कालयुक्त नव संवत्सर 2082 का राजा-मंत्री सूर्य और सेनापति हैं शनि


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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कालयुक्त नव संवत्सर 2082 का राजा-मंत्री सूर्य और सेनापति हैं शनि

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से हिंदू नव वर्ष अर्थात् नव संवत्सर प्रारंभ होता है। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि भी प्रारंभ होती है। इस बार नव संवत्सर 30 मार्च 2025 रविवार से शुरू हो रहा है। इस संवत्सर का नाम है कालयुक्त और इसके राजा-मंत्री सूर्य और सेनापति शनि हैं।

राजा सूर्य का फल
सूर्य का स्वभाव गर्म होता है। इसलिए इस वर्ष भीषण गर्मी का प्रकोप रहने वाला है। गर्मी से प्रजा का हाल बेहाल होगा, लेकिन चूंकि सूर्य राजा भी है इसलिए वे प्रजा का ध्यान भी रखेंगे, इसी कारण इस वर्ष बारिश भी अच्छी होने वाली है ताकि खूब खाद्यान्न पैदा हो सके। विश्व के प्रमुख शासनाध्यक्षों-राष्ट्राध्यक्षों के लिए यह वर्ष अशुभप्रद होगा। कहीं छत्रभंग (सत्ताच्युत अथवा निधन) के योग बनेंगे।

मंत्री सूर्य का फल
नए संवत्सर के मंत्री भी सूर्य हैं इसलिए वे रणनीतिक रूप से निर्णय लेंगे। शासक-प्रशासक वर्ग से जनता पीड़ित रहेगी। नए कर जनता पर थोपे जा सकते हैं। देश की आर्थिक स्थिति में बड़े उतार-चढ़ाव होंगे। शेयर मार्केट में बड़े बदलाव इस साल देखने को मिल सकते हैं। धान्य व रसपदार्थों के भावों में कुछ मंदी आएगी, कहीं राजविग्रह (राजनैतिक अस्थिरता – मंत्रिमण्डलों में परिवर्तन) जैसी स्थिति सामने आ सकती है।

सस्येश बुध का फल
बुध का स्वभाव राजकुमारों जैसा होता है। राजकुमार अपनी प्रजा से अधिक प्रेम करता है। इसके अनुसार इस वर्ष वर्षा उत्तम होने के योग बनेंगे। प्रजाजन में सुख समृद्धि व शांति का वातावरण रहेगा। ब्राह्मण वर्ग के लिए यह वर्ष विशेष अनुकृपा वाला रहेगा। धार्मिक अनुष्ठानों और ज्योतिषीय कार्यों में संलग्न होकर इस वर्ष ब्राह्मण वर्ग अच्छा धन अर्जित कर पाएंगे।

धान्येश चंद्र का फल
इस वर्ष गेहूं आदि धान्य एवं सरसों, सोयाबीन आदि तिलहनी पदार्थों का उत्पादन जबर्दस्त होने का अनुमान है। दुग्ध पदार्थों में अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि होगी। प्रजा में सौख्यता बनी रहेगी। दूर देशों से व्यापार बढ़ेगा।

मेघेश सूर्य का फल
यह वर्ष फसलोत्पादन के लिए श्रेष्ठ रहेगा। चावल, जौ. चना एवं इक्षु (शक्कर) आदि का उत्पादन अच्छा होगा। किंतु प्रजा रोगभय से त्रस्त रहेगी। महंगाई बढ़ेगी। इस कारण सरकारों के प्रति जनता का गुस्सा फूटेगा।

फलेश शनि का फल
कहीं-कहीं वर्षा की कमी होने पर तृण-घास, पुष्प व फलादि की उत्पत्ति कम होगी। कुछ क्षेत्रों में ओलावृष्टि व शीतलहर (हिमपात) होने से खड़ी फसलों को नुकसान होगा। जनता संक्रामक रोगों से पीड़ित होगी। भूकंप, जलप्लावन, पश्चिमी देशों में या देश के पश्चिमी राज्यों में वायुयान दुर्घटना, दक्षिण के प्रदेशों में ट्रेन दुर्घटना होगी।।

रसेस शुक्र
रस पदार्थों का स्वामी इस बार शुक्र रहेगा। इसलिए यह वर्ष मिठास भरा रहेगा। यह मिठास रिश्तों, संबंधों में भी बनी रहेगी। क्योंकि इन सब चीजों पर शुक्र का ही अाधिपत्य होगा। हालांकि रिश्तों को कलंकित करने वाली अनेक दिल दहला देने वाली घटनाएं भी सामने आएंगी।

धनेश मंगल का फल
धन का अधिपति मंगल रहेगा। इस कारण इस साल प्रॉपर्टी के कारोबार में बेतहाशा वृद्धि होगी। शेयर मार्केट में रियल एस्टेट, कृषि, टेक्नोलॉजी के शेयरों में जबर्दस्त उछाल रहने वाला है। वस्तुओं में तेजी-मंदी अधिक होगी, विशेषकर वायदा-हाजिर शेयर के व्यापार में उतार चढ़ाव (उठापटक) बनी रहेगी। गेहूं, चना आदि तुष धान्यों की प्रकृति प्रकोप से हानि होगी। सरकार की रीति-नीति सुयोजित नहीं होने से विदेशी मुद्रा भण्डार में कुछ कमी आएगी।

दुर्गेश (सेनापति) शनि का फल
विश्व के अनेक देशों के बीच टकराव होगा। सरकारें एक-दूसरों पर बड़े करारोपण करेंगी जिससे विवादित स्थितियां पैदा होंगी। राजविग्रह (राजनीतिक लड़ाई). गृहयुद्ध उपद्रव, विरोध, हड़ताल, प्रदर्शन, रैलियां, चक्काजाम आदि से सामान्य प्रजाजन विचलित होंगे, जनता में भी वैर-विरोध बढ़ेगा।

