29 मार्च से शनि बदल रहा राशि, जानिए क्या होगा आप पर असर


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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शनि का मीन राशि में प्रवेश 29 मार्च 2025 को रात्रि 9 बजकर 41 मिनट पर होगा। शनि मीन राशि में 3 जून 2027 तक रहेगा। इन ढाई वर्षों में शनि की साढ़ेसाती का प्रथम चरण मेष राशि पर रहेगा, द्वितीय चरण मीन राशि पर रहेगा और अंतिम चरण कुंभ राशि पर रहेगा। सिंह और धनु राशि पर लघु कल्याणी ढैया चलेगा।

साढ़ेसाती वाली राशियों पर प्रभाव

मेष राशि : मेष राशि के जातकों को लोहे के पाये से मस्तक पर शानि की साढ़ेसाती का प्रथम ढैय्या प्रारंभ होगा। इस राशि के लिए शनि दसवें और ग्यारहवें स्थान का स्वामी होकर बारहवें स्थान में भ्रमण करेगा, जो शुभप्रद नहीं कहा जा सकता। शासन की तरफ से परेशानी, निरर्थक यात्राएं, व्यापार-व्यवसाय व नौकरी में अड़चनें, पारिवारिक क्लेश, आर्थिक क्षेत्र में उतार-चढ़ाव, अपव्यय, स्वयं, पति/पत्नी एवं संतान को शारीरिक कष्ट, भाग्य में कमजोरी तथा कर्जा (ऋण) लेने की स्थिति बनेगी। जन्मकालीन मंगल, शनि अथवा सूर्य पर से शनि का भ्रमण अत्यंत अरिष्टप्रद हो सकता है। आय के स्रोत में कमी आएगी, जन्मकुण्डली में शनि बलवान होगा तो उपर्युक्त अशुभ फलों में कमी आकर व्यावसायिक उन्नति, मित्रों से सहयोग तथा धनलाभ के योग बनेंगे।
उपाय : आपको हनुमानजी को अपना आराध्य बनाकर रखना होगा। नियमित दर्शन करें। अपने घर के मुख्य द्वार पर पंचमुखी हनुमान जी फोटो लगाएं। शनि का दुष्प्रभाव आपके घर में प्रवेश नहीं कर पाएगा।

मीन राशि : मीन राशि के जातकों को स्वर्ण पाद से शनि की साढ़ेसाती का दूसरा ढैय्या हृदय पर प्रारंभ होगा। मीन राशि के लिए शनि एकादश व द्वादश स्थान का स्वामी होकर प्रथम भाव में भ्रमण करने पर स्वास्थ्य में खराबी, नौकरी-धन्धे में उतार-चढ़ाव, कार्यों में रूकावट, स्वजनों का वियोग, स्थानांतर प्रवास योग, भागीदारी से हानि, नैराश्य भाव एवं पति/पत्नी को पीड़ा होगी, भाई-बहनों से मतभेद होंगे। जन्म का शनि श्रेष्ठप्रद होगा तो रूके हुए कार्य पूर्ण होंगे, आत्मबल में वृद्धि होगी, लाभकारी यात्राएं होगी और धनसुख का योग बनेगा। उच्च शिक्षा के विद्यार्थियों के लिए शनि का यह ढैया चुनौतीपूर्ण रहेगा।
उपाय : श्रीकृष्ण और भगवान विष्णु आपके आराध्य रहेंगे। इनकी पूजा और मंत्रों स्तोत्र का जाप शनि की कुदृष्टि से बचाएगा। घर में मोरपंख अवश्य रखें।

कुुंभ राशि : कुंभ राशि के जातकों को चांदी के पाये से शनि की साढ़ेसाती का अंतिम ढैया चरणों से प्रारंभ होगा। आपकी राशि के लिए शनि बारहवें और प्रथम स्थान का स्वामी होकर द्वितीय स्थान में भ्रमण करेगा जो शुभप्रद नहीं है। साढ़ेसाती के दौरान प्रियजन से विवाद, प्रियजन का वियोग, धनहानि, पैतृक संपत्ति को लेकर विवाद, परिवार से क्लेश, कदाचित गृहत्याग, पति/पत्नी को शारीरिक कष्ट, यश में कमी, नकारात्मक विचार एवं ऋण (कर्ज) लेने की स्थिति बनेगी। यदि जन्मांग में शनि बलवान होगा तो आय में वृद्धि के योग बनेंगे। कोर्ट कचहरी के मामलों में अनुकूलता होगी। स्थायी संपत्ति की प्राप्ति होगी। यशोमान में वृद्धि होगी।
उपाय : शनिदेव आपके आराध्य रहेंगे। नियमित रूप से शनि चालीसा का पाठ करें। काले घोड़े की नाल घर के मुख्य द्वार पर लगाएं।

