रमा एकादशी पर भाग्य बदलने वाला उपाय


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी या रमणा एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी 28 अक्टूबर 2024 सोमवार को आ रही है। सभी एकादशियों में भगवान श्रीहरि विष्णु को रमा एकादशी अत्यंत प्रिय है क्योंकि योगनिद्रा में होने के बाद भी इस एकादशी के दिन उनका मन पृथ्वीलोक के प्राणियों में रमण करता है। कार्तिक अमावस्या महालक्ष्मी पूजा से पूर्व भगवान विष्णु योग माया से पृथ्वीलोक में यह जानने आते हैं कि मनुष्यगण मां लक्ष्मी के आगमन की तैयारी कैसी कर रहे हैं। इसलिए इस एकादशी का सर्वाधिक महत्व है।

रमा एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्यों को भगवान विष्णु समस्त सुख प्रदान करते हैं। इसलिए इस एकादशी को भाग्य बदलने वाली एकादशी भी कहा जाता है। व्रती के जीवन के सारे अभाव दूर हो जाते हैं। धन, संपत्ति, सुख, सम्मान, उत्तम संतान, श्रेष्ठ वैवाहिक जीवन सबकुछ रमा एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है। रमा एकादशी का व्रत पति-पत्नी को जोड़े से करना चाहिए तो अधिक उत्तम फलों की प्राप्ति होती है।

चूंकि यह एकादशी भाग्य बदलने वाली एकादशी कहलाती है इसलिए हम आपको ऐसे उपाय बताने जा रहे हैं जिन्हें करके आप भगवान विष्णु के कृपा पात्र बन सकते हैं और भाग्य भाग्य चमक उठेगा।

रमा एकादशी भगवान विष्णु की प्रिय एकादशी है और वे इस दिन पृथ्वी पर लक्ष्मी पूजा की तैयारी परखने आते हैं इसलिए इस दिन अपने घर को अच्छे से साफ-स्वच्छ करके सजावट करें। घर पर सुंदर वंदनवार सजाएं, फूल मालाओं से घर को सजाएं, द्वार पर फूलों और रंगों से आकर्षक रंगोली बताएं। इस दिन घर के सभी सदस्य साफ स्वच्छ वस्त्र धारण करें। सायंकाल में घर और बाहर दीप मालिकाएं सजाएं।

क्या है वह चमत्कारिक उपाय
1. रमा एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पीले पुष्पों से श्रृंगार करें, उन्हें तुलसी दल अर्पित करें। देसी घी का नैवेद्य लगाएं। एक पीला चौकोर कपड़ा लें और इस पर केसर की स्याही से ऊं हूं विष्णवे नम: 11 बार लिखें। इसका पूजन करें, धूप दीप करें और थोड़े से अक्षत डालें। फिर एक बार विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। पूजा के बाद इस कपड़े की पोटली बनाकर घर में उस स्थान पर रखें जहां आप धन आभूषण आदि रखते हैं।
2. रमा एकादशी के दिन विष्णु यंत्र की विधिवत स्थापना अपने घर में करें।
3. रमा एकादशी की शाम को किसी निर्जन स्थान पर जाएं वहां एक घी का दीपक लगाएं। दीपक के चारों ओर हल्दी का गोल घेरा बनाएं और दीपक में पीली कौड़ी डालें। वहां बैठकर ऊं हूं विष्णवे नम: मंत्र की एक माला हल्दी की माला से जपें। जाप पूरा होने के बाद चुपचाप बिना पीछे देखें वापस अपने घर लौट आएं।

रमा एकादशी का समय
एकादशी प्रारंभ : 27 अक्टूबर प्रात: 5:56
एकादशी पूर्ण : 28 अक्टूबर प्रात: 7:50
पारणा : 29 अक्टूबर प्रात: 6.30 से 8.46

धनतेरस : 29 अक्टूबर के पूजन मुहूर्त, विधि और योग


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस या धन त्रयोदशी मनाई जाती है। इसी दिन आयुर्वेद के देवता धनवंतरि समुद्र मंथन में से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस दिन उनकी जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष धनतेरस 29 अक्टूबर 2024 मंगलवार को मनाई जाएगी। इस दिन मंगलवार और त्रयोदशी का संयोग होने के कारण भौम प्रदोष का शुभ संयोग भी बना है। 29 अक्टूबर को त्रयोदशी तिथि प्रात: 10:32 से प्रारंभ होकर 30 अक्टूबर को दोपहर 1:14 बजे तक रहेगी। इसलिए धनतेरस की पूजा 29 अक्टूबर को सायंकाल में ही की जाएगी।

क्या खरीदें
धनतेरस के दिन स्वर्णाभूषण, वाहन, संपत्ति, भूमि-भवन, पीतल, तांबे, कांसे के बर्तन आदि खरीदे जाते हैं। 29 अक्टूबर को ऐंद्र योग रहेगा। इसलिए धनतेरस के दिन शुभ मुहूर्त में वस्तुओं की खरीदी अवश्य करें।

