शनि प्रदोष 24 मई : शिव और शनि दोनों होंगे प्रसन्न


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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शनि प्रदोष 24 मई : शिव और शनि दोनों होंगे प्रसन्न

भारतीय धर्म-संस्कृति में व्रत और तिथियों का गहरा आध्यात्मिक एवं लौकिक महत्व है। सप्ताह के प्रत्येक दिन से संबंधित प्रदोष व्रतों में शनि प्रदोष एक अत्यंत प्रभावशाली और पुण्यदायी तिथि मानी जाती है। जब प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ता है, तब उसे शनि प्रदोष कहते हैं। यह व्रत भगवान शिव और शनिदेव दोनों को प्रसन्न करने का श्रेष्ठ अवसर माना गया है। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में शनि प्रदोष 24 मई 2025 को आ रहा है।

प्रदोष व्रत क्या है?
प्रदोष व्रत हर महीने के दोनों पक्षों (शुक्ल और कृष्ण) की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है। “प्रदोष” शब्द का अर्थ है – दोषों का नाश करने वाला समय। यह व्रत मुख्यतः संध्या काल में किया जाता है, जो दिन के सूर्यास्त से 1.5 घंटे पहले और 1.5 घंटे बाद तक का समय होता है। यह शिव उपासना के लिए सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त होता है। जब यह व्रत शनिवार को पड़ता है तो इसे शनि प्रदोष कहते हैं। यह विशेष रूप से शनि दोष, साढ़े साती, ढैय्या, शनि की महादशा/अंतर्दशा, कर्म बंधन और न्याय संबंधी कष्टों से मुक्ति का मार्ग है।

शनि प्रदोष से जुड़ी पौराणिक कथाएं

शिव-नीलकंठ कथा
समुद्र मंथन के समय जब विष निकला, तब सारा ब्रह्मांड विष की ज्वाला से जलने लगा। सभी देवता भगवान शिव की शरण में गए। शिव ने करुणावश विष को अपने कंठ में धारण कर लिया और यही त्रयोदशी का समय था। इसीलिए प्रदोष का काल भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है।

शनि प्रदोष की विशेष कथा
एक बार शनिदेव ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और वरदान मांगा कि शिव प्रदोष के दिन जो भक्त शनिदेव और शिवजी की संयुक्त पूजा करेगा, उसके जीवन से समस्त पाप और शनि दोष समाप्त होंगे। शिवजी ने उन्हें यह वरदान दिया। इसीलिए शनि प्रदोष की पूजा में शनिदेव का विशेष आह्वान किया जाता है।

शनि प्रदोष का ज्योतिषीय महत्व
शनि कर्म, न्याय, संयम, तपस्या, विनम्रता और जीवन के संघर्षों का ग्रह है। शनिदेव ही व्यक्ति के पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार फल देते हैं। इसलिए शनि को “न्यायाधीश” कहा जाता है। जिन लोगों की कुंडली में शनि पीड़ित हो, शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही हो, उन्हें शनि प्रदोष के दिन व्रत, दान और उपासना अवश्य करनी चाहिए। शनि प्रदोष का व्रत शनि के अशुभ प्रभावों को समाप्त कर देता है।

शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि
– व्रती को व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
– प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
– दिनभर फलाहार या केवल जल ग्रहण कर व्रत रखा जाता है।
– सूर्यास्त से पहले स्नान कर शिव मंदिर जाएं।
– पूजा संध्या काल (प्रदोष काल) में की जाती है।

पूजा सामग्री
जल, दूध, दही, शहद, घी, शुद्ध घी का दीपक, बेलपत्र, भस्म, धूप, चंदन, फूल, अक्षत, काले तिल, काला कपड़ा, लोहे की वस्तु (शनि पूजन हेतु), पंचामृत, नैवेद्य, जल कलश, शिवलिंग यदि घर पर हो।

पूजा विधि
(1) स्थान की शुद्धि और शिवलिंग की स्थापना:
पूजा स्थान को गंगाजल या गोमूत्र से शुद्ध करें। शिवलिंग पर जल और पंचामृत से अभिषेक करें। बेलपत्र, पुष्प, चंदन, धूप, दीप आदि अर्पित करें।