शनि के लघु कल्याणी ढैय्या वाली राशियों पर असर

सिंह राशि : सिंह राशि वाले जातकों को शनि का लघुकल्याणी ढैय्या अष्टम स्थान में लौह पाद से प्रारंभ होगा। इस राशि के लिए शनि छठे एवं सातवें स्थान का स्वामी होकर अष्टम स्थान में भ्रमण करेगा जो शुभप्रद नहीं कहा जा सकता। स्वयं व पति/पत्नी को शारीरिक पीड़ा. नौकरी/धन्धे में परेशानी, आर्थिक हानि, कोर्ट के मामलों में प्रतिकूलता, मित्र, वाहन व पशु से हानि, निरर्थक यात्राएं, दुर्जनों से संगति होगी, बुरी संगत में पड़कर आप भी मुश्किलों में फंस सकते हैं। मानसिक संताप तथा स्वजनों को कष्ट होंगे। जन्मगत शनि की स्थिति अच्छी होने पर भागदौड़ के साथ धनलाभ-सफलता एवं रूके हुए कार्य पूर्ण होंगे।
उपाय : सिंह राशि के जातक हनुमानजी को प्रत्येक मंगलवार को एक नारियल पर सिंदूर लगाकर अर्पित करें। गुड़ चने का भोग लगाकर प्रसाद बांटें।

धनु राशि : धनु राशि के जातकों को शनि का लघुकल्याणी ढैय्या चतुर्थ स्थान में लोहे के पाये से प्रारंभ होगा। इस राशि के लिए शनि द्वितीय व तृतीय स्थान का स्वामी है।अत: स्थान परिवर्तन, यात्रा में कष्ट, सौख्यता में कमी, विरोध, माता-पिता को शारीरिक पीड़ा एवं राजकीय संकट की स्थिति बनेगी। जिन जातकों की जन्मकुण्डली में शनि बलवान होगा तो जमीन-जायदाद व वाहन सुख प्राप्त होगा, नौकरी-व्यवसाय में सफलता, फंसा हुआ- डूबा हुआ (नष्टांश) धन की प्राप्ति एवं कार्य सिद्धि होगी।
उपाय : देवी दुर्गा को हर दिन कपूर के तेल का दीया लगाएं। शनि की पीड़ा कम होगी।

अन्य राशियों पर मीन के शनि का असर

वृषभ राशि : शनि आपके नवम और दशम भाव का स्वामी होकर एकादश भाव में भ्रमण करेगा। आर्थिक दृष्टि से समय ठीक कहा जा सकता है। भाग्य के दरवाजे खुलने वाले हैं। नौकरी, व्यापार व्यवसाय में अच्छी सफलता, धन लाभ, स्त्री वर्ग, लोहा, भूमि, सीमेंट अथवा मशीनरी के कार्यों से लाभ, विवाह योग, यशोमान में वृद्धि कन्या सन्तति की प्राप्ति एवं आरोग्यता बनी रहेगी। शनि आपकी राशि पर स्वर्ण पाद से भ्रमण करेगा। जन्म कुंडली में शनि निर्बल होने पर पति/पत्नी व सन्तान पीड़ा, मित्रों व आत्मीयजनों का विश्वासघात एवं आशा भंग होगी।
उपाय : शिवजी की आराधना करें। शिवजी के सौम्य रूप की तस्वीर घर में लगाकर उसका नित्य दर्शन करें।

मिथुन राशि : शनि आपकी राशि से अष्टम और नवम का स्वामी होकर दशम भाग में गोचर करेगा। समय अनुकूल आ रहा है। कार्य स्थान में शनि आपको कर्म प्रधान बनाएगा। अटके काम चल पड़ेंगे और आप काम आगे बढ़ाने के लिए स्वयं प्रवृत्त होंगे। भाग्योदय होगा, आर्थिक लाभ, नौकरी-व्यवसाय में उन्नति, कोर्ट के मामलों में अनुकूलता, प्रभावशाली व्यक्तियों से परिचय व लाभ होगा एवं सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। जिन जातकों की जन्म कुंडली में शनि बलहीन होगा उनके माता-पिता को पीड़ा, राजभय, नौकरी-व्यवसाय में परिवर्तन-बाधा, दांपत्य जीवन व विरोध की स्थिति बनेगी।
उपाय : मिथुन राशि के जातक कौवे के लिए नित्य खाना रखें। कौवे न मिले तो काली गाय को एक रोटी हर दिन खिलाएं।