विशेष योग-संयोग
29 अक्टूबर को खरीदी के लिए पूरा दिन अत्यंत शुभ रहेगा। इस दिन भौम प्रदोष का संयोग होने से आभूषण, पीतल के बर्तन, सोना-चांदी खरीदना शुभ रहेगा। इस दिन सायं 5.49 से रात्रि 8.23 तक प्रदोष वेला रहेगी जिसमें धन का पूजन, बही खातों का लेखन-पूजन आदि करना चाहिए।

धनतेरस के पूजन मुहूर्त
सायं 7.25 से रात्रि 8.59 बजे तक
अवधि 1 घंटा 34 मिनट

प्रदोष काल मुहूर्त
सायं 5.49 से रात्रि 8.23 बजे तक
अवधि 2 घंटे 34 मिनट

वृषभ लग्न मुहूर्त
सायं 6:47 से रात्रि 8:45 बजे तक
अवधि 1 घंटा 58 मिनट

सिंह लग्न मुहूर्त
मध्य रात्रि 1:15 से 3:26
अवधि 2 घंटे 11 मिनट

धनतेरस पूजा विधि
धनतेरस के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर घर की साफ-सफाई करें। घर के बाहर भी आंगन को बुहारें। स्नानादि से निवृत्त होकर विभिन्न रंगों और फूलों से घर के मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर सुंदर सुंदर रंगोली सजाएं। रंगोली से देवी लक्ष्मी के चरण चिन्ह भी जरूर बनाएं। पूजा स्थान को भी साफ करके भी नियमित देवताओं का पूजन करें। धनतेरस की पूजा सायंकाल के समय की जाती है। प्रदोषकाल में या मुहूर्त काल में पूजा स्थान में उत्तर दिशा की ओर यक्षराज कुबेर और धनवंतरि की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इससे पहले भगवान गणेश और लक्ष्मी का पूजन भी करें। कुबेर को सफेद मिठाई या खीर का नैवेद्य लगाएं तथा धनवंतरि को पीली मिठाई का भोग लगाएं। पूजा में पीले-सफेद फूल, पांच प्रकार के फल अवश्य रखें।

व्यापारियों के लिए पूजा विधान
धनतेरस के दिन अपने प्रतिष्ठान, दुकान में साफ-सफाई करके नई गादी बिछाएं। जिस पर बैठकर नए बही खातों का पूजन करें। दुकान में लक्ष्मी और कुबेर का पूजन करें है। पूजा के पाने का भी पूजन किया जाता है।

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जानिए करवा चतुर्थी व्रत की संपूर्ण पूजन विधि, कथा


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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करवा चतुर्थी का व्रत 20 अक्टूबर 2024 रविवार को किया जाएगा। सुहागिन महिलाएं अपने पति के स्वस्थ और दीर्घायु होने की कामना से यह व्रत निर्जला रहकर करती हैं। इस व्रत को करने के कुछ विशिष्ट विधान और नियम हैं, उनका पालन किया जाना अत्यंत आवश्यक होता है। यहां हम आपको संपूर्ण सामग्री और पूजा करने की विधि की जानकारी दे रहे हैं।

क्या पूजन सामग्री आवश्यक
करवा चौथ की पूजन सामग्री में सबसे आवश्यक वस्तु करवा होता है। यह मिट्टी का बना टोंटी वाला छोटा सा कलश होता है जिसके ऊपर ढंकने के लिए मिट्टी का दीया होता है। अनेक लोग मिट्टी की जगह धातु का करवा भी लेते हैं, लेकिन मिट्टी के करवे की अधिक मान्यता होती है और इसे अत्यंत पवित्र बताया गया है। इसके अलावा मिट्टी के दो दीये। करवे में लगाने के लिए कांस की तीलियां। पूजन के लिए कुमकुम, चावल, हल्दी, गुलाल, अबीर, मेहंदी, मौली, फूल, फल, प्रसाद आदि। पति का चेहरा देखने के लिए छलनी। जल से भरा कलश-लोटा । चौकी, करवा चतुर्थी पूजन का पाना अर्थात् चित्र जिसमें चंद्रमा, शिव, पार्वती, कार्तिकेय आदि के चित्र बने होते हैं। करवा चौथ कथा की पुस्तक, धूप, दीप। सुहाग की सामग्री जिसमें हल्दी, मेहंदी, काजल, कंघा, सिंदूर, छोटा कांच, बिंदी, चुनरी, चूड़ी। करवे में भरने के लिए गेहूं, शकर, खड़े मूंग।

