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आज का पंचांग 21 अक्टूबर 2024, सोमवार


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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आज कार्तिक कृष्ण पंचमी है। आज के दिन भगवान शिव, चंद्र और गणेशजी का पूजन करने का विशेष महत्व होता है। आज के दिन चंद्र को प्रसन्न करने के उपाय किए जाने चाहिए। जिन लोगों की कुंडली में चंद्र नीच राशि में या पाप ग्रहों के साथ बैठा हुआ है तो उसके बुरे परिणाम होते हैं। चंद्र की खराबी से व्यक्ति श्वसन, फेफड़े और अन्य प्रकार के रोगों से पीड़ित रहता है। मानसिक रूप से भी हमेशा तनाव में रहता है। इसलिए आज सोमवार के दिन शिवजी को कच्चा दूध अर्पित करें और सायंकाल चंद्रोदय होने पर चंद्र को जल का अर्घ्य दें। इस उपाय से चंद्र मजबूत होगा। मां या माता के समान किसी स्त्री को सफेद मावे की मिठाई खिलाने से भी चंद्र की प्रसन्नता प्राप्त होती है।

विक्रम संवत : 2081
शालिवाहन वाहन शके : 1946
मास : कार्तिक कृष्ण पक्ष
ऋतु : शरद
अयन : दक्षिणायन

तिथि : पंचमी रात्रि 2:28 तक
नक्षत्र : मृगशिरा दूसरे दिन प्रात: 5:49 तक
योग : वरियान प्रात: 11:10 तक
करण : कौलव दोप 3:17 तक पश्चात तैतिल

सूर्योदय : 6:27:02
सूर्यास्त : 5:55:01

चंद्रास्त : प्रात: 10:31
चंद्रोदय : रात्रि 9:13

आज की ग्रह स्थिति
सूर्य: तुला
चंद्र: वृषभ, सायं 6:14 से मिथुन में
मंगल : कर्क
बुध : तुला, सायं 7:41 से उदय पश्चिम में
गुरु : वृषभ, वक्री
शुक्र : वृश्चिक
शनि : कुंभ, वक्री
राहु : मीन
केतु : कन्या

दिन का चौघड़िया
चर : दोप 1:37 से 3:03
लाभ : दोप 3:03 से सायं 4:29
अमृत : सायं 4:29 से 5:55
अभिजित : प्रात: 11:48 से दोप 12:34
प्रदोष काल : सायं 5:55 से रात्रि 8:26

रात्रि का चौघड़िया
चर : सायं 5:55 से 7:29

त्याज्य समय
राहु काल : प्रात: 7:53 से 9:19
यम घंट : प्रात: 10:45 से दोप 12:11

आज विशेष :
आज का शुभ अंक : 3
आज का शुभ रंग : सफेद, हल्का पीला
आज के पूज्य : चंद्र
आज का मंत्र : ऊं चंद्रमसे नम:

साप्ताहिक अंकफल: 21 से 27 अक्टूबर 2024


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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इस सप्ताह का प्रारंभ 21 अक्टूबर 2024 सोमवार को हो रहा है। इसके अनुसार सप्ताह का मूलांक 3 और भाग्यांक भी 3 है। अंक 3 का स्वामी बृहस्पति है। इसलिए यह सप्ताह सभी मूलांक वालों के लिए संयमपूर्ण व्यतीत होने वाला है। आपकी सात्विकता और आध्यात्मिकता में वृद्धि होगी। कार्य कुशलता से पूरे होंगे। व्यापार-व्यवसाय अच्छा चलने वाला है।

मूलांक 1 : (जन्म तारीख 1, 10, 19, 28)
मूलांक 1 का स्वामी सूर्य है और सप्ताह का मूलांक-भाग्यांक 3 है जिसका स्वामी बृहस्पति है। सूर्य और बृहस्पति संयुक्त रूप से मिलकर आपको अनेक प्रकार से सफलता देने वाले हैं। यह सप्ताह पारिवारिक कार्यों पर ध्यान देने का है। वैवाहिक और दांपत्य जीवन में मधुता आएगी। आर्थिक रूप से सुदृढ़ रहेंगे। सभी के तालमेल से अपने कार्यों को पूर्ण करने में सफल होंगे। स्वास्थ्य में सुधार आएगा।

मूलांक 2 : (जन्म तारीख 2, 11, 20, 29)
मूलांक 2 का स्वामी चंद्र है और सप्ताह का मूलांक-भाग्यांक 3 है जिसका स्वामी बृहस्पति है। चंद्र और बृहस्पति के गुण संयुक्त रूप से आपके लिए गजकेसरी योग जैसे लाभ देने वाले हैं। यह सप्ताह आपके लिए बेहतरीन रहने वाला है। नौकरी में पद-प्रमोशन, कार्य में लाभ। नए कामकाम प्रारंभ करेंगे। आर्थिक लाभ होगा। रिश्ते मजबूत होंगे, चाहे वे दांपत्य के हों या प्रेम संबंधों के।

