शुभ कार्यों में क्यों बांधते हैं आम के पत्तों की वंदनवार


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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सनातन संस्कृति जिनती वैज्ञानिक है उतनी कोई संस्कृति नहीं। हिंदू सनातन संस्कृति में प्रत्येक रीति-रिवाज के पीछे एक गहन विज्ञान छुपा होता है। यह बात अलग है कि आमजन को विज्ञान की भाषा समझ नहीं आती इसलिए हर बात को धर्म से जोड़कर बताया गया ताकि व्यक्ति किसी भी तरह उन वैज्ञानिक बातों को अपने जीवन में अपनाए और सुखी-निरोगी रहे। ऐसा ही एक विज्ञान शुभ कार्यों में घर के दरवाजे पर पत्तों की वंदनवार बांधने से जुड़ा है। यह वंदनवार आम के पत्तों या अशोक के पत्तों की बांधी आती है। कहीं कहीं केले के पत्तों की वंदनवार भी सजाई जाती है।

हिंदू धर्मशास्त्रों में प्राय: किसी भी शुभ कार्य की बात आती है तो द्वार पर वंदनवार बांधने को कहा जाता है। यह वंदनवार क्या होती है और क्यों बांधी जाती है। आखिर इसका विधान क्या है? क्या वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं। आज हम इसी पर चर्चा करते हैं।

किसी भी शुभ कार्य जैसे विवाह, सगाई, मुंडन, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश, भगवान सत्यनारायण की कथा और अन्य अनेक शुभ कार्यो के समय घर के द्वारों पर आम के पत्तों की वंदनवार सजाई जाती है। वास्तव में शास्त्र कहते हैं कि वंदनवार नकारात्मक शक्तियों को उस घर से दूर रखती है जहां इसे बांधा जाता है। मुख्य द्वार पर आम के पत्तों की वंदनवार बांधने का विधान ही इसलिए बनाया गया कि हमारे शुभ कार्यों की सिद्धि हो सके और नकारात्मक शक्तियां, विकार दूर रह सकें।

यह है वंदनवार का विज्ञान
हमारे भारत देश और अनेक पश्चिमी देशों में किए गए अनेक शोधों में यह बात सामने आई है कि आम के पत्ते लंबे समय तक आक्सीजन उत्सर्जित करते रहते हैं। इससे वातावरण शुद्ध रहता है और दूषित वायु के कण, प्रदूषण, विषैली गैसें आदि उस जगह प्रवेश नहीं कर पाती जहां आम के पत्ते हों। इसीलिए हमारे यहां शुभ कार्यो में आम के पत्तों की वंदनवार बांधी जाती है। अमेरिका में किए गए शोध में यह सिद्ध हुआ कि आम के पत्ते अन्य पत्तों की अपेक्षा 8 घंटें अधिक तक आक्सीजन देते रहते हैं।

वंदनवार के क्या हैं लाभ
– आम के पत्तों की वंदनवार बांधने से वातावरण शुद्ध बना रहता है।
– आम के पत्तों का स्पर्श मन और मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करता है।
– आम के पत्तों को शुभ कार्योँ में प्रयुक्त करने का उद्देश्य यह है कि वह सबसे ज्यादा और बहुत देर तक आक्सीजन देता है।
– हवन, यज्ञ आदि में आम की लकड़ी का उपयोग भी इसी उद्देश्य से किया जाता है।
– आम्र वृक्ष की छाल, पत्ते और इसके फूलों का उपयोग अनेक प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियों में किया जाता है।
– गृह प्रवेश के समय द्वार पर वंदनवार बांधने से अभीष्ट कार्य में बाधा नहीं आती और कार्य सिद्धि होती है।
– आम के पत्तों को माला के रूप में भगवान श्रीहरि को अर्पित करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
– आम के पत्तों का चयन करते समय ध्यान रखें कि वे टूटे-फटे, कटे हुए न हों। उनमें कीड़े आदि न लगे हों। पत्ते जालीदार न हों। साफ-सुथरे और साबुत पत्तों की ही माला या वंदनवार बनाई जानी चाहिए।