करवा चौथ की पूजन विधि
– करवा चतुर्थी के दिन सूर्योदय पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत होकर साफ-स्वच्छ वस्त्र पहनें। श्रृंगार करें और अपने घर के पूजा स्थान को साफ स्वच्छ कर लें। भगवान श्री गणेश का ध्यान करते हुए करवा चौथ व्रत का संकल्प लें। पूरे दिन निर्जला रहें।
– सामने दीवार पर करवा चौथ पूजा का पाना चिपकाएं। नीचे चौकी पर वस्त्र बिछाकर एक करवा रखें जिसमें गेहूं, चावल या शकर भरे जाते हैं। सामने पाने पर गणेशजी से प्रारंभ करके समस्त पूजन सामग्री से पूजन करें। फिर करवे का पूजन करें। करवे पर स्वस्तिक बनाएं फल रखें, फूल अर्पित करें, कुछ मुद्रा अर्पित करें। करवे के ढक्कन में खड़े हरे मूंग या शकर भर दें।
– गणेश गौरी का पूजन करें। गौरी को समस्त सुहाग की सामग्री भेंट करें।
– इसके बाद करवा चतुर्थी व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। कथा सुनने से पहले हाथ में चावल के 13 दानें लें। इन दानों को साड़ी के छोर पर बांध लें।
– इस प्रकार तीन बार पूजन किया जाता है। सुबह पूजा करने के बाद दोपहर में चार बजे और फिर रात्रि में चंद्रोदय के पूर्व। तीनों बार की पूजा हो जाने के बाद रात्रि में चंद्रोदय की प्रतीक्षा की जाती है।
– चंद्रोदय होने पर चंद्र देव का पूजन करें। जल का अर्घ्य दें, साड़ी के छोर में बंधे चावल के 13 दानें निकालकर उन्हें अर्घ्य के साथ चंद्र को अर्पित करें। दीपक से चंद्र की आरती करें। फिर छलनी में से पति का चेहरा देखें। इसके बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलें और भोजन ग्रहण करें।
– पूजा में उपयोग किया हुआ करवा सास या सास के समान किसी सुहागिन महिला को भेंट करें।

करवा चतुर्थी व्रत की कथा
करवा चतुर्थी का व्रत के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं किंतु सर्वाधिक चर्चित कथा यहां प्रस्तुत की जा रही है।

किसी समय इंद्रप्रस्थ नामक नगर में वेद शर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी लीलावती के साथ सुखपूर्वक निवास करता था। उसके सात योग्य और सुशील पुत्र थे और वीरावती नाम की एक सुंदर पुत्री थी। सातों भाइयों का विवाह हो जाने के पश्चात वीरावती का भी विवाह संपन्न कर दिया गया।

जब कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आई तो वीरावती ने अपनी समस्त भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखा। वीरावती ने विवाह के बाद पहली बार यह व्रत रखा था इसलिए वह भूख-प्यास सहन नहीं कर पाई और मूर्छित हो गई। भाभियां जैसे-तैसे वीरावती के मुख पर जल के छींटे मारकर उसे अर्द्धचेतनावस्था में लेकर आई।

सातों भाई जब व्यापार करके भोजन करने घर आए तो उनसे अपनी प्यारी बहन की ऐसी हालत देखी नहीं गई। उन्होंने अपनी बहन से भोजन करने को कहा तो उसने इन्कार कर दिया कि जब तक वह चंद्र का दर्शन नहीं कर लेगी, तब तक भोजन ग्रहण नहीं करेगी। इस पर भाइयों को चिंता सताने लगी कि कहीं बहन की हालत और बुरी न हो जाए तो उन्होंने एक उपाय सोचा। दो भाई घर से दूर चले गए और दूर जंगल में जाकर एक पेड़ पर चढ़कर उन्होंने मशाल की रोशनी दिखाई। घर पर मौजूद अन्य भाइयों ने बहन को दूर से आती रोशनी दिखाई और कहा कि चंद्रमा का उदय हो गया है। बहन भ्रम में पड़ गई और मशाल की रोशनी को चंद्रमा की रोशनी समझकर पूजन कर व्रत तोड़ दिया।

चूंकि वास्तव में व्रत पूरा नहीं हुआ था इसलिए इसका दुखद परिणाम हुआ और कुछ समय बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई। उसी रात इंद्राणी पृथ्वी पर आई। वीरावती ने उससे इस घटना का कारण पूछा तो इंद्राणी ने कहा कि तुमने भ्रम में फंसकर चंद्रोदय होने से पहले ही भोजन कर लिया। इसलिए तुम्हारे साथ यह घटना हुई है। पति को पुनर्जीवित करने के लिए तुम विधिपूर्वक करवा चतुर्थी व्रत का संकल्प करो और अगली करवा चतुर्थी आने पर व्रत पूर्ण करो। वीरावती से संकल्प लिया तो उसका पति जीवित हो गया। फिर अगला करवा चतुर्थी आने पर वीरावती से विधि विधान से व्रत पूर्ण किया। इस प्रकार करवा चतुर्थी व्रत कथा पूर्ण हुई।

करवा चतुर्थी पर बना शश, गजकेसरी, बुधादित्य योग


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन करवा चतुर्थी का व्रत किया जाता है। यह व्रत इस बार 20 अक्टूबर 2024 रविवार को आ रहा है। इस बार करवा चतुर्थी पर अनेक शुभ योग बन रहे हैं। इस दिन चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में रहने के साथ ही अपने सबसे प्रिय नक्षत्र रोहिणी में तो रहेगा ही, इसके साथ ही इस दिन गजकेसरी, बुधादित्य और शश योग भी बन रहे हैं। इन अनेक शुभ योगों की साक्षी में व्रत और चंद्रमा का पूजन पति-पत्नी के जीवन में नए प्रेम का संचार करेगा। दोनों की निकटता बढ़ेगी और संबंधों में गर्माहट आएगी। यह व्रत मुख्य रूप से सुहागिन महिलाएं करती हैं।

