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असमय मृत्यु के समान कष्ट देती है टूटी हुई जीवनरेखा


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

अक्सर हम अपने सामाजिक जीवन में देखते हैं कि कई लोग कम उम्र में ही असमय मृत्यु के शिकार हो जाते हैं। हादसे का कारण चाहे कुछ भी रहा हो किंतु असमय मृत्यु पूरे परिवार को तोड़कर रख देती है। असमय मृत्यु होने का कारण आपकी हथेली में छुपा हुआ है। हथेली में जीवन रेखा का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि संपूर्ण जीवन पर इसी का प्रभाव सबसे अधिक होता है। जो रेखा अंगूठे के ठीक नीचे से निकलकर शुक्र पर्वत को घेरते हुए मणिबंध तक जाती है वही जीवन रेखा कहलाती है। सामान्य नियम के अनुसार छोटी जीवन रेखा कम उम्र और लंबी जीवन रेखा लंबी उम्र की ओर इशारा करती है। यदि जीवन रेखा टूटी हुई हो तो यह अशुभ होती है।

1. हस्तरेखा ज्योतिष के अनुसार लंबी, गहरी, पतली और साफ जीवन रेखा शुभ होती है। जीवन रेखा पर क्रॉस का चिह्न अशुभ होता है। यदि जीवन रेखा शुभ है तो व्यक्ति की आयु लंबी होती है और उसका स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है।

2. यदि मस्तिष्क रेखा (मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा लगभग एक ही स्थान से प्रारंभ होती है) और जीवन रेखा अपने उद्गम स्थान पर अलग-अलग हो तो व्यक्ति स्वतंत्र विचारों वाला होता है।

3. यदि मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा के मध्य अधिक अंतर हो तो व्यक्ति बिना सोच-विचार के कुछ भी कार्य कर डालता है।

4. यदि दोनों हाथों में जीवन रेखा टूटी हुई हो, तो व्यक्ति को असमय मृत्यु समान कष्टों का सामना करना पड; सकता है। यदि एक हाथ में जीवन रेखा टूटी हुई हो तो यह किसी गंभीर बीमारी की ओर संकेत करती है।

5. यदि किसी व्यक्ति के हाथ में जीवन रेखा श्रृंखलाकार या अलग-अलग टुकड़ों में हो तो या उनसे बनी हुई हो तो व्यक्ति निर्बल हो सकता है। ऐसे लोग स्वास्थ्य की दृष्टि से भी परेशानियों का सामना करते हैं।

6. यदि जीवन रेखा से कोई शाखा गुरु पर्वत क्षेत्र की ओर उठती दिखाई दे या गुरु पर्वत में जा मिले तो व्यक्ति को कोई बड़ा पद या व्यापार-व्यवसाय प्राप्त होता हे।

7. यदि जीवन रेखा से कोई शाखा शनि पर्वत क्षेत्र की ओर उठकर भाग्य रेखा के साथ-साथ चलती दिखाई दे तो व्यक्ति को धन-संपत्ति का लाभ मिल सकता है।

8. यदि जीवन रेखा, हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा तीनों प्रारंभ में मिली हुई हो तो व्यक्ति भाग्यहीन, दुर्बल और परेशानियों से घिरा होता है।

9. यदि जीवन रेखा को कई छोटी-छोटी रेखाएं काटती हुई नीचे की ओर जाती हो तो ये रेखाएं व्यक्ति के जीवन में परेशानियों को दर्शाती हैं।

10. यदि जीवन रेखा गुरु पर्वत से प्रारंभ हुई हो तो व्यक्ति अति महत्वाकांक्षी होता है। ये लोग अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।

11. जब टूटी हुई जीवन रेखा शुक्र पर्वत के भीतर की ओर मुड़ती दिखाई देती है तो यह अशुभ लक्षण होता है। ऐसी जीवन रेखा बताती है कि व्यक्ति को किसी बड़े संकट का सामना करना पड़ सकता है।

12. यदि जीवन रेखा अंत में दो भागों में विभाजित हो गई हो तो व्यक्ति की मृत्यु जन्म स्थान से दूर होती है।

ध्यान रखें हस्तरेखा में दोनों हाथों की बनावट और रेखाओं का पूरा अध्ययन करना बहुत जरूरी है। यहां बताए गए फल हथेली की अन्य स्थितियों से बदल भी सकते हैं। इसी वजह से किसी व्यक्ति के बारे में सटीक भविष्यवाणी करना हो तो दोनों हथेलियों का अध्ययन करना चाहिए।

धन संपदा में वृद्धि देने वाला शुक्र-पुष्य का शुभ संयोग 27 सितंबर को

पुष्य को नक्षत्रों का राजा कहा गया है और जब यह किसी विशेष दिन आता है तो उसके साथ मिलकर शुभ संयोग बनाता है। पुष्य नक्षत्र में किए गए कार्य सदैव उत्तम फलदायी होते हैं, धन-संपदा में वृद्धि करने वाले होते हैं और सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। 27 सितंबर को शुक्रवार के दिन पुष्य नक्षत्र आने से शुक्र-पुष्य का शुभ संयोग बना है। शुक्र पुष्य में खरीदा गया सोना, चांदी, भूमि, भवन, वाहन आदि में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है।

