अष्टमी, नवमी पूजन कब करें, दशहरा कब मनाएं

आश्विन मास की शारदीय नवरात्रि में इस बार चतुर्थी तिथि में वृद्धि के कारण आम जनमानस में अष्टमी-नवमी पूजन को लेकर भारी भ्रम बना हुआ है। अष्टमी-नवमी ऐसे दिन होते हैं जब घरों में कुलदेवी का पूजन किया जाता है। इस बार चतुर्थी तिथि दो दिन होने के कारण आगे की दो तिथियां संयुक्त हो गई हैं। इस लेख में आपको सटीक और सही शास्त्र सम्मत जानकारी दी जा रही है। पढ़ें और लाभ लें तथा इसे आगे भी प्रसारित करना न भूलें।

इस वर्ष शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर 11 अक्टूबर 2024 आश्विन शुक्ल नवमी तक रहेंगे। अब इस बार सबसे ज्यादा भ्रम की स्थिति अष्टमी और नवमी पूजन को लेकर है। कई लोग 10 अक्टूबर को अष्टमी पूजन कर रहे हैं तो कई लोग 11 अक्टूबर को अष्टमी पूजन करेंगे।

पंचांगों के अनुसार 10 अक्टूबर को अष्टमी तिथि दोपहर 12 बजकर 32 मिनट से प्रारंभ होकर 11 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 06 मिनट तक रहेगी। शास्त्रों में सप्तमी युक्त अष्टमी तिथि में कुलदेवी पूजन निषेध बताया गया है। इसलिए 10 अक्टूबर को कुलदेवी पूजन नहीं किया जाएगा। इस दिन भद्रा भी रहेगी।

11 अक्टूबर को सूर्योदय के समय अष्टमी तिथि रहेगी और दोपहर 12:06 से नवमी लग जाएगी। इसलिए कुलदेवी का पूजन नवमी युक्त अष्टमी तिथि में 11 अक्टूबर को ही करें। नवमी युक्त अष्टमी तिथि में कुलदेवी का पूजन करना सर्वसुखदायक और श्रेष्ठ रहेगा।

अब यहां प्रश्न यह उठता है कि अनेक लोग सायंकाल में नवमी पूजन करते हैं। तो उनके लिए उत्तर यह है कि जो लोग सायंकाल में नवमी पूजन करते हैं वे 11 अक्टूबर को ही सायंकाल में नवमी पूजन कर लें। जो लोग प्रात:काल में नवमी पूजन करते हैं वे 12 अक्टूबर को प्रात: नवमी का कुलदेवी पूजन करें और कन्या भोजन, हवन, नवरात्रि पूजन आदि 12 अक्टूबर को प्रात: ही करें।

दशहरा कब
12 अक्टूबर को नवमी तिथि प्रात: 10:57 बजे तक रहेगी। इसके बाद दशमी लग जाएगी। इसलिए दशहरा विजयादशमी 12 अक्टूबर
को ही मनाया जाएगा।

प्रमुख तारीखें
11 अक्टूबर शुक्रवार- अष्टमी पूजन, सायंकाल नवमी पूजन
12 अक्टूबर शनिवार- प्रात:काल नवमी पूजन, कन्या पूजन, हवन आदि और सायंकाल में दशहरा

तिथि कब तक
11 अक्टूबर- अष्टमी दोपहर 12:06 बजे तक, पश्चात नवमी
12 अक्टूबर- नवमी प्रात: 10:57 बजे तक, पश्चात दशमी

यह समस्त जानकारी पंचांगों को शास्त्रों के आधार पर है। अत: किसी भी प्रकार का भ्रम न रखें।

दो दिन का भ्रम न पालें, आनंदपूर्वक दीपावली 31 अक्टूबर को ही मनाएं

दीपावली मनाने को लेकर इस बार देशभर में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। दीपावली का पूजन 31 अक्टूबर को किया जाए या 1 नवंबर को इसे लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। अधिकांश विद्वान 31 अक्टूबर को दीपावली मनाने के पक्ष में हैं तो कुछ 1 नवंबर को मनाने की बात कह रहे हैं। पाठकों को किसी भ्रम में नहीं रहना चाहिए। आनंदपूर्वक, उल्लास के साथ पूर्ण भक्तिभाव सहित 31 अक्टूबर को ही दीपावली का पर्व मनाएं।

शास्त्रीय मान्यता और परंपरा है कि महालक्ष्मी का पूजन कार्तिक अमावस्या की रात्रि में महानिशिथ काल में किया जाता है। अमावस्या तिथि का प्रारंभ 31 अक्टूबर को दोपहर 3 बजकर 52 मिनट से होगा और समापन 1 नवंबर को सायं 6 बजकर 16 मिनट पर होगा। चूंकि महालक्ष्मी पूजन अमावस्या तिथि में ही करने की शास्त्रीय मान्यता है और यह तिथि 31 अक्टूबर को ही मध्यरात्रि में मिल रही है इसलिए इसी दिन दीपावली पूजन करना श्रेष्ठ रहेगा।

प्रदोष काल दोनों दिन किंतु अमावस्या 31 को ही
महालक्ष्मी पूजन का मुहूर्त देखने के लिए प्रदोष काल महत्वपूर्ण होता है। प्रदोष काल 31 अक्टूबर और 1 नवंबर दोनों दिन मिल रहा है किंतु 1 नवंबर को महानिशिथ काल में अमावस्या तिथि नहीं रहेगी, प्रतिपदा लग जाएगी। जबकि 31 अक्टूबर को प्रदोष काल और अमावस्या तिथि दोनों मिल रहे हैं इसलिए दीपावली 31 अक्टूबर को ही मनाना शास्त्रीय रहेगा। 31 अक्टूबर को प्रदोष काल सायं 5:48 से रात्रि 8:32 बजे तक रहेगा और महानिशिथ मुहूर्त रात्रि 11:45 से 12:36 तक रहेगा। इस समय में महालक्ष्मी पूजन करना सर्वश्रेष्ठ और सर्वसिद्धिदायक रहेगा।