उत्पन्ना एकादशी के दिन ये उपाय करेंगे सारे संकट दूर


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को उत्पन्ना या उत्पत्ति एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। इस दिन एकादशी की उत्पत्ति हुई थी इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। इस एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि को बादाम का नैवेद्य लगाकर बादाम को प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए। उत्पन्ना एकादशी 26 नवंबर 2024 मंगलवार को आ रही है। हस्त नक्षत्र और प्रीति योग में आ रही यह एकादशी विशेष पूजनीय है और इसका व्रत करने से पारिवारिक सुख, सामंजस्य बना रहता है और सभी के बीच प्रीति रहती है। विधि विधान से व्रत रखकर उत्पन्ना एकादशी व्रत की कथा अवश्य सुनना चाहिए।

उत्पन्ना एकादशी व्रत की कथा
सतयुग में मूर नामक राक्षस था। वह त्रिलोक पर अपना आधिपत्य करना चाहता था। इसी क्रम में उसने देवताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र को अपने अधीन बना लिया। मूर के इस कृत्य से रक्षा की गुहार लगाने सभी देवता भगवान शंकर की शरण में पहुंचे। भगवान शंकर ने देवताओं को विष्णुजी के पास भेजा। विष्णुजी ने दानवों की सेना को तो परास्त कर दिया लेकिन बचकर मूर भाग गया। विष्णु ने मूर को भागता देखकर युद्ध बंद कर दिया और स्वयं बद्रिकाश्रम की गुफा में आराम करने लगे। मूर ने वहां पहुंचकर विष्णुजी को मारना चाहा तभी विष्णुजी के शरीर से एक कन्या का जन्म हुआ जिसने तत्काल मूर का वध कर दिया। उस कन्या ने भगवान विष्णु को बताया कि मैं आपके अंश से उत्पन्न शक्ति हूं। विष्णुजी ने प्रसन्न होकर उस कन्या को आशीर्वाद दिया कि तुम संसार के माया जाल में उलझे तथा मोह के कारण मुझसे विमुख प्राणियों को मुझ तक लाने में सक्षम बनोगी। तुम्हारी आराधना करने वाले प्राणी आजीवन सुखी रहेंगे। इस कन्या को भगवान विष्णु ने एकादशी नाम दिया।

उत्पन्ना एकादशी का समय
एकादशी प्रारंभ 26 नवंबर रात्रि 1:01
एकादशी पूर्ण 27 नवंबर रात्रि 3:30
व्रत का पारणा 27 नवंबर दोप 1:20 से 3:30

उत्पन्ना एकादशी के दिन क्या करें
1. उत्पन्ना एकादशी के दिन धन संबंधी संकट दूर करने के लिए किसी हनुमान मंदिर में लगे हुए पीपल के पेड़ से सात पत्ते लें। इन पत्तों पर अष्टगंध से श्रीं लिखें और इन पत्तों को एक मौली से बांधकर हनुमानजी के समक्ष रखें। 11 मिनट रखे रहने के बाद इन पत्तों को कुएं में डाल आएं। धन का संकट दूर होने लगेगा।

2. एक पीपल के पत्ते पर कपूर रखकर श्रीहरि विष्णु भगवान के समक्ष प्रज्वलित करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। इस उपाय को करने से आर्थिक तंगी शीघ्र दूर होने लगती है।

3. इस एकादशी के दिन विष्णु भगवान को तुलसी पत्र डालकर पंचमेवों का भोग लगाने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

4. उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप का पूजन करना चाहिए। माखन-मिश्री का भोग लगाकर उन्हें सुंदर मोरपंख सजाएं। आपकी सारी इच्छाएं पूरी होंगी।

कालभैरव को करें प्रसन्न, ये उपाय बचाएंगे संकटों से


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन कालभैरव जयंती मनाई जाती है। इसे कालभैरव अष्टमी और कालाष्टमी भी कहा जाता है। यह दिन भगवान शिव के रौद्र और भीषण रूप कालभैरव की उत्पत्ति का दिन होता है। कालभैरव की आराधना, पूजा, दर्शन करने से शत्रुओं से छुटकारा मिलता है, रोग मुक्ति होती और समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। इस दिन कालभैरव के मंदिर में जाकर उनकी पूजा अवश्य करनी चाहिए। कालभैरव अष्टमी 22 नवंबर 2024 शुक्रवार को आ रही है।