किसको कौन सा पद
सूर्य- राजा- राष्ट्रपति राष्ट्राध्यक्ष
सूर्य- मंत्री- प्रधानमंत्री शासनाध्यक्ष
बुध- सस्येश- वर्षा ऋतु की फसलों का स्वामी
चंद्र- धान्येश- शरद ऋतु की फसलों का स्वामी
सुर्य- मेघेश- मेघ वर्षा का स्वामी
शुक्र- रसेश- रसपदार्थों का स्वामी
बुध- नीरसेश- धातु वस्त्रादि का स्वामी
शनि- फलेश- समग्र फलों का स्वामी
मंगल- धनेश- धन एवं कोष का स्वामी
शनि- दुर्गेश- रक्षा व सेनानायक

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घर की बिगड़ी दशा सुधारने के लिए करें दशामाता पूजन


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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चैत्र माच के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के दिन दशामाता का पूजन किया जाता है। यह पूजन विशेषकर सुहागिन महिलाएं अपने घर की बिगड़ी दशा सुधारने के लिए करती हैं। इस दिन महिलाएं परिवार की सुख-समृद्धि, संतान सुख, धन-धान्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखकर दशामाता का पूजन करती हैं। इस बार यह व्रत 24 मार्च 2025 सोमवार को किया जाएगा।

दशामाता कौन हैं?
दशामाता को शक्ति और सौभाग्य की देवी कहा गया है। कुछ स्थानों पर इन्हें माता लक्ष्मी या माता पार्वती का स्वरूप भी माना जाता है। दशा का अर्थ ‘दशा’ या ‘भाग्य’ से जुड़ा हुआ है, और यह व्रत व्यक्ति की जीवन दशा को सुधारने और समृद्धि प्रदान करने के लिए किया जाता है।

दशामाता व्रत एवं पूजा विधि
1. व्रत का संकल्प
• प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
• व्रत का संकल्प लें और दशामाता से परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।
2. पूजन विधि
• घर के किसी पवित्र स्थान पर एक लकड़ी के पटिए पर गेहूं का ढेर रखकर उस पर दशामाता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
• हल्दी-कुंकुम, अक्षत, पुष्प और धूप-दीप से दशामाता का पूजन करें।
• दशामाता कथा का पाठ करें।
• परिवार के सभी सदस्यों की सुख-समृद्धि के लिए विशेष प्रार्थना करें।
• इस दिन कच्चे सूत का दस तार का डोरा लेकर पीपल के पेड़ की पूजा करें और यह डोरा महिलाएं अपने गले में बांध लें।
3. विशेष परंपराएं
• कुछ स्थानों पर व्रत करने वाली महिला गेहूं के आटे से दीपक बनाकर उसमें घी का दीप जलाती हैं।
• इस दिन नमक रहित भोजन (सादा भोजन या फलाहार) करने का नियम होता है।
• परिवार के बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया जाता है और जरूरतमंदों को अन्नदान भी किया जाता है।
• इस दिन बाजार से कोई वस्तु नहीं खरीदी जाती है। जो खरीदना हो एक दिन पूर्व खरीद लें। कहने का तात्पर्य यह है कि इस दिन अपने घर की लक्ष्मी को बाहर नहीं ले जाया जाता है।

दशामाता व्रत कथा
पुराने समय की बात है, एक गांव में एक गरीब दंपती रहते थे। उनकी स्थिति बहुत ही दयनीय थी। एक दिन महिला ने अपने पति से कहा, “हमारे घर में धन-दौलत नहीं है, न खाने के लिए पर्याप्त अन्न है। कृपया कोई उपाय बताइए जिससे हमारे घर की दशा सुधर सके।”
पति ने कहा, “हे देवी! मैं गुरु बृहस्पति देव की उपासना करने के लिए तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं। शायद इससे हमारी स्थिति सुधर जाएगी।” इतना कहकर व्यक्ति तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़े।

इधर महिला अपनी स्थिति से बहुत परेशान थी। एक दिन जब वह जंगल में गई, तो उसने वहां कुछ स्त्रियों को पीले वस्त्र धारण कर बृहस्पति देव की पूजा करते हुए देखा। उसने उन स्त्रियों से पूछा, “आप यह किसकी पूजा कर रही हैं?”
स्त्रियों ने उत्तर दिया, “हम दशामाता और बृहस्पति देव की पूजा कर रहे हैं। जो भी स्त्री सच्चे मन से इनकी पूजा करती है, उसकी सभी परेशानियाँ दूर हो जाती हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है।”

महिला ने भी यह व्रत करने का निश्चय किया। उसने बृहस्पति देव की विधिपूर्वक पूजा की और पीले रंग के धागे को अपने घर में बांधा। कुछ ही दिनों में उसकी स्थिति में सुधार होने लगा। उसके घर में धन-धान्य की वर्षा होने लगी, और सुख-समृद्धि लौट आई।
जब उसके पति तीर्थ यात्रा से लौटे, तो उसने अपने घर को सुंदर और समृद्ध देखकर आश्चर्य से पूछा, “यह सब कैसे हुआ?”
तब महिला ने उन्हें दशामाता के व्रत और पूजा के बारे में बताया।

दशामाता व्रत के लाभ
• यह व्रत परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार करता है।
• घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
• महिलाएं इसे पति की लंबी उम्र और संतान सुख के लिए करती हैं।
• यह व्रत नकारात्मक ऊर्जा और दोषों को दूर करता है।
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गज पर आएंगी मां दुर्गा, बनेगा लक्ष्मी बरसाने वाला योग


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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गज पर आएंगी मां दुर्गा, बनेगा लक्ष्मी बरसाने वाला योग

