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घर की बिगड़ी दशा सुधारने के लिए करें दशामाता पूजन


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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चैत्र माच के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के दिन दशामाता का पूजन किया जाता है। यह पूजन विशेषकर सुहागिन महिलाएं अपने घर की बिगड़ी दशा सुधारने के लिए करती हैं। इस दिन महिलाएं परिवार की सुख-समृद्धि, संतान सुख, धन-धान्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखकर दशामाता का पूजन करती हैं। इस बार यह व्रत 24 मार्च 2025 सोमवार को किया जाएगा।

दशामाता कौन हैं?
दशामाता को शक्ति और सौभाग्य की देवी कहा गया है। कुछ स्थानों पर इन्हें माता लक्ष्मी या माता पार्वती का स्वरूप भी माना जाता है। दशा का अर्थ ‘दशा’ या ‘भाग्य’ से जुड़ा हुआ है, और यह व्रत व्यक्ति की जीवन दशा को सुधारने और समृद्धि प्रदान करने के लिए किया जाता है।

दशामाता व्रत एवं पूजा विधि
1. व्रत का संकल्प
• प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
• व्रत का संकल्प लें और दशामाता से परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।
2. पूजन विधि
• घर के किसी पवित्र स्थान पर एक लकड़ी के पटिए पर गेहूं का ढेर रखकर उस पर दशामाता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
• हल्दी-कुंकुम, अक्षत, पुष्प और धूप-दीप से दशामाता का पूजन करें।
• दशामाता कथा का पाठ करें।
• परिवार के सभी सदस्यों की सुख-समृद्धि के लिए विशेष प्रार्थना करें।
• इस दिन कच्चे सूत का दस तार का डोरा लेकर पीपल के पेड़ की पूजा करें और यह डोरा महिलाएं अपने गले में बांध लें।
3. विशेष परंपराएं
• कुछ स्थानों पर व्रत करने वाली महिला गेहूं के आटे से दीपक बनाकर उसमें घी का दीप जलाती हैं।
• इस दिन नमक रहित भोजन (सादा भोजन या फलाहार) करने का नियम होता है।
• परिवार के बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया जाता है और जरूरतमंदों को अन्नदान भी किया जाता है।
• इस दिन बाजार से कोई वस्तु नहीं खरीदी जाती है। जो खरीदना हो एक दिन पूर्व खरीद लें। कहने का तात्पर्य यह है कि इस दिन अपने घर की लक्ष्मी को बाहर नहीं ले जाया जाता है।

दशामाता व्रत कथा
पुराने समय की बात है, एक गांव में एक गरीब दंपती रहते थे। उनकी स्थिति बहुत ही दयनीय थी। एक दिन महिला ने अपने पति से कहा, “हमारे घर में धन-दौलत नहीं है, न खाने के लिए पर्याप्त अन्न है। कृपया कोई उपाय बताइए जिससे हमारे घर की दशा सुधर सके।”
पति ने कहा, “हे देवी! मैं गुरु बृहस्पति देव की उपासना करने के लिए तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं। शायद इससे हमारी स्थिति सुधर जाएगी।” इतना कहकर व्यक्ति तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़े।

इधर महिला अपनी स्थिति से बहुत परेशान थी। एक दिन जब वह जंगल में गई, तो उसने वहां कुछ स्त्रियों को पीले वस्त्र धारण कर बृहस्पति देव की पूजा करते हुए देखा। उसने उन स्त्रियों से पूछा, “आप यह किसकी पूजा कर रही हैं?”
स्त्रियों ने उत्तर दिया, “हम दशामाता और बृहस्पति देव की पूजा कर रहे हैं। जो भी स्त्री सच्चे मन से इनकी पूजा करती है, उसकी सभी परेशानियाँ दूर हो जाती हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है।”

महिला ने भी यह व्रत करने का निश्चय किया। उसने बृहस्पति देव की विधिपूर्वक पूजा की और पीले रंग के धागे को अपने घर में बांधा। कुछ ही दिनों में उसकी स्थिति में सुधार होने लगा। उसके घर में धन-धान्य की वर्षा होने लगी, और सुख-समृद्धि लौट आई।
जब उसके पति तीर्थ यात्रा से लौटे, तो उसने अपने घर को सुंदर और समृद्ध देखकर आश्चर्य से पूछा, “यह सब कैसे हुआ?”
तब महिला ने उन्हें दशामाता के व्रत और पूजा के बारे में बताया।

दशामाता व्रत के लाभ
• यह व्रत परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार करता है।
• घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
• महिलाएं इसे पति की लंबी उम्र और संतान सुख के लिए करती हैं।
• यह व्रत नकारात्मक ऊर्जा और दोषों को दूर करता है।
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गज पर आएंगी मां दुर्गा, बनेगा लक्ष्मी बरसाने वाला योग


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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गज पर आएंगी मां दुर्गा, बनेगा लक्ष्मी बरसाने वाला योग

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से चैत्र वासंतिक नवरात्रि प्रारंभ होती है। यह नवरात्रि 30 मार्च 2025 रविवार से प्रारंभ हो रही है। रविवार से प्रारंभ होने के कारण इस बार देवी दुर्गा के आगमन का वाहन गज अर्थात् हाथी होगा। हाथी पर देवी दुर्गा के आने का अर्थ है कि यह धन और लक्ष्मी बरसाने वाला योग बन रहा है। इस योग में देवी का पूजन करना अत्यंत लक्ष्मीप्रदायक होगा। इस दिन सर्व ऐश्वर्य प्रदान करने वाला ऐंद्र योग भी रहेगा। इस कारण यह दिन अत्यंत ही श्रेष्ठ बन गया है।

कैसे तय होता है देवी का वाहन
शास्त्रों के अनुसार जिस दिन नवरात्रि प्रारंभ होती है उस दिन से देवी के आगमन का वाहन तय होता है। इसी प्रकार जिस दिन नवरात्रि पूर्ण होती है अर्थात् नवमी के दिन जो वार होता है उसके अनुसार देवी के जाने का वाहन तय होता है। इस संबंध में देवी भागवत पुराण में एक श्लोक दिया हुआ है-