मूलांक 3 : (जन्म तारीख 3, 12, 21, 30)
मूलांक 3 का स्वामी बृहस्पति है और सप्ताह का मूलांक-भाग्यांक 3 है जिसका स्वामी बृहस्पति है। दोनों ही अंक बृहस्पति के हैं इसलिए यह सप्ताह आपको चारों ओर से उन्नति देने वाला रहेगा। पारिवारिक से लेकर आर्थिक, सामाजिक, वैवाहिक, करियर सभी के लिए यह सप्ताह अत्यंत लाभदायक रहने वाला है। लंबे समय से चली आ रही अनेक शारीरिक परेशानियां भी इस सप्ताह दूर हो जाएंगी।

मूलांक 4 : (जन्म तारीख 4, 13, 22, 31)
मूलांक 4 का स्वामी राहु है और सप्ताह का मूलांक-भाग्यांक 3 है जिसका स्वामी बृहस्पति है। राहु और गुरु मिलकर गुरु चांडाल जैसे योग बना रहे हैं। यह सप्ताह आपके लिए भारी उठापटक वाला रह सकता है। आर्थिक रूप से झटके पड़ सकते हैं। खर्च की अधिकता रहेगी। स्वास्थ्यगत समस्याएं आ सकती हैं। परिवार में विवाद और करियर में चिंता बढ़ सकती है। दुर्घटना की आशंका है।

मूलांक 5 : (जन्म तारीख 5, 14, 23)
मूलांक 5 का स्वामी बुध है और सप्ताह का मूलांक-भाग्यांक 3 है जिसका स्वामी बृहस्पति है। बुध और गुरु दोनों ही शुभ अंकों वाला है यह सप्ताह, इसलिए आपको अनायास सफलताएं मिलने लगेंगी। स्वास्थ्य में सुधार आएगा। करियर में गति आएगी। अनेक माध्यमों से धन आएगा। पद और पैसा मिलेगा। पारिवारिक जीवन सुखद होगा। नए कामकाम प्रारंभ करेंगे तो उनमें भी लाभ मिलेगा।

मूलांक 6 : (जन्म तारीख 6, 15, 24)
मूलांक 6 का स्वामी शुक्र है और सप्ताह का मूलांक-भाग्यांक 3 है जिसका स्वामी बृहस्पति है। शुक्र और गुरु मिलकर यह सप्ताह मिलाजुला बना रहे हैं। कुछ काम चलते-चलते अटक सकते हैं। अनेक विरोधाभासी बातें साथ में होंगी। आप किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाएंगे। धन आएगा और खर्च के रास्ते भी बनेंगे। स्वास्थ्य ठीक रहेगा। कामकाज में उन्नति होने वाली है।

मूलांक 7 : (जन्म तारीख 7, 16, 25)
मूलांक 7 का स्वामी केतु है और सप्ताह का मूलांक-भाग्यांक 3 है जिसका स्वामी बृहस्पति है। आपके काम पूरे होने में संदेह रहेगा। किंतु किसी पारिवारिक सदस्य या करीबी मित्र के सहयोग से काम हो सकेंगे। यात्राएं और भटकाव काफी रह सकता है। स्वास्थ्य में कुछ खराबी आ सकती है। धन का अनावश्यक खर्च होगा। करियर में ग्रोथ मिलेगी। नए पद की बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है।

मूलांक 8 : (जन्म तारीख 8, 17, 26)
मूलांक 8 का स्वामी शनि है और सप्ताह का मूलांक-भाग्यांक 3 है जिसका स्वामी बृहस्पति है। आपके लिए यह सप्ताह स्थायित्व वाला रहेगा। आप जिन कार्यों में सेटल होने का सोच रहे थे वे ठीक हो सकते हैं और आपको जीवन में स्थायित्व प्राप्त होगा। आर्थिक रूप से इस सप्ताह सुदृढ़ रहेंगे। पैसा आएगा, भौतिक सुख सुविधाएं प्राप्त होंगी। प्रेम संबंध मजबूत होंगे। प्रेमी प्रेमिका साथ वक्त बिताएंगे।

मूलांक 9 : (जन्म तारीख 9, 18, 27)
मूलांक 9 का स्वामी मंगल है और सप्ताह का मूलांक-भाग्यांक 3 है जिसका स्वामी बृहस्पति है। आपके लिए यह सप्ताह अति श्रेष्ठ रहने वाला है। मंगल और बृहस्पति मिलकर शुभ योग-संयोग बनाते दिख रहे हैं। सप्ताह सफलता वाला रहेगा। पारिवारिक कार्य तेजी से होंगे। नौकरी में बदलाव के साथ प्रमोशन मिल सकता है। व्यर्थ की दौड़भाग थमेगी। पैसा आएगा। कर्ज चुकाने की स्थिति बनेगी।

सावधान रहें! मंगल का नीच राशि कर्क में हो रहा गोचर


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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क्रोध, युद्ध, सैन्य शक्ति, रक्त विकार, साहस, बल, पराक्रम का ग्रह मंगल 20 अक्टूबर 2024 रविवार को दोपहर 2:19 बजे से अपनी नीच राशि कर्क में प्रवेश करने जा रहा है। कर्क चंद्र की राशि है और जल तत्व व शीत प्रकृति की राशि है जबकि मंगल अग्नि तत्व का प्रतीक। अग्नि और जल का कभी मिलन नहीं हो सकता इसलिए जब जब भी मंगल का गोचर कर्क राशि में होता है तब-तब प्रकृति, पर्यावरण, जीव-जंतु और मनुष्यों पर अनेक प्रकार के विपरीत असर पड़ते हैं। मंगल 21 जनवरी 2025 तक इसी राशि में रहने वाला है। इस बीच 6 दिसंबर को वक्री हो जाने के कारण कर्क राशि में ही उल्टा चलने लगेगा जिससे इसका कर्क राशि में समय बढ़ जाएगा। मंगल आमतौर पर एक राशि में 45 दिन रहता है किंतु वक्री हो जाने के कारण यह समय लगभग 93 दिन हो जाएगा।

