धनतेरस : 29 अक्टूबर के पूजन मुहूर्त, विधि और योग


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस या धन त्रयोदशी मनाई जाती है। इसी दिन आयुर्वेद के देवता धनवंतरि समुद्र मंथन में से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस दिन उनकी जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष धनतेरस 29 अक्टूबर 2024 मंगलवार को मनाई जाएगी। इस दिन मंगलवार और त्रयोदशी का संयोग होने के कारण भौम प्रदोष का शुभ संयोग भी बना है। 29 अक्टूबर को त्रयोदशी तिथि प्रात: 10:32 से प्रारंभ होकर 30 अक्टूबर को दोपहर 1:14 बजे तक रहेगी। इसलिए धनतेरस की पूजा 29 अक्टूबर को सायंकाल में ही की जाएगी।

क्या खरीदें
धनतेरस के दिन स्वर्णाभूषण, वाहन, संपत्ति, भूमि-भवन, पीतल, तांबे, कांसे के बर्तन आदि खरीदे जाते हैं। 29 अक्टूबर को ऐंद्र योग रहेगा। इसलिए धनतेरस के दिन शुभ मुहूर्त में वस्तुओं की खरीदी अवश्य करें।

विशेष योग-संयोग
29 अक्टूबर को खरीदी के लिए पूरा दिन अत्यंत शुभ रहेगा। इस दिन भौम प्रदोष का संयोग होने से आभूषण, पीतल के बर्तन, सोना-चांदी खरीदना शुभ रहेगा। इस दिन सायं 5.49 से रात्रि 8.23 तक प्रदोष वेला रहेगी जिसमें धन का पूजन, बही खातों का लेखन-पूजन आदि करना चाहिए।

धनतेरस के पूजन मुहूर्त
सायं 7.25 से रात्रि 8.59 बजे तक
अवधि 1 घंटा 34 मिनट

प्रदोष काल मुहूर्त
सायं 5.49 से रात्रि 8.23 बजे तक
अवधि 2 घंटे 34 मिनट

वृषभ लग्न मुहूर्त
सायं 6:47 से रात्रि 8:45 बजे तक
अवधि 1 घंटा 58 मिनट

सिंह लग्न मुहूर्त
मध्य रात्रि 1:15 से 3:26
अवधि 2 घंटे 11 मिनट

धनतेरस पूजा विधि
धनतेरस के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर घर की साफ-सफाई करें। घर के बाहर भी आंगन को बुहारें। स्नानादि से निवृत्त होकर विभिन्न रंगों और फूलों से घर के मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर सुंदर सुंदर रंगोली सजाएं। रंगोली से देवी लक्ष्मी के चरण चिन्ह भी जरूर बनाएं। पूजा स्थान को भी साफ करके भी नियमित देवताओं का पूजन करें। धनतेरस की पूजा सायंकाल के समय की जाती है। प्रदोषकाल में या मुहूर्त काल में पूजा स्थान में उत्तर दिशा की ओर यक्षराज कुबेर और धनवंतरि की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इससे पहले भगवान गणेश और लक्ष्मी का पूजन भी करें। कुबेर को सफेद मिठाई या खीर का नैवेद्य लगाएं तथा धनवंतरि को पीली मिठाई का भोग लगाएं। पूजा में पीले-सफेद फूल, पांच प्रकार के फल अवश्य रखें।

व्यापारियों के लिए पूजा विधान
धनतेरस के दिन अपने प्रतिष्ठान, दुकान में साफ-सफाई करके नई गादी बिछाएं। जिस पर बैठकर नए बही खातों का पूजन करें। दुकान में लक्ष्मी और कुबेर का पूजन करें है। पूजा के पाने का भी पूजन किया जाता है।

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गुरु-पुष्य 24 अक्टूबर पर बना लक्ष्मीनारायण योग