शशि सूर्य गजारूढ़ा, शनिभौमै तुरंगमे।
गुरौशुक्रेच दोलायां, बुधे नौकाप्रकीर्तिता।।

श्लोक के अनुसार रविवार और सोमवार का वाहन गज, शनिवार और मंगलवार का वाहन घोड़ा, गुरुवार और शुक्रवार का डोली और बुधवार का वाहन नौका होता है। इस बार नवरात्रि का प्रारंभ रविवार को हो रहा है इसलिए देवी के आने का वाह गज रहेगा।

गज पर आने का अर्थ
देवी की सवारी ‘गज’ को लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। महालक्ष्मी के सभी स्वरूपों में गजलक्ष्मी को सर्वाधिक महत्वपूर्ण और सुख-समृद्धि, धन में वृद्धि करने वाला कहा गया है। गज पर दुर्गा का आना चारों ओर समृद्धि आने का सूचक है। इसलिए साधक और देवी भक्त यदि इस नवरात्रि में पूर्ण सात्विकता का पालन करते हुए देवी दुर्गा के साथ मां लक्ष्मी का पूजन करेंगे तो उनका घर सुख-समृद्धि से भर जाएगा। अभाव में जीवन व्यतीत कर रहे लोगों के लिए यह स्वर्णिम अवसर है जब वे देवी को प्रसन्न करके अपनी अलक्ष्मी को दूर कर सकते हैं।

महालक्ष्मी योग में करें गजलक्ष्मी को प्रसन्न
इस बार वासंतिक नवरात्रि में तृतीया तिथि का क्षय होने के कारण नवरात्रि आठ दिन की ही रहेगी। ये आठों दिन विशिष्ट और अष्ट लक्ष्मी को प्रसन्न करने वाले रहेंगे। आठों दिन मां लक्ष्मी का पूजन करके मखाने की खीर का नैवेद्य लगाएं और श्रीसूक्त का पाठ करें। इस नवरात्रि में स्फटिक या पारद का श्रीयंत्र स्थापित करें और उसका नित्य पूजन करें।

नवरात्रि के आठ दिन
30 मार्च- प्रतिपदा, घट स्थापना, शैलपुत्री पूजन
31 मार्च- द्वितीया, मत्स्य जयंती, गणगौर तृतीया, ब्रह्मचारिणी और चंद्रघंटा पूजन
1 अप्रैल- चतुर्थी, विनायक चतुर्थी, कुष्मांडा पूजन
2 अप्रैल- पंचमी, लक्ष्मी पंचमी व्रत, स्कंदमाता पूजन
3 अप्रैल- षष्ठी, स्कंद षष्ठी, यमुना जयंती, कात्यायनी पूजन
4 अप्रैल- सप्तमी, कालरात्रि पूजन
5 अप्रैल- अष्टमी, दुर्गाष्टमी, अशोकाष्टमी, महागौरी पूजन
6 अप्रैल- नवमी, रामनवमी, नवरात्रि पूर्ण, सिद्धिदात्री पूजन

ऐश्वर्यशाली ऐंद्र योग भी इसी दिन
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन सर्व ऐश्वर्य प्रदान करने वाला ऐंद्र योग भी रहेगा। यह योग सूर्योदय से लेकर सायं 5:53 बजे तक रहेगा। पूरे दिन ऐंद्र योग रहने के कारण इस दिन ऐश्वर्य योग बना है, जिसमें देवी का पूजन करने से इंद्र के समान ऐश्वर्यों की प्राप्ति होगी। सुख-सम्मान, पद, प्रेम और आकर्षण की प्राप्ति होगी।

30 मार्च के घट स्थापना के मुहूर्त
चर : प्रात: 7:55 से 9:27 तक
लाभ : प्रात: 9:27 से 10:59 तक
अमृत : प्रात: 10:59 से दोप 12:31 तक
अभिजित : दोप 12:07 से 12:56 तक
शुभ : दोपहर 2:03 से 3:36 तक
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17 मार्च को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी, ये उपाय करेंगे गणेशजी को प्रसन्न


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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17 मार्च को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी, ये उपाय करेंगे गणेशजी को प्रसन्न
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की संकट चतुर्थी को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। सभी चतुर्थियों में यह चतुर्थी भगवान श्रीगणेश को अत्यंत प्रिय है। इस दिन भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए भक्त कठिन व्रत-उपवास तो करते ही हैं लेकिन इस दिन अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए अनेक उपाय भी किए जाते हैं। भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से संकट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यह चतुर्थी 17 मार्च 2025 सोमवार को आ रही है। इस दिन चंद्रोदय उज्जैन के समयानुसार रात्रि 9 बजकर 16 मिनट पर होगा।

इस व्रत की पूजा विधि और व्रत के नियम लोग जानते ही हैं, हम यहां विभिन्न कार्यों और कामनाओं की पूर्ति के लिए गणेशजी से जुड़े पूजा विधान और मंत्र प्रयोग दे रहे हैं, जिन्हें सात्विक रूप से घर में ही करके गणेशजी को प्रसन्न किया जा सकता है-

धन वृद्धि और धन प्राप्ति के लिए
गणेशजी का पूजन सदैव देवी महालक्ष्मी के साथ किया जाता है। भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के दिन दिन में दो बार आपको यह प्रयोग करना है। एक बार प्रात:काल और दूसरा सायंकाल। इस चतुर्थी के दिन गणेशजी के सिंदूरी रंग के चित्र या मूर्ति की स्थापना करके उनका पूजन करें। दूर्वा भेंट करें और मंत्र ऊं नमो गणपतये कुबेरयेकद्रिको फट् स्वाहा, इस मंत्र का एक माला स्फटिक की माला से जाप करें। फिर देखिए आपके घर में धन के भंडार भरने लगते हैं।

