क्यों आ रहे हैं इतने हार्ट अटैक? कहीं हथेली में तो राज छुपा नहीं

सावधान रहिए, सतर्क रहिए आजकल कम उम्र में हार्ट अटैक के मामले बढ़ते जा रहे हैं। चलते-चलते, अच्छे भले काम करते हुए, गाड़ी चलाते हुए लोगों को हार्ट अटैक आ रहे हैं। ऐसी गंभीर घटनाओं का कारण मनुष्य की हथेली में छुपा हुआ है। यदि सूक्ष्मता से अध्ययन करेंगे तो पता चलेगा ऐसी घटनाएं हथेली में किसी खास चिन्ह की वजह से हो रही है। आइए आज हम इसी बात पर विचार करते हैं।

कहां होती है हृदय रेखा
हथेली में जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा के ऊपर हृदय रेखा होती है। हृदय रेखा बुध पर्वत के नीचे से निकलकर सूर्य पर्वत और शनि पर्वत से होती हुई गुरु पर्वत के नीचे समाप्त होती है।

क्यों आते हैं अटैक

– यदि हृदय रेखा बुध पर्वत के नीचे से निकलकर काफी पतली हो और शनि पर्वत के नीचे जाकर अचानक मोटी और गहरी हो गई हो तो व्यक्ति की मृत्यु हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट से होती है।

– यदि मस्तिष्क रेखा मणिबंध तक पहुंचकर उसे स्पर्श करती हो तो भी हृदयाघात से मनुष्य की मृत्यु होती है। इसे आकस्मिक मृत्यु योग भी कहते हैं।

– यदि हृदय रेखा चलते चलते सूर्य पर्वत के नीचे टूट जाए और उसके बाद पुन: प्रारंभ हो जाए तो ऐसे जातक को ब्लड प्रेशर के कारण हृदय रोग होते हैं और नींच में ही उसकी आकस्मिक मृत्यु हो जाती है।

– यदि हृदय रेखा शनि पर्वत को स्पर्श करती हो तथा साथ ही मस्तिष्क रेखा के बीच में क्रॉस का चिन्ह हो और जीवन रेखा भी कटी फटी हो तो मनुष्य की मृत्यु हृदय के गंभीर रोगों की वजह से होती है।

– यदि हृदय रेखा पर शनि पर्वत के नीचे गहरा क्रॉस हो तो मनुष्य के हृदय की बायपास सर्जरी होती है।

बच सकते हैं हृदय रोगों से

… तो बारीकी से अपने दोनों हाथों की हथेलियों का अध्ययन करें और देखें कि कहीं आपको भी तो ऐसे चिन्ह नहीं। यदि हैं तो आज से ही अपनी लाइफ स्टाइल को सुधार लें। स्वस्थ और अच्छा खानपान रखें, नियमित रूप से योग-व्यायाम करें। अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार अधिक से अधिक पैदल चलने का प्रयास करें। नियमित रूप से कम से कम 10 हजार कदम चलना ही चाहिए। यदि ये उपाय अपनाएंगे तो आपके हाथ की रेखाएं बदल भी सकती हैं और आप दीर्घायु होंगे।

हाथ में यह योग है तो आप बनेंगे मालामाल

अमीर बनना प्रत्येक व्यक्ति का सपना होता है और इसके लिए वह दिन रात मेहनत करता रहता है। लेकिन बहुत कम लोग ही अपने लक्ष्य में सफल हो पाते हैं। आप अमीर बनेंगे या नहीं, धन आएगा या नहीं, भौतिक सुख मिलेगा या नहीं और मिलेगा तो कितना मिलेगा यह सारा राज आपके हाथ में मौजूद रेखाओं में छुपा हुआ है। आज हम आपको पांच ऐसे योगों के बारे में बता रहे हैं जो यदि आपके हाथ में है तो मालामाल होने से कोई नहीं रोक सकता।

1. लक्ष्मी योग :

यदि पुरुष के दाहिने हाथ में और स्त्री के बाएं हाथ में शनि वलय तथा बुध वलय हो और ये दोनों किसी एक रेखा से जुड़ रहे हों तो लक्ष्मी योग बनता है। जिसके हाथ में यह योग होता है वह थोड़ी मेहनत में ही शीर्ष पर पहुंच जाता है और अमीर बनता है। ऐसे व्यक्ति को अनेक माध्यमों से धन की प्राप्ति होती है और वह समाज में शीर्ष पद पर आसीन होता है।

2. महालक्ष्मी योग :