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से चैत्र वासंतिक नवरात्रि प्रारंभ होती है। यह नवरात्रि 30 मार्च 2025 रविवार से प्रारंभ हो रही है। रविवार से प्रारंभ होने के कारण इस बार देवी दुर्गा के आगमन का वाहन गज अर्थात् हाथी होगा। हाथी पर देवी दुर्गा के आने का अर्थ है कि यह धन और लक्ष्मी बरसाने वाला योग बन रहा है। इस योग में देवी का पूजन करना अत्यंत लक्ष्मीप्रदायक होगा। इस दिन सर्व ऐश्वर्य प्रदान करने वाला ऐंद्र योग भी रहेगा। इस कारण यह दिन अत्यंत ही श्रेष्ठ बन गया है।

कैसे तय होता है देवी का वाहन
शास्त्रों के अनुसार जिस दिन नवरात्रि प्रारंभ होती है उस दिन से देवी के आगमन का वाहन तय होता है। इसी प्रकार जिस दिन नवरात्रि पूर्ण होती है अर्थात् नवमी के दिन जो वार होता है उसके अनुसार देवी के जाने का वाहन तय होता है। इस संबंध में देवी भागवत पुराण में एक श्लोक दिया हुआ है-

शशि सूर्य गजारूढ़ा, शनिभौमै तुरंगमे।
गुरौशुक्रेच दोलायां, बुधे नौकाप्रकीर्तिता।।

श्लोक के अनुसार रविवार और सोमवार का वाहन गज, शनिवार और मंगलवार का वाहन घोड़ा, गुरुवार और शुक्रवार का डोली और बुधवार का वाहन नौका होता है। इस बार नवरात्रि का प्रारंभ रविवार को हो रहा है इसलिए देवी के आने का वाह गज रहेगा।

गज पर आने का अर्थ
देवी की सवारी ‘गज’ को लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। महालक्ष्मी के सभी स्वरूपों में गजलक्ष्मी को सर्वाधिक महत्वपूर्ण और सुख-समृद्धि, धन में वृद्धि करने वाला कहा गया है। गज पर दुर्गा का आना चारों ओर समृद्धि आने का सूचक है। इसलिए साधक और देवी भक्त यदि इस नवरात्रि में पूर्ण सात्विकता का पालन करते हुए देवी दुर्गा के साथ मां लक्ष्मी का पूजन करेंगे तो उनका घर सुख-समृद्धि से भर जाएगा। अभाव में जीवन व्यतीत कर रहे लोगों के लिए यह स्वर्णिम अवसर है जब वे देवी को प्रसन्न करके अपनी अलक्ष्मी को दूर कर सकते हैं।

महालक्ष्मी योग में करें गजलक्ष्मी को प्रसन्न
इस बार वासंतिक नवरात्रि में तृतीया तिथि का क्षय होने के कारण नवरात्रि आठ दिन की ही रहेगी। ये आठों दिन विशिष्ट और अष्ट लक्ष्मी को प्रसन्न करने वाले रहेंगे। आठों दिन मां लक्ष्मी का पूजन करके मखाने की खीर का नैवेद्य लगाएं और श्रीसूक्त का पाठ करें। इस नवरात्रि में स्फटिक या पारद का श्रीयंत्र स्थापित करें और उसका नित्य पूजन करें।

नवरात्रि के आठ दिन
30 मार्च- प्रतिपदा, घट स्थापना, शैलपुत्री पूजन
31 मार्च- द्वितीया, मत्स्य जयंती, गणगौर तृतीया, ब्रह्मचारिणी और चंद्रघंटा पूजन
1 अप्रैल- चतुर्थी, विनायक चतुर्थी, कुष्मांडा पूजन
2 अप्रैल- पंचमी, लक्ष्मी पंचमी व्रत, स्कंदमाता पूजन
3 अप्रैल- षष्ठी, स्कंद षष्ठी, यमुना जयंती, कात्यायनी पूजन
4 अप्रैल- सप्तमी, कालरात्रि पूजन
5 अप्रैल- अष्टमी, दुर्गाष्टमी, अशोकाष्टमी, महागौरी पूजन
6 अप्रैल- नवमी, रामनवमी, नवरात्रि पूर्ण, सिद्धिदात्री पूजन

ऐश्वर्यशाली ऐंद्र योग भी इसी दिन
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन सर्व ऐश्वर्य प्रदान करने वाला ऐंद्र योग भी रहेगा। यह योग सूर्योदय से लेकर सायं 5:53 बजे तक रहेगा। पूरे दिन ऐंद्र योग रहने के कारण इस दिन ऐश्वर्य योग बना है, जिसमें देवी का पूजन करने से इंद्र के समान ऐश्वर्यों की प्राप्ति होगी। सुख-सम्मान, पद, प्रेम और आकर्षण की प्राप्ति होगी।

30 मार्च के घट स्थापना के मुहूर्त
चर : प्रात: 7:55 से 9:27 तक
लाभ : प्रात: 9:27 से 10:59 तक
अमृत : प्रात: 10:59 से दोप 12:31 तक
अभिजित : दोप 12:07 से 12:56 तक
शुभ : दोपहर 2:03 से 3:36 तक
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17 मार्च को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी, ये उपाय करेंगे गणेशजी को प्रसन्न


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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17 मार्च को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी, ये उपाय करेंगे गणेशजी को प्रसन्न
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की संकट चतुर्थी को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। सभी चतुर्थियों में यह चतुर्थी भगवान श्रीगणेश को अत्यंत प्रिय है। इस दिन भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए भक्त कठिन व्रत-उपवास तो करते ही हैं लेकिन इस दिन अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए अनेक उपाय भी किए जाते हैं। भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से संकट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यह चतुर्थी 17 मार्च 2025 सोमवार को आ रही है। इस दिन चंद्रोदय उज्जैन के समयानुसार रात्रि 9 बजकर 16 मिनट पर होगा।

इस व्रत की पूजा विधि और व्रत के नियम लोग जानते ही हैं, हम यहां विभिन्न कार्यों और कामनाओं की पूर्ति के लिए गणेशजी से जुड़े पूजा विधान और मंत्र प्रयोग दे रहे हैं, जिन्हें सात्विक रूप से घर में ही करके गणेशजी को प्रसन्न किया जा सकता है-