गजकेसरी योग
किसी भी कुंडली में गजकेसरी योग गुरु और चंद्रमा की युति से बनता है। अगर चारों केंद्र स्थान यानी लग्न, चतुर्थ, सप्तम और दशम भाव में गुरु-चंद्र साथ हो और बलवान हो तो गजकेसरी योग बनता है। अगर त्रिकोण भाव में ये दोनों ग्रह हों तो भी गजकेसरी योग बनता है। इस दिन गुरु के साथ वृषभ राशि में चंद्र की युति हो रही है। इसलिए गजकेसरी योग बन रहा है। इस योग में करवा चतुर्थी का पूजन करना अत्यंत शुभ रहेगा।

बुधादित्य योग
सूर्य और बुध की युति से बनता है बुधादित्य योग। 20 अक्टूबर को तुला राशि में सूर्य और बुध एक साथ बैठे हुए हैं। इसलिए बुधादित्य योग का निर्माण हो रहा है। इस योग में करवा चतुर्थी का आना अपने आप में एक श्रेष्ठ संयोग है। इसके प्रभाव से पारिवारिक जीवन में शुभता और सौख्यता आती है।

शश योग
शश योग शनि से बनने वाला एक अत्यंत शुभ योग कहा जाता है। शनि जब केंद्र स्थानों में स्वराशि में होता है तो शश योग बनता है। शनि पूर्व से ही स्वराशि कुंभ में गोचर कर रहा है। 20 अक्टूबर को केंद्र स्थान में होने के कारण शश योग का निर्माण हो रहा है। चूंकि शनि स्थायित्व का प्रतीक है इसलिए इस दिन करवा चतुर्थी आने से पति-पत्नी के रिश्तों में स्थायी प्रेम का संचार होगा।

उच्च का चंद्र और प्रिय रोहिणी
करवा चतुर्थी के दिन चंद्र अपनी उच्च राशि वृषभ में रहेगा और इसके साथ अपने सबसे प्रिय नक्षत्र रोहिणी में भी भ्रमण करेगा। यह
दांपत्य जीवन की सुख-सफलता के लिए श्रेष्ठ संयोग है। इतने सारे योग संयोग के कारण इस बार का करवा चतुर्थी व्रत अत्यंत श्रेष्ठ और शुभ बन गया है। इसलिए जो दंपती इस दिन एक-दूसरे के लिए व्रत रखेंगे उनका दांपत्य जीवन सदैव सुखमय रहने वाला है।

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कार्तिक मास के प्रमुख व्रत-त्योहार

कार्तिक मास 18 अक्टूबर 2024 से 15 नवंबर 2024 तक रहेगा। कार्तिक मास के प्रधान देव भगवान श्रीहरि विष्णु हैं। इस पूरे मास में भगवान विष्णु और लक्ष्मी का पूजन, उनके मंत्रों का जाप आदि करने से अक्षय पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। इस मास में द्विदल अर्थात् दालों के सेवन का त्याग करने का निर्देश शास्त्रों में दिया गया है। यह वर्ष का सबसे प्रमुख मास होता है क्योंकि इसी मास में सनातन संस्कृति का सबसे बड़ा त्योहार दीपावली आता है। इस पूरे मास यदि मां लक्ष्मी की साधना की जाए तो मनुष्य को हर वो सुख प्राप्त हो सकता है जिसकी वह कामना करता है।

कार्तिक में अनेक बड़े व्रत, पर्व, त्योहार आते हैं। इस मास में देव प्रबोधिनी एकादशी भी आती है, जिस पर चातुर्मास समाप्त होता है और वैवाहिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। कई ग्रहों का राशि परिवर्तन भी इस मास में होने वाला है। आइए जानते हैं कार्तिक मास में आने वाले प्रमुख त्योहारों के बारे में-

प्रमुख शुभ योग
18 अक्टूबर- सर्वार्थसिद्धि योग प्रात: 6:29 से दोप 1:27
21 अक्टूबर- सर्वार्थसिद्धि योग प्रात: 6:30 से 6:50 पश्चात अमृतसिद्धि रात्रि 2:29 तक
22 अक्टूबर- रवियोग दिन-रात
23 अक्टूबर- रवियोग रात्रि 1:42 से दूसरे दिन प्रात: 6:15 तक
24 अक्टूबर- गुरु-पुष्य का संयोग संपूर्ण दिन-रात
30 अक्टूबर- सर्वार्थसिद्धि योग प्रात: 6:35 से रात्रि 9:43
4 नवंबर- सर्वार्थसिद्धि योग प्रात: 6:35 से 8:50 तक, रवियोग प्रात: 8:06 से
8 नवंबर- सर्वार्थसिद्धि योग दोप 12:02 से
12 नवंबर- सर्वार्थसिद्धि योग प्रात: 7:52 से संपूर्ण दिन रात

