श्राद्ध पक्ष की इंदिरा एकादशी 28 सितंबर को, एकादशी का श्राद्ध 27 को होगा

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। पितृपक्ष में आने के कारण इस एकादशी का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस एकादशी का व्रत रखकर उसका फल अपने जाने-अनजाने पितरों को प्रदान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उन्हें मुक्ति प्राप्त होती है। ऐसे पितृ इंदिरा एकादशी के फलस्वरूप बैकुंठ लोक की ओर प्रस्थान करते हैं। इंदिरा एकादशी का व्रत 28 सितंबर 2024 शनिवार को किया जाएगा जबकि एकादशी का श्राद्ध एक दिन पहले 27 सितंबर को किया जाएगा। इस दिन पितरों को कलाकंद या मावे की मिठाई धूप स्वरूप में देना चाहिए।

इंदिरा एकादशी व्रत की विधि

इंदिरा एकादशी के एक दिन पूर्व अथवा दशमी के दिन व्रती को एक समय भोजन का प्रण करना चाहिए। दशमी को रात्रि में भोजन न करें और अच्छे से ब्रश करें ताकि दांतों में अन्न का कोई कण न रहे। एकादशी के दिन सूर्योदय पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। सूर्यदेव को जल का अर्घ्य अर्पित करें और शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण कर पंच देवों का पूजन करें। एकादशी व्रत का सकाम या निष्काम संकल्प लेकर भगवान विष्णु का पूजन करें। एकादशी व्रत की कथा सुनें। दिनभर निराहार रहें। द्वादशी के दिन प्रात: व्रत का पारण करें। किसी ब्राह्मण दंपती को भोजन करवाकर अथवा भोजन बनाने का सामान देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें फिर व्रत खोलें। इस एकादशी का पुण्य पितरों को देना चाहिए। यदि आप पितरों को पुण्य देना चाहते हैं तो संकल्प के समय इसका उच्चारण अवश्य करें कि आप इस एकादशी का पुण्य फल पितरों को प्रदान कर उन्हें मुक्ति दिलाना चाहते हैं।

इंदिरा एकादशी व्रत की कथा

सतयुग में महिष्मती नाम की नगरी में राजा इंद्रसेन राज करते थे। वे बड़े धर्मात्मा थे और उनकी प्रजा सुखी थी। एक दिन नारदजी इंद्रसेन के दरबार में पहुंचे। उन्होंने राजा इंद्रसेन से कहा कितुम्हारे पिता का संदेश लेकर आया हूं जो इस समय पूर्व जन्म में एकादशी का व्रत भंग होने के कारण यमराज का दंड भोग रहे हैं। नारदजी के मुख से पिता की पीड़ा सुनकर इंद्रसेन दुखी हो जाए और पिता के मोक्ष का उपाय पूछा। नारदजी ने आश्विन मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का व्रत करने का निर्देश दिया। राजा इंद्रसेन ने नारदजी की बताई विधि अनुसार इंदिरा एकादशी का व्रत किया और उसका पुण्य फल पिता को प्रदान किया। व्रत के प्रभाव से इंद्रसेन के पिता को मुक्ति मिली और वे बैकुंठ लोक चले गए।

एकादशी तिथि

प्रारंभ : 27 सितंबर को दोप 1:20

पूर्ण : 28 सितंबर को दोप 2:50

पारण : 29 सितंबर को प्रात: 6:18 से 8:41