पुष्य नक्षत्र 26 सितंबर को रात्रि में 11 बजकर 33 मिनट से प्रारंभ होगा और 27 सितंबर को रात्रि 1 बजकर 20 मिनट तक रहेगा। इस प्रकार शुक्र पुष्य का संयोग पूरे दिन मिलने वाला है। इस शुभ नक्षत्र में अनेक प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते हैं।

क्या करें शुक्र पुष्य में

– सबसे पहले तो यदि आप स्वर्णाभूषण आदि खरीदना चाहते हैं तो शुक्र-पुष्य का संयोग आपके लिए सबसे उत्तम रहने वाला है। अभी श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं इसलिए कुछ लोग कह सकते हैं कि इसमें खरीदी नहीं करते हैं, लेकिन यह मान्यता सर्वथा गलत है। श्राद्धपक्ष में खरीदी की जा सकती है और ऐसे विशिष्ट संयोग में तो अवश्य खरीदना चाहिए।

– भूमि, भवन, संपत्ति, वाहन आदि खरीदने के लिए इससे श्रेष्ठ दिन और कोई नहीं, इसलिए शुक्र पुष्य के संयोग में इन चीजों की खरीदी अवश्य करें।

– यदि आप अपनी आर्थिक स्थिति को सामान्य से श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं तो शुक्र पुष्य के संयोग में इस दिन अपने घर में श्रीयंत्र की स्थापना अवश्य करें। यह यंत्र धातु पर बना हुआ या स्फटिक का हो तो और भी उत्तम रहेगा।

– जिन दंपतियों का वैवाहिक जीवन ठीक नहीं चल रहा है, वे शुक्र पुष्य के संयोग में एक-दूसरे को चांदी का कोई आभूषण और रेशमी सुंदर वस्त्र उपहार स्वरूप दें।

– जो लोग प्रेम संबंधों में असफल हो रहे हैं, वे शुक्र पुष्य के संयोग में सज संवरकर साफ-स्वच्छ वस्त्र पहनें और अच्छा सा परफ्यूम या इत्र लगाएं और फिर प्रेम निवेदन करें, सफलता मिलेगी।

– शुक्र पुष्य के संयोग में केसर का तिलक करना अत्यंत श्रेष्ठ रहता है। इससे व्यक्ति में जगत को मोहित करने की शक्ति आ जाती है।

– शुक्र पुष्य के योग में यदि कोई व्यापार-व्यवसाय प्रारंभ किया जाए तो वह भी सफल होता है।

श्राद्ध पक्ष की इंदिरा एकादशी 28 सितंबर को, एकादशी का श्राद्ध 27 को होगा

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। पितृपक्ष में आने के कारण इस एकादशी का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस एकादशी का व्रत रखकर उसका फल अपने जाने-अनजाने पितरों को प्रदान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उन्हें मुक्ति प्राप्त होती है। ऐसे पितृ इंदिरा एकादशी के फलस्वरूप बैकुंठ लोक की ओर प्रस्थान करते हैं। इंदिरा एकादशी का व्रत 28 सितंबर 2024 शनिवार को किया जाएगा जबकि एकादशी का श्राद्ध एक दिन पहले 27 सितंबर को किया जाएगा। इस दिन पितरों को कलाकंद या मावे की मिठाई धूप स्वरूप में देना चाहिए।

इंदिरा एकादशी व्रत की विधि

इंदिरा एकादशी के एक दिन पूर्व अथवा दशमी के दिन व्रती को एक समय भोजन का प्रण करना चाहिए। दशमी को रात्रि में भोजन न करें और अच्छे से ब्रश करें ताकि दांतों में अन्न का कोई कण न रहे। एकादशी के दिन सूर्योदय पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। सूर्यदेव को जल का अर्घ्य अर्पित करें और शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण कर पंच देवों का पूजन करें। एकादशी व्रत का सकाम या निष्काम संकल्प लेकर भगवान विष्णु का पूजन करें। एकादशी व्रत की कथा सुनें। दिनभर निराहार रहें। द्वादशी के दिन प्रात: व्रत का पारण करें। किसी ब्राह्मण दंपती को भोजन करवाकर अथवा भोजन बनाने का सामान देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें फिर व्रत खोलें। इस एकादशी का पुण्य पितरों को देना चाहिए। यदि आप पितरों को पुण्य देना चाहते हैं तो संकल्प के समय इसका उच्चारण अवश्य करें कि आप इस एकादशी का पुण्य फल पितरों को प्रदान कर उन्हें मुक्ति दिलाना चाहते हैं।