नीच राशि में प्रभाव
कर्क राशि मंगल की नीच राशि होती है। इसलिए इस राशि में प्रवेश करते ही मंगल के प्रभावों में वृद्धि हो जाएगी। जिन लोगों की जन्मकुंडली में मंगल पूर्व से ही वक्री बैठा हुआ है उनके लिए यह समय अधिक संकटपूर्ण रह सकता है। क्रोध में वृद्धि होगी। अनावश्यक विवादों में फंस सकते हैं। पारिवारिक टकराव हो सकते हैं। आर्थिक हानि की आशंका रहेगी। यहां तक कि उन्हें रक्त संबंधी बड़े विकार भी सामने आ सकते हैं। इसलिए यह समय शांतिपूर्ण तरीके से निकालने का प्रयास करें।

राजनीतिक प्रभाव
नीच राशि में मंगल का गोचर होने से देश-दुनिया में युद्ध जैसे हालात बनते हैं। अनेक देशों के बीच टकराव बढ़ते हैं और फलस्वरूप युद्ध की स्थितियां निर्मित होती हैं। वर्तमान में पृथ्वी के जिस भी भूभाग पर युद्ध चल रहे हैं वे भीषणतम स्थिति में पहुंच सकते हैं। सैन्य बलों की हानि हो सकती है। देशों के टुकड़े हो सकते हैं। शांति पसंद करने वाले देश भी उग्र व्यवहार दिखा सकते हैं।

प्रकृति-पर्यावरण पर प्रभाव
मंगल का जब भी गोचर होता है, बड़ी प्राकृतिक विपदाएं आती हैं। विमान-ट्रेन दुर्घटनाएं, भीषण अग्निकांड, जल प्लावन, सूनामी, समुद्र में हलचल, भूकंप, बाढ़ जैसी विभीषिका आ सकती हैं। मानव निर्मित आपदाएं भी इस दौरान अधिक सिर उठाती हैं। संक्रामक रोगों में वृद्धि, कोई नया वायरस आतंक मचा सकता है।

मनुष्यों पर प्रभाव
इस गोचर के दौरान मनुष्य अजीब व्यवहार कर सकते हैं। सहन शक्ति कम होगी। मानसिक तनाव बढ़ेगा। एक-दूसरे के साथ विवाद कर सकते हैं। क्रोध बढ़ने के कारण अनेक हानिकारक घटनाओं को अंजाम दे सकते हैं।

शुभ क्या
मंगल चूंकि धन का ग्रह भी है। इसलिए जिन लोगों की जन्मकुंडली में मंगल उच्च का या स्वराशि में बैठा हुआ है उनके लिए यह गोचर श्रेष्ठ रहने वाला है। धन-संपत्ति से लाभ होगा। आर्थि लाभ होगा। कर्ज मुक्ति का समय रहेगा।

राशियों पर प्रभाव
शुभ : वृषभ, तुला, धनु, मीन
मध्यम : मकर, कुंभ, मिथुन, कन्या
अशुभ : मेष, वृश्चिक, कर्क, सिंह

क्या करें
मंगल के कर्क राशि में गोचर के दौरान सभी राशि के जातकों को मंगल यंत्र का नित्य पूजन दर्शन करना चाहिए। तांबे का कड़ा या छल्ला पहनकर रखें। ओवल शेप का लाल मूंगा सोने या पंच धातु की अंगूठी में बनवाकर अनामिका अंगुली में धारण करें। प्रत्येक मंगलवार को हनुमानजी को नारियल चढ़ाएं।

आज का पंचांग : 20 अक्टूबर 2024, रविवार


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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आज का दिन सुहागिन महिलाओं के लिए अत्यंत विशेष है। आज करवा चतुर्थी व्रत किया जाएगा। आज महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला रहकर व्रत रखेंगी और गणेजी का पूजन करके रात्रि में चंद्र के दर्शन कर व्रत खोलेंगी। आज रविवार है इसलिए सूर्यदेव की कृपा के लिए आज के दिन लाल वस्त्र पहनें और लाल चंदन का तिलक मस्तक पर लगाएं। नीचे दिए गए सूर्य के मंत्र का एक माला जाप करने से सूर्यदेव की कृपा प्राप्त होगी और आप स्वस्थ और निरोगी बनेंगे। आपके कार्यों को उन्नति मिलेगी। चतुर्थी तिथि होने के कारण आज भगवान श्री गणेशजी का पूजन दर्शन करना भी सुख-समृद्धिदायक रहेगा। आज गणेशजी को दूर्वा अवश्य अर्पित करें।

विक्रम संवत : 2081
शालिवाहन वाहन शके : 1946
मास : कार्तिक कृष्ण पक्ष
ऋतु : शरद
अयन : दक्षिणायन