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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महालक्ष्मी पूजा दीपावली से पूर्व हर साल पुष्य नक्षत्र आने की प्रतीक्षा रहती है। इस साल 24 अक्टूबर 2024 को गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र आने से गुरु-पुष्य का अत्यंत शुभ संयोग बना है। इस बार यह योग इसलिए भी अधिक प्रभावी है क्योंकि इस बार गुरु पुष्य के साथ धन संपदा के भंडार भर देने वाला लक्ष्मीनारायण योग भी बन रहा है। इसके साथ ही सर्वार्थसिद्धि और अमृत सिद्धि योग संयुक्त रूप से होने के कारण गुरु पुष्य के इस महायोग में वाहन, भूमि, भवन, संपत्ति, सोना-चांदी, आभूषण, रत्नों आदि की खरीदी करना अत्यंत शुभ और श्रेष्ठ रहेगा। इसलिए यदि आप धन संपदा में वृद्धि करना चाहते हैं तो इस दिन वस्तुओं की खरीदी अवश्य करें और जो आपके पास पहले से उपलब्ध है उनका पूजन अवश्य करें।

25 घंटे 24 मिनट रहेगा पुष्य
पंचांगों के अनुसार पुष्य नक्षत्र 24 अक्टूबर को सूर्योदय पूर्व प्रात: 6 बजकर 14 मिनट से प्रारंभ हो जाएगा जो 25 अक्टूबर को प्रात: 7: बजकर 38 मिनट तक रहेगा। इस प्रकार पुष्य नक्षत्र का संयोग संपूर्ण दिनरात मिलने वाला है। 25 घंटे 24 मिनट का पुष्य मा महामुहूर्त खरीदी आदि के लिए अत्यंत श्रेष्ठ रहेगा।

लक्ष्मीनारायण योग बना
इस बार गुरु पुष्य के संयोग के साथ लक्ष्मीनारायण योग भी बना है। लक्ष्मीनारायण योग अनेक प्रकार से बनता है। गोचर में जब बुध और शुक्र साथ आ जाएं तो लक्ष्मीनारायण योग बनता है। इसके साथ ही जब चंद्र और मंगल गोचर में एक ही राशि में साथ में आते हैं और चंद्र स्वराशि में हो तो भी लक्ष्मीनारायण योग बनता है। इसे लक्ष्मी योग भी कहा जाता है। इस बार गोचर में चंद्र और मंगल कर्क राशि में स्थित हैं और कर्क चंद्र की ही राशि है इसलिए यह योग धनप्रदायक है। 24 अक्टूबर को ही सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग भी संपूर्ण दिन रात मिलने वाला है।

गुरु पुष्य में खरीदी के महामुहूर्त

चौघड़िया अनुसार
चर : प्रात: 10:45 से 12:11
लाभ : दोप 12:11 से 1:36
अमृत : सायं 5:53 से 7:27
चर : सायं 7:27 से रात्रि 9:02
लाभ (मध्यरात्रि मुहूर्त) : रात्रि 12:11 से 1:45

अभिजित मुहूर्त
प्रात: 11:48 से दोप 12:33

प्रदोष काल मुहूर्त
सायं 5:53 से रात्रि 8:25

लग्न अनुसार मुहूर्त
वृश्चिक : प्रात: 8:14 से 10:30
कुंभ : दोप 2:22 से 3:55
वृषभ : सायं 7:07 से रात्रि 9:05
सिंह : मध्यरात्रि 1:34 से 3:36

लक्ष्मीनारायण योग में क्या करें
1. संपत्ति में वृद्धि और स्थायी संपत्ति की प्राप्ति के लिए लक्ष्मीनारायण योग में मां लक्ष्मी का पूजन अवश्य करें। सामान्य पूजन करें किंतु माता को लाल कमल या लाल गुड़हल का पुष्प अर्पित करें।
2. इस योग में सुंदरकांड का पाठ करना अत्यंत श्रेष्ठ होता है। इससे लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
3. इस दिन किसी अंधेरे कमरे के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व के मध्य) में घी का दीया लगाएं। दीये में एक पीली कौड़ी जरूर डालें
4. इस दिन अपने घर में रखे आभूषणों का पूजन करें।
5. एक मुट्ठी में थोड़े से पीले सरसों लेकर उसे अपने घर से उसारकर घर के बाहर फेंक दें इससे घर से दुर्भिक्षा और अभाव दूर हो जाता है।