इंदिरा एकादशी व्रत की कथा

सतयुग में महिष्मती नाम की नगरी में राजा इंद्रसेन राज करते थे। वे बड़े धर्मात्मा थे और उनकी प्रजा सुखी थी। एक दिन नारदजी इंद्रसेन के दरबार में पहुंचे। उन्होंने राजा इंद्रसेन से कहा कितुम्हारे पिता का संदेश लेकर आया हूं जो इस समय पूर्व जन्म में एकादशी का व्रत भंग होने के कारण यमराज का दंड भोग रहे हैं। नारदजी के मुख से पिता की पीड़ा सुनकर इंद्रसेन दुखी हो जाए और पिता के मोक्ष का उपाय पूछा। नारदजी ने आश्विन मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का व्रत करने का निर्देश दिया। राजा इंद्रसेन ने नारदजी की बताई विधि अनुसार इंदिरा एकादशी का व्रत किया और उसका पुण्य फल पिता को प्रदान किया। व्रत के प्रभाव से इंद्रसेन के पिता को मुक्ति मिली और वे बैकुंठ लोक चले गए।

एकादशी तिथि

प्रारंभ : 27 सितंबर को दोप 1:20

पूर्ण : 28 सितंबर को दोप 2:50

पारण : 29 सितंबर को प्रात: 6:18 से 8:41

कैंसर जैसे गंभीर रोग को भी मात दे देते हैं ये चमत्कारी क्रिस्टल

कैंसर का नाम सुनते ही हर कोई टेंशन में आता है। मरीज के साथ उसका पूरा परिवार भी संकट में आ जाता है। अब तक यही माना जाता रहा है कि कैंसर का कोई इलाज नहीं, यह बात काफी हद तक सही भी है क्योंकि कैंसर जैसे रोग के लिए मेडिकल साइंस में सटीक उपचार आज भी उपलब्ध नहीं है। कई वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियां भी उपलब्ध हैं जिनसे कैंसर का उपचार किया जा सकता है। ऐसी ही एक पद्धति है क्रिस्टल थैरेपी। दरअसल क्रिस्टल थैरेपी ज्योतिषीय रत्नों के आधार पर काम करती है। कुछ क्रिस्टल ऐसे होते हैं जिनमें कैंसर को हील करने के गुण होते हैं। आज हम आपको ऐसे ही कुछ क्रिस्टलों के बारे में बताने जा रहे हैं। इन क्रिस्टलों का उपयोग कैंसर रोगी ठीक हो सकते हैं।

आंबेर : यह सुनहरे पीले रंग का स्टोन होता है जो शरीर में जबर्दस्त सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। इससे नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकल जाती है। रक्त शुद्ध होता है और शरीर के भीतर कहीं भी कोई अंग या कोशिका अनियंत्रित तरीके से बढ़ती है तो उसे यह काबू करता है। यह स्टोन ब्लैडर कैंसर के उपचार में कारगर साबित हुआ है।

एमेथिस्ट : जामुनी रंग का यह स्टोन कैंसर की बेड सेल्स से लड़ने में कारगर पाया गया है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर व्यक्ति को रोग से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। इससे कैंसर समेत कई बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। यह शरीर का एनर्जी लेवल भी बढ़ाता है।

कारनेलिन : खून की तरह लाल-नारंगी रंग का यह स्टोन न केवल इम्यून सिस्टम मजबूत करता है, बल्कि कैंसर सेल्स की वृद्धि रोकने में भी कारगर है। इससे शरीर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकलती है। यह रक्त का सबसे अच्छा शोधक कहा गया है।

ब्लू और ग्रीन टरमेलाइन : ये दोनों की क्रिस्टल मस्तिष्क के कैंसर के उपचार में काम आते हैं। इससे ब्रेन की सामान्य गतिविधियों में वृद्धि होती है। यदि कहीं ट्यूमर या बेड सेल्स है तो यह उन्हें बढ़ने से रोकता है और गुड सेल्स में वृद्धि करता है।

रोज क्वा‌र्ट्ज : इसे पिंक स्फटिक भी कहा जाता है। यह स्टोन ब्रेस्ट कैंसर के उपचार में प्रयोग किया जाता है। इससे हृदय चक्र एक्टिवेट होता है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। यह स्टोन शरीर में कई लेवल में ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाता है।

ब्लड स्टोन : हरे अपारदर्शी स्टोन में खून जैसे थक्के वाले इस स्टोन को ब्लड स्टोन कहा जाता है। यह आंतों के कैंसर में चमत्कारिक रूप से मदद करता है। इस स्टोन को पहनने या इसकी पिष्टी या इसमें बुझा पानी पीने से आंत का कैंसर ठीक होता है।

विशेष नोट : इन सभी प्रकार के स्टोन का उपयोग किसी जानकार क्रिस्टल हीलर से परामर्श के बाद ही करें।