तिथि : तृतीया प्रात: 6:45 तक पश्चात चतुर्थी (क्षय)
नक्षत्र : कृतिका प्रात: 8:30 तक पश्चात रोहिणी
योग : व्यतिपात दोप 2:10 तक
करण : विष्टि भद्र प्रात: 6:45 तक पश्चात बव- बालव

सूर्योदय : 6:26:35
सूर्यास्त : 5:55:47

चंद्रास्त : प्रात: 9:23
चंद्रोदय : रात्रि 8:15

आज की ग्रह स्थिति
सूर्य: तुला
चंद्र: वृषभ
मंगल : मिथुन, कर्क में दोप 2:19 से
बुध : तुला
गुरु : वृषभ, वक्री
शुक्र : वृश्चिक
शनि : कुंभ, वक्री
राहु : मीन
केतु : कन्या

दिन का चौघड़िया
चर : प्रात: 7:53 से 9:19
लाभ : प्रात: 9:19 से 10:45
अमृत : प्रात: 10:45 से दोप 12:11
शुभ : दोप 1:37 से 3:03
अभिजित : प्रात: 11:48 से दोप 12:34
प्रदोष काल : सायं 5:56 से रात्रि 8:27

रात्रि का चौघड़िया
शुभ : सायं 5:56 से 7:30
अमृत : सायं 7:30 से रात्रि 9:04
चर : रात्रि 9:04 से 10:38

त्याज्य समय
राहु काल : सायं 4:30 से 5:56
यम घंट : दोप 12:11 से 1:37

आज विशेष : करवा चतुर्थी व्रत
आज का शुभ अंक : 2
आज का शुभ रंग : लाल, कत्थई
आज के पूज्य : सूर्यदेव, गणेशजी
आज का मंत्र : ऊं गं गणपतये नम:, ऊं घृणि: सूर्याय नम:

जानिए करवा चतुर्थी व्रत की संपूर्ण पूजन विधि, कथा


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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करवा चतुर्थी का व्रत 20 अक्टूबर 2024 रविवार को किया जाएगा। सुहागिन महिलाएं अपने पति के स्वस्थ और दीर्घायु होने की कामना से यह व्रत निर्जला रहकर करती हैं। इस व्रत को करने के कुछ विशिष्ट विधान और नियम हैं, उनका पालन किया जाना अत्यंत आवश्यक होता है। यहां हम आपको संपूर्ण सामग्री और पूजा करने की विधि की जानकारी दे रहे हैं।

क्या पूजन सामग्री आवश्यक
करवा चौथ की पूजन सामग्री में सबसे आवश्यक वस्तु करवा होता है। यह मिट्टी का बना टोंटी वाला छोटा सा कलश होता है जिसके ऊपर ढंकने के लिए मिट्टी का दीया होता है। अनेक लोग मिट्टी की जगह धातु का करवा भी लेते हैं, लेकिन मिट्टी के करवे की अधिक मान्यता होती है और इसे अत्यंत पवित्र बताया गया है। इसके अलावा मिट्टी के दो दीये। करवे में लगाने के लिए कांस की तीलियां। पूजन के लिए कुमकुम, चावल, हल्दी, गुलाल, अबीर, मेहंदी, मौली, फूल, फल, प्रसाद आदि। पति का चेहरा देखने के लिए छलनी। जल से भरा कलश-लोटा । चौकी, करवा चतुर्थी पूजन का पाना अर्थात् चित्र जिसमें चंद्रमा, शिव, पार्वती, कार्तिकेय आदि के चित्र बने होते हैं। करवा चौथ कथा की पुस्तक, धूप, दीप। सुहाग की सामग्री जिसमें हल्दी, मेहंदी, काजल, कंघा, सिंदूर, छोटा कांच, बिंदी, चुनरी, चूड़ी। करवे में भरने के लिए गेहूं, शकर, खड़े मूंग।

करवा चौथ की पूजन विधि
– करवा चतुर्थी के दिन सूर्योदय पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत होकर साफ-स्वच्छ वस्त्र पहनें। श्रृंगार करें और अपने घर के पूजा स्थान को साफ स्वच्छ कर लें। भगवान श्री गणेश का ध्यान करते हुए करवा चौथ व्रत का संकल्प लें। पूरे दिन निर्जला रहें।
– सामने दीवार पर करवा चौथ पूजा का पाना चिपकाएं। नीचे चौकी पर वस्त्र बिछाकर एक करवा रखें जिसमें गेहूं, चावल या शकर भरे जाते हैं। सामने पाने पर गणेशजी से प्रारंभ करके समस्त पूजन सामग्री से पूजन करें। फिर करवे का पूजन करें। करवे पर स्वस्तिक बनाएं फल रखें, फूल अर्पित करें, कुछ मुद्रा अर्पित करें। करवे के ढक्कन में खड़े हरे मूंग या शकर भर दें।
– गणेश गौरी का पूजन करें। गौरी को समस्त सुहाग की सामग्री भेंट करें।
– इसके बाद करवा चतुर्थी व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। कथा सुनने से पहले हाथ में चावल के 13 दानें लें। इन दानों को साड़ी के छोर पर बांध लें।
– इस प्रकार तीन बार पूजन किया जाता है। सुबह पूजा करने के बाद दोपहर में चार बजे और फिर रात्रि में चंद्रोदय के पूर्व। तीनों बार की पूजा हो जाने के बाद रात्रि में चंद्रोदय की प्रतीक्षा की जाती है।
– चंद्रोदय होने पर चंद्र देव का पूजन करें। जल का अर्घ्य दें, साड़ी के छोर में बंधे चावल के 13 दानें निकालकर उन्हें अर्घ्य के साथ चंद्र को अर्पित करें। दीपक से चंद्र की आरती करें। फिर छलनी में से पति का चेहरा देखें। इसके बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलें और भोजन ग्रहण करें।
– पूजा में उपयोग किया हुआ करवा सास या सास के समान किसी सुहागिन महिला को भेंट करें।

