गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य
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ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी कहा जाता है। कालाष्टमी 20 मई 2025 मंगलवार को आ रही है। इस दिन कालभैरव का पूजन किया जाता है। कालभैरव भगवान शिव का उग्र रूप हैं जिनकी पूजा करने से जीवन से सारे शत्रुओं का नाश हो जाता है। यह दिन कालभैरव को प्रसन्न करने का दिन होता है।
हिंदू धर्म में देवताओं की एक विशाल और विविध परंपरा है, जिसमें हर देवता किसी विशेष शक्ति, ऊर्जा या तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इन्हीं में एक अत्यंत रहस्यमय, रौद्र और शक्तिशाली स्वरूप हैं– भगवान काल भैरव। ये शिव के रौद्र रूप माने जाते हैं और न्याय, समय, मृत्यु, रहस्य, तंत्र और भय से जुड़े हुए हैं। ‘काल’ का अर्थ है ‘समय’ और ‘मृत्यु’, जबकि ‘भैरव’ का अर्थ है ‘भय का संहारक’। अतः काल भैरव को वह देवता माना जाता है जो समय और मृत्यु पर नियंत्रण रखते हैं।
काल भैरव की उत्पत्ति की कथा
काल भैरव की उत्पत्ति से संबंधित कई कथाएं पुराणों में वर्णित हैं। शिव महापुराण और कालभैरवाष्टक के अनुसार एक प्रमुख कथा इस प्रकार है: एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के मध्य यह विवाद उत्पन्न हुआ कि ब्रह्मांड का परम स्वामी कौन है। ब्रह्मा ने दावा किया कि वे ही सृष्टिकर्ता हैं और सबसे श्रेष्ठ हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वे पंचमुखी होकर हर दिशा में सब कुछ देख सकते हैं और शिव से श्रेष्ठ हैं। यह सुनकर भगवान शिव को क्रोध आया और उन्होंने अपने अंगुष्ठ के नाखून से काल भैरव को उत्पन्न किया। काल भैरव ने ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया।
यह कार्य ब्रह्महत्या के समान था, इसलिए काल भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए काशी (वाराणसी) जाना पड़ा। वहां पहुंचकर ही उन्हें पाप से मुक्ति मिली और वे काशी के कोतवाल यानी नगरपाल कहलाए।
काल भैरव के स्वरूप
भगवान काल भैरव का स्वरूप अत्यंत रौद्र, भयभीत करने वाला किंतु साधकों के लिए अत्यंत कृपालु माना गया है। वे काले रंग के होते हैं, उनका वाहन कुत्ता होता है और वे त्रिशूल, खड्ग, डमरू, पाश आदि अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित रहते हैं। उनकी आंखें अग्निसमान चमकती हैं और उनका रूप सभी पापों और दुष्ट शक्तियों को नष्ट करने वाला होता है।
उनके आठ प्रमुख रूपों को अष्ट भैरव कहा जाता है:
1. असितांग भैरव
2. चण्ड भैरव
3. क्रोध भैरव
4. उन्मत्त भैरव
5. कपालिनी भैरव
6. भीषण भैरव
7. संहार भैरव
8. सम्भरण भैरव
इन अष्ट भैरवों की साधना तंत्रमार्गी होती है और यह गूढ़, रहस्यमय ज्ञान से जुड़ी होती है।
काल भैरव की उपासना और पूजा विधि
काल भैरव की पूजा विशेष रूप से मंगलवार और रविवार को की जाती है। विशेष अवसरों पर जैसे कालाष्टमी और भैरवाष्टमी पर इनकी विशेष उपासना की जाती है। इनकी पूजा के लिए निम्न विधि अपनाई जाती है:
1. प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. काल भैरव की प्रतिमा या चित्र के समक्ष दीपक जलाएं।
3. उन्हें काले तिल, सरसों का तेल, नारियल, शराब (तंत्र पद्धति में) और काले वस्त्र अर्पित किए जाते हैं।
4. कुत्ते को भोजन देना, विशेष रूप से रोटी और दूध देना, पुण्यदायी माना जाता है।
5. काल भैरव अष्टक या भैरव चालीसा का पाठ करें।
प्रसिद्ध मंत्र:
ॐ कालभैरवाय नमः ॥
या
ॐ भ्रं कालभैरवाय फट् ॥
काल भैरव और तंत्र साधना
काल भैरव को तंत्र शास्त्र का अधिपति भी माना जाता है। जो साधक तंत्र, मंत्र, यंत्र, और रहस्यवाद के मार्ग पर चलते हैं, वे काल भैरव की आराधना अवश्य करते हैं। ये साधना अत्यंत कठिन होती है और गुरु के निर्देशन में ही की जाती है। यह साधक को भय से मुक्त करती है और गूढ़ शक्तियों तक पहुंचने का मार्ग देती है।
काल भैरव और काशी का संबंध
वाराणसी (काशी) में काल भैरव मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। यहां इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है। मान्यता है कि काशी में बिना काल भैरव के दर्शन के शिव की कृपा प्राप्त नहीं होती। यह भी माना जाता है कि जो व्यक्ति काशी में काल भैरव के दर्शन करता है, उसे मृत्यु के बाद यमदूत नहीं ले जाते, बल्कि स्वयं काल भैरव उसकी आत्मा को शिवलोक तक पहुंचाते हैं।
काल भैरव और न्याय
काल भैरव को ‘न्याय का देवता’ भी माना जाता है। वे दुष्टों को दंड देते हैं और धर्म पर चलने वालों की रक्षा करते हैं। अनेक तांत्रिक और साधक, यदि उनके ऊपर अन्याय होता है, तो काल भैरव से न्याय की प्रार्थना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति असत्य, अन्याय, भ्रष्टाचार और अत्याचार करता है, काल भैरव उसकी रक्षा नहीं करते, बल्कि उसे दंडित करते हैं।
काल भैरव और समय का संबंध
‘काल’ का अर्थ ‘समय’ है। भगवान काल भैरव को समय का अधिपति माना जाता है। वे यह सिखाते हैं कि समय सबसे शक्तिशाली तत्व है और जो समय का सम्मान नहीं करता, वह उसका शिकार बनता है। अतः काल भैरव की उपासना से साधक को समय का मूल्य समझ में आता है, और वह अपने जीवन को संयम और सत्कर्मों से भर देता है।
भक्ति का फल
काल भैरव की उपासना से साधक को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
1. भय और संकटों से मुक्ति
2. तांत्रिक बाधाओं से रक्षा
3. आत्मबल और निर्णय क्षमता में वृद्धि
4. समय का सदुपयोग और जीवन में अनुशासन
5. दुष्टों से सुरक्षा और न्याय की प्राप्ति
6. मृत्यु के भय से मुक्ति
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