चमकदार चेहरा और आंखों के काले घेरे हटाना है तो पहनें ये रत्न

आज के भागदौड़ भरे जीवन में फास्ट फूड खाने पर निर्भरता, देर रात तक जागना, कम सोना, कई-कई घंटों तक कंप्यूटर-लैपटॉप या टीवी के सामने रहना, मोबाइल स्क्रीन पर अधिक समय बिताने जैसी कुछ ऐसी आदतें हैं जिसने नेत्र रोगों को हर घर में आम बना दिया है। आई-ड्राइनेस हो या आंखों की रोशनी कम होना, आम होने के बावजूद ये परेशानियां उत्पन्न करती हैं। फिर चश्मे और दवाइयों के सिवा और कोई दूसरा उपाय नहीं रह जाता। ऐसे में ज्योतिष शास्त्र की रत्न चिकित्सा आपकी बहुत मदद कर सकता है। यहां हम आपको कुछ ऐसे रत्नों के विषय में बता रहे हैं जो आपकी आंखों की परेशानियों को दूर करने में सक्षम माने जाते हैं।

ब्लैक एजेट : ज्योतिष शास्त्र की मानें तो यह एक ऐसा रत्न है जिसे अगर नियमित रूप से पलकों पर हल्के हाथों से रगड़ा जाए तो इससे आंखों के नीचे रक्त-संचार बढ़ता है और धीरे-धीरे काले घेरे की समस्या दूर हो जाती है। साथ ही इससे आंखों की रोशनी भी बढ़ती है। ऐसा माना जाता है कि इससे सभी प्रकार के नेत्र रोग दूर होते हैं और अगर आंखें स्वस्थ हों तो भी उसमें किसी प्रकार की परेशानी नहीं आती। इसे अंगूठी के रूप में पहनने से भी लाभ होता है।

एक्वामरीन : सफेद, हल्का हरा, हलका नीला रंगों में मिलने वाला यह रत्न आई-ड्राइनेस या कहें आंखों का सूखापन दूर करने में चमत्कारी रूप से लाभकारी है। इसके अलावा इससे आंखों की एलर्जी, जलन, खुजली, पानी आने जैसी समस्या भी दूर होती है। आई-ड्राइनेस दूर करने के लिए रातभर इस स्टोन को पानी में रखकर सुबह इस पानी से छींटे मारते हुए आंख धुलना चाहिए।

टाइगर जैस्पर : आंखों की रोशनी बढ़ाने में यह विशेष रूप से प्रभावकारी माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसे अंगूठी के रूप में पहनने से यह आंखों की मांसपेशियों को लचीला बनाता है और वहां रक्त-संचार बढ़ाता है। इससे आंखों की रोशनी बढ़ती है, साथ ही आंखों में चमक भी आती है।

जेड : आंखों की गंभीर बीमारियों को दूर करने में यह चमत्कारी रूप से असरदार रत्न है। इसे माला के रूप में पहनने से रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यून सिस्टम) बढ़ती है, इसलिए मौसम में हुए बदलावों के कारण हुई आंखों की एलर्जी (कंजक्टिवाइटिस आदि) जैसी नेत्र परेशानियों को दूर करने में यह बेहद कारगर है। साथ ही आंखों की रोशनी बढ़ाता है, चश्मा हटाने में भी लाभदायक है।

फ्लूराइट : यह एक ऐसा रत्न है जो बढ़ती उम्र में भी आंखों की रोशनी बढ़ा सकता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसका जुड़ाव मस्तिष्क के तंत्रिका तंत्र से होता है, इसलिए लगभग सभी प्रकार के नेत्र रोगों को ठीक कर पाने में यह सक्षम है। यहां तक कि इसे पहनने से काला मोतिया भी ठीक हो सकता है।

जिसके पास है हत्था जोड़ी उसकी किस्मत चमक उठेगी

तंत्र शास्त्र में वनस्पतियों, पौधों की जड़ों, छाल, पत्तियों आदि का बड़ा महत्व है। कहा जा सकता है किपूरा तंत्र शास्त्र ही वनस्पतियों पर आधारित हैं। इनमें से कई ऐसी दुर्लभ जड़ी-बूटियां हैं जो बड़ी मुश्किल से प्राप्त होती हैं और कई तो विलुप्त हो चुकी हैं। इसका लाभ उठाकर कई लोग नकली वनस्पतियां बनाकर लोगों को ठग भी रहे हैं।

आज हम आपको बता रहे हैं हत्था जोड़ी के बारे में। यह एक अत्यंत ही दुर्लभ किस्म की वनस्पति है। तंत्र क्रियाओं में इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। हत्था जोड़ी चमत्कारिक प्रभाव दिखाती है। कहा जाता है हत्था जोड़ी पैसे को चुंबक की तरह खींचती है। जिसके पास असली हत्था जोड़ी होती है वह रातोंरात धनवान बन जाता है। इसका दूसरा सबसे सशक्त प्रयोग वशीकरण में है। हत्था जोड़ी वशीकरण की सिद्ध और आजमाई हुई वनस्पति है।