यदि हाथ में मणिबंध से निकलते हुए एकदम सीधी, स्पष्ट, पूरी लंबाई लिए हो और शनि पर्वत पर जाकर उसके मध्य बिंदु को स्पर्श करती हो तथा सूर्य रेखा चंद्र पर्वत से प्रारंभ होकर सूर्य पर्वत के मध्य बिंदु तक पहुंचती हो तो इसे महालक्ष्मी योग कहा जाता है। जिस जातक के हाथ में महालक्ष्मी योग होता है वह अतुलनीय धन संपत्ति का मालिक होता है। आर्थिक दृष्टि से उसके जीवन में कोई अभाव नहीं रहता।

3. अरविंद योग :

यदि जीवन रेखा के बीच में से भाग्य रेखा प्रारंभ होकर शनि पर्वत तक जाती हो तथा जीवन रेखा से निकल दो शाखाएं सूर्य पर्वत और बुध पर्वत की ओर जाती हो तो जातक अत्यंत भाग्यशाली होता है। वह देश-विदेश में व्यापार करने वाला बड़ा व्यापारी होता है। ऐसा जातक समाज में पूजनीय होता है और बड़े पद पर आसीन होता है। आर्थिक दृष्टि से उसके जीवन में कोई अभाव नहीं होता है।

4. रश्मि योग :

यदि मणिबंध से कोई रेखा निकलकर शुक्र पर्वत पर पहुंचती हो। शुक्र पर्वत अत्यंत पुष्ट, उभरा हुआ तथा लालिमा लिए हुए हो तो रश्मि योग बनता है। इस योग में जन्में व्यक्ति के पास अतुलनीय संपत्ति होती है। वह अनेक भूमि, भवनों तथा वाहनों का मालिक होता है। धन के कारण सम्मान और यश भी अर्जित करता है।

5. पारावत योग :

जिस जातक की दोनों हथेलियों में सात में से कोई भी चार पर्वत अत्यंत उभरे हुए हों, और उनसे संबंधित रेखाएं सरल, सीधी तथा निर्दोष हो तो पारावत योग बनता है। ऐसे योग वाला मनुष्य जीवन में संपूर्ण सुखों का भोग करता है। उसके जीवन में किसी चीज का अभाव नहीं होता है।

मंगल के क्रोध से बचना है तो हो जाएं सावधान

किसी जातक की जन्मकुंडली में जब मंगल पहले, चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें घर में होता है तो वह कुंडली मंगलीक होती है और इसे मंगल दोष कहा जाता है। मंगल दोष हमेशा अशुभ ही नहीं होता, कुछ ग्रह स्थितियों में यह शुभ भी होता है। अलग-अलग घरों में मंगल के होने से अलग-अलग प्रकार के परिणाम जातक को प्राप्त होते हैं। मंगल दोष से पीड़ित व्यक्ति अक्सर हिंसक, क्रोधी, लालची, दूसरों का धन लूटने वाला होता है। मंगलीक लोगों को मंगल के क्रोध से अक्सर जूझना पड़ता है। इस दोष को दूर करने के लिए लाल किताब में अनेक चमत्कारिक टोटके बताए गए हैं।

मंगल दोष से बचने के लाल किताब के टोटके

– यदि आपकी कुंडली में मंगलदोष है तो जीवन में हमेशा सदाचार का पालन करें। झूठ न बोलें। झूठ बोलकर किसी से धन न लें।
– किसी नि:संतान व्यक्ति से कोई संपत्ति, वाहन या अन्य वस्तुएं न खरीदें। यह आपके मंगल को और अमंगल कर देगा।
– यदि आप मंगलीक हैं तो किसी साधु या फकीर से भूलकर भी कोई धागा, डोरा या ताबीज न लें।
– ध्यान रहे आपके मित्रों की सूची में कोई नि:संतान, काने, अपंग या गंजे व्यक्ति न हों।
– मंगल दोष से प्रभावित व्यक्ति को अपने घर में या अपने पास हाथी दांत से बनी कोई वस्तु रखनी चाहिए।
– मंगल दोष है तो घर में कोई भी हथियार न रखें। जंग लगे या पुराने हथियार तलवार आदि हैं तो जल में बहा दें।
– प्रत्येक मंगलवार को हनुमानजी के मंदिर में बूंदी के लड्डुओं का भोग लगाएं।
– चांदी के कड़े में तांबे का डाल डलवाकर पहनने से मंगल दोष दूर होगा।
– चांदी की चूड़ी पर लाल रंग चढ़वाकर उसे अपनी पत्नी के हाथों में अपने हाथों से पहनाएं।
– मंगलवार के दिन पानी के तेज प्रवाह में 100 ग्राम बताशे प्रवाहित करें।
– सात मंगलवार जल में शहद और सिंदूर प्रवाहित करें।
– एक बार किसी मंगलवार को कच्ची दीवार बनाकर गिरा देने से मंगल दोष की शांति होती है।