आकर्षण प्रभाव बढ़ाने और सभी को वश में करने के लिए
आज के जीवन में आपका लोकप्रिय और सभी का प्रिय होना आवश्यक हो गया है। यदि आप किसी को प्रभावित नहीं कर पाते हैं तो आपके अनेक काम अटके रह सकते हैं। जब किसी को प्रभावित कर लेते हैं तो आपके काम भी सहज रूप से होने लगते हैं। गणेशजी को प्रसन्न करने के अपने आकर्षण में वृद्धि करने के लिए निम्न मंत्र का प्रयोग करें-
ऊं श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा
इस मंत्र को गणेशजी को एक-एक दूर्वा अर्पित करते हुए 108 बार जपें। मंत्र जप करते समय अपने मस्तक और कंठ पर सिंदूर का तिलक लगाएं।

संतान प्राप्ति के लिए
कई दंपतियों को विवाह के लंबे समय बाद तक संतान नहीं होती है। ऐसे दंपतियों के लिए यह भालचंद्र संकष्ट चतुर्थी व्रत अत्यंत विशेष है। इस चतुर्थी का विधिवत व्रत रखें और संतान गणपति स्तोत्र के पाठ दंपति साथ बैठकर करें। इस स्तोत्र के 51 या 108 पाठ करें और गणेशजी के बाल स्वरूप का पूजन करें।

विद्या और व्यापार के लिए
शिक्षा में सफलता और व्यापार में वृद्धि के लिए संकट चतुर्थी के दिन गणेशजी की हरे रंग की मूर्ति को स्थापित करके उसका पूजन करें। गणेशजी को दूर्वा अर्पित करें। मीठी बूंदी का भोग लगाएं।

शीघ्र विवाह के लिए
यदि युवक-युवतियों के विवाह में बाधा आ रही है तो इस दिन गणेशजी की पीले रंग की मूर्ति घर में स्थापित करें। पीले पुष्पों से गणेशजी का श्रृंगार करें, पीली मिठाई का नैवेद्य लगाएं और गणेशजी का तिलक हल्दी से करें। इस हल्दी का तिलक युवक या युवती अपने मस्तक पर करें और फिर ऊं सर्वेश्वराय नम: मंत्र का जाप हल्दी की माला से करें। पांच माला जाप करने के बाद गणेशजी की मूर्ति को विसर्जित कर दें।

विवाह के लिए दूसरा प्रयोग
केले के पेड़ के नीचे गणेशजी की पीले रंग की मूर्ति को स्थापित करके पूजन करें और ऊं महाकर्णाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्ने दंती प्रचोयदात, मंत्र का 108 बार जाप करें। केले के वृक्ष में हल्दी का पानी डालें। शीघ्र विवाह का मार्ग खुलेगा।
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होलाष्टक 7 मार्च से, ये टोटके कर देंगे मालामाल


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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फाल्गुन शुक्ल अष्टमी 7 मार्च 2025 से फाल्गुन पूर्णिमा 14 मार्च तक आठ दिन का समय होलाष्टक कहलाता है। ये आठ दिन तंत्र-मंत्रों की साधना-सिद्धियों के लिए अत्यंत विशेष दिन होते हैं। इन आठ दिनों में धन-संपदा की प्राप्ति, आकर्षण, वशीकरण, रोग मुक्ति, कार्यों में सफलता, संतान की प्राप्ति, विवाह में बाधा जैसी अनेक समस्याओं को दूर करने के उपाय करने चाहिए। आइए हम जानते हैं होलाष्टक में क्या करना चाहिए।

1. धन आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। धन के बिना जीवन चलाना कठिन हो जाता है। यदि आपके पास धन की कमी है। कर्ज बढ़ता जा रहा है और पैसों की आवक बहुत कम है तो होलाष्टक के आठ दिनों में यह विशेष प्रयोग करें। होलाष्टक प्रारंभ होने के दिन अपने घर में स्फटिक, अष्टधातु, पंचधातु, सोना, चांदी या तांबे का श्रीयंत्र स्थापित करें। इसे हर दिन गंगाजल से स्नान करवाकर इस पर केसर से नौ बिंदियां लगाएं। लाल पुष्प से पूजन करें और उत्तराभिमुख होकर लाल रंग के आसन पर बैठ जाएं। अब हर दिन 11 बार श्रीसूक्त का पाठ करें। अंतिम दिन मखाने की खीर और कमलगट्टे से 108 आहुतियां दें। आठवें दिन से आपके हर काम बनने लगेंगे। पैसा आने लगेगा।

2. कर्ज मुक्ति के लिए होलाष्टक के आठों दिन हर दिन 7 बार ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ करें। यह पाठ मंगल यंत्र के समक्ष करें। अंतिम दिन कमलगट्टे से 108 आहुतियां देकर हवन करें। सारा कर्ज धीरे-धीरे उतरने लगेगा।

3. शारीरिक रोग दूर करने के लिए होलाष्टक के हर दिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव का जल से अभिषेक करें। जल में केसर का इत्र मिलाएं। अंतिम दिन 108 आहुतियां देते हुए महामृत्युंजय मंत्र से हवन करें। सारे शारीरिक कष्ट दूर हो जाएंगे। रोग दूर होंगे।

4. आकर्षण और वशीकरण प्राप्ति के लिए होलाष्टक के आठों दिन अपने मस्तक पर केसर-चंदन का तिलक लगाएं। कामदेव गायत्री मंत्र ऊं कामदेवाय विद्महे पुष्प बाणाय धीमहि तन्नो अनंग प्रचोदयात की एक माला स्फटिक की माला से हर दिन करें। यह मंत्र अत्यंत चमत्कारी है और इसके जाप से आपके व्यक्तित्व में चुंबकीय आकर्षण पैदा हो जाएगा।

5. उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए भगवान श्रीकृष्ण के लड्डू गोपाल स्वरूप की पूजा करें, माखन मिश्री का भोग लगाएं और संतान गोपाल स्तोत्र का हर दिन पाठ करेंगे तो संतान की कमी दूर होगी।

6 . सर्वत्र रक्षा के लिए होलाष्टक के आठों दिन नित्य रूप से श्रीराम और हनुमानजी का पूजन करके राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें। कहीं भी जाएंगे कोई कष्ट नहीं रहेगा।