क्या करें
कालभैरव अष्टमी के दिन उपवास रखकर प्रदोषकाल में भैरवनाथ की यथाशक्ति पूजा करें, स्तोत्र पाठ और जप करें। बाद में प्रत्येक प्रहर पूजा कर भैरवदेव को अर्घ्य प्रदान करें तथा रात्रि जागरण करें। इस दिन छोटे बालकों (बटुकों) को मिष्ठान्न का भोजन करवाएं। काले श्वानों को मिठाई व तला हुआ नमकीन खिलाएं। इन उपायों से भैरव प्रसन्न होंगे और तात्कालिक संकटों से मुक्ति दिलाएंगे।

अपनी राशि के अनुसार करें उपाय
भैरवनाथ को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को अपनी राशि के अनुसार उपाय करने चाहिए।

मेष : सवा किलो काले उड़द मिट्टी के काले पात्र में रखकर कालभैरव मंदिर में चढ़ाकर आएं।

वृषभ : सवा किलो काले तिल मिट्टी के पात्र में भरकर कालभैरव मंदिर में भेंट करें और फल गरीबों को खिलाएं।

मिथुन : रसीले फलों का दान गरीबों को दें। भैरव को भी रसीले फलों का भोग अर्पित करें।

कर्क : गायों को हरा चारा खिलाएं और कालभैरव की प्रसन्नता के लिए तेल में तली पूड़ियां गाय को खिलाएं।

सिंह : मछलियों को आटे की गोली में काले तिल मिलाकर खिलाएं। कबूतरों को दाना डालें।

कन्या : तीखी, धारदार वस्तु, चाकू-तलवार आदि कालभैरव के मंदिर में भेंट करें।

तुला : कालभैरव अष्टमी के दिन जलसेवा करें। प्याऊ लगवाएं, गरीबों की सेवा करें। दवाई का प्रबंध करें।

वृश्चिक : अस्पतालों में गरीबों का उपचार करवाएं, दवाई का प्रबंध करें और उन्हें भोजन करवाएं।

धनु : 14 साल तक की उम्र के बालकों को मिठाई खिलाएं। तली हुई नमकीन पूड़ी भी खिलाएं।

मकर : तेल में तला हुआ नमकीन, मिक्चर, सेंव आदि कालभैरव को नैवेद्य लगाने के बाद गरीबों में बांटें।

कुंभ : तिल से बनी हुई मिठाई बच्चों को खिलाएं। रसीले फल जानवरों को खिलाएं।

मीन : काली गाय को घी लगी रोटियां खिलाएं। काले श्वानों को दूध-बिस्किट खिलाएं।

देवउठनी ग्यारस पर जगाएं अपना सोया हुआ भाग्य


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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12 नवंबर 2024 को देवउठनी ग्यारस पर न केवल भगवान विष्णु योग निद्रा से जागेंगे, बल्कि उनके साथ आप अपना सोया हुआ भाग्य भी जगा सकते हैं। कुछ उपाय आप इस दिन करेंगे तो आपकी किस्मत के दरवाजे खुल जाएंगे और आप जो चाहोगे वो मिल जाएगा। इन उपायों से आपके धन की कमी दूर होगी, खूब पैसा आएगा, जो काम करेंगे उसमें सफलता मिलेगी, विवाह में बाधा आ रही है तो वह भी दूर हो जाएगी, रोग दूर होगा, लक्ष्मी की कृपा आप पर बरसेगी। इनमें से आप एक या दो उपाय अवश्य करें निश्चित रूप से लाभ होगा।

1. देवउठनी ग्यारस के दिन एक विष्णु शंख लें, अपनी पूजा स्थान में एक चांदी के बर्तन में इस शंख को रखें। अच्छे से धोकर, पूजा करें और इसमें शकर भरकर रख दें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। इसके बाद अगले दिन इस शकर को निकालकर चींटियों की बांबी में डाल आएं। इससे आपके आर्थिक संकट दूर हो जाएंगी।

2. देवउठनी एकादशी के दिन शालिग्राम लाकर घर में रखें और विधिवत पूजा अर्चना करें। इससे धीरे-धीरे आपके सारे संकट दूर होने लगेंगे। पैसा आएगा, व्यापार में लाभ होगा और वैवाहिक जीवन में आ रही समस्याएं दूर हो जाएंगी।

3. देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी के पौधे में सायंकाल के समय घी का दीप लगाएं। इससे सुख –समृद्धि आएगी। विष्णु भगवान की कृपा प्राप्त होगी।