कर्क राशि : कर्क राशि के जातकों के लिए शनि सप्तम और अष्टम भाव का स्वामी होकर नवम भाग्य भाव में भ्रमण करेगा। समय तो शुभ आने वाला है। नौकरी-धन्धे में सफलता मिलेगी, धनलाभ होगा, धर्म-कर्म में रुचि बढ़ेगी, धार्मिक कार्यों में शामिल होंगे, संतों से भेंट होगी, लाभकारी यात्राएं करेंगे, यश-प्रतिष्ठा में वृद्धि एवं सन्तान सुख प्राप्त होगा। यदि जन्मगत शनि निर्बल होगा तो भाई-बहनों व मित्रों को कष्ट मिलेगा, उपेक्षा के शिकार हो सकते हैं, संतान को पीड़ा या संतान की ओर से पीड़ा होगी, शत्रुभय, आर्थिक परेशानी, अनिष्ट प्रसंग, पति/पत्नी का स्वास्थ्य खराब एवं कार्यों में विघ्न आएंगे।
उपाय : शिवजी को कच्चे दूध में बादाम का तेल डालकर अभिषेक करें। शनि की पीड़ा दूर होगी।

कन्या राशि : कन्या राशि के जातकों के लिए शनि पांचवें और छठे भाव का स्वामी होकर सातवें भाव में भ्रमण करेगा। शिक्षा में बाधा, प्रेम प्रसंगों में टकराव, पति/पत्नी को दीर्घ रोग, नौकरी-व्यवसाय में परेशानी, भागीदारी के कार्यों में हानि, शारीरिक पीड़ा, परदेश वास, कष्टदायक प्रवास होगा। कार्यों में विलंब तथा धन हानि के योग बनेंगे। इस राशि के जिन लोगों की जन्मकुंडली में शनि शुभ स्थिति में होगा उन्हें आर्थिक लाभ, व्यावसायिक उन्नति, कोर्ट के मामलों में विजय एवं द्विभार्या योग होने पर पुनर्विवाह के भी योग बनेंगे। शनि बलवान होने पर वाहन, मशीनरी, शेयर कारोबार से लाभ होगा।
उपाय : इस राशि के जातक शनि की पीड़ा दूर करने के लिए केसर का इत्र लगाएं। घर में मोरपंख रखें और काले घोड़े को प्रत्येक शनिवार को सरसों के तेल में भिगोए हुए काले चने खिलाएं।

तुला राशि : तुला राशि के जातकों के लिए शनि चतुर्थ-पंचम का स्वामी होकर छठे भाव में गोचर करने वाला है। यहां बैठकर शनि सुखों को प्रभावित करेगा। अचानक स्थान परिवर्तन की स्थिति बन सकती है। आर्थिक रुकावटें आएंगी। परिवार से दूर रहना होगा। जन्मगत शनि मजबूत होने पर शत्रु नाश, आरोग्यता, द्रव्यलाभ, कोर्ट में विजय, ऋण (कर्ज) से छुटकारा, नौकरी-व्यवसाय में सफलता, मित्रों से लाभ, स्थायी संपत्ति की प्राप्ति तथा पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
उपाय : शिवजी को कच्चे दूध में काले तिल डालकर प्रत्येक शनिवार को अभिषेक करें।

वृश्चिक राशि : वृश्चिक राशि के लिए शनि तीसरे चौथे भाव का स्वामी होकर पंचम में भ्रमण करेगा। इस दौरान संतान की चिंता, अनिष्ट प्रसंग, स्थान परिवर्तन, शेयर कारोबार में हानि, विद्या अध्ययन में रूकावट, आय से अधिक व्यय, नौकरी-धन्धे में उतार-चढ़ाव, पति/पत्नी को शारीरिक पीड़ा एवं बुद्धि भ्रम होगा। जन्मतः शनि श्रेष्ठ होने पर विद्या (शिक्षा) में पूर्ण सफलता, कन्या संतान की प्राप्ति, स्थायी संपत्ति की प्राप्ति, मित्रों से सुख एवं नौकरी-व्यवसाय में उन्नति होगी।
उपाय : प्रत्येक मंगलवार को बजरंग बाण या सुंदरकांड का पाठ करें। घर में हनुमान जी की संजीवनी लाती हुई तस्वीर लगाएं।

मकर राशि : मकर राशि के लिए शनि प्रथम और द्वितीय भाव का स्वामी होकर तृतीय में भ्रमण करेगा। समय उत्तम रहेगा। उद्योग-धन्धे-नौकरी में उत्कर्ष, धनलाभ, सर्वत्र अनुकूलता, पद-पराक्रम में वृद्धि, भातृसुख में वृद्धि, शत्रुनाश, आरोग्यता, भूमिलाभ, अभीष्ट कार्यों में सफलता एवं यशोमान की प्राप्ति होगी। जन्मकुण्डली में शनि कमजोर होने पर कष्टप्रद यात्राएं, भाई-बहन व संतान की ओर से पीड़ा. मानसिक अशांति, इच्छा विरूद्ध स्थान परिवर्तन, अपयश तथा कुटु‌म्बिक क्लेश होगा।
उपाय : शनि देव के दर्शन हर शनिवार को करें, हनुमान चालीसा का पाठ नियमित रूप से करें।