संतान नहीं हो रही है, निराश न हों, ये उपाय करके देखिए

सुखी दांपत्य जीवन का आधार और सफलता उत्तम संतान की प्राप्ति है। विवाह के लंबे समय बाद भी जब संतान नहीं हो पाती तो पति-पत्नी के रिश्तों में भी कई बार खटास आने लगती है और उन्हें परिवार और समाज के ताने सुनने पड़ते हैं। संतान की प्राप्ति के लिए लाल किताब में अनेक उपाय बताए गए हैं और लाल किताब के टोटके बिलकुल सटीक निशाने पर जाकर बैठते हैं और संतान सुख प्रदान करते हैं। आइए जानते हैं ऐसे टोटके-

– उत्तम संतान सुख के लिए दंपती को लगातार 41 दिन यह उपाय करना चाहिए। उन्हें करना यह है कि हर दिन सुबह के अपने भोजन में से गाय, कुत्ते और कौवे के लिए तीन ग्रास निकाल दें और उन्हें खिला दें। यह उपाय पति-पत्नी दोनों को करना है। इन 41 दिनों तक संसर्ग न करें। 42वें दिन संसर्ग करें तो स्त्री गर्भधारण अवश्य करेगी।

– जिस जगह पर भोजन पके उसी स्थान पर पति-पत्नी साथ बैठकर नित्य भोजन करें। इससे उन्हें शीघ्र सांसारिक सुख प्रदान होगा।

– पति-पत्नी जिस पलंग पर सोते हों उस पलंग के नीचे प्रत्येक रात तांबे के एक लोटे में जल भरकर रख दें। सुबह उठकर उस जल को ऐसे स्थान पर चढ़ा दें जहां किसी का पैर उसपर न पड़े। इसे किसी बगीचे में भी डाल सकते हैं। ऐसा लगातार 41 दिन करें। इससे पारिवारिक और सांसारिक सुख की प्राप्ति होगी।

– जिस दंपती के बच्चे की जन्म के बाद मृत्यु हो जाती हो या पैदा होते ही मर जाते हों, वे दंपती अपने बच्चे के पैदा होने की खुशी में मिठाई की जगह नमकीन बांटें।

– जिन दंपती को संतान सुख नहीं मिल पा रहा है वे किसी ऐसी कुतिया का नर बच्चा पालें जो अपने समय में अकेला ही पैदा हुआ हो। उस पिल्ले को पालने से आपके घर में भी किलकारियां गूंजेंगी।

– नि:संतान स्त्री पांच पूर्णिमा पर एक सूखा नारियल का गोला लें। उसमें छोटा सा छेद करके उसमें उबालकर ठंडा किया हुआ मीठा केसरयुक्त दूध भर दें। छेद को पुन: बंद कर दें। इसे प्रत्येक पूर्णिमा पर चांद की रोशनी में रखें। अगले दिन दूध पी लें और सूखा नारियल खा लें। ऐसा पांच पूर्णिमा करने से संतान सुख की प्राप्ति होगी।

– लाजवंती के पौधे की जड़ पुष्य नक्षत्र में लाकर कमर में बांधने से बांझ स्त्री को भी संतान की प्राप्ति हो जाती है।

असमय मृत्यु के समान कष्ट देती है टूटी हुई जीवनरेखा


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

अक्सर हम अपने सामाजिक जीवन में देखते हैं कि कई लोग कम उम्र में ही असमय मृत्यु के शिकार हो जाते हैं। हादसे का कारण चाहे कुछ भी रहा हो किंतु असमय मृत्यु पूरे परिवार को तोड़कर रख देती है। असमय मृत्यु होने का कारण आपकी हथेली में छुपा हुआ है। हथेली में जीवन रेखा का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि संपूर्ण जीवन पर इसी का प्रभाव सबसे अधिक होता है। जो रेखा अंगूठे के ठीक नीचे से निकलकर शुक्र पर्वत को घेरते हुए मणिबंध तक जाती है वही जीवन रेखा कहलाती है। सामान्य नियम के अनुसार छोटी जीवन रेखा कम उम्र और लंबी जीवन रेखा लंबी उम्र की ओर इशारा करती है। यदि जीवन रेखा टूटी हुई हो तो यह अशुभ होती है।