4. अपने सोए हुए भाग्य को जगाने के लिए देवउठनी ग्यारस के दिन पांच पीली कौड़ी लेकर इनका पूजन हल्दी से करें। इसके बाद ऊं विष्णवै नम: मंत्र की 11 माला जाप करके पीली कौड़ी को हल्दी की गांठ के साथ बांधकर रख लें। धन आने लगेगा।

5. धन की तंगी है तो देवउठनी ग्यारस के दिन पीपल के पांच पत्ते लें, इन पर अष्टगंध से अष्टदल कमल बनाएं। पीले पुष्पों से पूजन करें और ऊं अं वासुदेवाय नम: मंत्र का जाप करें। इसके बाद इन पत्तों को ले जाकर किसी कुएं में डाल आएं। खूब पैसा आने लगेगा।

6. देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के पूर्ण स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करना भी श्रेष्ठ रहता है। इस दिन श्रीकृष्ण का आकर्षक श्रृंगार कर मोर मुकुट सजाएं, माखन-मिश्री का भोग लगाएं।

7. देवउठनी एकादशी के दिन पीपल के पेड़ के नीचे सायंकाल प्रदोषकाल में सात दीपक में तिल का तेल भरकर प्रज्वलित करें। सोया हुआ भाग्य जाग जाएगा।

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मंगलवार को करें यह काम, खुल जाएगी किस्मत


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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यदि आप संकटों से घिरे हुए हैं, जी-जान से मेहनत करने के बाद भी धन नहीं आ रहा है, कर्ज में डूबते जा रहे हैं, रोग आपको या आपके परिवार को घेरे हुए है, बार-बार दुर्घटना हो रही है तो मंगलवार के दिन आपको ये उपाय अवश्य करने चाहिए।

अष्टसिद्धि, नवनिधि के दाता हनुमानजी महाराज स्मरण करने मात्र से किसी न किसी रूप में प्रकट होकर आपकी समस्याओं का समाधान अवश्य करते हैं। मंगलवार हनुमानजी का सबसे प्रिय दिन होता है, क्योंकि इसी दिन उनका जन्म हुआ था। मंगलवार को हनुमानजी से जुड़े उपाय करने से, उनकी विशेष पूजा करने से, उनके मंत्रों का जाप करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं और किसी न किसी रूप में आपकी समस्या का हल प्रदान करते हैं। आइए जानते हैं हनुमानजी को प्रसन्न करने के उपाय-

मंगलवार के दिन किसी ऐसे हनुमान मंदिर का चयन करें जो निर्जन स्थान में, जंगल में या शहर-गांव की सीमा से बाहर हो। ऐसे मंदिर में जाकर वहां साफ-सफाई करें। हनुमानजी को चमेली के तेल में घोलकर सिंदूर का चोला चढ़ाएं। उन्हें सुंदर लाल रंग की लंगोट पहनाएं। उत्तरीय वस्त्र पहनाएं। जनेऊ धारण करवाएं। आकर्षक श्रृंगार करें। चमेली के फूलों की माला पहनाएं। मीठे पान का बीड़ा भेंट करें। गुड़-चने का नैवेद्य लगाएं, श्रीफल अर्पित करें। फिर उसी मंदिर में बैठकर सात बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। इसके बाद उनसे अपने अभीष्ट कामना की पूर्ति का अनुरोध करें और फिर कर्पूर से आरती करें। आपकी सारी समस्याओं का समाधान सात दिन के अंदर हो जाएगा।

मंगलवार के दिन सिद्ध हनुमान कड़ा धारण करें। यह कड़ा पंचधातु से बना हुआ होना चाहिए। इस कड़े को हनुमानजी के चरणों में रखकर ऊं हं हनुमते नम: मंत्र की 11 माला से सिद्ध करें। मंगलवार के दिन इसे पहनने से आपके सारे संकट दूर हो जाएंगे। धन, संपत्ति, सुख, सम्मान, निरोगी शरीर की प्राप्ति होती है।

मंगलवार के दिन हनुमान यंत्र की स्थापना घर में करना चाहिए। यह यंत्र पंचधातु में बना हुआ होना चाहिए। इस यंत्र को घर के पूजा स्थान में रखकर इसका नित्य दर्शन-पूजन करने से सारे संकट दूर हो जाते हैं।