महाकाली और कामाख्या देवी का स्वरूप कही जाने वाली हत्था जोड़ी एक पौधे की जड़ है जो कंगाल को भी मालामाल बनाने की क्षमता रखती है। धन लाभ और वशीकरण के लिए हत्था जोड़ी एक चमत्कारिक उपाय है। हत्था जोड़ी न केवल आपको धनवान बनाती है बल्कि आपके जीवन की अन्य समस्याओं का भी निवारण करती है। इसे आप सौ रोगों की एक दवा भी कह सकते हैं।

हत्था जोड़ी की जड़ को कभी ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि हत्था जोड़ी इंसान की भुजाओं के आकार की दिखाई देती है। ये एक पौधे की जड़ है जो तांत्रिक क्रियाओं के साथ_ साथ ज्योतिषीय उपायों में भी काम आती है। हत्था जोड़ी की एक खासियत यह है कियह सीधे उपयोग में नहीं लाई जाती है। इसका उपयोग तब तक बेकार है जब तक इसे तांत्रिक विधि से सिद्ध ना किया गया हो। इसके बाद ही हत्था जोड़ी अपना चमत्कारिक असर दिखाना शुरू कर देती है। ऐसा कहा जाता है किसिद्ध की हुई हत्था जोड़ी, जिस व्यक्ति के पास होती है वह बहुत जल्दी धनवान हो सकता है।

हत्था जोड़ी के टोटके

– किसी भी शनिवार अथवा मंगलवार के दिन हत्था जोड़ी घर ले आएं। इस जड़ को लाल रंग के कपड़े में बांध लें। इसके बाद घर में किसी सुरक्षित स्थान पर या तिजोरी में रख दें। इससे आपकी आय में वृद्धि होगी एवं धन का व्यय कम होगा।

– तिजोरी में सिंदूर लगी हुई हत्था जोड़ी रखने से विशेष आर्थिक लाभ होता है। लेकिन ध्यान रहे किहत्था जोड़ी को जब भी प्रयोग में लाना हो, तो इससे पहले इसकी तांत्रिक सिद्धि अवश्य करा लें अन्यथा आपका प्रयास विफल हो जाएगा।

– हत्था जोड़ी को दुकान या घर में रखने से उस घर से लक्ष्मी कभी दूर नहीं जाती।

तीव्र वशीकरण करती है हत्थाजोड़ी

हत्थाजोड़ी में वशीकरण की बड़ी अद्भुत क्षमता होती है। इसमें मां चामुंडा का वास माना गया है। प्राकृतिक हत्थाजोड़ी को विधिपूर्वक पूर्व निमन्ति्रत कर निकाला जाता है एवं विशेष मुहूर्तों जैसे रवि पुष्य, गुरु पुष्य, नवरात्रि, ग्रहणकाल, होली, दीपावली में विशेष मंत्रों द्वारा सिद्ध किया जाता है। सिद्धि के पश्चात इसे चांदी की डिब्बी में सिंदूर के साथ रखा जाता है। इस प्रकार की मंत्र सिद्ध हत्था जोड़ी जिस व्यक्ति के पास होती है वह वशीकरण करने में सक्षम हो जाता है। वह जिससे भी एक बार मिल लेता है उसे अपना बना लेता है।

मंत्र सिद्ध हत्थाजोड़ी के लाभ

1. मंत्र सिद्ध हत्थाजोड़ी पर अर्पित किए गए सिंदूर का तिलक करने से मनुष्य में वशीकरण क्षमता आ जाती है।

2 . मंत्र सिद्ध हत्थाजोड़ी को लाल रेशमी वस्त्र में बांधकर तिजोरी में रखने से धन की कमी नहीं रहती।

3 . मंत्र सिद्ध हत्थाजोड़ी को अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान में रखने व्यापार में वृद्धि होती है।

4 .मंत्र सिद्ध हत्थाजोड़ी के सम्मुख शत्रु दमन मंत्र का जप करने से शत्रु पीड़ा से मुक्ति मिलती है।

5. मंत्र सिद्ध हत्थाजोड़ी के पास रहने से कोर्ट_कचहरी व मुकदमे आदि में स़फलता मिलती है।

हनुमान को प्रसन्न कर लिया तो शनि की पीड़ा भी हो जाएगी दूर

हनुमानजी को अष्टसिद्धि और नौ निधियों का दाता कहा गया है। उनकी पूजा और भक्ति से जीवन में सत्कर्मों का उदय होता है और जीवन के सारे अभाव दूर हो जाते हैं। हनुमानजी की आराधना से शनि की पीड़ा से भी मुक्ति मिलती है। शनि की पीड़ा शांत करने के लिए शनि के स्तोत्र, मंत्रों का जाप करना लाभकारी होता है किंतु हनुमानजी के भक्तों को शनि कभी पीड़ा नहीं देते। जिन लोगों को शनि की साढ़ेसाती, लघु ढैया चल रहा हो या जिनकी कुंडली में शनि खराब अवस्था में हो उन्हें स्तोत्र और मंत्रों का जाप अवश्य करना चाहिए।