सावधान रहें! मंगल का नीच राशि कर्क में हो रहा गोचर


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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क्रोध, युद्ध, सैन्य शक्ति, रक्त विकार, साहस, बल, पराक्रम का ग्रह मंगल 20 अक्टूबर 2024 रविवार को दोपहर 2:19 बजे से अपनी नीच राशि कर्क में प्रवेश करने जा रहा है। कर्क चंद्र की राशि है और जल तत्व व शीत प्रकृति की राशि है जबकि मंगल अग्नि तत्व का प्रतीक। अग्नि और जल का कभी मिलन नहीं हो सकता इसलिए जब जब भी मंगल का गोचर कर्क राशि में होता है तब-तब प्रकृति, पर्यावरण, जीव-जंतु और मनुष्यों पर अनेक प्रकार के विपरीत असर पड़ते हैं। मंगल 21 जनवरी 2025 तक इसी राशि में रहने वाला है। इस बीच 6 दिसंबर को वक्री हो जाने के कारण कर्क राशि में ही उल्टा चलने लगेगा जिससे इसका कर्क राशि में समय बढ़ जाएगा। मंगल आमतौर पर एक राशि में 45 दिन रहता है किंतु वक्री हो जाने के कारण यह समय लगभग 93 दिन हो जाएगा।

नीच राशि में प्रभाव
कर्क राशि मंगल की नीच राशि होती है। इसलिए इस राशि में प्रवेश करते ही मंगल के प्रभावों में वृद्धि हो जाएगी। जिन लोगों की जन्मकुंडली में मंगल पूर्व से ही वक्री बैठा हुआ है उनके लिए यह समय अधिक संकटपूर्ण रह सकता है। क्रोध में वृद्धि होगी। अनावश्यक विवादों में फंस सकते हैं। पारिवारिक टकराव हो सकते हैं। आर्थिक हानि की आशंका रहेगी। यहां तक कि उन्हें रक्त संबंधी बड़े विकार भी सामने आ सकते हैं। इसलिए यह समय शांतिपूर्ण तरीके से निकालने का प्रयास करें।

राजनीतिक प्रभाव
नीच राशि में मंगल का गोचर होने से देश-दुनिया में युद्ध जैसे हालात बनते हैं। अनेक देशों के बीच टकराव बढ़ते हैं और फलस्वरूप युद्ध की स्थितियां निर्मित होती हैं। वर्तमान में पृथ्वी के जिस भी भूभाग पर युद्ध चल रहे हैं वे भीषणतम स्थिति में पहुंच सकते हैं। सैन्य बलों की हानि हो सकती है। देशों के टुकड़े हो सकते हैं। शांति पसंद करने वाले देश भी उग्र व्यवहार दिखा सकते हैं।

प्रकृति-पर्यावरण पर प्रभाव
मंगल का जब भी गोचर होता है, बड़ी प्राकृतिक विपदाएं आती हैं। विमान-ट्रेन दुर्घटनाएं, भीषण अग्निकांड, जल प्लावन, सूनामी, समुद्र में हलचल, भूकंप, बाढ़ जैसी विभीषिका आ सकती हैं। मानव निर्मित आपदाएं भी इस दौरान अधिक सिर उठाती हैं। संक्रामक रोगों में वृद्धि, कोई नया वायरस आतंक मचा सकता है।