लाजवर्त के फायदे जानकर चौंक जाएंगे आप


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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रत्न शास्त्र एक बहुत बड़ा विज्ञान है, जिसमें विभिन्न प्रकार के रत्न और मणियों का उपयोग करके जीवन को सुंदर सुखद बनाया जा सकता है। ये रत्न पहनने वाले मनुष्य को न केवल नाम, सम्मान, शौर्य, साहस और आत्मविश्वास देते हैं, बल्कि उसे धन-संपत्ति भी प्रदान करते हैं।

रत्न शास्त्र में अनेक मणियों का वर्णन मिलता है। जैसे घृत मणि, तैल मणि, भीष्मक मणि, उपलक मणि, स्फटिक मणि, पारस मणि, उलूक मणि, मासर मणि और लाजवर्त मणि। ये सभी मणियां विशिष्ट गुणों वाली होती है और धारण करने वालों को मनचाहा लाभ देती हैं। इन्हीं में से आज हम बात करने जा रहे हैं लाजवर्त मणि की। इसे लाजावर्त मणि भी कहा जाता है।


लाजवर्त के गुण और प्रकार
लाजवर्त एक चिकना, ठोस, अपारदर्शी, गहरे नीले रंग का रत्न होता है। इसमें नीले रंग के साथ हल्के नीले रंग की धारियां भी दिखाई देती हैं। शास्त्रों में इसका वर्णन करते हुए लिखा गया है कि लाजवर्त का रंग मोर की गर्दन के नीले रंग के समान होता है। लाजवर्त को शनि, राहु और केतु की पीड़ा को दूर करने के लिए धारण किया जाता है। यदि कुंडली में ये तीनों ग्रह दूषित हों, पीड़ा दे रहे हों तो इसे धारण करने से बहुत लाभ होता है।

रत्न ज्योतिष में नौ ग्रहों के नौ मुख्य रत्न और उनके सैकड़ों उपरत्न बताए गए हैं। इन्हें ग्रहों के अनुसार धारण करने से उन ग्रहों की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। शनि की पीड़ा से बचने के लिए नीलम, राहु के लिए गोमेद और केतु के लिए लहसुनिया पहनने की सलाह दी जाती है, लेकिन यदि तीनों ग्रह खराब हों तो तीन रत्न पहनने की जगह एक ही रत्न पहनाया जाता है, जिससे तीनों ग्रहों की पीड़ा से एक साथ मुक्ति मिल जाती है। वह रत्न है लाजवर्त। अंग्रेजी में इसे लेपिज लाजुली (lapis lazuli) कहा जाता है। लाजवर्त को ब्रेसलेट के रूप में, अंगूठी के रूप में, माला के रूप, पेंडेंट के रूप में धारण किया जा सकता है।

सिद्ध लाजवर्त मणि पहनने के लाभ
* सिद्ध लाजवर्त मणि माला शनि, राहु, केतु के दोषों और बुरे प्रभावों को दूर करती है।
* यदि बार-बार दुर्घटनाएं हो रही हों तो सिद्ध लाजवर्त मणि माला धारण करना चाहिए।
* यह आकस्मिक रूप से होने वाली धन हानि, स्वास्थ्य समस्याओं से बचाव करने में मदद करती है।
* सिद्ध लाजवर्त मणि माला बुरी नजर, जादू-टोना, नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में मदद करती है।
* राहु-केतु के कारण पितृ दोष का निर्माण भी होता है। सिद्ध लाजवर्त मणि माला पहनने से पितृ दोष शांत होता है।
* व्यापार-व्यवसाय या नौकरी में बाधा आ रही हो तो सिद्ध लाजवर्त मणि माला धारण करना उचित रहता है।
* यह दिमाग को शांत रखने का काम भी करती है। मानसिक स्थिरता सिद्ध लाजवर्त मणि माला से आती है।
* इसे पहनने से आर्थिक तंगी दूर होती है, पैसों के आगमन में आ रही रुकावटें दूर होती हैं।
* जिनकी जन्म कुंडली में सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण दोष है उन्हें भी यह पहनना चाहिए।
* घर में पैसों की बचत नहीं होती, सदस्यों को तनाव-डिप्रेशन रहता है तो लाजवर्त मणि की माला को घर की पश्चिम दिशा में लटकाएं।

कैसे धारण करें
सिद्ध लाजवर्त को धारण करने का सबसे शुभ दिन शनिवार है। इसे रत्न संस्कार करवाकर पहना जा सकता है। संस्कारित लाजवर्त ही धारण करना चाहिए। सीधे बाजार से लाकर नहीं पहनना चाहिए। इसके मोतियों की माला भी गले में धारण की जा सकती है। सिद्ध संस्कारित करने से पहले इसको सरसों या तिल के तेल में पांच घंटे तक डुबोकर रखा जाता है । इसके बाद नीले रंग के वस्त्र पर रखकर ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम: मंत्र की पांच माला जाप कर इसे संस्कारित किया जाता है । धूप-दीप, नैवेद्य करके पंचोपचार से पूजन किया जाता है । फिर इसे उसी नीले कपड़े से पोंछकर धारण करवाया जाता है।