प्रमुख व्रत, त्योहार, पर्व
20 अक्टूबर- करवा चतुर्थी, संकट चतुर्थी, चंद्रोदय रात्रि 8:16 पर
24 अक्टूबर- अहोई अष्टमी, कालाष्टमी
28 अक्टूबर- रमा एकादशी, गोवत्स द्वादशी
29 अक्टूबर- भौम प्रदोष व्रत, धनतेरस, सायंकाल में दीपदान
30 अक्टूबर- रूप चतुर्दशी, नरक चतुर्दशी
31 अक्टूबर- कार्तिक अमावस्या, महालक्ष्मी पूजा, दीपावली
1 नवंबर- गोवर्धन पूजा, अन्नकूट महोत्सव, बलिपूजा
2 नवंबर- मत भिन्नता के कारण गोवर्धन पूजा और भाई दूज इस दिन भी मनाई जाएगी।
3 नवंबर- भाईदूज, यम द्वितीया, चित्रगुप्त पूजा।
5 नवंबर- विनायक चतुर्थी व्रत
6 नवंबर- सौभाग्य पंचमी, पांडव पंचमी
7 नवंबर- सूर्य षष्ठी, छठ पूजा
9 नवंबर- गोपाष्टमी
10 नवंबर- आंवला नवमी, कूष्मांड नवमी, अक्षय नवमी
11 नवंबर- भीष्म पंचक व्रत प्रारंभ
12 नवंबर- देव उठनी एकादशी, तुलसी विवाह
13 नवंबर- प्रदोष व्रत, चातुर्मास समाप्त
14 नवंबर- बैकुठ चतुर्दशी, हरिहर मिलन
15 नवंबर- कार्तिक पूर्णिमा, देव दीपावली, भीष्म पंचक व्रत पूर्ण, कार्तिक स्नान समाप्त

ग्रहों के राशि परिवर्तन
20 अक्टूबर- मंगल कर्क में दोप 2:19 से
21 अक्टूबर- बुध उदय पश्चिम में सायं 7:41 पर
29 अक्टूबर- बुध वृश्चिक में रात्रि 10:39 से
6 नवंबर- शुक्र धनु में रात्रि 3:32 से
15 नवंबर- शनि मार्गी सायं 7:52 से

शरद पूर्णिमा की रात्रि में एक उपाय से होगी धन की बरसात

आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर 2024 को है। यह पूर्णिमा अत्यंत सिद्ध और चमत्कारिक होती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि में मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के उपाय भी किए जाते हैं। अनेक तांत्रिक लोग इस पूर्णिमा पर लक्ष्मी साधनाएं करते हैं।

लक्ष्मी साधना के लिए सामग्री
मां लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र, श्रीयंत्र धातु का या चित्र, एक कलश, नारियल, लकड़ी की चौकी, लाल कपड़ा, पूजन की समस्त सामग्री, सिंदूर, कुमकुम, मौली, अक्षत, केसर, चंदन, एक मोती शंख, पांच गोमती चक्र, पांच पीली-सफेद कौड़ी, पांच प्रकार के फल, मखाने की खीर।

कैसे करें लक्ष्मी साधना
शरद पूर्णिमा की रात्रि में ठीक 12 बजे एक लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर मां लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके साथ ही श्रीयंत्र भी स्थापित करें। श्रीयंत्र किसी धातु का भी हो सकता है और चित्र भी। धातु को हो तो ज्यादा शुभ है। अब साबुत चावल की ढेरी बनाकर उस पर एक कलश में जल भरकर रखें और उसमें लाल पुष्प डालें और उस पर लाल कपड़ा रखकर नारियल रख दें। अब समस्त द्रव्यों से लक्ष्मी और श्रीयंत्र का पूजन करें। श्रीयंत्र पर केसर को घोलकर नौ बिंदियां लगाएं। लक्ष्मी मां को सुंदर वस्त्राभूषण से सुशोभित करें। गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से पूजा करें। मोती शंख, गोमती चक्र और कौड़ियों का पूजन करें, केसर की बिंदी लगाएं। मां लक्ष्मी को मखाने की खीर का नैवेद्य लगाएं। अब श्रीसूक्त या कनकधारा स्तोत्र के 21 पाठ करें। लक्ष्मी मां की आरती करें। अगले दिन एक लाल कपड़े की पोटली सिलकर उसमें मोती शंख, गोमती चक्र और पीली कौड़ी बांधकर रख लें। इसे ऐसे स्थान पर सुरक्षित रख लें जहां आप अपना धन, पैसा, आभूषण रखते हों।

लक्ष्मी साधना के लाभ
1. लक्ष्मी साधना करने के लिए शरद पूर्णिमा सबसे उपयुक्त और श्रेष्ठ दिन होता है। इस दिन चंद्र अपनी पूर्ण कलाओं से युक्त होता है।
2. लक्ष्मी साधना करने से साधक के जीवन में शुभ संकल्पों का संचार होता है। उसके कार्यों की बाधाएं दूर होती जाती हैं और वह जीवन में निरंतर उन्नति करता जाता है। उसके जीवन में किसी चीज का अभाव नहीं रह जाता है।
3. शरद पूर्णिमा पर की गई लक्ष्मी साधना कार्तिक अमावस्या के समान फलदायी होती है और इस दिन मां लक्ष्मी अपनी कृपा बरसाने को आतुर रहती हैं।
4. इस रात्रि में जो साधक लक्ष्मी साधना करता है उसके घर में स्थायी रूप से लक्ष्मी का वास हो जाता है।
5. शरद पूर्णिमा पर श्रीयंत्र की साधना करने से धन-संपत्ति, सुख-वैभव, सम्मान की प्राप्ति होती है।
6. शरद पूर्णिमा भगवान श्रीकृष्ण का पूजन भी अवश्य करना चाहिए। इससे साधक के आकर्षण प्रभाव में वृद्धि होती है।