धन वृद्धि और धन प्राप्ति के लिए
गणेशजी का पूजन सदैव देवी महालक्ष्मी के साथ किया जाता है। भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के दिन दिन में दो बार आपको यह प्रयोग करना है। एक बार प्रात:काल और दूसरा सायंकाल। इस चतुर्थी के दिन गणेशजी के सिंदूरी रंग के चित्र या मूर्ति की स्थापना करके उनका पूजन करें। दूर्वा भेंट करें और मंत्र ऊं नमो गणपतये कुबेरयेकद्रिको फट् स्वाहा, इस मंत्र का एक माला स्फटिक की माला से जाप करें। फिर देखिए आपके घर में धन के भंडार भरने लगते हैं।

आकर्षण प्रभाव बढ़ाने और सभी को वश में करने के लिए
आज के जीवन में आपका लोकप्रिय और सभी का प्रिय होना आवश्यक हो गया है। यदि आप किसी को प्रभावित नहीं कर पाते हैं तो आपके अनेक काम अटके रह सकते हैं। जब किसी को प्रभावित कर लेते हैं तो आपके काम भी सहज रूप से होने लगते हैं। गणेशजी को प्रसन्न करने के अपने आकर्षण में वृद्धि करने के लिए निम्न मंत्र का प्रयोग करें-
ऊं श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा
इस मंत्र को गणेशजी को एक-एक दूर्वा अर्पित करते हुए 108 बार जपें। मंत्र जप करते समय अपने मस्तक और कंठ पर सिंदूर का तिलक लगाएं।

संतान प्राप्ति के लिए
कई दंपतियों को विवाह के लंबे समय बाद तक संतान नहीं होती है। ऐसे दंपतियों के लिए यह भालचंद्र संकष्ट चतुर्थी व्रत अत्यंत विशेष है। इस चतुर्थी का विधिवत व्रत रखें और संतान गणपति स्तोत्र के पाठ दंपति साथ बैठकर करें। इस स्तोत्र के 51 या 108 पाठ करें और गणेशजी के बाल स्वरूप का पूजन करें।

विद्या और व्यापार के लिए
शिक्षा में सफलता और व्यापार में वृद्धि के लिए संकट चतुर्थी के दिन गणेशजी की हरे रंग की मूर्ति को स्थापित करके उसका पूजन करें। गणेशजी को दूर्वा अर्पित करें। मीठी बूंदी का भोग लगाएं।

शीघ्र विवाह के लिए
यदि युवक-युवतियों के विवाह में बाधा आ रही है तो इस दिन गणेशजी की पीले रंग की मूर्ति घर में स्थापित करें। पीले पुष्पों से गणेशजी का श्रृंगार करें, पीली मिठाई का नैवेद्य लगाएं और गणेशजी का तिलक हल्दी से करें। इस हल्दी का तिलक युवक या युवती अपने मस्तक पर करें और फिर ऊं सर्वेश्वराय नम: मंत्र का जाप हल्दी की माला से करें। पांच माला जाप करने के बाद गणेशजी की मूर्ति को विसर्जित कर दें।

विवाह के लिए दूसरा प्रयोग
केले के पेड़ के नीचे गणेशजी की पीले रंग की मूर्ति को स्थापित करके पूजन करें और ऊं महाकर्णाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्ने दंती प्रचोयदात, मंत्र का 108 बार जाप करें। केले के वृक्ष में हल्दी का पानी डालें। शीघ्र विवाह का मार्ग खुलेगा।
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Holika Dahan 2025: कब जलेगी होलिका? जानिए तिथि और समय


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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* रात में 10:37 बजे भद्रा समाप्ति के पश्चात किया जाएगा होलिका दहन
* 14 मार्च को भी पूर्णिमा के मान के चलते पूरे देश में 15 को खेली जाएगी होली

इंदौर। होलिका दहन और होली खेलने को लेकर इस बार फिर मतभेद उभर रहे हैं। हालांकि यह स्थिति देशीय समयमान के कारण बन रही है। इसका अर्थ यह हुआ कि देश के अलग-अलग भागों में सूर्योदय का समय अलग-अलग होने के कारण तिथियों में घट-बढ़ होने से यह स्थिति बनी है।

इस बार काशी और देश के अन्य भागों में अलग-अलग दिन होली मनाई जाएगी। काशीवासी जहां परंपरानुसार 13 मार्च को होलिका दहन करके 14 मार्च को रंगोत्सव मना लेंगे, वहीं शेष देश में अगले दिन 14 मार्च को होलिका दहन करने के बाद 15 मार्च को रंगोत्सव मनाया जाएगा। इस बार यह अंतर पूर्णिमा तिथि के मान के चलते हो रहा है।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष, ज्योतिषाचार्य प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय, प्रो. विनय कुमार पांडेय व प्रो. गिरिजाशंकर त्रिपाठी ने बताया कि इस बार फाल्गुन पूर्णिमा 13 मार्च को प्रात: 10:02 बजे लगेगी, जो अगले दिन 14 मार्च को प्रात: 11.11 बजे तक रहेगी। रात्रिव्यापिनी पूर्णिमा में ही होलिका दहन का विधान होने के कारण होलिका दहन तो 13 मार्च की रात में ही हो जाएगा और इसी के साथ काशी में परंपरानुसार होलिकोत्सव आरंभ हो जाएगा, लेकिन होली खेलने का विधान शास्त्रानुसार चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में होने के चलते अगले दिन 15 मार्च को पूरे देश मे रंगोत्सव व धुरेंडी की धूम होगी। 15 मार्च को उदयातिथि में प्रतिपदा दोपहर 12.48 बजे तक है।