7. बुरी नजर, नकारात्मक ऊर्जा से बचाव के लिए होलाष्टक के आठों दिन घर में फिटकरी में कपूर और लौंग डालकर जलाएं। घर से सारी नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाएगी।

8. भूत-प्रेत आदि की बाधा यदि घर में महसूस हो रही है तो घर की दक्षिणी दीवार पर मोर पंख की झाड़ू लगाएं। हर दिन घर में कपूर में काले तिल डालकर जलाएं इससे भूत प्रेतादि की बाधा दूर होगी।

9. अपार धन-संपदा प्राप्त करने के लिए पीली सरसों, हल्दी की गांठ, गुड़, कनेर के पुष्प में शुद्ध घी डालकर श्रीं श्रीं श्रीं बीज मंत्र से 1008 आहुतियां हर दिन दें। इससे धन आने के मार्ग खुलेंगे और खूब पैसा बरसने लगेगा।

10. करियर में सफलता, उत्तम नौकरी और व्यापार के लिए जौ, तिल में शक्कर मिलाकर हवन करें।
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Holika Dahan 2025: कब जलेगी होलिका? जानिए तिथि और समय


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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* रात में 10:37 बजे भद्रा समाप्ति के पश्चात किया जाएगा होलिका दहन
* 14 मार्च को भी पूर्णिमा के मान के चलते पूरे देश में 15 को खेली जाएगी होली

इंदौर। होलिका दहन और होली खेलने को लेकर इस बार फिर मतभेद उभर रहे हैं। हालांकि यह स्थिति देशीय समयमान के कारण बन रही है। इसका अर्थ यह हुआ कि देश के अलग-अलग भागों में सूर्योदय का समय अलग-अलग होने के कारण तिथियों में घट-बढ़ होने से यह स्थिति बनी है।

इस बार काशी और देश के अन्य भागों में अलग-अलग दिन होली मनाई जाएगी। काशीवासी जहां परंपरानुसार 13 मार्च को होलिका दहन करके 14 मार्च को रंगोत्सव मना लेंगे, वहीं शेष देश में अगले दिन 14 मार्च को होलिका दहन करने के बाद 15 मार्च को रंगोत्सव मनाया जाएगा। इस बार यह अंतर पूर्णिमा तिथि के मान के चलते हो रहा है।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष, ज्योतिषाचार्य प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय, प्रो. विनय कुमार पांडेय व प्रो. गिरिजाशंकर त्रिपाठी ने बताया कि इस बार फाल्गुन पूर्णिमा 13 मार्च को प्रात: 10:02 बजे लगेगी, जो अगले दिन 14 मार्च को प्रात: 11.11 बजे तक रहेगी। रात्रिव्यापिनी पूर्णिमा में ही होलिका दहन का विधान होने के कारण होलिका दहन तो 13 मार्च की रात में ही हो जाएगा और इसी के साथ काशी में परंपरानुसार होलिकोत्सव आरंभ हो जाएगा, लेकिन होली खेलने का विधान शास्त्रानुसार चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में होने के चलते अगले दिन 15 मार्च को पूरे देश मे रंगोत्सव व धुरेंडी की धूम होगी। 15 मार्च को उदयातिथि में प्रतिपदा दोपहर 12.48 बजे तक है।

काशी में चौसठ देवी के पूजन व परिक्रमा की है परंपरा
काशी में होलिका दहन के पश्चात सुबह होते ही 64 योगिनियों यानी 64 देवी का दर्शन व परिक्रमा करते हुए होली खेलने की मान्यता है। यह परिक्रमा व पूजन होलिका दहन की ठीक सुबह आरंभ हो जाता है, इसलिए काशीवासी पूर्णिमा हो या प्रतिपदा होलिका दहन होते ही होली मनाना आरंभ कर देते हैं, जबकि शेष देश में शास्त्रानुसार रंगोत्सव चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को होता है, इसलिए अनेक बार ऐसा होता है कि काशीवासी एक दिन पूर्व होली मना लेते हैं, जबकि शेष देश दूसरे दिन होली मनाता है। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। चूंकि, होलिका दहन पूर्णिमा व्यापिनी रात्रि में होता है, इसलिए यह 13 की रात्रि में हो जाएगा और चैत्र कृष्ण प्रतिपदा उदयातिथि में 15 मार्च को मिलेगी, अतएव पूरे देश में रंगोत्सव 15 को होगा।

रात 10.37 बजे के बाद होगा होलिका दहन का मुहूर्त
काशी के विद्वान ज्योतिषाचार्यों ने बताया कि 13 मार्च को पूर्णिमा की तिथि प्रात: 10.02 बजे आरंभ हो जा रही है, लेकिन इसके साथ ही भद्रा लग जा रही है। भद्रा में होलिका दहन का निषेध है। भद्रा रात 10.37 बजे समाप्त होगी, इसके पश्चात होलिका दहन किया जा सकेगा। प्रो. गिरिजाशंकर त्रिपाठी ने बताया कि चूंकि शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन अर्धरात्रि के पूर्व कर लिया जाना उचित होता है। अत: इसे रात 10.37 बजे के पश्चात रात 12 बजे के पूर्व कर लिया जाना चाहिए। होलिकादहन 13 की रात्रि में होने के पश्चात धुरड्डी व रंगोत्सव के लिए प्रतिपदा की तिथि 15 मार्च को मिलेगी।

ब्रज के मंदिरों में होली 14 मार्च को
जासं, मथुरा : ब्रज में मथुरा, वृंदावन के साथ ही अन्य स्थानों पर मंदिरों में 14 मार्च को होली होगी। बरसाना के राधारानी मंदिर, नंदगांव के नंदबाबा मंदिर, गोवर्धन के मंदिरों के साथ ही श्रीकृष्ण जन्मस्थान, ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर और प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर में 14 मार्च को ही होली मनाई जाएगी। इसकी तैयारियां मंदिरों में तेज हो गई हैं।

