पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य
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करवा चतुर्थी का व्रत 20 अक्टूबर 2024 रविवार को किया जाएगा। सुहागिन महिलाएं अपने पति के स्वस्थ और दीर्घायु होने की कामना से यह व्रत निर्जला रहकर करती हैं। इस व्रत को करने के कुछ विशिष्ट विधान और नियम हैं, उनका पालन किया जाना अत्यंत आवश्यक होता है। यहां हम आपको संपूर्ण सामग्री और पूजा करने की विधि की जानकारी दे रहे हैं।
क्या पूजन सामग्री आवश्यक
करवा चौथ की पूजन सामग्री में सबसे आवश्यक वस्तु करवा होता है। यह मिट्टी का बना टोंटी वाला छोटा सा कलश होता है जिसके ऊपर ढंकने के लिए मिट्टी का दीया होता है। अनेक लोग मिट्टी की जगह धातु का करवा भी लेते हैं, लेकिन मिट्टी के करवे की अधिक मान्यता होती है और इसे अत्यंत पवित्र बताया गया है। इसके अलावा मिट्टी के दो दीये। करवे में लगाने के लिए कांस की तीलियां। पूजन के लिए कुमकुम, चावल, हल्दी, गुलाल, अबीर, मेहंदी, मौली, फूल, फल, प्रसाद आदि। पति का चेहरा देखने के लिए छलनी। जल से भरा कलश-लोटा । चौकी, करवा चतुर्थी पूजन का पाना अर्थात् चित्र जिसमें चंद्रमा, शिव, पार्वती, कार्तिकेय आदि के चित्र बने होते हैं। करवा चौथ कथा की पुस्तक, धूप, दीप। सुहाग की सामग्री जिसमें हल्दी, मेहंदी, काजल, कंघा, सिंदूर, छोटा कांच, बिंदी, चुनरी, चूड़ी। करवे में भरने के लिए गेहूं, शकर, खड़े मूंग।
करवा चौथ की पूजन विधि
– करवा चतुर्थी के दिन सूर्योदय पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत होकर साफ-स्वच्छ वस्त्र पहनें। श्रृंगार करें और अपने घर के पूजा स्थान को साफ स्वच्छ कर लें। भगवान श्री गणेश का ध्यान करते हुए करवा चौथ व्रत का संकल्प लें। पूरे दिन निर्जला रहें।
– सामने दीवार पर करवा चौथ पूजा का पाना चिपकाएं। नीचे चौकी पर वस्त्र बिछाकर एक करवा रखें जिसमें गेहूं, चावल या शकर भरे जाते हैं। सामने पाने पर गणेशजी से प्रारंभ करके समस्त पूजन सामग्री से पूजन करें। फिर करवे का पूजन करें। करवे पर स्वस्तिक बनाएं फल रखें, फूल अर्पित करें, कुछ मुद्रा अर्पित करें। करवे के ढक्कन में खड़े हरे मूंग या शकर भर दें।
– गणेश गौरी का पूजन करें। गौरी को समस्त सुहाग की सामग्री भेंट करें।
– इसके बाद करवा चतुर्थी व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। कथा सुनने से पहले हाथ में चावल के 13 दानें लें। इन दानों को साड़ी के छोर पर बांध लें।
– इस प्रकार तीन बार पूजन किया जाता है। सुबह पूजा करने के बाद दोपहर में चार बजे और फिर रात्रि में चंद्रोदय के पूर्व। तीनों बार की पूजा हो जाने के बाद रात्रि में चंद्रोदय की प्रतीक्षा की जाती है।
– चंद्रोदय होने पर चंद्र देव का पूजन करें। जल का अर्घ्य दें, साड़ी के छोर में बंधे चावल के 13 दानें निकालकर उन्हें अर्घ्य के साथ चंद्र को अर्पित करें। दीपक से चंद्र की आरती करें। फिर छलनी में से पति का चेहरा देखें। इसके बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलें और भोजन ग्रहण करें।
– पूजा में उपयोग किया हुआ करवा सास या सास के समान किसी सुहागिन महिला को भेंट करें।
करवा चतुर्थी व्रत की कथा
करवा चतुर्थी का व्रत के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं किंतु सर्वाधिक चर्चित कथा यहां प्रस्तुत की जा रही है।
किसी समय इंद्रप्रस्थ नामक नगर में वेद शर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी लीलावती के साथ सुखपूर्वक निवास करता था। उसके सात योग्य और सुशील पुत्र थे और वीरावती नाम की एक सुंदर पुत्री थी। सातों भाइयों का विवाह हो जाने के पश्चात वीरावती का भी विवाह संपन्न कर दिया गया।
जब कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आई तो वीरावती ने अपनी समस्त भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखा। वीरावती ने विवाह के बाद पहली बार यह व्रत रखा था इसलिए वह भूख-प्यास सहन नहीं कर पाई और मूर्छित हो गई। भाभियां जैसे-तैसे वीरावती के मुख पर जल के छींटे मारकर उसे अर्द्धचेतनावस्था में लेकर आई।
सातों भाई जब व्यापार करके भोजन करने घर आए तो उनसे अपनी प्यारी बहन की ऐसी हालत देखी नहीं गई। उन्होंने अपनी बहन से भोजन करने को कहा तो उसने इन्कार कर दिया कि जब तक वह चंद्र का दर्शन नहीं कर लेगी, तब तक भोजन ग्रहण नहीं करेगी। इस पर भाइयों को चिंता सताने लगी कि कहीं बहन की हालत और बुरी न हो जाए तो उन्होंने एक उपाय सोचा। दो भाई घर से दूर चले गए और दूर जंगल में जाकर एक पेड़ पर चढ़कर उन्होंने मशाल की रोशनी दिखाई। घर पर मौजूद अन्य भाइयों ने बहन को दूर से आती रोशनी दिखाई और कहा कि चंद्रमा का उदय हो गया है। बहन भ्रम में पड़ गई और मशाल की रोशनी को चंद्रमा की रोशनी समझकर पूजन कर व्रत तोड़ दिया।
चूंकि वास्तव में व्रत पूरा नहीं हुआ था इसलिए इसका दुखद परिणाम हुआ और कुछ समय बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई। उसी रात इंद्राणी पृथ्वी पर आई। वीरावती ने उससे इस घटना का कारण पूछा तो इंद्राणी ने कहा कि तुमने भ्रम में फंसकर चंद्रोदय होने से पहले ही भोजन कर लिया। इसलिए तुम्हारे साथ यह घटना हुई है। पति को पुनर्जीवित करने के लिए तुम विधिपूर्वक करवा चतुर्थी व्रत का संकल्प करो और अगली करवा चतुर्थी आने पर व्रत पूर्ण करो। वीरावती से संकल्प लिया तो उसका पति जीवित हो गया। फिर अगला करवा चतुर्थी आने पर वीरावती से विधि विधान से व्रत पूर्ण किया। इस प्रकार करवा चतुर्थी व्रत कथा पूर्ण हुई।