काशी में चौसठ देवी के पूजन व परिक्रमा की है परंपरा
काशी में होलिका दहन के पश्चात सुबह होते ही 64 योगिनियों यानी 64 देवी का दर्शन व परिक्रमा करते हुए होली खेलने की मान्यता है। यह परिक्रमा व पूजन होलिका दहन की ठीक सुबह आरंभ हो जाता है, इसलिए काशीवासी पूर्णिमा हो या प्रतिपदा होलिका दहन होते ही होली मनाना आरंभ कर देते हैं, जबकि शेष देश में शास्त्रानुसार रंगोत्सव चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को होता है, इसलिए अनेक बार ऐसा होता है कि काशीवासी एक दिन पूर्व होली मना लेते हैं, जबकि शेष देश दूसरे दिन होली मनाता है। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। चूंकि, होलिका दहन पूर्णिमा व्यापिनी रात्रि में होता है, इसलिए यह 13 की रात्रि में हो जाएगा और चैत्र कृष्ण प्रतिपदा उदयातिथि में 15 मार्च को मिलेगी, अतएव पूरे देश में रंगोत्सव 15 को होगा।

रात 10.37 बजे के बाद होगा होलिका दहन का मुहूर्त
काशी के विद्वान ज्योतिषाचार्यों ने बताया कि 13 मार्च को पूर्णिमा की तिथि प्रात: 10.02 बजे आरंभ हो जा रही है, लेकिन इसके साथ ही भद्रा लग जा रही है। भद्रा में होलिका दहन का निषेध है। भद्रा रात 10.37 बजे समाप्त होगी, इसके पश्चात होलिका दहन किया जा सकेगा। प्रो. गिरिजाशंकर त्रिपाठी ने बताया कि चूंकि शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन अर्धरात्रि के पूर्व कर लिया जाना उचित होता है। अत: इसे रात 10.37 बजे के पश्चात रात 12 बजे के पूर्व कर लिया जाना चाहिए। होलिकादहन 13 की रात्रि में होने के पश्चात धुरड्डी व रंगोत्सव के लिए प्रतिपदा की तिथि 15 मार्च को मिलेगी।

ब्रज के मंदिरों में होली 14 मार्च को
जासं, मथुरा : ब्रज में मथुरा, वृंदावन के साथ ही अन्य स्थानों पर मंदिरों में 14 मार्च को होली होगी। बरसाना के राधारानी मंदिर, नंदगांव के नंदबाबा मंदिर, गोवर्धन के मंदिरों के साथ ही श्रीकृष्ण जन्मस्थान, ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर और प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर में 14 मार्च को ही होली मनाई जाएगी। इसकी तैयारियां मंदिरों में तेज हो गई हैं।

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माघी पूर्णिमा : सौभाग्य व शोभन योग में संगम में लगेगी पुण्यदायी डुबकी


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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12 फरवरी 2025, बुधवार को है महाकुंभ का पांचवां स्नान पर्व
स्नान करने के बाद महाकुंभ मेले से विदा होने लगेंगे संत और कल्पवासी

महाकुंभ नगर : प्रयागराज में इन दिनों विश्व का सबसे बड़ा आस्था का समागम महाकुंभ लगा हुआ है। दैहिक, दैविक, भौतिक तापों (कष्टों) से मुक्ति, मनोवांछित फलों की प्राप्ति की संकल्पना को पूरा करने के लिए देश-विदेश के करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना, सरस्वती के त्रिवेणी संगम के पवित्र जल में अध्यात्म की पुण्यदायी डुबकी लगा चुके हैं। महाकुंभ में अभी भी स्नानार्थियों के आने का क्रम जारी है।
महाकुंभ का पांचवां स्नान पर्व माघी पूर्णिमा 12 फरवरी 2025 बुधवार को पड़ रहा है। इस बार माघी पूर्णिमा पर ग्रह-नक्षत्रों का अद्भुत योग बन रहा है। इस शुभ योग में पुण्य की डुबकी लगाने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु संगम नगरी पहुंच रहे हैं। पंचांगों के अनुसार 11 फरवरी की शाम 6 बजकर 54 मिनट से पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो जाएगी, जो 12 फरवरी को शाम 7 बजकर 22 मिनट तक रहेगी। इस कारण बुधवार को पूरे दिन पूर्णिमा का संयोग रहेगा। इसके अलावा 12 फरवरी को शाम 7.34 बजे तक आश्लेषा नक्षत्र और सुबह 8:05 तक सौभाग्य योग रहेगा। इसके बाद शोभन योग लग जाएगा। कुंभ राशि में बुध व शनि, मीन राशि में शुक्र व राहु गोचर करेंगे। यह अत्यंत उत्तम योग माना जाता है। इस पुण्यदायी योग में पवित्र संगम में डुबकी लगाने से अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होगी और समस्त पापों का क्षय होगा।

समाप्त होगा कल्पवास
माघी पूर्णिमा स्नान पर्व के साथ संगम क्षेत्र में एक महीने से चल रहा कल्पवास समाप्त हो जाएगा। स्नान के बाद अधिकतर संत व श्रद्धालु मेला क्षेत्र से प्रस्थान कर जाएंगे।

स्नान-दान का है विशेष महत्व
माघ महीने की पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। पूर्णिमा के बाद फाल्गुन मास की शुरुआत हो जाती है। पौराणिक वर्णन के अनुसार इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने मत्स्य के रूप में अवतार लिया था। इस दिन गंगा स्नान, दान करने और भगवान सत्यनारायण की कथा सुनने, भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और चंद्रदेव की पूजा करने का विशेष महत्व है। माघी पूर्णिमा पर गाय, तिल, गुड़ और कंबल का दान विशेष पुण्य फल देता है। मोक्ष की कामना रखने वालों को इस दिन संगम और गंगा में डुबकी अवश्य लगाना चाहिए। जो गंगा आदि पवित्र नदियों में न जा पाएं उन्हें अपने घर में गंगा जल डालकर उस पानी से स्नान करना चाहिए।