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लाजवर्त के फायदे जानकर चौंक जाएंगे आप


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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रत्न शास्त्र एक बहुत बड़ा विज्ञान है, जिसमें विभिन्न प्रकार के रत्न और मणियों का उपयोग करके जीवन को सुंदर सुखद बनाया जा सकता है। ये रत्न पहनने वाले मनुष्य को न केवल नाम, सम्मान, शौर्य, साहस और आत्मविश्वास देते हैं, बल्कि उसे धन-संपत्ति भी प्रदान करते हैं।

रत्न शास्त्र में अनेक मणियों का वर्णन मिलता है। जैसे घृत मणि, तैल मणि, भीष्मक मणि, उपलक मणि, स्फटिक मणि, पारस मणि, उलूक मणि, मासर मणि और लाजवर्त मणि। ये सभी मणियां विशिष्ट गुणों वाली होती है और धारण करने वालों को मनचाहा लाभ देती हैं। इन्हीं में से आज हम बात करने जा रहे हैं लाजवर्त मणि की। इसे लाजावर्त मणि भी कहा जाता है।


लाजवर्त के गुण और प्रकार
लाजवर्त एक चिकना, ठोस, अपारदर्शी, गहरे नीले रंग का रत्न होता है। इसमें नीले रंग के साथ हल्के नीले रंग की धारियां भी दिखाई देती हैं। शास्त्रों में इसका वर्णन करते हुए लिखा गया है कि लाजवर्त का रंग मोर की गर्दन के नीले रंग के समान होता है। लाजवर्त को शनि, राहु और केतु की पीड़ा को दूर करने के लिए धारण किया जाता है। यदि कुंडली में ये तीनों ग्रह दूषित हों, पीड़ा दे रहे हों तो इसे धारण करने से बहुत लाभ होता है।

रत्न ज्योतिष में नौ ग्रहों के नौ मुख्य रत्न और उनके सैकड़ों उपरत्न बताए गए हैं। इन्हें ग्रहों के अनुसार धारण करने से उन ग्रहों की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। शनि की पीड़ा से बचने के लिए नीलम, राहु के लिए गोमेद और केतु के लिए लहसुनिया पहनने की सलाह दी जाती है, लेकिन यदि तीनों ग्रह खराब हों तो तीन रत्न पहनने की जगह एक ही रत्न पहनाया जाता है, जिससे तीनों ग्रहों की पीड़ा से एक साथ मुक्ति मिल जाती है। वह रत्न है लाजवर्त। अंग्रेजी में इसे लेपिज लाजुली (lapis lazuli) कहा जाता है। लाजवर्त को ब्रेसलेट के रूप में, अंगूठी के रूप में, माला के रूप, पेंडेंट के रूप में धारण किया जा सकता है।

सिद्ध लाजवर्त मणि पहनने के लाभ
* सिद्ध लाजवर्त मणि माला शनि, राहु, केतु के दोषों और बुरे प्रभावों को दूर करती है।
* यदि बार-बार दुर्घटनाएं हो रही हों तो सिद्ध लाजवर्त मणि माला धारण करना चाहिए।
* यह आकस्मिक रूप से होने वाली धन हानि, स्वास्थ्य समस्याओं से बचाव करने में मदद करती है।
* सिद्ध लाजवर्त मणि माला बुरी नजर, जादू-टोना, नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में मदद करती है।
* राहु-केतु के कारण पितृ दोष का निर्माण भी होता है। सिद्ध लाजवर्त मणि माला पहनने से पितृ दोष शांत होता है।
* व्यापार-व्यवसाय या नौकरी में बाधा आ रही हो तो सिद्ध लाजवर्त मणि माला धारण करना उचित रहता है।
* यह दिमाग को शांत रखने का काम भी करती है। मानसिक स्थिरता सिद्ध लाजवर्त मणि माला से आती है।
* इसे पहनने से आर्थिक तंगी दूर होती है, पैसों के आगमन में आ रही रुकावटें दूर होती हैं।
* जिनकी जन्म कुंडली में सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण दोष है उन्हें भी यह पहनना चाहिए।
* घर में पैसों की बचत नहीं होती, सदस्यों को तनाव-डिप्रेशन रहता है तो लाजवर्त मणि की माला को घर की पश्चिम दिशा में लटकाएं।

कैसे धारण करें
सिद्ध लाजवर्त को धारण करने का सबसे शुभ दिन शनिवार है। इसे रत्न संस्कार करवाकर पहना जा सकता है। संस्कारित लाजवर्त ही धारण करना चाहिए। सीधे बाजार से लाकर नहीं पहनना चाहिए। इसके मोतियों की माला भी गले में धारण की जा सकती है। सिद्ध संस्कारित करने से पहले इसको सरसों या तिल के तेल में पांच घंटे तक डुबोकर रखा जाता है । इसके बाद नीले रंग के वस्त्र पर रखकर ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम: मंत्र की पांच माला जाप कर इसे संस्कारित किया जाता है । धूप-दीप, नैवेद्य करके पंचोपचार से पूजन किया जाता है । फिर इसे उसी नीले कपड़े से पोंछकर धारण करवाया जाता है।

टोने-टोटके, भूत-प्रेत बाधा दूर करती है
सिद्ध लाजावर्त मणि धारण करने से टोने-टोटके का असर समाप्त होता है। इसे पहनने से भूत-प्रेत की बाधा दूर होती है। नकारात्मक ऊर्जा से बचाव होता है। इसे पहनने से सभी तरह का काला जादू और किया-कराया समाप्त हो जाता है। यह सिद्ध मणि की माला पितृदोष को भी समाप्त कर देती है।

यदि आप भी सिद्ध लाजवर्त मणि की माला, ब्रेसलेट, अंगूठी या पेंडेंट सिद्ध संस्कारित किया हुआ पाना चाहते हैं तो हमसे तुरंत संपर्क करें। हमारे विद्वान पुरोहितों द्वारा इसे संस्कारित करके दिया जाता है।

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पं. गजेंद्र शर्मा
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माघी पूर्णिमा : सौभाग्य व शोभन योग में संगम में लगेगी पुण्यदायी डुबकी


