गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य
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– ज्योतिष, धर्म एवं लोक कहावतों में विशिष्ट फलदायी माना गया है रोहिणी संग इस पर्व का योग
– वैशाख शुक्ल तृतीया को पितरों के निमित्त किए स्नान-दान, सत्कर्म का पुण्य कभी नहीं होता क्षय
अक्षय तृतीया में रोहिणी नक्षत्र के संयोग को अत्यंत श्रेष्ठ माना गया है। सुयोग से इस वर्ष का अक्षय तृतीया पर्व रोहिणी नक्षत्र युक्त है। ज्योतिष, धर्मशास्त्र के अतिरिक्त लोक में भी इस संबंध में विशद वर्णन मिलता है। भड्डरी की प्रचलित लोक कहावत में कहा गया है कि – ‘आखै तीज रोहिणी न होई। पौष अमावस मूल न जोई। महि माहीं खल बलहिं प्रकासै। कहत भड्डरी सालि बिनासै।’ अर्थात् वैशाख की अक्षय तृतीया को यदि रोहिणी न हो, तो पृथ्वी पर दुष्टों का बल बढ़ेगा और उस साल धान की उपज अल्प होगी। यानी, इस वर्ष रोहिणी नक्षत्र का योग होने से दुष्टों का बल घटेगा और धान की फसल अच्छी होने की संभावना है।
अक्षय तृतीया धार्मिक आध्यात्मिक तथा सामाजिक चेतना का पर्व है। इस दिन कोई दूसरा मुहूर्त न देखकर स्वयंसिद्ध शुभ मुहूर्त के कारण अनेक मांगलिक कार्य संपन्न किए जाते हैं। इस दिन किए गए पुण्यकार्य, त्याग, दान- दक्षिणा, जप-तप, हवन, गंगा-स्नान आदि कार्य अक्षय फल को देने वाले होते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन किए गए सभी शुभ कर्मों का फल अक्षय हो जाता है, इसीलिए इस तृतीया का नाम ‘अक्षय’ पड़ा है।
इस तिथि के अक्षय फल को देखते हुए लोग इस दिन धन-संपत्ति की खरीदारी करते हैं तथा बहुत से लोग वैवाहिक बंधन में बंधने के लिए इस पवित्र तिथि की प्रतीक्षा करते हैं। इस वर्ष वैशाख शुक्ल पक्ष में तृतीया तिथि मंगलवार 29 अप्रैल, 2025 की शाम 8:09 बजे से 30 अप्रैल की शाम 5:58 तक है। इसलिए नियमानुसार अक्षय तृतीया का पर्व बुधवार 30 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस दिन प्रात: 4:00 बजे से 6:19 बजे तक वृष, प्रात: 10:51 बजे से दोपहर 1:05 बजे तक सिंह, सायं 5:34 बजे से 7:51 बजे तक वृश्चिक व रात 11:44 बजे से रात 1:00 बजे तक कुंभ जैसे स्थिर लग्न हैं। इन मुहूर्तों में किया गया कोई भी शुभ कर्म अनंत काल तक पुण्यदायी बना रहेगा।
उच्च राशियों पर होंगे ग्रह
वैसे तो अक्षय तृतीया स्वयं एक अपुच्छ मुहूर्त है जिसमें कोई भी मंगल कार्य कभी भी किया जा सकता है, फिर इस बार तो सर्वार्थ सिद्धि योग व रवि योग इसे अत्यंत विशिष्ट बना रहे हैं। यही नहीं आकाशमंडल में भी इस बार सूर्य, चंद्र एवं शुक्र जैसे महत्वपूर्ण ग्रह अपनी उच्च राशियों में विराजमान रहेंगे। सूर्य मेष राशि पर, शुक्र मीन राशि पर तथा चंद्रमा वृषभ राशि पर उच्च के होंगे। इतना अत्यंत शुभ संयोग दशकों बाद बनता दिखाई दे रहा है।
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