चार दिन बन रहा है अभिजीत योग, धन बरसाने वाला संयोग


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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माघ मास में सूर्य के अभिजीत नक्षत्र में प्रवेश करने के साथ ही अत्यंत शुभ योग का निर्माण हो रहा है जिसे अभिजीत राजयोग कहा जाता है। मुख्य नक्षत्र 27 होते हैं किंतु अभिजीत की शुभता और श्रेष्ठ फलों के कारण इसे 28वें नक्षत्र के रूप में शामिल किया गया है। सूर्य जब भी इस नक्षत्र में आता है तब यह समय अत्यंत श्रेष्ठ और उत्तम होता है। इसमें धन प्रदायक योग बनता है। लक्ष्मी योग बनता है और कुबेर योग बनता है। अभिजीत नक्षत्र का स्वामी ब्रह्मा और ग्रह बुध होता है।

सूर्य 20 जनवरी 2025 सोमवार को रात्रि में 10 बजकर 5 मिनट पर अभिजीत नक्षत्र में प्रवेश करने वाला है और यह 24 जनवरी को मध्य रात्रि के बाद (25 जनवरी) 1 बजकर 42 मिनट पर अभिजीत नक्षत्र को छोड़ देगा। इस प्रकार चार दिन का अत्यंत श्रेष्ठ मुहूर्त बन रहा है। इस महामुहूर्त में प्रारंभ किया गया कोई भी कार्य अत्यंत शुभ फलदायी होता है। इन चार दिनों में धन प्रदायक योग भी बनता है इसलिए यदि आप कहीं पैसों का निवेश करना चाहते हैं तो अवश्य करें लाभ होगा। इसके अलावा अनेक उपाय हैं जो इस मुहूर्त में किए जा सकते हैं।

अभिजीत नक्षत्र और इसका महत्व
ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार प्रजापति दक्ष की 27 कन्याओं से चंद्र ने विवाह किया था। ये 27 कन्याएं 27 नक्षत्र हैं और इनका एक भाई है जो अभिजीत है। इसे 28वें नक्षत्र की संज्ञा दी गई है। इस नक्षत्र की गिनती सर्वश्रेष्ठ शुभ नक्षत्रों में होती है। सूर्य जब भी अभिजीत नक्षत्र में गोचर करता है तब मनुष्यों में आत्मविश्वास की अधिकता रहती है। इस कारण सारे काम सफलतापूर्वक पूरे होते हैं। इस नक्षत्र में शुभ कार्य करना श्रेष्ठ रहता है। उन कार्यों में सफलता मिलती है। सगाई, विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, वाहन, भूमि-भवन संपत्ति की खरीदी करना श्रेष्ठ रहता है। इस नक्षत्र के दौरान धन का निवेश करना चाहिए।

चार दिन के श्रेष्ठ अभिजीत मुहूर्त समय
21 जनवरी, मंगलवार : दोपहर 12:16 से 1:00 बजे
22 जनवरी, बुधवार : दोपहर 12:17 से 1:00 बजे
23 जनवरी, गुरुवार : दोपहर 12:17 से 1:01 बजे
24 जनवरी, शुक्रवार : दोपहर 12:17 से 1:01 बजे

अभिजीत नक्षत्र में क्या करें
1. सूर्य के अभिजीत नक्षत्र में गोचर के दौरान गेहूं और गुड़ का दान करने से सूर्य की पीड़ा शांत होती है और मनुष्य को मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।
2. यदि पिता से विवाद चल रहा हो तो अभिजीत नक्षत्र के दौरान लाल चंदन की माला धारण करें और सूर्य को तांबे के कलश में लाल पुष्प डालकर जल का अर्घ्य दें। इससे पिता से संबंध सुधरने लगते हैं।
3. साहस, पराक्रम की प्राप्ति और शत्रुओं को परास्त करने के लिए सूर्य के अभिजीत नक्षत्र में गोचर करने के दौरान हर दिन 12 बार आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
4. धन की प्राप्ति के लिए सूर्य के अभिजीत नक्षत्र में गोचर के दौरान हर दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करना चाहिए।
5. भगवान श्रीहरि विष्णु को पीले पुष्प अर्पित करने से धन संबंधी समस्या दूर हो जाती है।
6. जिन लोगों का जन्म अभिजीत नक्षत्र में हो वे इन दिनों में अपने घर में सूर्य यंत्र की स्थापना करके नित्य पूजन करें।

अभिजीत नक्षत्र में जन्म का फल
अभिजीत नक्षत्र में जन्म लेने वाले बच्चे की राशि मकर, राशि स्वामी शनि, वर्ण वैश्य, योनि नकुल और महावैर योनि सर्प होती है। अभिजीत नक्षत्र में जन्म लेने वाला जातक धार्मिक प्रकृति का होता है। चतुर, बुद्धिमान, आभूषण एवं रत्नों का प्रेमी, क्रोधी, पर्यटन में रुचि रखने वाला होता है। ऐसा जातक दृढ़ निश्चयी, उत्साही, शोधकर्ता, अाविष्कारक होता है।

14 जनवरी को सूर्यदेव करेंगे मकर में प्रवेश, पूरे दिन रहेगा पुण्यकाल


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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सूर्य विभिन्न राशियों में गोचर करते हुए माघ कृष्ण प्रतिपदा दिनांक 14 जनवरी 2025 मंगलवार को प्रात: 8 बजकर 54 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही धनुर्मास (मलमास) समाप्त होगा और उत्तरायण प्रारंभ होगा। खगोलीय और ज्योतिषीय दृष्टि से यह दिन वर्ष का अत्यंत विशेष दिन होता है। इस दिन से सूर्य की गति उत्तरायण होती है जो देवताओं का दिन होता है। मकर संक्रांति से विवाह, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।