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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12 फरवरी 2025, बुधवार को है महाकुंभ का पांचवां स्नान पर्व
स्नान करने के बाद महाकुंभ मेले से विदा होने लगेंगे संत और कल्पवासी

महाकुंभ नगर : प्रयागराज में इन दिनों विश्व का सबसे बड़ा आस्था का समागम महाकुंभ लगा हुआ है। दैहिक, दैविक, भौतिक तापों (कष्टों) से मुक्ति, मनोवांछित फलों की प्राप्ति की संकल्पना को पूरा करने के लिए देश-विदेश के करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना, सरस्वती के त्रिवेणी संगम के पवित्र जल में अध्यात्म की पुण्यदायी डुबकी लगा चुके हैं। महाकुंभ में अभी भी स्नानार्थियों के आने का क्रम जारी है।
महाकुंभ का पांचवां स्नान पर्व माघी पूर्णिमा 12 फरवरी 2025 बुधवार को पड़ रहा है। इस बार माघी पूर्णिमा पर ग्रह-नक्षत्रों का अद्भुत योग बन रहा है। इस शुभ योग में पुण्य की डुबकी लगाने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु संगम नगरी पहुंच रहे हैं। पंचांगों के अनुसार 11 फरवरी की शाम 6 बजकर 54 मिनट से पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो जाएगी, जो 12 फरवरी को शाम 7 बजकर 22 मिनट तक रहेगी। इस कारण बुधवार को पूरे दिन पूर्णिमा का संयोग रहेगा। इसके अलावा 12 फरवरी को शाम 7.34 बजे तक आश्लेषा नक्षत्र और सुबह 8:05 तक सौभाग्य योग रहेगा। इसके बाद शोभन योग लग जाएगा। कुंभ राशि में बुध व शनि, मीन राशि में शुक्र व राहु गोचर करेंगे। यह अत्यंत उत्तम योग माना जाता है। इस पुण्यदायी योग में पवित्र संगम में डुबकी लगाने से अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होगी और समस्त पापों का क्षय होगा।

समाप्त होगा कल्पवास
माघी पूर्णिमा स्नान पर्व के साथ संगम क्षेत्र में एक महीने से चल रहा कल्पवास समाप्त हो जाएगा। स्नान के बाद अधिकतर संत व श्रद्धालु मेला क्षेत्र से प्रस्थान कर जाएंगे।

स्नान-दान का है विशेष महत्व
माघ महीने की पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। पूर्णिमा के बाद फाल्गुन मास की शुरुआत हो जाती है। पौराणिक वर्णन के अनुसार इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने मत्स्य के रूप में अवतार लिया था। इस दिन गंगा स्नान, दान करने और भगवान सत्यनारायण की कथा सुनने, भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और चंद्रदेव की पूजा करने का विशेष महत्व है। माघी पूर्णिमा पर गाय, तिल, गुड़ और कंबल का दान विशेष पुण्य फल देता है। मोक्ष की कामना रखने वालों को इस दिन संगम और गंगा में डुबकी अवश्य लगाना चाहिए। जो गंगा आदि पवित्र नदियों में न जा पाएं उन्हें अपने घर में गंगा जल डालकर उस पानी से स्नान करना चाहिए।

गुरु 119 दिन बाद हो रहे हैं मार्गी, जानिए क्या होगा आप पर असर


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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बृहस्पति अर्थात् गुरु 119 दिन वक्री रहने के बाद 4 फरवरी 2025 मंगलवार को मार्गी होने जा रहा है। गुरु 9 अक्टूबर 2024 को वक्री हुआ था जो अब 4 फरवरी को दोपहर 3 बजकर 09 मिनट पर मार्गी होने जा रहा है। गुरु का मार्गी होना लगभग सभी राशि के जातकों को विशेष शुभ फल देने वाला रहेगा। जिन लोगों के विवाह की बात अटकी हुई है, या विवाह में कोई बाधा आ रही है, वह बाधा गुरु के मार्गी होने से दूर होगी और अविवाहितों के विवाह के योग बनेंगे।

गुरु का प्रभाव
जातक की जन्मकुंडली में विवाह का योग तभी बनता है जब उनकी कुंडली में गुरु की स्थिति ठीक हो। गुरु के बलवान, शुभ ग्रहों से दृष्ट और शुभ स्थानों में शुभ ग्रहों के साथ होने के कारण विवाह के योग बनते हैं। जिन युवक-युवतियों का गुरु कमजोर होता है उनके विवाह में विलंब होता है, विवाह में बाधा आती रहती है या विवाह होने के बाद वह सफल नहीं होता है। अब जब गुरु मार्गी हो रहा है तो ऐसे युवक-युवतियों का विवाह निर्विघ्न तय होकर संपन्न होने के प्रबल योग बनेंगे, जिनका विवाह अब तक अटका हुआ है।