करवा चतुर्थी व्रत की कथा
करवा चतुर्थी का व्रत के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं किंतु सर्वाधिक चर्चित कथा यहां प्रस्तुत की जा रही है।

किसी समय इंद्रप्रस्थ नामक नगर में वेद शर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी लीलावती के साथ सुखपूर्वक निवास करता था। उसके सात योग्य और सुशील पुत्र थे और वीरावती नाम की एक सुंदर पुत्री थी। सातों भाइयों का विवाह हो जाने के पश्चात वीरावती का भी विवाह संपन्न कर दिया गया।

जब कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आई तो वीरावती ने अपनी समस्त भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखा। वीरावती ने विवाह के बाद पहली बार यह व्रत रखा था इसलिए वह भूख-प्यास सहन नहीं कर पाई और मूर्छित हो गई। भाभियां जैसे-तैसे वीरावती के मुख पर जल के छींटे मारकर उसे अर्द्धचेतनावस्था में लेकर आई।

सातों भाई जब व्यापार करके भोजन करने घर आए तो उनसे अपनी प्यारी बहन की ऐसी हालत देखी नहीं गई। उन्होंने अपनी बहन से भोजन करने को कहा तो उसने इन्कार कर दिया कि जब तक वह चंद्र का दर्शन नहीं कर लेगी, तब तक भोजन ग्रहण नहीं करेगी। इस पर भाइयों को चिंता सताने लगी कि कहीं बहन की हालत और बुरी न हो जाए तो उन्होंने एक उपाय सोचा। दो भाई घर से दूर चले गए और दूर जंगल में जाकर एक पेड़ पर चढ़कर उन्होंने मशाल की रोशनी दिखाई। घर पर मौजूद अन्य भाइयों ने बहन को दूर से आती रोशनी दिखाई और कहा कि चंद्रमा का उदय हो गया है। बहन भ्रम में पड़ गई और मशाल की रोशनी को चंद्रमा की रोशनी समझकर पूजन कर व्रत तोड़ दिया।

चूंकि वास्तव में व्रत पूरा नहीं हुआ था इसलिए इसका दुखद परिणाम हुआ और कुछ समय बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई। उसी रात इंद्राणी पृथ्वी पर आई। वीरावती ने उससे इस घटना का कारण पूछा तो इंद्राणी ने कहा कि तुमने भ्रम में फंसकर चंद्रोदय होने से पहले ही भोजन कर लिया। इसलिए तुम्हारे साथ यह घटना हुई है। पति को पुनर्जीवित करने के लिए तुम विधिपूर्वक करवा चतुर्थी व्रत का संकल्प करो और अगली करवा चतुर्थी आने पर व्रत पूर्ण करो। वीरावती से संकल्प लिया तो उसका पति जीवित हो गया। फिर अगला करवा चतुर्थी आने पर वीरावती से विधि विधान से व्रत पूर्ण किया। इस प्रकार करवा चतुर्थी व्रत कथा पूर्ण हुई।

करवा चतुर्थी पर बना शश, गजकेसरी, बुधादित्य योग


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन करवा चतुर्थी का व्रत किया जाता है। यह व्रत इस बार 20 अक्टूबर 2024 रविवार को आ रहा है। इस बार करवा चतुर्थी पर अनेक शुभ योग बन रहे हैं। इस दिन चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में रहने के साथ ही अपने सबसे प्रिय नक्षत्र रोहिणी में तो रहेगा ही, इसके साथ ही इस दिन गजकेसरी, बुधादित्य और शश योग भी बन रहे हैं। इन अनेक शुभ योगों की साक्षी में व्रत और चंद्रमा का पूजन पति-पत्नी के जीवन में नए प्रेम का संचार करेगा। दोनों की निकटता बढ़ेगी और संबंधों में गर्माहट आएगी। यह व्रत मुख्य रूप से सुहागिन महिलाएं करती हैं।

गजकेसरी योग
किसी भी कुंडली में गजकेसरी योग गुरु और चंद्रमा की युति से बनता है। अगर चारों केंद्र स्थान यानी लग्न, चतुर्थ, सप्तम और दशम भाव में गुरु-चंद्र साथ हो और बलवान हो तो गजकेसरी योग बनता है। अगर त्रिकोण भाव में ये दोनों ग्रह हों तो भी गजकेसरी योग बनता है। इस दिन गुरु के साथ वृषभ राशि में चंद्र की युति हो रही है। इसलिए गजकेसरी योग बन रहा है। इस योग में करवा चतुर्थी का पूजन करना अत्यंत शुभ रहेगा।