मंगलवार के दिन एक पानी वाला नारियल लें। इस पर सिंदूर से श्री राम लिखें। इसे आंकड़े के पत्तों में लपेटें और ऊपर से मौली से बांध दें। इस नारियल को हनुमानजी के चरणों में रखें और अपनी समस्याओं का समाधान करने की प्रार्थना करें। इसके बाद इस नारियल को ले जाकर नदी में विसर्जित कर आएं। नदी न हो तो तालाब, कुएं, बावड़ी में डाल आएं।

9 नवंबर कार्तिक अष्टमी पर करें दान, मिलेगा लाख गुना फल


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को महादानी अष्टमी या फलदानी अष्टमी भी कहा जाता है। शिवपुराण का कथन है कि इस अष्टमी के दिन श्रवण नक्षत्र की साक्षी में महायोग बनता है, जिसमें दान की गई वस्तुएं, धन, स्वर्ण आदि लाख गुना होकर मनुष्य को प्राप्त होता है। इस दिन दान करने वाले मनुष्यों को महा पुण्यफल की प्राप्ति होती है और वह कभी समाप्त न होने वाले स्वर्ण भंडार का मालिक बनता है। इसलिए इस दिन मनुष्यों को अपनी श्रद्धा और क्षमता के अनुसार धन, स्वर्ण, फल, खाद्य वस्तुओं का दान करना चाहिए।

किन्हें करें दान
कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन श्रेष्ठ ब्राह्मण को धन आदि का दान अवश्य देना चाहिए। यदि उत्तम ब्राह्मण उपलब्ध न हो तो किसी निर्धन परिवार, निशक्त परिवार को वस्तुओं का दान करें।

क्या है महत्व
शिव महापुराण के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान शिव और मां पार्वती पृथ्वी पर भ्रमण करने निकले। इस दौरान उन्होंने साधु और साध्वी का भेष बनाया और एक निर्धन व्यक्ति के द्वार पर जा पहुंचे। निर्धन व्यक्ति ने साधु और साध्वी को देखा तो हाथ जोड़कर आंखें में अश्रु लेकर बोला- महाराज मैं अत्यंत गरीब हूं। मेरे पर आपको देने के लिए कुछ नहीं है। इस पर साधु रूप में शिवजी ने कहा कि तुम्हारी कुटिया की छत पर जो सूखा फल पड़ा हुआ है वही हमें दे दो। व्यक्ति ने देखा तो छत पर सचमुच एक सूखा फल पड़ा हुआ था। उसने वह साधु को भेंट कर दिया। इस पर शिवजी ने आशीर्वाद दिया कि जा आज से तेरी गरीबी दूर हुई। तुझे ऐसे एक लाख स्वर्ण के फल प्राप्त होंगे। इतना कहकर शिवजी और मां पार्वती चले गए। उस निर्धन व्यक्ति के दिन फिर गए और उसे एक लाख स्वर्ण फल प्राप्त हुए।

नीचे दिए गए क्यूआर कोड पर आप भी दान करें राशि
आप पाठकों की सुविधा के लिए हम नीचे एक नंबर और क्यूआर कोड दे रहे हैं। गूगल पे, पेटीएम के माध्यम से आप इस महा अष्टमी के दिन धन का दान करें। आपका धन निशक्त, निर्धन और गरीबों तक पहुंचाया जाएगा। यह धन निर्धन लोगों को भोजन करवाने, उनके उपचार, गरीब बच्चों की शिक्षा जैसे पुनीत कार्य में खर्च किया जाएगा। इस दिन किया गया दान आपको एक लाख गुना होकर निश्चित रूप से प्राप्त होगा।

दीपावली पूजन मुहूर्त, गुरुवार 31 अक्टूबर 2024


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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कार्तिक अमावस्या पर 31 अक्टूबर 2024 गुरुवार को दीपावली मनाई जाएगी। इस दिन प्रदोषकाल में अमावस्या और मध्यरात्रि निशिथकाल में भी अमावस्या होने के कारण इसी दिन महालक्ष्मी पूजन होगा। इसलिए किसी भी प्रकार के भ्रम में न पड़ते हुए 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाएं।

31 अक्टूबर को अमावस्या दोपहर 3:52 बजे से प्रारंभ होगी जो 1 नवंबर को सायं 6:16 बजे तक रहेगी। 31 अक्टूबर को प्रदोष काल और निशिथकाल में अमावस्या मिलेगी। इसलिए यही दिन लक्ष्मीपूजन के लिए श्रेष्ठ रहेगा।