मनुष्यों पर प्रभाव
इस गोचर के दौरान मनुष्य अजीब व्यवहार कर सकते हैं। सहन शक्ति कम होगी। मानसिक तनाव बढ़ेगा। एक-दूसरे के साथ विवाद कर सकते हैं। क्रोध बढ़ने के कारण अनेक हानिकारक घटनाओं को अंजाम दे सकते हैं।

शुभ क्या
मंगल चूंकि धन का ग्रह भी है। इसलिए जिन लोगों की जन्मकुंडली में मंगल उच्च का या स्वराशि में बैठा हुआ है उनके लिए यह गोचर श्रेष्ठ रहने वाला है। धन-संपत्ति से लाभ होगा। आर्थि लाभ होगा। कर्ज मुक्ति का समय रहेगा।

राशियों पर प्रभाव
शुभ : वृषभ, तुला, धनु, मीन
मध्यम : मकर, कुंभ, मिथुन, कन्या
अशुभ : मेष, वृश्चिक, कर्क, सिंह

क्या करें
मंगल के कर्क राशि में गोचर के दौरान सभी राशि के जातकों को मंगल यंत्र का नित्य पूजन दर्शन करना चाहिए। तांबे का कड़ा या छल्ला पहनकर रखें। ओवल शेप का लाल मूंगा सोने या पंच धातु की अंगूठी में बनवाकर अनामिका अंगुली में धारण करें। प्रत्येक मंगलवार को हनुमानजी को नारियल चढ़ाएं।

आज चंद्र किरणों से बरसेगा अमृत, व्रत भी आज ही

आश्विन पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा या कोजागर पूर्णिमा कहा जाता है। यह पूर्णिमा आज 16 अक्टूबर 2024 बुधवार को है। पौराणिक मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में पूर्ण चंद्र अपनी शीतल किरणों के साथ अमृत की बूंदें पृथ्वी पर बरसाता है। जिसे ग्रहण करके करके मनुष्य के सारे रोगों का निवारण हो जाता है। हालांकि पूर्णिमा को लेकर भी कई लोगों में भ्रम है कि यह 16 को की जाए या 17 अक्टूबर को तो इसका उत्तर है पूर्णिमा 16 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी।

पंचांग के अनुसार 16 अक्टूबर को पूर्णिमा रात्रि 8:40 बजे से प्रारंभ होकर 17 अक्टूबर को सायं 4:55 बजे तक रहेगी। चूंकि पूर्णिमा में अर्द्धरात्रि में पूर्ण चंद्र का महत्व होता है इसलिए शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी। इसी दिन शरद पूर्णिमा व्रत और कोजागर व्रत भी किया जाएगा।

17 को सूर्योदय व्यापिनी पूर्णिमा रहने से सत्यनारायण व्रत और आश्विन पूर्णिमा व्रत इस दिन किया जाएगा। इसी दिन से कार्तिक स्नान भी प्रारंभ हो जाएगा।

खीर का महत्व
शरद पूर्णिमा के खीर का बड़ा महत्व बताया गया है। पौराणिक मान्यताएं हैं कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में पूर्ण चंद्र अपनी संपूर्ण कलाओं से युक्त रहता है जिसमें एक कला अमृत वर्षा भी है। इसलिए इस दिन खीर या दूध को रात्रि 12 बजे चंद्र की पूर्ण चांदनी में रखा जाता है। चंद्र से निकलने वाली अमृत बूंदे उस खीर या दूध में पड़ती हैं जिसका सेवन करने से मनुष्य के सारे रोग और मानसिक संताप दूर हो जाते हैं। इस दिन मेवे युक्त दूध या खीर बनाकर उसे चंद्र की चांदनी में रखें और पूरा परिवार निष्ष्ठा के साथ इसका सेवन करें।