1. हस्तरेखा ज्योतिष के अनुसार लंबी, गहरी, पतली और साफ जीवन रेखा शुभ होती है। जीवन रेखा पर क्रॉस का चिह्न अशुभ होता है। यदि जीवन रेखा शुभ है तो व्यक्ति की आयु लंबी होती है और उसका स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है।

2. यदि मस्तिष्क रेखा (मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा लगभग एक ही स्थान से प्रारंभ होती है) और जीवन रेखा अपने उद्गम स्थान पर अलग-अलग हो तो व्यक्ति स्वतंत्र विचारों वाला होता है।

3. यदि मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा के मध्य अधिक अंतर हो तो व्यक्ति बिना सोच-विचार के कुछ भी कार्य कर डालता है।

4. यदि दोनों हाथों में जीवन रेखा टूटी हुई हो, तो व्यक्ति को असमय मृत्यु समान कष्टों का सामना करना पड; सकता है। यदि एक हाथ में जीवन रेखा टूटी हुई हो तो यह किसी गंभीर बीमारी की ओर संकेत करती है।

5. यदि किसी व्यक्ति के हाथ में जीवन रेखा श्रृंखलाकार या अलग-अलग टुकड़ों में हो तो या उनसे बनी हुई हो तो व्यक्ति निर्बल हो सकता है। ऐसे लोग स्वास्थ्य की दृष्टि से भी परेशानियों का सामना करते हैं।

6. यदि जीवन रेखा से कोई शाखा गुरु पर्वत क्षेत्र की ओर उठती दिखाई दे या गुरु पर्वत में जा मिले तो व्यक्ति को कोई बड़ा पद या व्यापार-व्यवसाय प्राप्त होता हे।

7. यदि जीवन रेखा से कोई शाखा शनि पर्वत क्षेत्र की ओर उठकर भाग्य रेखा के साथ-साथ चलती दिखाई दे तो व्यक्ति को धन-संपत्ति का लाभ मिल सकता है।

8. यदि जीवन रेखा, हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा तीनों प्रारंभ में मिली हुई हो तो व्यक्ति भाग्यहीन, दुर्बल और परेशानियों से घिरा होता है।

9. यदि जीवन रेखा को कई छोटी-छोटी रेखाएं काटती हुई नीचे की ओर जाती हो तो ये रेखाएं व्यक्ति के जीवन में परेशानियों को दर्शाती हैं।

10. यदि जीवन रेखा गुरु पर्वत से प्रारंभ हुई हो तो व्यक्ति अति महत्वाकांक्षी होता है। ये लोग अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।

11. जब टूटी हुई जीवन रेखा शुक्र पर्वत के भीतर की ओर मुड़ती दिखाई देती है तो यह अशुभ लक्षण होता है। ऐसी जीवन रेखा बताती है कि व्यक्ति को किसी बड़े संकट का सामना करना पड़ सकता है।

12. यदि जीवन रेखा अंत में दो भागों में विभाजित हो गई हो तो व्यक्ति की मृत्यु जन्म स्थान से दूर होती है।

ध्यान रखें हस्तरेखा में दोनों हाथों की बनावट और रेखाओं का पूरा अध्ययन करना बहुत जरूरी है। यहां बताए गए फल हथेली की अन्य स्थितियों से बदल भी सकते हैं। इसी वजह से किसी व्यक्ति के बारे में सटीक भविष्यवाणी करना हो तो दोनों हथेलियों का अध्ययन करना चाहिए।

धन संपदा में वृद्धि देने वाला शुक्र-पुष्य का शुभ संयोग 27 सितंबर को

पुष्य को नक्षत्रों का राजा कहा गया है और जब यह किसी विशेष दिन आता है तो उसके साथ मिलकर शुभ संयोग बनाता है। पुष्य नक्षत्र में किए गए कार्य सदैव उत्तम फलदायी होते हैं, धन-संपदा में वृद्धि करने वाले होते हैं और सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। 27 सितंबर को शुक्रवार के दिन पुष्य नक्षत्र आने से शुक्र-पुष्य का शुभ संयोग बना है। शुक्र पुष्य में खरीदा गया सोना, चांदी, भूमि, भवन, वाहन आदि में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है।

पुष्य नक्षत्र 26 सितंबर को रात्रि में 11 बजकर 33 मिनट से प्रारंभ होगा और 27 सितंबर को रात्रि 1 बजकर 20 मिनट तक रहेगा। इस प्रकार शुक्र पुष्य का संयोग पूरे दिन मिलने वाला है। इस शुभ नक्षत्र में अनेक प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते हैं।