बुधादित्य योग
सूर्य और बुध की युति से बनता है बुधादित्य योग। 20 अक्टूबर को तुला राशि में सूर्य और बुध एक साथ बैठे हुए हैं। इसलिए बुधादित्य योग का निर्माण हो रहा है। इस योग में करवा चतुर्थी का आना अपने आप में एक श्रेष्ठ संयोग है। इसके प्रभाव से पारिवारिक जीवन में शुभता और सौख्यता आती है।

शश योग
शश योग शनि से बनने वाला एक अत्यंत शुभ योग कहा जाता है। शनि जब केंद्र स्थानों में स्वराशि में होता है तो शश योग बनता है। शनि पूर्व से ही स्वराशि कुंभ में गोचर कर रहा है। 20 अक्टूबर को केंद्र स्थान में होने के कारण शश योग का निर्माण हो रहा है। चूंकि शनि स्थायित्व का प्रतीक है इसलिए इस दिन करवा चतुर्थी आने से पति-पत्नी के रिश्तों में स्थायी प्रेम का संचार होगा।

उच्च का चंद्र और प्रिय रोहिणी
करवा चतुर्थी के दिन चंद्र अपनी उच्च राशि वृषभ में रहेगा और इसके साथ अपने सबसे प्रिय नक्षत्र रोहिणी में भी भ्रमण करेगा। यह
दांपत्य जीवन की सुख-सफलता के लिए श्रेष्ठ संयोग है। इतने सारे योग संयोग के कारण इस बार का करवा चतुर्थी व्रत अत्यंत श्रेष्ठ और शुभ बन गया है। इसलिए जो दंपती इस दिन एक-दूसरे के लिए व्रत रखेंगे उनका दांपत्य जीवन सदैव सुखमय रहने वाला है।

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आज का पंचांग, 19 अक्टूबर 2024, शनिवार

आज कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि है। आज भरणी नक्षत्र रहेगा और सिद्धि योग सायं 5 बजकर 40 मिनट तक रहेगा। सिद्धि योग में प्रारंभ किए कार्य सिद्ध होते हैं और इस योग में यदि कोई वस्तु खरीदी जाए तो वह शुभ रहती है। आज का दिन इसलिए भी अत्यंत विशेष है क्योंकि आज शनिवार है। हनुमानजी की आराधना, पूजा और दर्शन करने से अनेक संकटों का नाश होता है। हनुमान बजरंग बाण का पाठ करने से सारे शत्रु और रोग दूर हो जाते हैं। शनिदेव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो शनि मंदिर में जाकर शनि स्तोत्र का पाठ करें। शनिदेव को काला कपड़ा, काले उड़द, लोहा, काले तिल और सरसों का तेल अर्पित करें। शनि की साढ़ेसाती से पीड़ित लोगों को यह उपाय अवश्य करना चाहिए। आज के दिन शनि मंदिर या किसी भी मंदिर के बाहर बैठे भिखारियों को नमकीन चावल और इमरती खिलाएं, शनि की पीड़ा कम होगी।

विक्रम संवत : 2081
शालिवाहन वाहन शके : 1946
मास : कार्तिक कृष्ण पक्ष
ऋतु : शरद
अयन : दक्षिणायन

तिथि : द्वितीया प्रात: 9:48 तक पश्चात तृतीया
नक्षत्र : भरणी प्रात: 10:45 तक
योग : सिद्धि सायं 5:40 तक
करण : गर प्रात: 9:48 तक पश्चात वणिज

सूर्योदय : 6:26:08
सूर्यास्त : 5:56:35

चंद्रास्त : प्रात: 8:14
चंद्रोदय : सायं 7:22

आज की ग्रह स्थिति
सूर्य: तुला
चंद्र: मेष, सायं 4:09 से वृषभ में
मंगल : मिथुन
बुध : तुला
गुरु : वृषभ, वक्री
शुक्र : वृश्चिक
शनि : कुंभ, वक्री
राहु : मीन
केतु : कन्या

दिन का चौघड़िया
शुभ : प्रात: 7:52 से 9:19
चर : दोप 12:11 से 1:38
अमृत : दोप 3:04 से सायं 4:30
अभिजित : प्रात: 11:48 से दोप 12:34
प्रदोष काल : सायं 5:57 से रात्रि 8:27

रात्रि का चौघड़िया
लाभ : सायं 5:57 से 9:30
शुभ : रात्रि 9:04 से 10:38

त्याज्य समय
राहु काल : प्रात: 9:19 से 10:45
यम घंट : दोप 1:38 से 3:04

आज विशेष :
आज का शुभ अंक : 1
आज का शुभ रंग : नीला, काला
आज के पूज्य : शनिदेव
आज का मंत्र : ऊं शं शनैश्चराय नम:

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कार्तिक मास के प्रमुख व्रत-त्योहार

कार्तिक मास 18 अक्टूबर 2024 से 15 नवंबर 2024 तक रहेगा। कार्तिक मास के प्रधान देव भगवान श्रीहरि विष्णु हैं। इस पूरे मास में भगवान विष्णु और लक्ष्मी का पूजन, उनके मंत्रों का जाप आदि करने से अक्षय पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। इस मास में द्विदल अर्थात् दालों के सेवन का त्याग करने का निर्देश शास्त्रों में दिया गया है। यह वर्ष का सबसे प्रमुख मास होता है क्योंकि इसी मास में सनातन संस्कृति का सबसे बड़ा त्योहार दीपावली आता है। इस पूरे मास यदि मां लक्ष्मी की साधना की जाए तो मनुष्य को हर वो सुख प्राप्त हो सकता है जिसकी वह कामना करता है।