शरद पूर्णिमा पर क्या करें
1. शरद पूर्णिमा की रात्रि में मून मेडिटेशन (Moon Meditation) करना चाहिए। इसके लिए अपने घर की छत या किसी खुली शांत जगह में दरी या चटाई बिछाकर बैठ जाएं। अपनी कमर सीधी रखें और चंद्र पर सीधी दृष्टि डालते हुए बिना पलक झपकाए उसे अधिक से अधिक समय तक देखने का प्रयास करें। इससे आपके अंदर एकाग्रता आएगी और मानसिक रूप से आप मजबूत होंगे।

2. बंद आंखों से ध्यान Meditation करें। खुली शांत जगह में कुछ बिछाकर बैठ जाएं और अपनी कमर सीधी रखते हुए आंखों को बंद करें और अपनी दोनों भौहों के मध्य में पूर्ण चंद्र का ध्यान करें। जितना अधिक देर बैठेंगे उतना मन शांत होगा।

3. आज के दिन एक सूखे नारियल के गोले में छोटा सा छेद करें और उसमें उबालकर ठंडा किया हुआ मीठा दूध भर दें। गोले को पुन: बंद करके रात भर शरद पूर्णिमा की चंद्र की चांदनी में रख दें। सुबह यह दूध जो भी पियेगा उसके सारे मानसिक रोग दूर हो जाएंगे।

4. सौंदर्य में वृद्धि के लिए शरद पूर्णिमा की रात्रि में एक चांदी के कटोरे में गुलाब जल, हल्दी और चंदन का पाउडर मिलाकर चांदनी में रख दें। इसका उबटन बनाकर लगाने से सौंदर्य में निखार आता है।

5. एक मोती शंख में गुलाबजल भरकर रातभर चांदनी में छोड़ दें। इस गुलाबजल को चेहरे पर लगाने से शुक्र बलवान होगा। सौंदर्य और आकर्षण प्रभाव में वृद्धि होगी।

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विवाह नहीं हो रहा, कहीं आपकी कुंडली में ये दोष तो नहीं

अपनी संतानों का विवाह समय पर नहीं होने के कारण अनेक माता-पिता परेशान रहते हैं। विशेषकर लड़की है और उसके विवाह में कोई बाधा आ रही है तो परेशानी और भी बढ़ जाती है। उपाय जानने के लिए वे अनेक ज्योतिषीयों और पंडितों के पास भटकते रहते हैं किंतु उन्हें उचित समाधान नहीं मिल पाता और विवाह की उम्र बीतती चली जाती है।

वस्तुत: विवाह नहीं हो पाने का सबसे बड़ा कारण युवक-युवती की जन्मकुंडली में छुपा होता है। एक विद्वान ज्योतिषी कुंडली का गहन अध्ययन करके विवाह बाधा दोष और उसे दूर करने के उपाय बता सकता है। आइए सबसे पहले जानते हैं कैसे बनता है विवाह बाधा योग-

विवाह-बाधा योग
1. विवाह सुख का कारक भाव कुंडली का सप्तम भाव होता है। यदि सप्तम भाव का स्वामी अर्थात् सप्तमेश शुभ ग्रहों से युक्त न होकर छठे, आठवें या बारहवें भाव में बैठा हो और साथ में वह अस्त होकर या नीच राशि का होकर बैठा हो, तो जातक का विवाह कभी नहीं हो पाता है। वह जीवनभर अविवाहित ही रहता है।

2. सप्तम भाव का स्वामी द्वादश भाव में बैठा हो तथा जन्म राशि का स्वामी सप्तम भाव में बैठा हो, तो जातक के विवाह में अनेक बाधाएं आती हैं।

3. जन्मकुंडली के किसी भी स्थान में चंद्र तथा शुक्र दोनों एक साथ बैठे हों और उनसे सप्तम भाव में मंगल तथा शनि दोनों बैठे हों अर्थात चंद्र एवं शुक्र की युति से सातवें भाव में मंगल-शनि की युति हो तो भी विवाह नहीं हो पाता है।

4. सप्तम भाव में शुक्र और मंगल दोनों एक साथ बैठे हों तो भी विवाह में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातक का विवाह अक्सर नहीं हो पाता है।