क्या करें शुक्र पुष्य में

– सबसे पहले तो यदि आप स्वर्णाभूषण आदि खरीदना चाहते हैं तो शुक्र-पुष्य का संयोग आपके लिए सबसे उत्तम रहने वाला है। अभी श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं इसलिए कुछ लोग कह सकते हैं कि इसमें खरीदी नहीं करते हैं, लेकिन यह मान्यता सर्वथा गलत है। श्राद्धपक्ष में खरीदी की जा सकती है और ऐसे विशिष्ट संयोग में तो अवश्य खरीदना चाहिए।

– भूमि, भवन, संपत्ति, वाहन आदि खरीदने के लिए इससे श्रेष्ठ दिन और कोई नहीं, इसलिए शुक्र पुष्य के संयोग में इन चीजों की खरीदी अवश्य करें।

– यदि आप अपनी आर्थिक स्थिति को सामान्य से श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं तो शुक्र पुष्य के संयोग में इस दिन अपने घर में श्रीयंत्र की स्थापना अवश्य करें। यह यंत्र धातु पर बना हुआ या स्फटिक का हो तो और भी उत्तम रहेगा।

– जिन दंपतियों का वैवाहिक जीवन ठीक नहीं चल रहा है, वे शुक्र पुष्य के संयोग में एक-दूसरे को चांदी का कोई आभूषण और रेशमी सुंदर वस्त्र उपहार स्वरूप दें।

– जो लोग प्रेम संबंधों में असफल हो रहे हैं, वे शुक्र पुष्य के संयोग में सज संवरकर साफ-स्वच्छ वस्त्र पहनें और अच्छा सा परफ्यूम या इत्र लगाएं और फिर प्रेम निवेदन करें, सफलता मिलेगी।

– शुक्र पुष्य के संयोग में केसर का तिलक करना अत्यंत श्रेष्ठ रहता है। इससे व्यक्ति में जगत को मोहित करने की शक्ति आ जाती है।

– शुक्र पुष्य के योग में यदि कोई व्यापार-व्यवसाय प्रारंभ किया जाए तो वह भी सफल होता है।

श्राद्ध पक्ष की इंदिरा एकादशी 28 सितंबर को, एकादशी का श्राद्ध 27 को होगा

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। पितृपक्ष में आने के कारण इस एकादशी का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस एकादशी का व्रत रखकर उसका फल अपने जाने-अनजाने पितरों को प्रदान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उन्हें मुक्ति प्राप्त होती है। ऐसे पितृ इंदिरा एकादशी के फलस्वरूप बैकुंठ लोक की ओर प्रस्थान करते हैं। इंदिरा एकादशी का व्रत 28 सितंबर 2024 शनिवार को किया जाएगा जबकि एकादशी का श्राद्ध एक दिन पहले 27 सितंबर को किया जाएगा। इस दिन पितरों को कलाकंद या मावे की मिठाई धूप स्वरूप में देना चाहिए।

इंदिरा एकादशी व्रत की विधि

इंदिरा एकादशी के एक दिन पूर्व अथवा दशमी के दिन व्रती को एक समय भोजन का प्रण करना चाहिए। दशमी को रात्रि में भोजन न करें और अच्छे से ब्रश करें ताकि दांतों में अन्न का कोई कण न रहे। एकादशी के दिन सूर्योदय पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। सूर्यदेव को जल का अर्घ्य अर्पित करें और शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण कर पंच देवों का पूजन करें। एकादशी व्रत का सकाम या निष्काम संकल्प लेकर भगवान विष्णु का पूजन करें। एकादशी व्रत की कथा सुनें। दिनभर निराहार रहें। द्वादशी के दिन प्रात: व्रत का पारण करें। किसी ब्राह्मण दंपती को भोजन करवाकर अथवा भोजन बनाने का सामान देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें फिर व्रत खोलें। इस एकादशी का पुण्य पितरों को देना चाहिए। यदि आप पितरों को पुण्य देना चाहते हैं तो संकल्प के समय इसका उच्चारण अवश्य करें कि आप इस एकादशी का पुण्य फल पितरों को प्रदान कर उन्हें मुक्ति दिलाना चाहते हैं।