लक्ष्मी पूजन में क्या विशेष
लक्ष्मी पूजन में कुछ चीजों का विशेष महत्व होता है। सभी लोग पूजा तो अपनी परंपरा से प्राप्त विधि के अनुसार करते ही हैं किंतु लक्ष्मी पूजा में कुछ विशेष सामग्री होना आवश्यक है। जैसे लक्ष्मी की पूजा में कमल गट्टे की माला, लाल कमल का पुष्प, पीली-लाल कौड़ी, गोमती चक्र, मोती शंख या दक्षिणावर्ती शंख, केसर बिंदी लगाने के लिए होना चाहिए। मां लक्ष्मी को नैवेद्य में मखाने की खीर अर्पित करना चाहिए जिसमें गुलाब जल और गुलाब की पत्तियां डली हुई हों। पूजा में गुलाब की धूप और गुलाब के इत्र का प्रयोग भी करना चाहिए। लक्ष्मी पूजा के साथ गणेशजी और सरस्वती माता का पूजन भी अवश्य करना चाहिए। इस दिन पूजा में कलम-दवात, पेन, डायरी, झाड़ू भी रखना चाहिए।

31 अक्टूबर के लक्ष्मी पूजन मुहूर्त
चौघड़िया अनुसार
शुभ : सायं 4:24 से 5:48
अमृत : सायं 5:48 से 7:24
चर : सायं 7:24 से रात्रि 8:59
लाभ (निशिथ काल) : रात्रि 12:10 से 1:46

प्रदोष काल मुहूर्त
सायं 5:48 से रात्रि 8:22
अवधि : 2 घंटा 34 मिनट

स्थिर लग्न मुहूर्त
वृषभ : सायं 6:39 से रात्रि 8:38
अवधि 1 घंटा 59 मिनट

सिंह : मध्यरात्रि 1:07 से 3:18
अवधि : 2 घंटे 11 मिनट

व्यापारी कब करें
कर्क लग्न : रात्रि 10:51 से 1:07
अवधि : 2 घंटे 16 मिनट

नोट : उपरोक्त सभी मुहूर्त पंचांगों के अनुसार मानक उज्जैन के सूर्योदय के अनुसार हैं और शुद्ध मुहूर्त हैं। इन सभी मुहूर्तों में सभी सामान्य जन, व्यापारी-कारोबारी महालक्ष्मी पूजन संपन्न कर सकते हैं।

अंधेरी रात में इन जगहों पर लगाएं दीपक, कुबेर बरसाएंगे धन


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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देवताओं के कोषाध्यक्ष और धनपति यक्षराज कुबेर का पूजन कभी दिन में नहीं किया जाता है। कुबेर का पूजन रात्रि में ही किया जाता है। इसलिए कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अंधेरी रातों में धनतेरस से लेकर दीपावली तक रात्रि में लक्ष्मी और कुबेर पूजन किया जाता है। धनतेरस की रात्रि में तो विशेष रूप से कुबेर का पूजन किया जाता है।

शास्त्रों में कुछ दीपदान का बड़ा महत्व बताया गया है और यह दीपदान भी ऐसी जगह पर किया जाता है जहां पूर्ण अंधेरा रहता हो। यदि आप कुबेर को प्रसन्न करना चाहते हैं तो धनतेरस की रात्रि में दीप प्रज्वलित करने के उपाय अवश्य करने चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि धनतेरस की रात्रि में जिस जगह रोशनी होती है। दीपों का उजास होता है वहां कुबेर की दृष्टि पड़ती है और वे उस स्थान को अपने स्वर्णिम आलोक से प्रकाशित कर देते हैं। अर्थात् उस स्थान पर वे अपनी कृपा बरसाते हैं।

निर्जन स्थान के शिव मंदिर में
रात्रि में शिव मंदिर में दीप लगाने का बड़ा महत्व बताया गया है। शिव महापुराण में वर्णन आया है कि ऐस शिव मंदिर जो निर्जन स्थान पर हो, जो वन में हो, जहां कई-कई दिनों तक कोई आता-जाता न हो, उस शिव मंदिर में धनतेरस की रात्रि में अखंड दीप प्रज्वलित करना चाहिए। इससे कुबेर बहुत प्रसन्न होते हैं और उस मनुष्य के घर में धन के भंडार भर देते हैं।