5. जातक की जन्मकुंडली में शुक्र एवं मंगल दोनों ग्रह पंचम या नवम भाव में बैठे हों और इन पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो भी विवाह बाधा योग बनता है।

6. जातक की जन्मकुंडली में शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ पंचम, सप्तम या नवम भाव में हो तो जातक का विवाह नहीं हो पाता, वह स्त्री वियोग से पीड़ित रहता है।

7. जन्मकुंडली में यदि शुक्र-बुध-शनि तीनों ही नीच या शत्रु नवांश में हों, तो भी जातक विवाह विहीन होता है। अनेक प्रयासों के बाद भी जातक का विवाह नहीं हो पाता है।

8. जिसकी जन्मकुंडली में सातवें तथा बारहवें भाव में दो-दो या इससे अधिक पाप ग्रह बैठे हों तथा पंचम भाव में चंद्र बैठा हो तो जातक का विवाह नहीं होता।

9. कुंडली में सप्तम भाव में बुध तथा शुक्र दोनों हों, तो विवाह अनेक बाधाओं के बाद अधेड़ उम्र में होता है।

10. सप्तम भाव में दो पाप ग्रह एक साथ बैठें हों तथा इन पर सूर्य की सीधी दृष्टि पड़ रही हो तो भी विवाह में अनेक बाधाएं आती हैं।

कैसे दूर करें विवाह बाधा
– विवाह बाधा दोष काटने के लिए युवक या युवती को भगवान शिव पार्वती का नियमित रूप से पूजन करना चाहिए।
– किसी शिव मंदिर में विवाह बाधा निवारण पूजा करवानी चाहिए।
– विवाह बाधा निवारण यंत्र को घर में रखकर नियमित रूप से उसके दर्शन पूजन करना चाहिए।
– प्रत्येक मास की शिवरात्रि पर शिवजी का अभिषेक केसर के दूध से करें और मां पार्वती को सुहाग की सामग्री भेंट करें। यह उपाय केवल युवतियां करें।

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धन संपदा में वृद्धि देने वाला शुक्र-पुष्य का शुभ संयोग 27 सितंबर को

पुष्य को नक्षत्रों का राजा कहा गया है और जब यह किसी विशेष दिन आता है तो उसके साथ मिलकर शुभ संयोग बनाता है। पुष्य नक्षत्र में किए गए कार्य सदैव उत्तम फलदायी होते हैं, धन-संपदा में वृद्धि करने वाले होते हैं और सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। 27 सितंबर को शुक्रवार के दिन पुष्य नक्षत्र आने से शुक्र-पुष्य का शुभ संयोग बना है। शुक्र पुष्य में खरीदा गया सोना, चांदी, भूमि, भवन, वाहन आदि में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है।

पुष्य नक्षत्र 26 सितंबर को रात्रि में 11 बजकर 33 मिनट से प्रारंभ होगा और 27 सितंबर को रात्रि 1 बजकर 20 मिनट तक रहेगा। इस प्रकार शुक्र पुष्य का संयोग पूरे दिन मिलने वाला है। इस शुभ नक्षत्र में अनेक प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते हैं।

क्या करें शुक्र पुष्य में

– सबसे पहले तो यदि आप स्वर्णाभूषण आदि खरीदना चाहते हैं तो शुक्र-पुष्य का संयोग आपके लिए सबसे उत्तम रहने वाला है। अभी श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं इसलिए कुछ लोग कह सकते हैं कि इसमें खरीदी नहीं करते हैं, लेकिन यह मान्यता सर्वथा गलत है। श्राद्धपक्ष में खरीदी की जा सकती है और ऐसे विशिष्ट संयोग में तो अवश्य खरीदना चाहिए।

– भूमि, भवन, संपत्ति, वाहन आदि खरीदने के लिए इससे श्रेष्ठ दिन और कोई नहीं, इसलिए शुक्र पुष्य के संयोग में इन चीजों की खरीदी अवश्य करें।