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आश्विन पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा या कोजागर पूर्णिमा कहा जाता है। यह पूर्णिमा आज 16 अक्टूबर 2024 बुधवार को है। पौराणिक मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में पूर्ण चंद्र अपनी शीतल किरणों के साथ अमृत की बूंदें पृथ्वी पर बरसाता है। जिसे ग्रहण करके करके मनुष्य के सारे रोगों का निवारण हो जाता है। हालांकि पूर्णिमा को लेकर भी कई लोगों में भ्रम है कि यह 16 को की जाए या 17 अक्टूबर को तो इसका उत्तर है पूर्णिमा 16 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी।

पंचांग के अनुसार 16 अक्टूबर को पूर्णिमा रात्रि 8:40 बजे से प्रारंभ होकर 17 अक्टूबर को सायं 4:55 बजे तक रहेगी। चूंकि पूर्णिमा में अर्द्धरात्रि में पूर्ण चंद्र का महत्व होता है इसलिए शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी। इसी दिन शरद पूर्णिमा व्रत और कोजागर व्रत भी किया जाएगा।

17 को सूर्योदय व्यापिनी पूर्णिमा रहने से सत्यनारायण व्रत और आश्विन पूर्णिमा व्रत इस दिन किया जाएगा। इसी दिन से कार्तिक स्नान भी प्रारंभ हो जाएगा।

खीर का महत्व
शरद पूर्णिमा के खीर का बड़ा महत्व बताया गया है। पौराणिक मान्यताएं हैं कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में पूर्ण चंद्र अपनी संपूर्ण कलाओं से युक्त रहता है जिसमें एक कला अमृत वर्षा भी है। इसलिए इस दिन खीर या दूध को रात्रि 12 बजे चंद्र की पूर्ण चांदनी में रखा जाता है। चंद्र से निकलने वाली अमृत बूंदे उस खीर या दूध में पड़ती हैं जिसका सेवन करने से मनुष्य के सारे रोग और मानसिक संताप दूर हो जाते हैं। इस दिन मेवे युक्त दूध या खीर बनाकर उसे चंद्र की चांदनी में रखें और पूरा परिवार निष्ष्ठा के साथ इसका सेवन करें।

शरद पूर्णिमा पर क्या करें
1. शरद पूर्णिमा की रात्रि में मून मेडिटेशन (Moon Meditation) करना चाहिए। इसके लिए अपने घर की छत या किसी खुली शांत जगह में दरी या चटाई बिछाकर बैठ जाएं। अपनी कमर सीधी रखें और चंद्र पर सीधी दृष्टि डालते हुए बिना पलक झपकाए उसे अधिक से अधिक समय तक देखने का प्रयास करें। इससे आपके अंदर एकाग्रता आएगी और मानसिक रूप से आप मजबूत होंगे।

2. बंद आंखों से ध्यान Meditation करें। खुली शांत जगह में कुछ बिछाकर बैठ जाएं और अपनी कमर सीधी रखते हुए आंखों को बंद करें और अपनी दोनों भौहों के मध्य में पूर्ण चंद्र का ध्यान करें। जितना अधिक देर बैठेंगे उतना मन शांत होगा।

3. आज के दिन एक सूखे नारियल के गोले में छोटा सा छेद करें और उसमें उबालकर ठंडा किया हुआ मीठा दूध भर दें। गोले को पुन: बंद करके रात भर शरद पूर्णिमा की चंद्र की चांदनी में रख दें। सुबह यह दूध जो भी पियेगा उसके सारे मानसिक रोग दूर हो जाएंगे।

4. सौंदर्य में वृद्धि के लिए शरद पूर्णिमा की रात्रि में एक चांदी के कटोरे में गुलाब जल, हल्दी और चंदन का पाउडर मिलाकर चांदनी में रख दें। इसका उबटन बनाकर लगाने से सौंदर्य में निखार आता है।

5. एक मोती शंख में गुलाबजल भरकर रातभर चांदनी में छोड़ दें। इस गुलाबजल को चेहरे पर लगाने से शुक्र बलवान होगा। सौंदर्य और आकर्षण प्रभाव में वृद्धि होगी।

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कर्ज मुक्ति चाहते हैं, आज भौम प्रदोष पर करें ये उपाय

आजकल आय के साधन सीमित हैं और खर्च अधिक। इसलिए व्यक्ति को न चाहते हुए भी अपने परिवार की जरूरतें पूरी करने के लिए कर्ज लेना ही पड़ता है। होम लोन, कार लोन, एजुकेशन लोन, बच्चों की शादी के लिए लोन, बीमारी के लिए लोन और अन्य आवश्यकताओं के लिए व्यक्ति एक बार लोन ले लेता है तो फिर कर्ज के जाल में उलझता चला जाता है। यदि आपके साथ भी कुछ ऐसा हो रहा है। आप कर्ज के दलदल में फंस चुके हैं और लाख प्रयासों के बाद भी इससे बाहर नहीं निकल पा रहे हैं और कर्ज बढ़ता ही जा रहा है तो हमारे शास्त्रों में इसके लिए विशिष्ट उपाय बताए गए हैं। ये उपाय भौम प्रदोष के दिन करने से शीघ्र ही कर्ज मुक्ति होती है।