पीपल वृक्ष के नीचे
पीपल के वृक्ष में साक्षात भगवान विष्णु का वास होता है। इसलिए धनतेरस की रात्रि में पीपल के पेड़ के नीचे अखंड दीपक लगाना चाहिए। उस दीपक में शुद्ध घी भरकर आलोकित करना चाहिए। इससे श्रीहरि विष्णु, माता लक्ष्मी और कुबेर तीनों की कृपा प्राप्त होती है। पीपल के नीचे दीपक लगाकर वापस आते समय पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए

चार रास्तों पर दीपक
धनतेरस की अंधियारी रात में गांव-शहर के बाहर कोई ऐसा स्थान देखें जहां चार रास्ते आकर मिलते हों। वहां मध्यरात्रि में दीपक लगाएं।

इन जगहों पर भी लगाएं दीपक
– धनतेरस की रात्रि में अपने घर में अखंड दीपक प्रज्वलित करें।
– घर की तिजोरी, दुकान का गल्ला, जहां आप अपना धन रखते हैं, स्वर्णाभूषण रखते हैं ऐसे स्थानों पर दीपक लगाएं।
– धनतेरस की रात्रि में कुएं की पाल पर आटे के सात दीपक बनाकर लगाएं इससे कुबेर की कृपा प्राप्त होती है।
– तुलसी, शमी, बरगद-नीम-पीपल की त्रिवेणी में दीपक लगाएं।

रमा एकादशी पर भाग्य बदलने वाला उपाय


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी या रमणा एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी 28 अक्टूबर 2024 सोमवार को आ रही है। सभी एकादशियों में भगवान श्रीहरि विष्णु को रमा एकादशी अत्यंत प्रिय है क्योंकि योगनिद्रा में होने के बाद भी इस एकादशी के दिन उनका मन पृथ्वीलोक के प्राणियों में रमण करता है। कार्तिक अमावस्या महालक्ष्मी पूजा से पूर्व भगवान विष्णु योग माया से पृथ्वीलोक में यह जानने आते हैं कि मनुष्यगण मां लक्ष्मी के आगमन की तैयारी कैसी कर रहे हैं। इसलिए इस एकादशी का सर्वाधिक महत्व है।

रमा एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्यों को भगवान विष्णु समस्त सुख प्रदान करते हैं। इसलिए इस एकादशी को भाग्य बदलने वाली एकादशी भी कहा जाता है। व्रती के जीवन के सारे अभाव दूर हो जाते हैं। धन, संपत्ति, सुख, सम्मान, उत्तम संतान, श्रेष्ठ वैवाहिक जीवन सबकुछ रमा एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है। रमा एकादशी का व्रत पति-पत्नी को जोड़े से करना चाहिए तो अधिक उत्तम फलों की प्राप्ति होती है।

चूंकि यह एकादशी भाग्य बदलने वाली एकादशी कहलाती है इसलिए हम आपको ऐसे उपाय बताने जा रहे हैं जिन्हें करके आप भगवान विष्णु के कृपा पात्र बन सकते हैं और भाग्य भाग्य चमक उठेगा।

रमा एकादशी भगवान विष्णु की प्रिय एकादशी है और वे इस दिन पृथ्वी पर लक्ष्मी पूजा की तैयारी परखने आते हैं इसलिए इस दिन अपने घर को अच्छे से साफ-स्वच्छ करके सजावट करें। घर पर सुंदर वंदनवार सजाएं, फूल मालाओं से घर को सजाएं, द्वार पर फूलों और रंगों से आकर्षक रंगोली बताएं। इस दिन घर के सभी सदस्य साफ स्वच्छ वस्त्र धारण करें। सायंकाल में घर और बाहर दीप मालिकाएं सजाएं।

क्या है वह चमत्कारिक उपाय
1. रमा एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पीले पुष्पों से श्रृंगार करें, उन्हें तुलसी दल अर्पित करें। देसी घी का नैवेद्य लगाएं। एक पीला चौकोर कपड़ा लें और इस पर केसर की स्याही से ऊं हूं विष्णवे नम: 11 बार लिखें। इसका पूजन करें, धूप दीप करें और थोड़े से अक्षत डालें। फिर एक बार विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। पूजा के बाद इस कपड़े की पोटली बनाकर घर में उस स्थान पर रखें जहां आप धन आभूषण आदि रखते हैं।
2. रमा एकादशी के दिन विष्णु यंत्र की विधिवत स्थापना अपने घर में करें।
3. रमा एकादशी की शाम को किसी निर्जन स्थान पर जाएं वहां एक घी का दीपक लगाएं। दीपक के चारों ओर हल्दी का गोल घेरा बनाएं और दीपक में पीली कौड़ी डालें। वहां बैठकर ऊं हूं विष्णवे नम: मंत्र की एक माला हल्दी की माला से जपें। जाप पूरा होने के बाद चुपचाप बिना पीछे देखें वापस अपने घर लौट आएं।