टोने-टोटके, भूत-प्रेत बाधा दूर करती है
सिद्ध लाजावर्त मणि धारण करने से टोने-टोटके का असर समाप्त होता है। इसे पहनने से भूत-प्रेत की बाधा दूर होती है। नकारात्मक ऊर्जा से बचाव होता है। इसे पहनने से सभी तरह का काला जादू और किया-कराया समाप्त हो जाता है। यह सिद्ध मणि की माला पितृदोष को भी समाप्त कर देती है।

यदि आप भी सिद्ध लाजवर्त मणि की माला, ब्रेसलेट, अंगूठी या पेंडेंट सिद्ध संस्कारित किया हुआ पाना चाहते हैं तो हमसे तुरंत संपर्क करें। हमारे विद्वान पुरोहितों द्वारा इसे संस्कारित करके दिया जाता है।

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पं. गजेंद्र शर्मा
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शुक्र का उच्च राशि में प्रवेश, बनेगा साल का पहला मालव्य पूर्ण राजयोग


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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वर्ष 2025 में पहली बार शुक्र 28 जनवरी को प्रात: 7 बजे अपनी उच्च राशि मीन में प्रवेश करने जा रहा है। शुक्र के उच्च राशि में जाने के कारण मालव्य योग बन रहा है। इस बार यह योग लगभग चार महीने तक बना रहेगा। शुक्र 31 मई 2025 को राशि बदलेगा, तब तक मालव्य योग बना रहेगा और इसका फल वैसे तो सभी राशि के जातकों को मिलने वाला है लेकिन सात राशियों को विशेष फल मिलेंगे और यह योग उन्हें मालामाल करने वाला है।

मालव्य योग कैसे बनता है
मालव्य योग की गिनती पंचमहापुरुष योग में होती है। शुक्र जब अपनी उच्च राशि मीन में होकर शुभ स्थान में बैठता है तो मालव्य योग बनता है। इसे मालव्य योग को पूर्ण राजयोग कहा जाता है। इस योग के बनने से शुभ फलों में वृद्धि होती है। जिन जातकों की जन्म कुंडली में शुक्र उच्च का होकर केंद्र स्थानों प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम में बैठता है ऐसा व्यक्ति राजा की तरह जीवन व्यतीत करता है।

मालव्य योग के लाभ
1. मालव्य योग धन संपदा प्रदान करता है। इस योग के बनने से धन-समृद्धि में वृद्धि होगी।
2. मालव्य योग जिन जातकों की कुंडली में बना होता है वे अत्यंत भाग्यशाली होते हैं।
3. मालव्य योग के कारण धन आने के मार्ग खुलते हैं और धन कोष में वृद्धि होने लगती है।
4. मालव्य योग जिन जातकों की कुंडली में होता है वे सौंदर्य और कला प्रेमी होते हैं।
5. मालव्य योग के प्रभाव से व्यक्ति आकर्षक बनेगा, प्रेमी होगा, प्रेम संबंध प्राप्त होंगे।

सात राशियां होंगी मालामाल
शुक्र के मीन राशि में प्रवेश करने के साथ ही बनने वाले मालव्य राजयोग का प्रभाव विशेष रूप से पांच राशियों को मिलने वाला है। ये राशियां बुध, गुरु, शुक्र और चंद्र से संंबंधित हैं। वृषभ, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, धनु, मीन राशियों का भाग्य खुलने वाला है। इन राशियों के जातकों को अपार धन-संपदा मिलने वाली है। यदि लंबे समय से कहीं पैसा फंसा हुआ है तो इन्हें मिल जाएगा। निवेश से लाभ होगा। भौतिक सुखों में वृद्धि होगी। प्रेम संबंध प्रगाढ़ होंगे। नए प्रेम संबंध बनेंगे। पारिवारिक जीवन सुखद होगा। भूमि, भवन, वाहन खरीदने के योग बनेंगे। पैतृक संपत्ति प्राप्त होगी। आकर्षण प्रभाव में वृद्धि होगी। संतान सुख मिलेगा। इन सात राशियों के जातकों को भाग्य का बल मिलेगा और जिस काम में हाथ डालेंगे वह पूरा होगा। वहां से धन कमाने में सफल होंगे।

शेष पांच राशियों को मिलेगा मिलाजुला फल
उपरोक्त सात राशियों के अलावा शेष पांच राशियों मेष, सिंह, वृश्चिक, मकर, कुंभ के लिए शुक्र का मीन राशि में गोचर मिलाजुला फल देने वाला रहेगा। इन राशि के जातकों को धन की प्राप्ति तो होगी लेकिन खर्च भी उसी अनुपात में होगा। रिश्तों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। दांपत्य जीवन में कुछ कठिनाइयां आ सकती हैं। पति-पत्नी को एक-दूसरे के साथ तालमेल बनाने में परेशानी आएगी। इन राशि के जातकों के प्रभाव में कमी आएगी।