इंदिरा एकादशी व्रत की कथा

सतयुग में महिष्मती नाम की नगरी में राजा इंद्रसेन राज करते थे। वे बड़े धर्मात्मा थे और उनकी प्रजा सुखी थी। एक दिन नारदजी इंद्रसेन के दरबार में पहुंचे। उन्होंने राजा इंद्रसेन से कहा कितुम्हारे पिता का संदेश लेकर आया हूं जो इस समय पूर्व जन्म में एकादशी का व्रत भंग होने के कारण यमराज का दंड भोग रहे हैं। नारदजी के मुख से पिता की पीड़ा सुनकर इंद्रसेन दुखी हो जाए और पिता के मोक्ष का उपाय पूछा। नारदजी ने आश्विन मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का व्रत करने का निर्देश दिया। राजा इंद्रसेन ने नारदजी की बताई विधि अनुसार इंदिरा एकादशी का व्रत किया और उसका पुण्य फल पिता को प्रदान किया। व्रत के प्रभाव से इंद्रसेन के पिता को मुक्ति मिली और वे बैकुंठ लोक चले गए।

एकादशी तिथि

प्रारंभ : 27 सितंबर को दोप 1:20

पूर्ण : 28 सितंबर को दोप 2:50

पारण : 29 सितंबर को प्रात: 6:18 से 8:41

कैंसर जैसे गंभीर रोग को भी मात दे देते हैं ये चमत्कारी क्रिस्टल

कैंसर का नाम सुनते ही हर कोई टेंशन में आता है। मरीज के साथ उसका पूरा परिवार भी संकट में आ जाता है। अब तक यही माना जाता रहा है कि कैंसर का कोई इलाज नहीं, यह बात काफी हद तक सही भी है क्योंकि कैंसर जैसे रोग के लिए मेडिकल साइंस में सटीक उपचार आज भी उपलब्ध नहीं है। कई वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियां भी उपलब्ध हैं जिनसे कैंसर का उपचार किया जा सकता है। ऐसी ही एक पद्धति है क्रिस्टल थैरेपी। दरअसल क्रिस्टल थैरेपी ज्योतिषीय रत्नों के आधार पर काम करती है। कुछ क्रिस्टल ऐसे होते हैं जिनमें कैंसर को हील करने के गुण होते हैं। आज हम आपको ऐसे ही कुछ क्रिस्टलों के बारे में बताने जा रहे हैं। इन क्रिस्टलों का उपयोग कैंसर रोगी ठीक हो सकते हैं।

आंबेर : यह सुनहरे पीले रंग का स्टोन होता है जो शरीर में जबर्दस्त सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। इससे नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकल जाती है। रक्त शुद्ध होता है और शरीर के भीतर कहीं भी कोई अंग या कोशिका अनियंत्रित तरीके से बढ़ती है तो उसे यह काबू करता है। यह स्टोन ब्लैडर कैंसर के उपचार में कारगर साबित हुआ है।

एमेथिस्ट : जामुनी रंग का यह स्टोन कैंसर की बेड सेल्स से लड़ने में कारगर पाया गया है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर व्यक्ति को रोग से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। इससे कैंसर समेत कई बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। यह शरीर का एनर्जी लेवल भी बढ़ाता है।

कारनेलिन : खून की तरह लाल-नारंगी रंग का यह स्टोन न केवल इम्यून सिस्टम मजबूत करता है, बल्कि कैंसर सेल्स की वृद्धि रोकने में भी कारगर है। इससे शरीर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकलती है। यह रक्त का सबसे अच्छा शोधक कहा गया है।

ब्लू और ग्रीन टरमेलाइन : ये दोनों की क्रिस्टल मस्तिष्क के कैंसर के उपचार में काम आते हैं। इससे ब्रेन की सामान्य गतिविधियों में वृद्धि होती है। यदि कहीं ट्यूमर या बेड सेल्स है तो यह उन्हें बढ़ने से रोकता है और गुड सेल्स में वृद्धि करता है।

रोज क्वा‌र्ट्ज : इसे पिंक स्फटिक भी कहा जाता है। यह स्टोन ब्रेस्ट कैंसर के उपचार में प्रयोग किया जाता है। इससे हृदय चक्र एक्टिवेट होता है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। यह स्टोन शरीर में कई लेवल में ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाता है।

ब्लड स्टोन : हरे अपारदर्शी स्टोन में खून जैसे थक्के वाले इस स्टोन को ब्लड स्टोन कहा जाता है। यह आंतों के कैंसर में चमत्कारिक रूप से मदद करता है। इस स्टोन को पहनने या इसकी पिष्टी या इसमें बुझा पानी पीने से आंत का कैंसर ठीक होता है।

विशेष नोट : इन सभी प्रकार के स्टोन का उपयोग किसी जानकार क्रिस्टल हीलर से परामर्श के बाद ही करें।