राशियों पर असर
मेष : गुरु के मार्गी होेने से वाणी का शुभ प्रभाव मिलेगा। अपने व्यवहार से लोगों को जीत लेंगे। आर्थिक मजबूती आएगी।
वृषभ : गुरु मार्गी होने से आपको लोकप्रियता प्राप्त होगी, सप्तम पर दृष्टि होने से विवाह के उत्तम योग बनने वाले हैं।
मिथुन : गुरु मार्गी होने से खर्च पर लगाम लगेगी। पारिवारिक सौख्यता आएगी। सम्मान प्राप्त होगा। पद प्राप्त होने वाला है।
कर्क : गुरु का मार्गी होना सम्मान के साथ आपको पद और प्रतिष्ठा भी दिलाएगा। अटके हुए काम निर्विघ्न संपन्न होंगे।
सिंह : आपके अटके हुए कार्य और व्यवसाय में उन्नति होगी। समाज में पद और प्रतिष्ठा बढ़ेगी। मानसिक शांति रहेगी।
कन्या : भाग्योदय होने वाला है। सम्मान, धन, प्रेम, सुख, वैवाहिक जीवन मधुर रहेगा। विवाह के उत्तम योग बनने वालेे हैं।
तुला : वैवाहिक जीवन सुखद होने वाला है। अविवाहितों के विवाह के योग बनेंगे। धन आएगा, स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
वृश्चिक : वैवाहिक जीवन की अनबन दूर होगी। प्रेम और सामंजस्य बढ़ेगा। स्वास्थ्य खराब होगा। पैसा आएगा खर्च भी होगा।
धनु : गुरु छठे भाव में मार्गी होने से पुराने रोग दूर होंगे। शत्रुओं पर विजय हासिल होगी। पैसा आने के योग हैं।
मकर : प्रेम संबंध मजबूत होंगे। विवाह की बाधा दूर होगी। शिक्षा के क्षेत्र में सफलता मिलेगी। मान-सम्मान प्राप्त होगा।
कुंभ : किसी वरिष्ठ के मार्गदर्शन से अटके काम पूरे होंगे। पैसा आएगा। सुख और सम्मान के साथ प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
मीन : धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ेगी। प्रेम संबंध प्रगाढ़ होगा। भाई-बहनों की ओर से सुख मिलेगा। पराक्रम बढ़ेगा।

गुरु मार्गी होने पर क्या करें
गुरु के मार्गी होने वाले दिन अर्थात् 4 फरवरी को सभी राशियों के जातक अपने गुरुजनों का पूजन करें, उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। उन्हें पीली मिठाई या पीले फल भेंट करें। भगवान दत्तात्रेय का पूजन करें। चने की दाल और हल्दी की गांठ भेंट करें।

गुरु की स्थति
राशि परिवर्तन : मिथुन में प्रवेश 14 मई 2025 बुधवार रात्रि 11:20 बजे

वक्री : 11 नवंबर 2025 मंगलवार रात्रि 10:11 बजे
मार्गी : 11 मार्च 2026 बुधवार प्रात: 8:58 बजे
कुल वक्री अवधि : 120 दिन

गुरु अस्त : 13 जून 2025 शुक्रवार सायं 7:46बजे
गुरु उदय : 9 जुलाई 2025 बुधवार प्रात: 5:03 बजे
कुल अस्त अवधि : 26 दिन

शुक्र का उच्च राशि में प्रवेश, बनेगा साल का पहला मालव्य पूर्ण राजयोग


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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वर्ष 2025 में पहली बार शुक्र 28 जनवरी को प्रात: 7 बजे अपनी उच्च राशि मीन में प्रवेश करने जा रहा है। शुक्र के उच्च राशि में जाने के कारण मालव्य योग बन रहा है। इस बार यह योग लगभग चार महीने तक बना रहेगा। शुक्र 31 मई 2025 को राशि बदलेगा, तब तक मालव्य योग बना रहेगा और इसका फल वैसे तो सभी राशि के जातकों को मिलने वाला है लेकिन सात राशियों को विशेष फल मिलेंगे और यह योग उन्हें मालामाल करने वाला है।

मालव्य योग कैसे बनता है
मालव्य योग की गिनती पंचमहापुरुष योग में होती है। शुक्र जब अपनी उच्च राशि मीन में होकर शुभ स्थान में बैठता है तो मालव्य योग बनता है। इसे मालव्य योग को पूर्ण राजयोग कहा जाता है। इस योग के बनने से शुभ फलों में वृद्धि होती है। जिन जातकों की जन्म कुंडली में शुक्र उच्च का होकर केंद्र स्थानों प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम में बैठता है ऐसा व्यक्ति राजा की तरह जीवन व्यतीत करता है।

मालव्य योग के लाभ
1. मालव्य योग धन संपदा प्रदान करता है। इस योग के बनने से धन-समृद्धि में वृद्धि होगी।
2. मालव्य योग जिन जातकों की कुंडली में बना होता है वे अत्यंत भाग्यशाली होते हैं।
3. मालव्य योग के कारण धन आने के मार्ग खुलते हैं और धन कोष में वृद्धि होने लगती है।
4. मालव्य योग जिन जातकों की कुंडली में होता है वे सौंदर्य और कला प्रेमी होते हैं।
5. मालव्य योग के प्रभाव से व्यक्ति आकर्षक बनेगा, प्रेमी होगा, प्रेम संबंध प्राप्त होंगे।

सात राशियां होंगी मालामाल
शुक्र के मीन राशि में प्रवेश करने के साथ ही बनने वाले मालव्य राजयोग का प्रभाव विशेष रूप से पांच राशियों को मिलने वाला है। ये राशियां बुध, गुरु, शुक्र और चंद्र से संंबंधित हैं। वृषभ, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, धनु, मीन राशियों का भाग्य खुलने वाला है। इन राशियों के जातकों को अपार धन-संपदा मिलने वाली है। यदि लंबे समय से कहीं पैसा फंसा हुआ है तो इन्हें मिल जाएगा। निवेश से लाभ होगा। भौतिक सुखों में वृद्धि होगी। प्रेम संबंध प्रगाढ़ होंगे। नए प्रेम संबंध बनेंगे। पारिवारिक जीवन सुखद होगा। भूमि, भवन, वाहन खरीदने के योग बनेंगे। पैतृक संपत्ति प्राप्त होगी। आकर्षण प्रभाव में वृद्धि होगी। संतान सुख मिलेगा। इन सात राशियों के जातकों को भाग्य का बल मिलेगा और जिस काम में हाथ डालेंगे वह पूरा होगा। वहां से धन कमाने में सफल होंगे।

शेष पांच राशियों को मिलेगा मिलाजुला फल
उपरोक्त सात राशियों के अलावा शेष पांच राशियों मेष, सिंह, वृश्चिक, मकर, कुंभ के लिए शुक्र का मीन राशि में गोचर मिलाजुला फल देने वाला रहेगा। इन राशि के जातकों को धन की प्राप्ति तो होगी लेकिन खर्च भी उसी अनुपात में होगा। रिश्तों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। दांपत्य जीवन में कुछ कठिनाइयां आ सकती हैं। पति-पत्नी को एक-दूसरे के साथ तालमेल बनाने में परेशानी आएगी। इन राशि के जातकों के प्रभाव में कमी आएगी।