क्या करें
1. मालव्य योग का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए सभी राशि के जातक इस दौरान साफ-स्वच्छ रहें।
2. अधिक से अधिक दिन सफेद या हल्के रंग के कपड़े पहनें।
3. अच्छे मध्यम खुशबू वाले इत्र या परफ्यूम का उपयोग प्रतिदिन करें।
4. केसर का तिलक हर दिन लगाएं।
5. नहाने के पानी में थोड़ा सा गुलाबजल डालकर हर दिन नहाएं।
6. चांदी का छल्ला स्त्रियां अपने बाएं हाथ में और पुरुष दाहिने हाथ में धारण करें।
7. घर में गुलाब का रूम स्प्रे डालें।
8. गुलाब की अगरबत्ती या धूप बत्ती हर दिन घर में लगाएं।
9. प्रत्येक शुक्रवार को शिवजी का अभिषेक जल में गुलाब का इत्र डालकर करें।
10. शुक्र के मंत्र ऊं द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम: का नियमित एक माला जाप पिंक स्फटिक की माला से करें।

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ग्रहों को करना है शांत तो कर लें ये उपाय


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में कोई न कोई ग्रह खराब या कमजोर होता है। उस ग्रह को ठीक करने के लिए उससे संबंधित वस्तुओं का दान किया जाता है। उस ग्रह के मंत्रों का जाप करवाया जाता है। आइए जानते हैं किस ग्रह की शांति के लिए किन वस्तुओं का दान करना चाहिए और कितने मंत्रों का जाप करवाना चाहिए।

सूर्य
सूर्य की शांति के लिए माणिक्य का दान सर्वश्रेष्ठ दान बताया गया है। इसके अलावा गोधूम, गुड़, गौ, कमलपुष्प, नया घर, लाल चंदन, लाल वस्त्र, सोना-तांबा, केसर, मूंगा का दान किया जाता है। सूर्य की शांति के लिए इसके 7000 मंत्रों का जाप किया जाता है किंतु कलयुग में इसका चार गुना अर्थात् 28 हजार जाप करवाना चाहिए।

चंद्र
चंद्र की शांति के लिए चांदी के बर्तन का दान किया जाता है। इसके अलावा चावल, श्वेत वस्त्र, श्वेत चंदन, श्वेत पुष्प, चीनी, चांदी, बैल, घी, शंख, दही, मोती, कपूर का दान करने से चंद्र की पीड़ा शांत होती है। चंद्र की शांति के लिए इसके 11 हजार मंत्रों का जाप किया जाता है किंतु कलयुग में इसका चार गुना अर्थात् 44 हजार मंत्रों का जाप करवाना चाहिए।

मंगल
मंगल ग्रह परेशान कर रहा है तो शांति के लिए मसूर की दाल, गोधूम, लाल बैल, गुड़, लाल चंदन, लाल वस्त्र, लाल पुष्प, सोना, तांबा, केसर, कस्तुरी आदि का दान किया जाता है। किसी ब्राह्मण को तांबे के कलश में गुड़ रखकर दान देना चाहिए। मंगल की शांति के लिए 10 हजार मंत्रों का जाप करवाना चाहिए। कलयुग में चार गुना 40 हजार मंत्रों का जाप करवाना चाहिए।

बुध
बुध की शांति के लिए कांसे का पात्र, हरे कपड़े, गजदंत, घी, पन्ना, सोना, सर्वपुष्प, रत्न, कपूर, शंख, अनेक प्रकार के फल, षटरस भोजन दान में देना चाहिए। बुध के लिए 9000 मंत्रों का जाप करवाना चाहिए। कलयुग में चार गुना अर्थात् 36 हजार जाप करवाना चाहिए।

गुरु
गुरु की शांति के लिए पीला अनाज, पीले कपड़े, सोना, घी, पीले पुष्प, पीले फल, पुखराज, हल्दी, धार्मिक पुस्तकें, शहद, नमक, शक्कर, भूमि, छत्र आदि का दान किया जाता है। गुरु के मंत्रों की जप संख्या 19 हजार होती है। कलयुग में इसका चार गुना अर्थात् 76 हजार जाप करवाना चाहिए।

शुक्र
शुक्र की शांति के लिए सफेद चावल, सफेद चंदन, सफेद वस्त्र या रंगबिरंगे वस्त्र, श्वेत पुष्प, चांदी, हीरा, घी, सोना, दही, सुगंधित द्रव्य, इत्र, शकर का दान करना चाहिए। शुक्र की शांति के लिए इसके 16 हजार मंत्रों का जाप करवाया जाता है। कलयुग में इसका चार गुना अर्थात् 64 हजार जप संख्या करवाना चाहिए।