मकर संक्रांति प्रवेश के समय पुनर्वसु नक्षत्र का चतुर्थ चरण, कर्क राशि, विष्कुंभ योग, तात्कालिक बालव करण और मकर लग्न रहेगा। इसलिए मकर संक्रांति का पुण्यकाल सूर्योदय प्रात: 7:10 से लेकर सूर्यास्त तक सायं 6:01 बजे तक रहेगा। इस दिन दान-पुण्य आदि कर्म किए जाएंगे।

दान का महत्व
मकर संक्रांति का दिन दान पुण्य करने के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन होता है। इस दिन किया गया दान राजसूय यज्ञ के पुण्य फल के बराबर होता है। इसलिए इस दिन गरीबों को यथाशक्ति भोजन, वस्त्र आदि देना चाहिए। गायों को चारा खिलाएं, पशुओं की सेवा करें, मछलियों को दाना डालें, पक्षियों के लिए दाना-पानी का प्रबंध करें। मकर संक्रांति के दिन यथाशक्ति नूतन पात्र, श्वेत तिल, श्वेत वस्त्र, श्वेत धान्य चावल आदि, धातु, सूखा अन्न, पकवान्न, दूध, पायस, गुड़, खिचड़ी तथा श्रीफल सहित दक्षिणा का दान करें। गायों को गोशाला में जाकर घास खिलाएं। पुण्यकाल की अवधि में सात्विक वृत्ति का निर्वाह करते हुए संयमपूर्वक रहें।

मकर संक्रांति पर क्या करें
मकर संक्रांति के पुण्यकाल में सफेद तिल मिश्रित जल से स्नान करें। यह स्नान पवित्र नदियों, सरोवरों में किया जाए तो अत्यधिक पुण्यदायी होता है। पवित्र नदियां आपके आसपास न हो तो अपने घर में ही गंगा, नर्मदा आदि नदियों का जल डालकर उन तीर्थों का स्मरण करते हुए स्नान करें। इसके बाद सूर्य को जल का अर्घ्य दें, शिवजी का अभिषेक करें। रुद्राभिषेक करें अथवा ऊं नम: शिवाय का उच्चारण करते हुए सामान्य जल से शिवजी का अभिषेक करें। इसके बाद सूर्यदेव की पूजा करें। आदित्यहृदय स्तोत्र, अष्टोत्तरशतनामात्मक सूर्यस्तोत्र, सूर्य सहस्रनामावली या वेदोक्त सूर्य सूक्त का विशेष पाठ करें। सूर्य के वैदिक-पौराणिक बीज मंत्र अथवा ऊं घृणि सूर्याय नम: का जाप करें। सूर्यसूक्त के मंत्रों से हवन करें।

किस राशि के लोग क्या दान करें
मेष : कंबल का दान करें।
वृषभ : सफेद रंग के वस्त्रों का दान करें।
मिथुन : हरे खड़े मूंग अथवा मूंग की खिचड़ी का दान करें।
कर्क : सफेद अनाज जैसे चावल या दूध का दान करें।
सिंह : गुड़ और गेहूं का दान करना लाभदायक रहेगा।
कन्या : हरे वस्त्र दान करें अथवा गायों को हरा चारा खिलाएं।
तुला : कंबल का दान करें, श्वेत वस्त्र दान करें।
वृश्चिक : फलों का दान करना लाभदायक रहेगा।
धनु : सूखा अनाज या फलों का दान करना चाहिए।
मकर : काले तिल का दान करें।
कुंभ : गुड़ के साथ काले तिल का दान करें।
मीन : फल, अनाज अथवा दूध-दही का दान करना चाहिए।

मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त
लाभ : प्रात: 11:15 से दोप 12:36
अभिजित : दोप 12:14 से 12:58
अमृत : दोप 12:36 से 1:57
लाभ : सायं 7:40 से रात्रि 9:19
प्रदोष : सायं 6:01 से 7:52

15 दिसंबर से लगेगा मलमास, बंद हो जाएंगे मांगलिक कार्य


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करने के साथ ही 15 दिसंबर 2024 से धनुर्मास प्रारंभ हो जाएगा। इसे मलमास या खरमास भी कहा जाता है। मलमास में सगाई, विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। इसके बाद सूर्य जब 14 जनवरी 2025 को मकर राशि में प्रवेश करेगा तब मलमास समाप्त होगा और मांगलिक कार्य पुन: प्रारंभ हो जाएंगे। यह मास सूर्य के दक्षिणायन का अंतिम मास भी होता है। सूर्य के मकर में प्रवेश करने के साथ ही उत्तरायण प्रारंभ हो जाता है।

सूर्य का धनु में प्रवेश और मकर संक्रांति
सूर्य प्रत्येक राशि में 30 दिन रहता है। इस प्रकार 12 महीनों में 12 राशियों में अपना भ्रमण पूरा कर लेता है। सूर्य 15 दिसंबर 2024 को रात्रि 10 बजकर 10 मिनट पर धनु राशि में प्रवेश करेगा। 30 दिन बाद 14 जनवरी 2025 को मकर राशि में प्रवेश करेगा। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का पर्व मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है क्योंकि इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है।

मलमास और मांगलिक कार्य
सूर्य जब-जब गुरु की राशि धनु और मीन में रहता है तब-तब मलमास होता है। चूंकि किसी भी शुभ और मांगलिक कार्य के लिए गुरु का शुद्ध होना आवश्यक है और जब गुरु की राशि में सूर्य आता है तब गुरु अस्त के समान निस्तेज और दूषित हो जाता है इसलिए इसे मलमास कहा जाता है और इसमें मांगलिक कार्य रोक दिए जाते हैं। इनमें मुख्य रूप से सगाई, विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि नहीं किए जाते हैं।