कार्तिक में अनेक बड़े व्रत, पर्व, त्योहार आते हैं। इस मास में देव प्रबोधिनी एकादशी भी आती है, जिस पर चातुर्मास समाप्त होता है और वैवाहिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। कई ग्रहों का राशि परिवर्तन भी इस मास में होने वाला है। आइए जानते हैं कार्तिक मास में आने वाले प्रमुख त्योहारों के बारे में-

प्रमुख शुभ योग
18 अक्टूबर- सर्वार्थसिद्धि योग प्रात: 6:29 से दोप 1:27
21 अक्टूबर- सर्वार्थसिद्धि योग प्रात: 6:30 से 6:50 पश्चात अमृतसिद्धि रात्रि 2:29 तक
22 अक्टूबर- रवियोग दिन-रात
23 अक्टूबर- रवियोग रात्रि 1:42 से दूसरे दिन प्रात: 6:15 तक
24 अक्टूबर- गुरु-पुष्य का संयोग संपूर्ण दिन-रात
30 अक्टूबर- सर्वार्थसिद्धि योग प्रात: 6:35 से रात्रि 9:43
4 नवंबर- सर्वार्थसिद्धि योग प्रात: 6:35 से 8:50 तक, रवियोग प्रात: 8:06 से
8 नवंबर- सर्वार्थसिद्धि योग दोप 12:02 से
12 नवंबर- सर्वार्थसिद्धि योग प्रात: 7:52 से संपूर्ण दिन रात

प्रमुख व्रत, त्योहार, पर्व
20 अक्टूबर- करवा चतुर्थी, संकट चतुर्थी, चंद्रोदय रात्रि 8:16 पर
24 अक्टूबर- अहोई अष्टमी, कालाष्टमी
28 अक्टूबर- रमा एकादशी, गोवत्स द्वादशी
29 अक्टूबर- भौम प्रदोष व्रत, धनतेरस, सायंकाल में दीपदान
30 अक्टूबर- रूप चतुर्दशी, नरक चतुर्दशी
31 अक्टूबर- कार्तिक अमावस्या, महालक्ष्मी पूजा, दीपावली
1 नवंबर- गोवर्धन पूजा, अन्नकूट महोत्सव, बलिपूजा
2 नवंबर- मत भिन्नता के कारण गोवर्धन पूजा और भाई दूज इस दिन भी मनाई जाएगी।
3 नवंबर- भाईदूज, यम द्वितीया, चित्रगुप्त पूजा।
5 नवंबर- विनायक चतुर्थी व्रत
6 नवंबर- सौभाग्य पंचमी, पांडव पंचमी
7 नवंबर- सूर्य षष्ठी, छठ पूजा
9 नवंबर- गोपाष्टमी
10 नवंबर- आंवला नवमी, कूष्मांड नवमी, अक्षय नवमी
11 नवंबर- भीष्म पंचक व्रत प्रारंभ
12 नवंबर- देव उठनी एकादशी, तुलसी विवाह
13 नवंबर- प्रदोष व्रत, चातुर्मास समाप्त
14 नवंबर- बैकुठ चतुर्दशी, हरिहर मिलन
15 नवंबर- कार्तिक पूर्णिमा, देव दीपावली, भीष्म पंचक व्रत पूर्ण, कार्तिक स्नान समाप्त

ग्रहों के राशि परिवर्तन
20 अक्टूबर- मंगल कर्क में दोप 2:19 से
21 अक्टूबर- बुध उदय पश्चिम में सायं 7:41 पर
29 अक्टूबर- बुध वृश्चिक में रात्रि 10:39 से
6 नवंबर- शुक्र धनु में रात्रि 3:32 से
15 नवंबर- शनि मार्गी सायं 7:52 से

आज का पंचांग, 17 अक्टूबर 2024, गुरुवार

आज आश्विन मास की परं पूर्णिमा है। आज के दिन सत्यनारायण व्रत और पूजन किया जाएगा। आज से कार्तिक स्नान भी प्रारंभ हो जाएगा। आश्विन पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक कार्तिक स्नान किया जाता है। कार्तिक स्नान में प्रात: ब्रह्ममुहूर्त में तारों की छाया में स्नान किया जाता है और सायंकाल में पुन: तारों के उदित होने पर भोजन किया जाता है। कार्तिक मास में भगवान विष्णु की आराधना, पूजन, मंत्र जाप का विशेष महत्व होता है। इस पूरे मास में व्रती को संयमपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहिए। बुरे कर्मों से दूर रहना चाहिए। अनैतिक कार्यों से बचना चाहिए। जो लोग व्रत रखते हैं उन्हें कार्तिक मास में पवित्र नदियों में प्रतिदिन दीपदान करना चाहिए, यदि उनके आसपास पवित्र नदियां हैं तो

विक्रम संवत : 2081
शालिवाहन वाहन शके : 1946
मास : आश्विन शुक्ल पक्ष
ऋतु : शरद
अयन : दक्षिणायन