– सुंदरकांड, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण का पाठ शनि की पीड़ा तुरंत दूर करते हैं। इसके अलावा श्री शनैश्चर स्तोत्र-कवच, शनि अष्टोत्तर शत नामावली का पाठ, रुद्राभिषेक करना उत्तम रहता है।

– शनि के मंत्र ऊं शं शनैश्चराय नम: अथवा ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: के 23 हजार जाप और दशांश हवन लाभ देता है।

– शनिदेव की मूर्ति पर तेल चढ़ाना, शनियंत्र की पूजा और इस दिन व्रत रखने से शनि प्रसन्न होंगे।

– पीपल वृक्ष की पूजा, काले कलर की वस्तुओं का दान, काला वस्त्र, उड़द, तेल पक्वान्न पदार्थ तथा छायापात्र का दान करना चाहिए।

– जिन्हें शनि की महादशा-अंतर्दशा चल रही हो तो मध्यमा अंगुली में नीलम रत्न या इसके उपरत्न जमुनिया, कटेला, वैदूर्यमणि या फिरोजा धारण करे।

इस शनि स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करें-

ऊं नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय नमोस्तु ते ।

नमस्ते बभु्ररूपाय कृष्णाय च नमोस्तु ते ।।

नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चान्तकाय च ।

नमस्त यम संज्ञाय नमस्ते सौरये विभो ।।

नमस्त मन्द संज्ञाय शनैश्चर नमोस्तु ते ।

प्रसादं कुरू देवेश दीनस्य प्रणतस्य च ।।

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शनि का यह पौराणिक मंत्र भी जपें

ऊं नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।

छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।।

साक्षात कामदेव के समान बना देता है 13 मुखी रुद्राक्ष

शास्त्रों में 13 मुखी रुद्राक्ष को साक्षात कामदेव के समान कहा गया है। इस रुद्राक्ष को धारण करने वाले व्यक्ति की सारी इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है। जीवन में उसे किसी वस्तु का अभाव नहीं रहा जाता और वह जगत को मोहित करने की शक्ति धारण कर लेता है। 13 मुखी रुद्राक्ष पर इंद्र देव और माता महालक्ष्मी की कृपा है इसलिए जो मनुष्य इस रुद्राक्ष को धारण करता है वह अतुलनीय धन-संपदा प्राप्त करता है। यह शुक्र और चंद्रमा दोनों द्वारा शासित है और इस मनके की सतह पर 13 प्राकृतिक रेखाएं होती हैं। यह उन व्यवसायों के लोगों के लिए अच्छा है जहां उन्हें लोगों को आकर्षित करने और उनसे लाभ लेने की आवश्यकता होती है। यह रुद्राक्ष पहनने वाले को सांसारिक सुख देने में मदद करता है।

जानिए 13 मुखी रुद्राक्ष पहनने के लाभ

– यह महिलाओं की यौन और प्रजनन क्षमता मजबूत करके उत्तम संतान की प्राप्ति में मदद करता है।

– यह रुद्राक्ष पहनने वाला व्यक्ति जीवन के संपूर्ण सुखों का आनंद भोगता है।

– इस रुद्राक्ष को धारण करने से नि:संतान दंपत्तियों को उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।

– 13 मुखी रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति के चेहरे पर तेज आता है जिससे वह जगत को मोहित कर सकता है।

– दांपत्य जीवन के संकट दूर करने के लिए इस रुद्राक्ष को धारण करना चाहिए।

– यह रुद्राक्ष मंगल और शुक्र ग्रह के दुष्प्रभाव को दूर करने में मदद करता है।

– इस रुद्राक्ष को पहनने से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति तेजी से होने लगती है।

कैसे धारण करें 13 मुखी रुद्राक्ष

13 मुखी रुद्राक्ष पहनने से पहले उसका शुद्धीकरण और जागृत करना आवश्यक है वरना उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। इसे या तो किसी विद्वान पंडित से जागृत करवाना सही रहता है या स्वयं कर रहे हैं तो इस विधि का पालन करें। सबसे पहले स्नानादि से निवृत्त होकर अपने पूजा स्थान में बैठें। एक चांदी या कांसे के पात्र में रुद्राक्ष रखें और इसे पहले सामान्य जल से, फिर दूध-दही से, फिर सामान्य जल से और फिर गंगाजल से स्नान करवाएं। फिर ऊं ह्रीं नम: का जाप एक माला किसी भी रुद्राक्ष की माला से करें। इसके बाद इसे धूप-दीप, पूजन करके लाल धागे या चांदी-सोने की माला में पहन लें। रुद्राक्ष इस तरह धारण करें कि यह शरीर से स्पर्श करता रहे।