कहां-कहां कब दीपावली
कालगणना के प्रमुख केंद्र भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन, दतिया, काशी, मथुरा, वृंदावन, देवघर, द्वारिका, प्रयागराज, तिरुपति समेत देश के अधिकांश भागों में दीपावली 31 अक्टूबर को ही मनाई जा रही है। जबिक अयोध्या, रामेश्वरम और इस्कान मंदिरों में दीपावली 1 नवंबर को मनाई जाएगी। भारतीय राष्ट्रीय कैलेंडर में भी 31 अक्टूबर को ही दीपावली बताई गई है।

31 अक्टूबर को क्यों मनाई जाए दीपावली
– दीपावली का त्योहार और महालक्ष्मी पूजन कार्तिक अमावस्या के प्रदोष काल और महानिशिथ काल में ही किया जाता है। ये दोनों काल केवल 31 अक्टूबर को ही मिल रहे हैं।
– अमावस्या तिथि में महालक्ष्मी पूजन किया जाता है और यह तिथि 31 अक्टूबर को ही मिल रही है। 1 नवंबर को सायंकाल 6:16 से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा लग जाएगी। प्रतिपदा में लक्ष्मी पूजन नहीं किया जाता है।
– महालक्ष्मी पूजन में रात्रि में अमावस्या होना आवश्यक है। दीपावली पूजन में उदया तिथि को मान्यता नहीं है। इस कारण दीपावली 31 अक्टूबर को ही मनाई जाना शास्त्र सम्मत है।

मंगलदायक रहेगा चित्रा-स्वाति नक्षत्र और प्रीति योग में पूजन
महालक्ष्मी का पूजन चित्रा-स्वाति नक्षत्र के संयोग और प्रीति योग की साक्षी में 31 अक्टूबर की रात्रि में करना अत्यंत शुभ और श्रेष्ठ रहेगा। चित्रा नक्षत्र रात्रि 12:45 तक रहेगा उसके बाद स्वाति नक्षत्र प्रारंभ होगा और प्रीति योग 31 अक्टूबर को प्रात: 9:50 से प्रारंभ होकर संपूर्ण दिन-रात रहेगा।

कब कौन-से पर्व
29 अक्टूबर : धनतेरस
30 अक्टूबर : नरक चतुर्दशी
31 अक्टूबर : दीपावली, महालक्ष्मी पूजन

क्यों आ रहे हैं इतने हार्ट अटैक? कहीं हथेली में तो राज छुपा नहीं

सावधान रहिए, सतर्क रहिए आजकल कम उम्र में हार्ट अटैक के मामले बढ़ते जा रहे हैं। चलते-चलते, अच्छे भले काम करते हुए, गाड़ी चलाते हुए लोगों को हार्ट अटैक आ रहे हैं। ऐसी गंभीर घटनाओं का कारण मनुष्य की हथेली में छुपा हुआ है। यदि सूक्ष्मता से अध्ययन करेंगे तो पता चलेगा ऐसी घटनाएं हथेली में किसी खास चिन्ह की वजह से हो रही है। आइए आज हम इसी बात पर विचार करते हैं।

कहां होती है हृदय रेखा
हथेली में जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा के ऊपर हृदय रेखा होती है। हृदय रेखा बुध पर्वत के नीचे से निकलकर सूर्य पर्वत और शनि पर्वत से होती हुई गुरु पर्वत के नीचे समाप्त होती है।

क्यों आते हैं अटैक

– यदि हृदय रेखा बुध पर्वत के नीचे से निकलकर काफी पतली हो और शनि पर्वत के नीचे जाकर अचानक मोटी और गहरी हो गई हो तो व्यक्ति की मृत्यु हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट से होती है।

– यदि मस्तिष्क रेखा मणिबंध तक पहुंचकर उसे स्पर्श करती हो तो भी हृदयाघात से मनुष्य की मृत्यु होती है। इसे आकस्मिक मृत्यु योग भी कहते हैं।

– यदि हृदय रेखा चलते चलते सूर्य पर्वत के नीचे टूट जाए और उसके बाद पुन: प्रारंभ हो जाए तो ऐसे जातक को ब्लड प्रेशर के कारण हृदय रोग होते हैं और नींच में ही उसकी आकस्मिक मृत्यु हो जाती है।

– यदि हृदय रेखा शनि पर्वत को स्पर्श करती हो तथा साथ ही मस्तिष्क रेखा के बीच में क्रॉस का चिन्ह हो और जीवन रेखा भी कटी फटी हो तो मनुष्य की मृत्यु हृदय के गंभीर रोगों की वजह से होती है।

– यदि हृदय रेखा पर शनि पर्वत के नीचे गहरा क्रॉस हो तो मनुष्य के हृदय की बायपास सर्जरी होती है।

बच सकते हैं हृदय रोगों से

… तो बारीकी से अपने दोनों हाथों की हथेलियों का अध्ययन करें और देखें कि कहीं आपको भी तो ऐसे चिन्ह नहीं। यदि हैं तो आज से ही अपनी लाइफ स्टाइल को सुधार लें। स्वस्थ और अच्छा खानपान रखें, नियमित रूप से योग-व्यायाम करें। अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार अधिक से अधिक पैदल चलने का प्रयास करें। नियमित रूप से कम से कम 10 हजार कदम चलना ही चाहिए। यदि ये उपाय अपनाएंगे तो आपके हाथ की रेखाएं बदल भी सकती हैं और आप दीर्घायु होंगे।