रमा एकादशी का समय
एकादशी प्रारंभ : 27 अक्टूबर प्रात: 5:56
एकादशी पूर्ण : 28 अक्टूबर प्रात: 7:50
पारणा : 29 अक्टूबर प्रात: 6.30 से 8.46

धनतेरस : 29 अक्टूबर के पूजन मुहूर्त, विधि और योग


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस या धन त्रयोदशी मनाई जाती है। इसी दिन आयुर्वेद के देवता धनवंतरि समुद्र मंथन में से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस दिन उनकी जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष धनतेरस 29 अक्टूबर 2024 मंगलवार को मनाई जाएगी। इस दिन मंगलवार और त्रयोदशी का संयोग होने के कारण भौम प्रदोष का शुभ संयोग भी बना है। 29 अक्टूबर को त्रयोदशी तिथि प्रात: 10:32 से प्रारंभ होकर 30 अक्टूबर को दोपहर 1:14 बजे तक रहेगी। इसलिए धनतेरस की पूजा 29 अक्टूबर को सायंकाल में ही की जाएगी।

क्या खरीदें
धनतेरस के दिन स्वर्णाभूषण, वाहन, संपत्ति, भूमि-भवन, पीतल, तांबे, कांसे के बर्तन आदि खरीदे जाते हैं। 29 अक्टूबर को ऐंद्र योग रहेगा। इसलिए धनतेरस के दिन शुभ मुहूर्त में वस्तुओं की खरीदी अवश्य करें।

विशेष योग-संयोग
29 अक्टूबर को खरीदी के लिए पूरा दिन अत्यंत शुभ रहेगा। इस दिन भौम प्रदोष का संयोग होने से आभूषण, पीतल के बर्तन, सोना-चांदी खरीदना शुभ रहेगा। इस दिन सायं 5.49 से रात्रि 8.23 तक प्रदोष वेला रहेगी जिसमें धन का पूजन, बही खातों का लेखन-पूजन आदि करना चाहिए।

धनतेरस के पूजन मुहूर्त
सायं 7.25 से रात्रि 8.59 बजे तक
अवधि 1 घंटा 34 मिनट

प्रदोष काल मुहूर्त
सायं 5.49 से रात्रि 8.23 बजे तक
अवधि 2 घंटे 34 मिनट

वृषभ लग्न मुहूर्त
सायं 6:47 से रात्रि 8:45 बजे तक
अवधि 1 घंटा 58 मिनट

सिंह लग्न मुहूर्त
मध्य रात्रि 1:15 से 3:26
अवधि 2 घंटे 11 मिनट

धनतेरस पूजा विधि
धनतेरस के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर घर की साफ-सफाई करें। घर के बाहर भी आंगन को बुहारें। स्नानादि से निवृत्त होकर विभिन्न रंगों और फूलों से घर के मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर सुंदर सुंदर रंगोली सजाएं। रंगोली से देवी लक्ष्मी के चरण चिन्ह भी जरूर बनाएं। पूजा स्थान को भी साफ करके भी नियमित देवताओं का पूजन करें। धनतेरस की पूजा सायंकाल के समय की जाती है। प्रदोषकाल में या मुहूर्त काल में पूजा स्थान में उत्तर दिशा की ओर यक्षराज कुबेर और धनवंतरि की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इससे पहले भगवान गणेश और लक्ष्मी का पूजन भी करें। कुबेर को सफेद मिठाई या खीर का नैवेद्य लगाएं तथा धनवंतरि को पीली मिठाई का भोग लगाएं। पूजा में पीले-सफेद फूल, पांच प्रकार के फल अवश्य रखें।

व्यापारियों के लिए पूजा विधान
धनतेरस के दिन अपने प्रतिष्ठान, दुकान में साफ-सफाई करके नई गादी बिछाएं। जिस पर बैठकर नए बही खातों का पूजन करें। दुकान में लक्ष्मी और कुबेर का पूजन करें है। पूजा के पाने का भी पूजन किया जाता है।

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