– यदि आप अपनी आर्थिक स्थिति को सामान्य से श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं तो शुक्र पुष्य के संयोग में इस दिन अपने घर में श्रीयंत्र की स्थापना अवश्य करें। यह यंत्र धातु पर बना हुआ या स्फटिक का हो तो और भी उत्तम रहेगा।

– जिन दंपतियों का वैवाहिक जीवन ठीक नहीं चल रहा है, वे शुक्र पुष्य के संयोग में एक-दूसरे को चांदी का कोई आभूषण और रेशमी सुंदर वस्त्र उपहार स्वरूप दें।

– जो लोग प्रेम संबंधों में असफल हो रहे हैं, वे शुक्र पुष्य के संयोग में सज संवरकर साफ-स्वच्छ वस्त्र पहनें और अच्छा सा परफ्यूम या इत्र लगाएं और फिर प्रेम निवेदन करें, सफलता मिलेगी।

– शुक्र पुष्य के संयोग में केसर का तिलक करना अत्यंत श्रेष्ठ रहता है। इससे व्यक्ति में जगत को मोहित करने की शक्ति आ जाती है।

– शुक्र पुष्य के योग में यदि कोई व्यापार-व्यवसाय प्रारंभ किया जाए तो वह भी सफल होता है।

हनुमान को प्रसन्न कर लिया तो शनि की पीड़ा भी हो जाएगी दूर

हनुमानजी को अष्टसिद्धि और नौ निधियों का दाता कहा गया है। उनकी पूजा और भक्ति से जीवन में सत्कर्मों का उदय होता है और जीवन के सारे अभाव दूर हो जाते हैं। हनुमानजी की आराधना से शनि की पीड़ा से भी मुक्ति मिलती है। शनि की पीड़ा शांत करने के लिए शनि के स्तोत्र, मंत्रों का जाप करना लाभकारी होता है किंतु हनुमानजी के भक्तों को शनि कभी पीड़ा नहीं देते। जिन लोगों को शनि की साढ़ेसाती, लघु ढैया चल रहा हो या जिनकी कुंडली में शनि खराब अवस्था में हो उन्हें स्तोत्र और मंत्रों का जाप अवश्य करना चाहिए।

– सुंदरकांड, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण का पाठ शनि की पीड़ा तुरंत दूर करते हैं। इसके अलावा श्री शनैश्चर स्तोत्र-कवच, शनि अष्टोत्तर शत नामावली का पाठ, रुद्राभिषेक करना उत्तम रहता है।

– शनि के मंत्र ऊं शं शनैश्चराय नम: अथवा ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: के 23 हजार जाप और दशांश हवन लाभ देता है।

– शनिदेव की मूर्ति पर तेल चढ़ाना, शनियंत्र की पूजा और इस दिन व्रत रखने से शनि प्रसन्न होंगे।

– पीपल वृक्ष की पूजा, काले कलर की वस्तुओं का दान, काला वस्त्र, उड़द, तेल पक्वान्न पदार्थ तथा छायापात्र का दान करना चाहिए।

– जिन्हें शनि की महादशा-अंतर्दशा चल रही हो तो मध्यमा अंगुली में नीलम रत्न या इसके उपरत्न जमुनिया, कटेला, वैदूर्यमणि या फिरोजा धारण करे।

इस शनि स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करें-

ऊं नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय नमोस्तु ते ।

नमस्ते बभु्ररूपाय कृष्णाय च नमोस्तु ते ।।

नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चान्तकाय च ।

नमस्त यम संज्ञाय नमस्ते सौरये विभो ।।

नमस्त मन्द संज्ञाय शनैश्चर नमोस्तु ते ।

प्रसादं कुरू देवेश दीनस्य प्रणतस्य च ।।

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शनि का यह पौराणिक मंत्र भी जपें

ऊं नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।

छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।।