भौम प्रदोष 15 अक्टूबर 2024 मंगलवार को आ रहा है। इसदिन व्रत रखें या न रखें लेकिन शिवजी का पूजन अभिषेक अवश्य करें। हम आपको कुछ उपाय बता रहे हैं जो करके आप अपने घर में आने वाले धन का प्रवाह बढ़ा सकते हैं और शीघ्र कर्ज के जाल से मुक्त हो सकते हैं।

पहला उपाय
भौम प्रदोष के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर लाल रंग के कपड़े पहनें और किसी शिव मंदिर में जाएं। अपने साथ सवा सौ ग्राम लाल मसूर की दाल लेकर जाएं। शिवजी को पहले शुद्ध जल से अभिषेक करवाएं उसके बाद ऊं ऋण मुक्तेश्वराय नम: मंत्र का जाप मन ही मन करते हुए मसूर की दाल शिवलिंग पर अर्पित करें। यह प्रयोग भौम प्रदोष से प्रारंभ करके लगातार 11 मंगलवार करें। शीघ्र ही आपका कर्ज कम होने लगेगा।

दूसरा उपाय
भौम प्रदोष के दिन शिवजी का अभिषेक केसर युक्त गाय के दूध से करें। और अभिषेक करते समय 108 बार ऊं वित्तेश्वराय नम: मंत्र का जाप करें। इस प्रयोग से आपके घर में धन का प्रवाह बढ़ने लगेगा। अनेक माध्यमों से धन आएगा।

तीसरा उपाय
भौम प्रदोष के दिन तांबे के मंगल यंत्र की स्थापना अपने घर में करें। इसे गंगाजल से स्नान करवाएं। इस पर लाल चंदन की नौ बिंदियां लगाएं। लाल गुड़हल का पुष्प अर्पित करें और ऋण मोचक मंगल स्तोत्र का 21 बार पाठ करें। कर्ज जल्द ही उतरने लगेगा।

चौथा उपाय
21 लाल गुड़हल के पुष्प लेकर हनुमान मंदिर में जाएं। हनुमान जी को चमेली के तेल से सिंदूर का चोला चढ़ाएं। उन्हें नया लंगोट पहनाएं। आकर्षक श्रृंगार करें, गुड़-चने का नैवेद्य लगाएं और फिर एक-एक करके 21 गुड़हल के पुष्प उन्हें अर्पित करें और प्रत्येक पुष्प के साथ उनसे मन ही मन अपने कर्ज से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना करें। इस दौरान ऊं हं हनुमते नम: मंत्र भी मन ही मन बोलते जाएं। धन की वर्षा होने लगेगी।

पांचवां उपाय
भौम प्रदोष के लिए एक लाल चंदन की माला लें। इस माला का संस्कार करें, अर्थात् इसे गंगाजल से धोकर शुद्ध कर लें, पूजन करें और ऊं ऋण मुक्तेश्वराय नम: मंत्र की 11 माला हनुमानजी या शिवजी के सामने बैठकर करें। इससे आपके पास अनेक माध्यमों से धन आने लगेगा और कर्ज मुक्ति होगी।

दशहरा : नीलकंठ को देख लिया तो समझो हो गई जीत

दशहरा हिंदू धर्म का सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख त्योहार है। वृहद रूप में यह त्योहार भगवान राम द्वारा रावण का वध किए जाने के रूप में मनाया जाता है। जब प्रभु श्रीराम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ चौदह वर्ष के वनवास पर गए थे, तब लंका के राजा रावण ने सीता का अपहरण कर उन्हें लंका की अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा था और उन पर त्रिजटा समेत अनेक राक्षसियों का पहरा लगा दिया था। दशहरा अर्थात विजयादशी आज 12 अक्टूबर 2024 को मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं दशहरा और इससे जुड़ी अन्य मान्यताओं और परंपराओं के बारे में-

नीलकंठ का दर्शन
दशहरा के दिन नीलकंठ का दर्शन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। नीलकंठ एक पक्षी होता है जो गहरे और हल्के नीले रंगों के मिश्रण वाला होता है। इसका गला अर्थात् कंठ पूरा नीला होता है। इस पक्षी को साक्षात भगवान शिव का स्वरूप कहा जाता है। भगवान राम ने रावण का वध करने से पूर्व इस पक्षी का दर्शन किया था। यदि दशहरे के दिन यह पक्षी दिखाई दे जाए तो इसे प्रणाम अवश्य करना चाहिए। इससे सर्वत्र आपकी जीत होगी।

