिशा में कोई वास्तु दोष है तो पत्नी सुख में बाधा, वैवाहिक जीवन में कड़वाहट, असफल प्रेम संबंध, कामेच्छा का समाप्त होना, मधुमेह- आंखों के बने रहते हैं। इस दिशा के दोष दूर करने के लिए घर में शुक्र यंत्र की स्थापना करें। चांदी या स्फटिक के श्रीयंत्र की नियमित स्थापना करें।

दक्षिण-पश्चिम दिशा (नैऋत्य कोण) : इस दिशा के अधिपति ग्रह राहु-केतु और देवता नैऋति हैं। इस दिशा में दोष होने पर व्यक्ति हमेशा परेशान रहता है। कोई न कोई परेशानी लगी रहती है। ससुराल पक्ष से परेशानी, पत्नी की हानि, नौकरी, झूठ बोलने की लत आदि रहती है। इस दिशा के दोष दूर करने के लिए राहु-केतु के निमित्त सात प्रकार के अनाज का दान करना चाहिए। गणेश-सरस्वती की पूजा करें।

उत्तर-पश्चिम दिशा (वायव्य कोण) : इस दिशा का स्वामी ग्रह चंद्र और देवता वायु है। इस दिशा में दोष होने पर व्यक्ति के संबंध रिश्तेदारों से ठीक नहीं रहते हैं। मानसिक परेशानी, अनिद्रा, तनाव रहना बना रहता है। अस्थमा और प्रजनन संबंधी रोगों की अधिकता रहती है। घर की स्त्री हमेशा बीमार रहती है। दोष दूर करने के लिए नियमित शिवजी की उपासना करें।

अपने जन्म के मूलांक से जानिए किस साल में खुलेगी किस्मत

प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में तरक्की के सपने देखता है। वह जल्द से जल्द समस्त प्रकार की भौतिक सुख-सुविधाएं पा लेना चाहता है। इसके लिए वह कठिन परिश्रम भी करता है, लेकिन सभी लोगों के सपने सच नहीं हो पाते। कुछ को जरा सी मेहनत में बहुत कुछ हासिल हो जाता है, लेकिन कुछ लोग जीवनभर परेशानी में गुजार देते हैं। कई लोग सही समय पर काम शुरू नहीं कर पाते इसलिए भी परेशानियों में घिरे रहते हैं। यदि अंक शास्त्र पर भरोसा करते हैं तो इसमें भाग्य कब उदय होगा इसका सही-सही समय निकाला जा सकता है। अंक ज्योतिष में मूलांक के आधार पर जाना जा सकता है कि आपका भाग्योदय किस उम्र में होगा।

अंक ज्योतिष में 1 से 9 तक मूलांक होते हैं। अपनी जन्म तारीख के आधार पर मूलांक तय होता है। जैसे यदि आपकी जन्म तारीख महीने की 1 से 9 के बीच है तो वही आपका मूलांक होगा। यदि आपकी जन्म तारीख महीने की 10 से 31 तारीख के बीच है तो इन दो अंकों को जोड़ लें, वही आपका मूलांक होगा।

जैसे यदि आपकी जन्म तारीख 11 है तो 1 और 1 जुड़कर 2 अंक आएगा तो आपका मूलांक 2 होगा।

1, 10, 19, 28 का मूलांक 1

2, 11, 20, 29 का मूलांक 2

3, 12. 21, 30 का मूलांक 3

4, 13, 22, 31 का मूलांक 4

5, 14, 23 का मूलांक 5

6, 15, 24 का मूलांक 6

7, 16, 25 का मूलांक 7

8, 17, 26 का मूलांक 8

9, 18, 27 का मूलांक 9

किस उम्र में होगा भाग्योदय

मूलांक 1 का भाग्योदय 22वें वर्ष में

मूलांक 2 का भाग्योदय 24वें वर्ष में

मूलांक 3 का भाग्योदय 32वें वर्ष में

मूलांक 4 का भाग्योदय 36 और 42वें वर्ष में

मूलांक 5 का भाग्योदय 32वें वर्ष में

मूलांक 6 का भाग्योदय 25वें वर्ष में

मूलांक 7 का भाग्योदय 38 और 44वें वर्ष में

मूलांक 8 का भाग्योदय 36 और 42वें वर्ष में

मूलांक 9 का भाग्योदय 28वें वर्ष में