सूर्य का धनु में प्रभाव
सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करने के साथ ही सभी राशियों पर इसका शुभाशुभ प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव प्रत्येक जातक की अपनी जन्मकुंडली में सूर्य और गुरु की स्थिति के अनुसार पड़ता है। जिन जातकों की जन्मकुंडली में सूर्य शुभ स्थानों में हो और पाप ग्रहों राहु केतु की दृष्टि में न हो उन्हें शुभ प्रभाव मिलते हैं। जिनकी कुंडली में सूर्य के साथ राहु, केतु हो उन्हें इसके विपरीत परिणाम देखने को मिल सकते हैं। कुंडली में गुरु अस्त, नीच राशि में हो तो जातक को खराब परिणाम भोगने पड़ सकते हैं। मान-सम्मान, प्रतिष्ठा में कमी और संकटों का सामना करना पड़ सकता है।

धनुर्मास में क्या करें
सूर्य के धनु राशि में गोचर करने के दौरान भगवान विष्णु और सूर्य की आराधना करना चाहिए। हर दिन सूर्य को जल में लाल पुष्प या लाल चंदन डालकर अर्घ्य दें। भगवान विष्णु के नित्य दर्शन करके उन्हें पीले पुष्प अर्पित करें, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।

ये उपाय भी अवश्य करें
– आंकड़े का पौधा कहीं हो तो उसके आसपास सफाई करके सुंदर क्यारी बनाएं और पौधे का पूजन करके।
– मलमास में भगवान विष्णु की आराधना करना चाहिए। पूरे मास में श्रीहरि को पीले पुष्प और तुलसी अवश्य अर्पित करें।
– मलमास में पवित्र नदियों में स्नान करें। दान-पुण्य करें। गरीबों को भोजन करवाएं। पशु-पक्षियों के लिए दाना-पानी रखें।
– इस मास में सूर्य को प्रतिदिन तांबे के कलश में लाल पुष्प डालकर जल का अर्घ्य अर्पित करें।

शुक्र खराब है तो मिलेंगे ये संकेत, कैसे करें मजबूत


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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प्रत्येक मनुष्य के जीवन में शुक्र ग्रह का बड़ा महत्व होता है। शुक्र से ही धन-संपत्ति, सुख, पारिवारिक-दांपत्य सुख, संतान सुख और लग्जरी लाइफ मिलती है। आप लोगों के बीच में कितने लोकप्रिय होंगे यह भी शुक्र तय करता है। इसलिए शुक्र का मजबूत होना अत्यंत आवश्यक है। शुक्र की खराब स्थिति जीवन को नष्ट कर देती है। आइए जानते हैं आपकी कुंडली में शुक्र खराब हैं तो क्या लक्षण होते हैं और शुक्र को कैसे मजबूत किया जा सकता है।

खराब शुक्र के लक्षण
1. यदि आपकी कुंडली में शुक्र खराब है तो आप इसे आसानी से समझ सकते हैं। यदि अचानक लोग आपसे दूर जाने लगें, आपकी बातों को महत्व न दें और आपका कहना न मानें तो समझिए शुक्र खराब हो गया है।
2. यदि अचानक आपका आकर्षण प्रभाव कम होने लगे। विशेषकर विपरीतलिंगी व्यक्ति जो आपके करीब रहे हों वो अचानक दूर होने लगे तो समझिए शुक्र कमजोर हो गया है।
3. आपके चेहरे का आकर्षण खो जाए, आपके चेहरे पर चमक न रहे, किसी काम को करने की उत्तेजना, उत्साह आपमें न रहे, आपको जीवन नीरस सा लगने तो शुक्र में कहीं न कहीं गड़बड़ी हुई है।
4. यदि आपको यौन संबंध बनाने में रुचि न हो, अपने पार्टनर के साथ आप प्रेमपूर्ण व्यवहार नहीं कर पा रहे हैं। आपके अंदर प्रेम और कामेच्छा की कमी हो जाए तो निश्चित रूप से शुक्र खराब हुआ है।
5. आपकी लाइफ में लग्जरी नहीं आ पा रही है। खर्च अधिक हो रहा है, पैसों की बचत नहीं हो रही है तो भी यह कमजोर शुक्र का लक्षण है।
6. प्रेमी-प्रेमिकाओं में अनबन हो रही है, दोनों एक-दूसरे से दूर होने का सोच रहे हों और आपस में तालमेल का अभाव हो जाए तो शुक्र खराब हो गया है।

शुक्र को मजबूत कैसे करें
1. शुक्र को मजबूत करने के लिए अधिक से अधिक सफेद, पिंक या जामुनी रंग के कपड़े पहनें। शुक्रवार के दिन काले रंग के कपड़े पहनने से बचें।
2. हमेशा साफ-स्वच्छ रहें, अच्छा परफ्यूम या इत्र लगाएं। गंदे कपड़े बिलकुल न पहनें।
3. फटे हुए कपड़े, फटे हुए जूते-चप्पल न पहनें।
4. अपने मस्तक पर केसर का तिलक प्रतिदिन लगाएं।
5. शुक्रवार के दिन श्रीकृष्ण भगवान को चांदी की बांसुरी भेंट करें।
6. चांदी का कड़ा पहनें या चांदी का छल्ला अंगूठे में पहनें।
7. शुक्रवार के दिन सफेद चीजों का दान करें। जैसे दूध, दही, सफेद वस्त्र, मिश्री, चावल आदि।
8. शुक्रवार के दिन व्रत रखें और मां लक्ष्मी का पूजन करें।
9. शुक्रवार के दिन ऊं द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम: मंत्र का एक माला जाप स्फटिक की माला से करें।
10. घर में सफेद फूलों का पौधा लगाएं।
11. शुक्रवार के दिन चांदी के बर्तन में पानी पीएं।
12. स्त्रियों का अपमान न करें। शुक्रवार को स्त्रियों को सफेद मिठाई खिलाएं।
13. श्रीकृष्ण की पूजा करने से शुक्र को मजबूती मिलती है।
14. अपनी प्रेमिका या पत्नी को शुक्रवार के दिन परफ्यूम या चांदी का आभूषण भेंट करें।
15 . शिवजी को शुक्रवार के दिन दूध में मिश्री डालकर अभिषेक करें।