क्या करें
1. मालव्य योग का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए सभी राशि के जातक इस दौरान साफ-स्वच्छ रहें।
2. अधिक से अधिक दिन सफेद या हल्के रंग के कपड़े पहनें।
3. अच्छे मध्यम खुशबू वाले इत्र या परफ्यूम का उपयोग प्रतिदिन करें।
4. केसर का तिलक हर दिन लगाएं।
5. नहाने के पानी में थोड़ा सा गुलाबजल डालकर हर दिन नहाएं।
6. चांदी का छल्ला स्त्रियां अपने बाएं हाथ में और पुरुष दाहिने हाथ में धारण करें।
7. घर में गुलाब का रूम स्प्रे डालें।
8. गुलाब की अगरबत्ती या धूप बत्ती हर दिन घर में लगाएं।
9. प्रत्येक शुक्रवार को शिवजी का अभिषेक जल में गुलाब का इत्र डालकर करें।
10. शुक्र के मंत्र ऊं द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम: का नियमित एक माला जाप पिंक स्फटिक की माला से करें।

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ग्रहों को करना है शांत तो कर लें ये उपाय


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में कोई न कोई ग्रह खराब या कमजोर होता है। उस ग्रह को ठीक करने के लिए उससे संबंधित वस्तुओं का दान किया जाता है। उस ग्रह के मंत्रों का जाप करवाया जाता है। आइए जानते हैं किस ग्रह की शांति के लिए किन वस्तुओं का दान करना चाहिए और कितने मंत्रों का जाप करवाना चाहिए।

सूर्य
सूर्य की शांति के लिए माणिक्य का दान सर्वश्रेष्ठ दान बताया गया है। इसके अलावा गोधूम, गुड़, गौ, कमलपुष्प, नया घर, लाल चंदन, लाल वस्त्र, सोना-तांबा, केसर, मूंगा का दान किया जाता है। सूर्य की शांति के लिए इसके 7000 मंत्रों का जाप किया जाता है किंतु कलयुग में इसका चार गुना अर्थात् 28 हजार जाप करवाना चाहिए।

चंद्र
चंद्र की शांति के लिए चांदी के बर्तन का दान किया जाता है। इसके अलावा चावल, श्वेत वस्त्र, श्वेत चंदन, श्वेत पुष्प, चीनी, चांदी, बैल, घी, शंख, दही, मोती, कपूर का दान करने से चंद्र की पीड़ा शांत होती है। चंद्र की शांति के लिए इसके 11 हजार मंत्रों का जाप किया जाता है किंतु कलयुग में इसका चार गुना अर्थात् 44 हजार मंत्रों का जाप करवाना चाहिए।

मंगल
मंगल ग्रह परेशान कर रहा है तो शांति के लिए मसूर की दाल, गोधूम, लाल बैल, गुड़, लाल चंदन, लाल वस्त्र, लाल पुष्प, सोना, तांबा, केसर, कस्तुरी आदि का दान किया जाता है। किसी ब्राह्मण को तांबे के कलश में गुड़ रखकर दान देना चाहिए। मंगल की शांति के लिए 10 हजार मंत्रों का जाप करवाना चाहिए। कलयुग में चार गुना 40 हजार मंत्रों का जाप करवाना चाहिए।

बुध
बुध की शांति के लिए कांसे का पात्र, हरे कपड़े, गजदंत, घी, पन्ना, सोना, सर्वपुष्प, रत्न, कपूर, शंख, अनेक प्रकार के फल, षटरस भोजन दान में देना चाहिए। बुध के लिए 9000 मंत्रों का जाप करवाना चाहिए। कलयुग में चार गुना अर्थात् 36 हजार जाप करवाना चाहिए।

गुरु
गुरु की शांति के लिए पीला अनाज, पीले कपड़े, सोना, घी, पीले पुष्प, पीले फल, पुखराज, हल्दी, धार्मिक पुस्तकें, शहद, नमक, शक्कर, भूमि, छत्र आदि का दान किया जाता है। गुरु के मंत्रों की जप संख्या 19 हजार होती है। कलयुग में इसका चार गुना अर्थात् 76 हजार जाप करवाना चाहिए।

शुक्र
शुक्र की शांति के लिए सफेद चावल, सफेद चंदन, सफेद वस्त्र या रंगबिरंगे वस्त्र, श्वेत पुष्प, चांदी, हीरा, घी, सोना, दही, सुगंधित द्रव्य, इत्र, शकर का दान करना चाहिए। शुक्र की शांति के लिए इसके 16 हजार मंत्रों का जाप करवाया जाता है। कलयुग में इसका चार गुना अर्थात् 64 हजार जप संख्या करवाना चाहिए।

शनि
शनि की शांति के लिए तिल या सरसो का तेल, नीलम, तिल, काले वस्त्र, लोहा, भैंस, काली गाय, काले पुष्प, सोना आदि का दान दिया जाता है। शनि के शांति मंत्रों की संख्या 23 हजार होती है। कलयुग में इसका चार गुना 92 हजार जाप करवाना चाहिए।

राहु
राहु की शांति के लिए पंचधातु का नाग, सप्तधान्य, नीले वस्त्र, गोमेद, काले पुष्प, तिल, खड्ग, तेल, लोहा, कंबल, तांबे का पात्र, सुवर्ण, रत्न आदि का दान दिया जाता है। राहु के मंत्र जाप की संख्या 18 हजार होती है। कलयुग में 72 हजार जाप करवाना चाहिए।

केतु
केतु की शांति के लिए उड़द, कंबल, कस्तुरी, वैदूर्यमणि, काले फूल, तिल, तेल, रत्न, सुवर्ण, लोहा, शस्त्र, सप्तधान्य का दान दिया जाता है। इसकी शांति के लिए 17 हजार मंत्रों का जाप करवाया जाता है। कलयुग में चार गुना अर्थात् 68 हजार जाप करवाए जाने चाहिए।