चमकदार चेहरा और आंखों के काले घेरे हटाना है तो पहनें ये रत्न

आज के भागदौड़ भरे जीवन में फास्ट फूड खाने पर निर्भरता, देर रात तक जागना, कम सोना, कई-कई घंटों तक कंप्यूटर-लैपटॉप या टीवी के सामने रहना, मोबाइल स्क्रीन पर अधिक समय बिताने जैसी कुछ ऐसी आदतें हैं जिसने नेत्र रोगों को हर घर में आम बना दिया है। आई-ड्राइनेस हो या आंखों की रोशनी कम होना, आम होने के बावजूद ये परेशानियां उत्पन्न करती हैं। फिर चश्मे और दवाइयों के सिवा और कोई दूसरा उपाय नहीं रह जाता। ऐसे में ज्योतिष शास्त्र की रत्न चिकित्सा आपकी बहुत मदद कर सकता है। यहां हम आपको कुछ ऐसे रत्नों के विषय में बता रहे हैं जो आपकी आंखों की परेशानियों को दूर करने में सक्षम माने जाते हैं।

ब्लैक एजेट : ज्योतिष शास्त्र की मानें तो यह एक ऐसा रत्न है जिसे अगर नियमित रूप से पलकों पर हल्के हाथों से रगड़ा जाए तो इससे आंखों के नीचे रक्त-संचार बढ़ता है और धीरे-धीरे काले घेरे की समस्या दूर हो जाती है। साथ ही इससे आंखों की रोशनी भी बढ़ती है। ऐसा माना जाता है कि इससे सभी प्रकार के नेत्र रोग दूर होते हैं और अगर आंखें स्वस्थ हों तो भी उसमें किसी प्रकार की परेशानी नहीं आती। इसे अंगूठी के रूप में पहनने से भी लाभ होता है।

एक्वामरीन : सफेद, हल्का हरा, हलका नीला रंगों में मिलने वाला यह रत्न आई-ड्राइनेस या कहें आंखों का सूखापन दूर करने में चमत्कारी रूप से लाभकारी है। इसके अलावा इससे आंखों की एलर्जी, जलन, खुजली, पानी आने जैसी समस्या भी दूर होती है। आई-ड्राइनेस दूर करने के लिए रातभर इस स्टोन को पानी में रखकर सुबह इस पानी से छींटे मारते हुए आंख धुलना चाहिए।

टाइगर जैस्पर : आंखों की रोशनी बढ़ाने में यह विशेष रूप से प्रभावकारी माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसे अंगूठी के रूप में पहनने से यह आंखों की मांसपेशियों को लचीला बनाता है और वहां रक्त-संचार बढ़ाता है। इससे आंखों की रोशनी बढ़ती है, साथ ही आंखों में चमक भी आती है।

जेड : आंखों की गंभीर बीमारियों को दूर करने में यह चमत्कारी रूप से असरदार रत्न है। इसे माला के रूप में पहनने से रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यून सिस्टम) बढ़ती है, इसलिए मौसम में हुए बदलावों के कारण हुई आंखों की एलर्जी (कंजक्टिवाइटिस आदि) जैसी नेत्र परेशानियों को दूर करने में यह बेहद कारगर है। साथ ही आंखों की रोशनी बढ़ाता है, चश्मा हटाने में भी लाभदायक है।

फ्लूराइट : यह एक ऐसा रत्न है जो बढ़ती उम्र में भी आंखों की रोशनी बढ़ा सकता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसका जुड़ाव मस्तिष्क के तंत्रिका तंत्र से होता है, इसलिए लगभग सभी प्रकार के नेत्र रोगों को ठीक कर पाने में यह सक्षम है। यहां तक कि इसे पहनने से काला मोतिया भी ठीक हो सकता है।

जिसके पास है हत्था जोड़ी उसकी किस्मत चमक उठेगी

तंत्र शास्त्र में वनस्पतियों, पौधों की जड़ों, छाल, पत्तियों आदि का बड़ा महत्व है। कहा जा सकता है किपूरा तंत्र शास्त्र ही वनस्पतियों पर आधारित हैं। इनमें से कई ऐसी दुर्लभ जड़ी-बूटियां हैं जो बड़ी मुश्किल से प्राप्त होती हैं और कई तो विलुप्त हो चुकी हैं। इसका लाभ उठाकर कई लोग नकली वनस्पतियां बनाकर लोगों को ठग भी रहे हैं।