जानिए दिशाओं के ग्रह और देवता, इन्हें प्रसन्न कर लिया तो होंगे वारे-न्यारे

संपूर्ण वास्तु शास्त्र दिशाओं के आधार पर काम करता है। किसी भूमि, भवन या प्रतिष्ठान के स्थित होने की दिशाओं के आधार पर उससे मिलने वाले सुख और दुख निर्भर करते हैं। यदि आपका घर वास्तु के सिद्धांतों के आधार पर बना हुआ है तो उसमें निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा होगा, उनकी आर्थिक प्रगति होगी और उस घर में कभी कोई बड़ा संकट नहीं आएगा, लेकिन यदि घर में किसी प्रकार का वास्तु दोष है तो वहां रहने वालों का जीवन नर्क के समान हो जाएगा। वास्तु शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक दिशा का एक-एक स्वामी और ग्रह निर्धारित किया गया है। यदि हमें वास्तु के अनुरूप दिशाओं और उनके स्वामी का ज्ञान हो तो वास्तु दोष को दूर किया जा सकता है। दोष दूर होने से धन, संपदा, सुख, शांति और ऐश्वर्यशाली जीवन बिताया जा सकता है।

ज्योतिष और वास्तु दोनों ही शास्त्रों में चार मुख्य दिशाओं और चार उपदिशाओं अर्थात कुल आठ दिशाओं को मान्यता प्राप्त है। वेदों में 10 दिशाएं बताई गई हैं, इनमें उ‌र्ध्व और अधो यानी आकाश और पाताल को भी दिशाएं माना गया है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर आठ दिशाओं को गिना जाता है। ये आठ दिशाएं तथा उनसे संबंधित ग्रह-देवता इस प्रकार हैं।

दिशा- अधिपति ग्रह- देवता

1. पूर्व- सूर्य- इंद्र

2. पश्चिम- शनि- वरुण

3. उत्तर- बुध- कुबेर

4. दक्षिण- मंगल- यम

5. उत्तर-पूर्व (ईशान)- गुरु- शिव

6. दक्षिण-पूर्व (आग्नेय)- शुक्र- अग्नि देवता

7. दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य)- राहु-केतु- नैऋति

8. उत्तर-पश्चिम (वायव्य)- चंद्र- वायु देवता

पूर्व दिशा : इस दिशा का अधिपति ग्रह सूर्य और देवता इंद्र है। यह देवताओं का स्थान है। यहां से संबंधित दोष दूर करने के लिए प्रतिदिन गायत्री मंत्र और आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। यह दिशा मुख्यत: मान-सम्मान, उच्च नौकरी, शारीरिक सुख, नेत्र रोग, मस्तिष्क संबंधी रोग और पिता का स्थान होती है। इस दिशा में दोष होने से इनसे संबंधित परेशानियां आती हैं।

पश्चिम दिशा : इस दिशा का अधिपति ग्रह शनि और देवता वरुण है। यह दिशा सफलता, संपन्ता प्रदान करने वाली दिशा है। पश्चिम दिशा में दोष होने पर वायु विकार कुष्ठ रोग, शारीरिक पीड़ाएं और प्रसिद्धि और सफलता में कमी आती है। इस दिशा से संबंधित दोष दूर करने के लिए शनि देव की उपासना करना चाहिए। ऐसे घर या प्रतिष्ठान में शनि यंत्र की स्थापना करें।

उत्तर दिशा : उत्तर दिशा का अधिपति ग्रह बुध और देवता कुबेर है। इस दिशा में किसी प्रकार का दोष होने से संपूर्ण जीवन नारकीय हो जाता है। व्यक्ति और उसका परिवार जीवनभर आर्थिक तंगी से जूझता रहता है। सफलता नहीं मिलती और संकट बना रहता है। वाणी दोष, त्वचा रोग भी आते हैं। इस दिशा का दोष दूर करने के लिए बुध यंत्र की स्थापना करें। गणेश और कुबेर की पूजा करें।

दक्षिण दिशा : दक्षिण दिशा का अधिपति ग्रह मंगल और देवता यम है। इस दिशा में दोष होने पर परिवारजनों में कभी आपस में बनती नहीं है। सभी एक-दूसरे के विरोधी बने रहते हैं। सभी के बीच में लड़ाई झगड़े बने रहते हैं। संपत्ति को लेकर भाई-बंधुओं में विवाद चलता रहता है। इस दिशा के दोष दूर करने के लिए नियमित रूप से हनुमान जी की पूजा करें। मंगल यंत्र की स्थापना करें।

उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) : ईशान कोण का स्वामी ग्रह गुरु और देवता शिव हैं। यह दिशा ज्ञान, धर्म-कर्म की सूचक है। इस दिशा में दोष होने पर व्यक्ति की प्रवृत्ति सात्विक नहीं रहती। परिवार में सामंजस्य और प्रेम का सर्वथा अभाव रहता है। धन की कमी बनी रहती है। संतान के विवाह कार्य में देर होती है। दोष दूर करने के लिए ईशान कोण को हमेशा साफ सुथरा रखें। धार्मिक पुस्तकों का दान करते रहें।

दक्षिण-पूर्व दिशा (आग्नेय कोण) : इस दिशा का अधिपति ग्रह शुक्र और देवता अग्नि है। यदि इस दिशा में कोई वास्तु दोष है तो पत्नी सुख में बाधा, वैवाहिक जीवन में कड़वाहट, असफल प्रेम संबंध, कामेच्छा का समाप्त होना, मधुमेह- आंखों के बने रहते हैं। इस दिशा के दोष दूर करने के लिए घर में शुक्र यंत्र की स्थापना करें। चांदी या स्फटिक के श्रीयंत्र की नियमित स्थापना करें।

दक्षिण-पश्चिम दिशा (नैऋत्य कोण) : इस दिशा के अधिपति ग्रह राहु-केतु और देवता नैऋति हैं। इस दिशा में दोष होने पर व्यक्ति हमेशा परेशान रहता है। कोई न कोई परेशानी लगी रहती है। ससुराल पक्ष से परेशानी, पत्नी की हानि, नौकरी, झूठ बोलने की लत आदि रहती है। इस दिशा के दोष दूर करने के लिए राहु-केतु के निमित्त सात प्रकार के अनाज का दान करना चाहिए। गणेश-सरस्वती की पूजा करें।

उत्तर-पश्चिम दिशा (वायव्य कोण) : इस दिशा का स्वामी ग्रह चंद्र और देवता वायु है। इस दिशा में दोष होने पर व्यक्ति के संबंध रिश्तेदारों से ठीक नहीं रहते हैं। मानसिक परेशानी, अनिद्रा, तनाव रहना बना रहता है। अस्थमा और प्रजनन संबंधी रोगों की अधिकता रहती है। घर की स्त्री हमेशा बीमार रहती है। दोष दूर करने के लिए नियमित शिवजी की उपासना करें।

अपने जन्म के मूलांक से जानिए किस साल में खुलेगी किस्मत

प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में तरक्की के सपने देखता है। वह जल्द से जल्द समस्त प्रकार की भौतिक सुख-सुविधाएं पा लेना चाहता है। इसके लिए वह कठिन परिश्रम भी करता है, लेकिन सभी लोगों के सपने सच नहीं हो पाते। कुछ को जरा सी मेहनत में बहुत कुछ हासिल हो जाता है, लेकिन कुछ लोग जीवनभर परेशानी में गुजार देते हैं। कई लोग सही समय पर काम शुरू नहीं कर पाते इसलिए भी परेशानियों में घिरे रहते हैं। यदि अंक शास्त्र पर भरोसा करते हैं तो इसमें भाग्य कब उदय होगा इसका सही-सही समय निकाला जा सकता है। अंक ज्योतिष में मूलांक के आधार पर जाना जा सकता है कि आपका भाग्योदय किस उम्र में होगा।

अंक ज्योतिष में 1 से 9 तक मूलांक होते हैं। अपनी जन्म तारीख के आधार पर मूलांक तय होता है। जैसे यदि आपकी जन्म तारीख महीने की 1 से 9 के बीच है तो वही आपका मूलांक होगा। यदि आपकी जन्म तारीख महीने की 10 से 31 तारीख के बीच है तो इन दो अंकों को जोड़ लें, वही आपका मूलांक होगा।

जैसे यदि आपकी जन्म तारीख 11 है तो 1 और 1 जुड़कर 2 अंक आएगा तो आपका मूलांक 2 होगा।

1, 10, 19, 28 का मूलांक 1

2, 11, 20, 29 का मूलांक 2

3, 12. 21, 30 का मूलांक 3

4, 13, 22, 31 का मूलांक 4

5, 14, 23 का मूलांक 5

6, 15, 24 का मूलांक 6

7, 16, 25 का मूलांक 7

8, 17, 26 का मूलांक 8

9, 18, 27 का मूलांक 9

किस उम्र में होगा भाग्योदय

मूलांक 1 का भाग्योदय 22वें वर्ष में

मूलांक 2 का भाग्योदय 24वें वर्ष में

मूलांक 3 का भाग्योदय 32वें वर्ष में

मूलांक 4 का भाग्योदय 36 और 42वें वर्ष में

मूलांक 5 का भाग्योदय 32वें वर्ष में

मूलांक 6 का भाग्योदय 25वें वर्ष में

मूलांक 7 का भाग्योदय 38 और 44वें वर्ष में

मूलांक 8 का भाग्योदय 36 और 42वें वर्ष में

मूलांक 9 का भाग्योदय 28वें वर्ष में