(2) मंत्रोच्चार:
शिव मंत्र:
ॐ नमः शिवाय (108 बार)
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।

शनि मंत्र:
ॐ शं शनैश्चराय नमः
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥

(3) दीपदान और आरती:
शिवलिंग के चारों ओर दीपक जलाकर परिक्रमा करें। शनि महाराज के लिए काले तिल और तेल का दीप अर्पण करें। शिवजी और शनिदेव दोनों की आरती करें।

शनि प्रदोष के दिन किए जाने वाले विशेष उपाय
शनि प्रदोष विशेष रूप से कष्ट निवारण, शनि शांति और शुभ फल प्राप्ति का दिन होता है। इस दिन कुछ विशेष उपाय अत्यंत फलदायी माने गए हैं:

1 शनि दोष निवारण हेतु:
पीपल वृक्ष के नीचे काले तिल का दीपक जलाएं और 7 बार परिक्रमा करें।
काले तिल, काला कपड़ा, लोहे का पात्र, उड़द दाल का दान करें।
“ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें।

2 रोजगार, व्यवसाय और आर्थिक कष्ट दूर करने हेतु:
शनि प्रदोष की संध्या को शिवलिंग पर जल और शहद चढ़ाकर यह प्रार्थना करें:
“हे प्रभो, मेरी आय में वृद्धि हो, कर्ज से मुक्ति मिले और समृद्धि प्राप्त हो।”
नीले रंग के कपड़े पहनकर तेल से शनिदेव को तिलक करें।

3 संतान सुख और विवाह हेतु:
शिवलिंग पर केसर और दूध से अभिषेक करें।
“ॐ सों सोमाय नमः” तथा “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जप करें।
गरीब कन्याओं को वस्त्र दान करें।

4 रोग और मानसिक कष्ट निवारण:
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें (108 या 1008 बार)।
रुद्राभिषेक कराएं अथवा स्वयं करें।
शनिदेव के चित्र या प्रतिमा पर सरसों का तेल चढ़ाएं।

6. शनि प्रदोष की काल विशेष साधना (उपयुक्त साधकों के लिए):

तंत्र साधना प्रेमियों हेतु:
शनि प्रदोष की रात, काली हल्दी, काला धागा, लोहे की कील और काले कपड़े में लपेटकर ताबीज बनाएं।
इसे गले या बाजू में धारण करें – यह शनि से रक्षा करता है।

शिव साधना हेतु:
11 या 21 बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
“शिव सहस्रनाम” या “शिव चालीसा” का पाठ करें।

7. शनि प्रदोष के लाभ (Benefits of Shani Pradosh):
– शनि दोषों से मुक्ति
– कार्यों में सफलता
– पारिवारिक सुख-शांति
– व्यवसाय और नौकरी में उन्नति
– मानसिक शांति और रोगों से राहत
– पूर्वजों की कृपा और पितृदोष से मुक्ति
– आत्मिक बल और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति

शनि प्रदोष से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य
तत्व विवरण
प्रमुख देवता भगवान शिव और शनिदेव
दिन शनिवार
तिथि त्रयोदशी (कृष्ण या शुक्ल पक्ष)
पूजा का समय संध्या प्रदोष काल (सूर्यास्त के 1.5 घंटे पूर्व से 1.5 घंटे बाद तक)
विशेष दान काले तिल, काला कपड़ा, लोहे का बर्तन, तेल, उड़द
प्रमुख मंत्र “ॐ नमः शिवाय”, “ॐ शं शनैश्चराय नमः”
विशेष स्थान शनि मंदिर, शिव मंदिर, पीपल वृक्ष के नीचे पूजा

शनि प्रदोष व्रत आध्यात्मिक और लौकिक दृष्टि से अत्यंत शुभ अवसर है। यह दिन न केवल शिव और शनि की कृपा पाने का माध्यम है, बल्कि अपने जीवन में चल रहे गंभीर कष्टों, विशेषकर शनि से संबंधित समस्याओं का समाधान भी है। यदि श्रद्धा और नियमपूर्वक इस दिन व्रत, पूजा और उपाय किए जाएं, तो व्यक्ति का जीवन सकारात्मक दिशा में बढ़ सकता है।

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