आज हम आपको बता रहे हैं हत्था जोड़ी के बारे में। यह एक अत्यंत ही दुर्लभ किस्म की वनस्पति है। तंत्र क्रियाओं में इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। हत्था जोड़ी चमत्कारिक प्रभाव दिखाती है। कहा जाता है हत्था जोड़ी पैसे को चुंबक की तरह खींचती है। जिसके पास असली हत्था जोड़ी होती है वह रातोंरात धनवान बन जाता है। इसका दूसरा सबसे सशक्त प्रयोग वशीकरण में है। हत्था जोड़ी वशीकरण की सिद्ध और आजमाई हुई वनस्पति है।

महाकाली और कामाख्या देवी का स्वरूप कही जाने वाली हत्था जोड़ी एक पौधे की जड़ है जो कंगाल को भी मालामाल बनाने की क्षमता रखती है। धन लाभ और वशीकरण के लिए हत्था जोड़ी एक चमत्कारिक उपाय है। हत्था जोड़ी न केवल आपको धनवान बनाती है बल्कि आपके जीवन की अन्य समस्याओं का भी निवारण करती है। इसे आप सौ रोगों की एक दवा भी कह सकते हैं।

हत्था जोड़ी की जड़ को कभी ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि हत्था जोड़ी इंसान की भुजाओं के आकार की दिखाई देती है। ये एक पौधे की जड़ है जो तांत्रिक क्रियाओं के साथ_ साथ ज्योतिषीय उपायों में भी काम आती है। हत्था जोड़ी की एक खासियत यह है कियह सीधे उपयोग में नहीं लाई जाती है। इसका उपयोग तब तक बेकार है जब तक इसे तांत्रिक विधि से सिद्ध ना किया गया हो। इसके बाद ही हत्था जोड़ी अपना चमत्कारिक असर दिखाना शुरू कर देती है। ऐसा कहा जाता है किसिद्ध की हुई हत्था जोड़ी, जिस व्यक्ति के पास होती है वह बहुत जल्दी धनवान हो सकता है।

हत्था जोड़ी के टोटके

– किसी भी शनिवार अथवा मंगलवार के दिन हत्था जोड़ी घर ले आएं। इस जड़ को लाल रंग के कपड़े में बांध लें। इसके बाद घर में किसी सुरक्षित स्थान पर या तिजोरी में रख दें। इससे आपकी आय में वृद्धि होगी एवं धन का व्यय कम होगा।

– तिजोरी में सिंदूर लगी हुई हत्था जोड़ी रखने से विशेष आर्थिक लाभ होता है। लेकिन ध्यान रहे किहत्था जोड़ी को जब भी प्रयोग में लाना हो, तो इससे पहले इसकी तांत्रिक सिद्धि अवश्य करा लें अन्यथा आपका प्रयास विफल हो जाएगा।

– हत्था जोड़ी को दुकान या घर में रखने से उस घर से लक्ष्मी कभी दूर नहीं जाती।

तीव्र वशीकरण करती है हत्थाजोड़ी

हत्थाजोड़ी में वशीकरण की बड़ी अद्भुत क्षमता होती है। इसमें मां चामुंडा का वास माना गया है। प्राकृतिक हत्थाजोड़ी को विधिपूर्वक पूर्व निमन्ति्रत कर निकाला जाता है एवं विशेष मुहूर्तों जैसे रवि पुष्य, गुरु पुष्य, नवरात्रि, ग्रहणकाल, होली, दीपावली में विशेष मंत्रों द्वारा सिद्ध किया जाता है। सिद्धि के पश्चात इसे चांदी की डिब्बी में सिंदूर के साथ रखा जाता है। इस प्रकार की मंत्र सिद्ध हत्था जोड़ी जिस व्यक्ति के पास होती है वह वशीकरण करने में सक्षम हो जाता है। वह जिससे भी एक बार मिल लेता है उसे अपना बना लेता है।

मंत्र सिद्ध हत्थाजोड़ी के लाभ

1. मंत्र सिद्ध हत्थाजोड़ी पर अर्पित किए गए सिंदूर का तिलक करने से मनुष्य में वशीकरण क्षमता आ जाती है।

2 . मंत्र सिद्ध हत्थाजोड़ी को लाल रेशमी वस्त्र में बांधकर तिजोरी में रखने से धन की कमी नहीं रहती।

3 . मंत्र सिद्ध हत्थाजोड़ी को अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान में रखने व्यापार में वृद्धि होती है।

4 .मंत्र सिद्ध हत्थाजोड़ी के सम्मुख शत्रु दमन मंत्र का जप करने से शत्रु पीड़ा से मुक्ति मिलती है।

5. मंत्र सिद्ध हत्थाजोड़ी के पास रहने से कोर्ट_कचहरी व मुकदमे आदि में स़फलता मिलती है।