शमी पत्र का महत्व
दशहरे के दिन रावण दहन के पश्चात एक-दूसरे को शमी पत्र दिया जाता है। जिसे आम बोलचाल की भाषा में सोना पत्ती कहा जाता है। पौराणिक मान्यता है कि आश्विन शुक्ल दशमी के दिन धनपति कुबेर ने राजा रघु को शमी की पत्तियां देते हुए उन्हें स्वर्ण में बदल दिया था। इसलिए शमी पत्र देने का महत्व है। इस दिन शमी के वृक्ष का पूजन भी किया जाता है। इससे जुड़ी महाभारत काल की कथा है कि जब पांडव अज्ञात वास पर थे तब अर्जुन ने शमी के पेड़ पर अपना गांडीव धनुष छुपाकर रखा था और जब महाभारत युद्ध प्रारंभ हुआ तो इसी पेड़ से धनुष निकालकर युद्ध में विजय पाई थी।

देवी ने किया था महिषासुर वध
विजयादशमी महिषासुर वध का दिन भी है। इस दिन देवी दुर्गा के कात्यायिनी स्वरूप ने महिषासुर का वध करके तीनों लोगों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। इसलिए इस दिन शस्त्र पूजा करने की परंपरा भी है।

अबूझ या सर्वसिद्ध मुहूर्त दशहरा
दशहरा अर्थात विजयादशमी का दिन अबूझ मुहूर्त वाला कहलाता है। अर्थात् इस दिन कोई भी काम प्रारंभ करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं रहती है। इसलिए इस दिन भूमि, भवन, वाहन, आभूषण आदि की खरीदी बड़ी संख्या में की जाती है। इस दिन की गई खरीदी सुख समृद्धि देने वाली होती है। इस दिन गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण आदि काम भी किए जाते हैं।

अष्टमी, नवमी पूजन कब करें, दशहरा कब मनाएं

आश्विन मास की शारदीय नवरात्रि में इस बार चतुर्थी तिथि में वृद्धि के कारण आम जनमानस में अष्टमी-नवमी पूजन को लेकर भारी भ्रम बना हुआ है। अष्टमी-नवमी ऐसे दिन होते हैं जब घरों में कुलदेवी का पूजन किया जाता है। इस बार चतुर्थी तिथि दो दिन होने के कारण आगे की दो तिथियां संयुक्त हो गई हैं। इस लेख में आपको सटीक और सही शास्त्र सम्मत जानकारी दी जा रही है। पढ़ें और लाभ लें तथा इसे आगे भी प्रसारित करना न भूलें।

इस वर्ष शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर 11 अक्टूबर 2024 आश्विन शुक्ल नवमी तक रहेंगे। अब इस बार सबसे ज्यादा भ्रम की स्थिति अष्टमी और नवमी पूजन को लेकर है। कई लोग 10 अक्टूबर को अष्टमी पूजन कर रहे हैं तो कई लोग 11 अक्टूबर को अष्टमी पूजन करेंगे।

पंचांगों के अनुसार 10 अक्टूबर को अष्टमी तिथि दोपहर 12 बजकर 32 मिनट से प्रारंभ होकर 11 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 06 मिनट तक रहेगी। शास्त्रों में सप्तमी युक्त अष्टमी तिथि में कुलदेवी पूजन निषेध बताया गया है। इसलिए 10 अक्टूबर को कुलदेवी पूजन नहीं किया जाएगा। इस दिन भद्रा भी रहेगी।

11 अक्टूबर को सूर्योदय के समय अष्टमी तिथि रहेगी और दोपहर 12:06 से नवमी लग जाएगी। इसलिए कुलदेवी का पूजन नवमी युक्त अष्टमी तिथि में 11 अक्टूबर को ही करें। नवमी युक्त अष्टमी तिथि में कुलदेवी का पूजन करना सर्वसुखदायक और श्रेष्ठ रहेगा।

अब यहां प्रश्न यह उठता है कि अनेक लोग सायंकाल में नवमी पूजन करते हैं। तो उनके लिए उत्तर यह है कि जो लोग सायंकाल में नवमी पूजन करते हैं वे 11 अक्टूबर को ही सायंकाल में नवमी पूजन कर लें। जो लोग प्रात:काल में नवमी पूजन करते हैं वे 12 अक्टूबर को प्रात: नवमी का कुलदेवी पूजन करें और कन्या भोजन, हवन, नवरात्रि पूजन आदि 12 अक्टूबर को प्रात: ही करें।

दशहरा कब
12 अक्टूबर को नवमी तिथि प्रात: 10:57 बजे तक रहेगी। इसके बाद दशमी लग जाएगी। इसलिए दशहरा विजयादशमी 12 अक्टूबर
को ही मनाया जाएगा।

प्रमुख तारीखें
11 अक्टूबर शुक्रवार- अष्टमी पूजन, सायंकाल नवमी पूजन
12 अक्टूबर शनिवार- प्रात:काल नवमी पूजन, कन्या पूजन, हवन आदि और सायंकाल में दशहरा

तिथि कब तक
11 अक्टूबर- अष्टमी दोपहर 12:06 बजे तक, पश्चात नवमी
12 अक्टूबर- नवमी प्रात: 10:57 बजे तक, पश्चात दशमी

यह समस्त जानकारी पंचांगों को शास्त्रों के आधार पर है। अत: किसी भी प्रकार का भ्रम न रखें।