शनि
शनि की शांति के लिए तिल या सरसो का तेल, नीलम, तिल, काले वस्त्र, लोहा, भैंस, काली गाय, काले पुष्प, सोना आदि का दान दिया जाता है। शनि के शांति मंत्रों की संख्या 23 हजार होती है। कलयुग में इसका चार गुना 92 हजार जाप करवाना चाहिए।

राहु
राहु की शांति के लिए पंचधातु का नाग, सप्तधान्य, नीले वस्त्र, गोमेद, काले पुष्प, तिल, खड्ग, तेल, लोहा, कंबल, तांबे का पात्र, सुवर्ण, रत्न आदि का दान दिया जाता है। राहु के मंत्र जाप की संख्या 18 हजार होती है। कलयुग में 72 हजार जाप करवाना चाहिए।

केतु
केतु की शांति के लिए उड़द, कंबल, कस्तुरी, वैदूर्यमणि, काले फूल, तिल, तेल, रत्न, सुवर्ण, लोहा, शस्त्र, सप्तधान्य का दान दिया जाता है। इसकी शांति के लिए 17 हजार मंत्रों का जाप करवाया जाता है। कलयुग में चार गुना अर्थात् 68 हजार जाप करवाए जाने चाहिए।

बुध हुआ मार्गी, पांच उपायों से बनेंगे सारे काम


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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जन्मकुंडली में बुध के शुभ अवस्था में रहने के कारण अनेक काम स्वत: ही सही होने लगते हैं। जन्म कुंडली में बुध यदि अपनी नीच राशि मीन में हो, अस्त हो, वक्री हो या पाप ग्रहों राहु-केतु के साथ हो तो जातक द्वारा लिए गए सभी निर्णय गलत साबित होते हैं। उसके व्यापार-व्यवसाय में अनेक उतार-चढ़ाव आते हैं और वह स्थिर दिमाग का नहीं रह पाता है। वहीं इसके उलट बुध यदि अपनी उच्च राशि कन्या में हो और शुभ ग्रहों के साथ बैठा हो या शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो जातक द्वारा लिए गए छोटे से छोटे निर्णय भी सही साबित हो जाते हैं और उसे अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। उसकी वाणी में साक्षात सरस्वती का वास हो जाता है।

बुध 15 दिसंबर 2024 को रात्रि 2 बजकर 28 मिनट पर मार्गी हो रहा है। बुध के मार्गी होने से सभी राशि के जातकों को लाभ होगा। किंतु हम आपको ऐसे पांच उपाय बताने जा रहे हैं जो आपके कमजोर बुध को भी मजबूत कर देंगे और फिर आपको अपने कार्यों में स्वत: सफलता मिलने लग जाएगी।

पहला उपाय
बुध को मजबूत करने के लिए सबसे पहला और सटीक उपाय है पेड़-पौधों की सेवा करना। अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाना चाहिए। यदि आपके घर-आंगन में पौधे लगे हुए हैं तो ध्यान रखें कि उनकी नियमित रूप से देखभाल करते रहें। उन्हें पानी दें, यदि किसी पौधे पर पत्तियां या टहनी खराब हो गई हैं, सूख गई हैं तो उन्हें काट दें, हटा दें। फूलदार पौधे लगाएं। इससे आपका बुध मजबूत होगा और उसके शुभ परिणाम मिलने लगेंगे।

दूसरा उपाय
बुध को मजबूत करने के लिए हरी वस्तुओं का दान किया जाता है। गाय को हरा चारा खिलाएं। ब्राह्मण को हरे फल और हरी सब्जियां दान में दें। हरे खड़े मूंग का दान करें। कन्याओं को हरे रंग के वस्त्र दान करना चाहिए। कांसे के बर्तनों का दान गणेश मंदिर में करने से बुध की पीड़ा दूर होती हैं।

तीसरा उपाय
पांच बुधवार को किसी गणेश मंदिर में जाएं और गणेशजी को 108 दूर्वा अर्पित करें। मंदिर में बैठकर बुध के मंत्र ऊं ब्रां ब्रीं ब्रूं स: बुधाय स्वाहा का एक माला जाप करें। इससे बुध से जुड़ी सारी पीड़ाएं दूर हो जाएंगी। पांच बुधवार यह प्रयोग हो जाने के बाद छठे बुधवार को किसी ब्राह्मण दंपती को भोजन करवाकर उन्हें हरे रंग के वस्त्र भेंट करें।

चौथा उपाय
बुधवार के दिन यदि कोई किन्नर मिल जाए तो इससे शुभ कुछ और हो ही नहीं सकता। किन्नर को अपने घर में आमंत्रित करके उसे भोजन करवाएं, और यदि वह भोजन करने का इच्छुक न हो तो भोजन के लिए आवश्यक रूपये दें। उनके पैर पूजकर हरे रंग के वस्त्र भेंट करें। उनसे आशीर्वाद लें। इससे बुध की कृपा प्राप्त होगी और आपके सारे निर्णय सही साबित होने लगेंगे।