तिथि : पूर्णिमा सायं 4:55 तक
नक्षत्र : रेवती सायं 4:19 तक
योग : हर्षण रात्रि 1:40 तक
करण : विष्टि भद्र प्रात: 6:47 तक, पश्चात बव, परं बालव

सूर्योदय : 6:25:17
सूर्यास्त : 5:58:12

चंद्रोदय : सायं 5:52
चंद्रास्त : प्रात: 6:51 दूसरे दिन

आज की ग्रह स्थिति
सूर्य: तुला
चंद्र: मीन, सायं 4:19 से मेष में
मंगल : मिथुन
बुध : तुला
गुरु : वृषभ, वक्री
शुक्र : वृश्चिक
शनि : कुंभ, वक्री
राहु : मीन
केतु : कन्या

दिन का चौघड़िया
चर : प्रात: 10:45 से दोप 12:12
लाभ : दोप 12:12 से 1:38
शुभ : सायं 4:32 से 5:58
अभिजित : प्रात: 11:49 से दोप 12:35
प्रदोष काल : सायं 5:58 से रात्रि 8:28

रात्रि का चौघड़िया
अमृत : सायं 5:58 से 7:32
चर : सायं 7:32 से रात्रि 9:05

त्याज्य समय
राहु काल : दोप 1:38 से 3:05
यम घंट : प्रात: 6:25 से 7:52

आज विशेष : सत्यनारायण व्रत, कार्तिक स्नान प्रारंभ
आज का शुभ अंक : 8
आज का शुभ रंग : पीला, नीला
आज के पूज्य : श्री हरि विष्णु
आज का मंत्र : ऊं विष्णवे नम:

शरद पूर्णिमा की रात्रि में एक उपाय से होगी धन की बरसात

आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर 2024 को है। यह पूर्णिमा अत्यंत सिद्ध और चमत्कारिक होती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि में मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के उपाय भी किए जाते हैं। अनेक तांत्रिक लोग इस पूर्णिमा पर लक्ष्मी साधनाएं करते हैं।

लक्ष्मी साधना के लिए सामग्री
मां लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र, श्रीयंत्र धातु का या चित्र, एक कलश, नारियल, लकड़ी की चौकी, लाल कपड़ा, पूजन की समस्त सामग्री, सिंदूर, कुमकुम, मौली, अक्षत, केसर, चंदन, एक मोती शंख, पांच गोमती चक्र, पांच पीली-सफेद कौड़ी, पांच प्रकार के फल, मखाने की खीर।

कैसे करें लक्ष्मी साधना
शरद पूर्णिमा की रात्रि में ठीक 12 बजे एक लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर मां लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके साथ ही श्रीयंत्र भी स्थापित करें। श्रीयंत्र किसी धातु का भी हो सकता है और चित्र भी। धातु को हो तो ज्यादा शुभ है। अब साबुत चावल की ढेरी बनाकर उस पर एक कलश में जल भरकर रखें और उसमें लाल पुष्प डालें और उस पर लाल कपड़ा रखकर नारियल रख दें। अब समस्त द्रव्यों से लक्ष्मी और श्रीयंत्र का पूजन करें। श्रीयंत्र पर केसर को घोलकर नौ बिंदियां लगाएं। लक्ष्मी मां को सुंदर वस्त्राभूषण से सुशोभित करें। गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से पूजा करें। मोती शंख, गोमती चक्र और कौड़ियों का पूजन करें, केसर की बिंदी लगाएं। मां लक्ष्मी को मखाने की खीर का नैवेद्य लगाएं। अब श्रीसूक्त या कनकधारा स्तोत्र के 21 पाठ करें। लक्ष्मी मां की आरती करें। अगले दिन एक लाल कपड़े की पोटली सिलकर उसमें मोती शंख, गोमती चक्र और पीली कौड़ी बांधकर रख लें। इसे ऐसे स्थान पर सुरक्षित रख लें जहां आप अपना धन, पैसा, आभूषण रखते हों।

लक्ष्मी साधना के लाभ
1. लक्ष्मी साधना करने के लिए शरद पूर्णिमा सबसे उपयुक्त और श्रेष्ठ दिन होता है। इस दिन चंद्र अपनी पूर्ण कलाओं से युक्त होता है।
2. लक्ष्मी साधना करने से साधक के जीवन में शुभ संकल्पों का संचार होता है। उसके कार्यों की बाधाएं दूर होती जाती हैं और वह जीवन में निरंतर उन्नति करता जाता है। उसके जीवन में किसी चीज का अभाव नहीं रह जाता है।
3. शरद पूर्णिमा पर की गई लक्ष्मी साधना कार्तिक अमावस्या के समान फलदायी होती है और इस दिन मां लक्ष्मी अपनी कृपा बरसाने को आतुर रहती हैं।
4. इस रात्रि में जो साधक लक्ष्मी साधना करता है उसके घर में स्थायी रूप से लक्ष्मी का वास हो जाता है।
5. शरद पूर्णिमा पर श्रीयंत्र की साधना करने से धन-संपत्ति, सुख-वैभव, सम्मान की प्राप्ति होती है।
6. शरद पूर्णिमा भगवान श्रीकृष्ण का पूजन भी अवश्य करना चाहिए। इससे साधक के आकर्षण प्रभाव में वृद्धि होती है।

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