पांचवा उपाय
बुधवार के दिन एक मिट्टी के कलश में हरे खड़े मूंग भरें और कलश का मुंह हरे रंग के कपड़े से बांध दें। इस कलश का पूजन करें और इसे किसी सुनसान जगह में गड्ढा खोदकर दबा दें या किसी नदी में प्रवाहित कर दें। यह प्रयोग बुधवार के दिन ही करना है और इसके बारे में किसी को बताना नहीं है। आपने ऐसा किया है यह गुप्त रखना है।

विवाह नहीं हो रहा, कहीं आपकी कुंडली में ये दोष तो नहीं

अपनी संतानों का विवाह समय पर नहीं होने के कारण अनेक माता-पिता परेशान रहते हैं। विशेषकर लड़की है और उसके विवाह में कोई बाधा आ रही है तो परेशानी और भी बढ़ जाती है। उपाय जानने के लिए वे अनेक ज्योतिषीयों और पंडितों के पास भटकते रहते हैं किंतु उन्हें उचित समाधान नहीं मिल पाता और विवाह की उम्र बीतती चली जाती है।

वस्तुत: विवाह नहीं हो पाने का सबसे बड़ा कारण युवक-युवती की जन्मकुंडली में छुपा होता है। एक विद्वान ज्योतिषी कुंडली का गहन अध्ययन करके विवाह बाधा दोष और उसे दूर करने के उपाय बता सकता है। आइए सबसे पहले जानते हैं कैसे बनता है विवाह बाधा योग-

विवाह-बाधा योग
1. विवाह सुख का कारक भाव कुंडली का सप्तम भाव होता है। यदि सप्तम भाव का स्वामी अर्थात् सप्तमेश शुभ ग्रहों से युक्त न होकर छठे, आठवें या बारहवें भाव में बैठा हो और साथ में वह अस्त होकर या नीच राशि का होकर बैठा हो, तो जातक का विवाह कभी नहीं हो पाता है। वह जीवनभर अविवाहित ही रहता है।

2. सप्तम भाव का स्वामी द्वादश भाव में बैठा हो तथा जन्म राशि का स्वामी सप्तम भाव में बैठा हो, तो जातक के विवाह में अनेक बाधाएं आती हैं।

3. जन्मकुंडली के किसी भी स्थान में चंद्र तथा शुक्र दोनों एक साथ बैठे हों और उनसे सप्तम भाव में मंगल तथा शनि दोनों बैठे हों अर्थात चंद्र एवं शुक्र की युति से सातवें भाव में मंगल-शनि की युति हो तो भी विवाह नहीं हो पाता है।

4. सप्तम भाव में शुक्र और मंगल दोनों एक साथ बैठे हों तो भी विवाह में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातक का विवाह अक्सर नहीं हो पाता है।

5. जातक की जन्मकुंडली में शुक्र एवं मंगल दोनों ग्रह पंचम या नवम भाव में बैठे हों और इन पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो भी विवाह बाधा योग बनता है।

6. जातक की जन्मकुंडली में शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ पंचम, सप्तम या नवम भाव में हो तो जातक का विवाह नहीं हो पाता, वह स्त्री वियोग से पीड़ित रहता है।

7. जन्मकुंडली में यदि शुक्र-बुध-शनि तीनों ही नीच या शत्रु नवांश में हों, तो भी जातक विवाह विहीन होता है। अनेक प्रयासों के बाद भी जातक का विवाह नहीं हो पाता है।

8. जिसकी जन्मकुंडली में सातवें तथा बारहवें भाव में दो-दो या इससे अधिक पाप ग्रह बैठे हों तथा पंचम भाव में चंद्र बैठा हो तो जातक का विवाह नहीं होता।

9. कुंडली में सप्तम भाव में बुध तथा शुक्र दोनों हों, तो विवाह अनेक बाधाओं के बाद अधेड़ उम्र में होता है।

10. सप्तम भाव में दो पाप ग्रह एक साथ बैठें हों तथा इन पर सूर्य की सीधी दृष्टि पड़ रही हो तो भी विवाह में अनेक बाधाएं आती हैं।

कैसे दूर करें विवाह बाधा
– विवाह बाधा दोष काटने के लिए युवक या युवती को भगवान शिव पार्वती का नियमित रूप से पूजन करना चाहिए।
– किसी शिव मंदिर में विवाह बाधा निवारण पूजा करवानी चाहिए।
– विवाह बाधा निवारण यंत्र को घर में रखकर नियमित रूप से उसके दर्शन पूजन करना चाहिए।
– प्रत्येक मास की शिवरात्रि पर शिवजी का अभिषेक केसर के दूध से करें और मां पार्वती को सुहाग की सामग्री भेंट करें। यह उपाय केवल युवतियां करें।

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