शनि प्रदोष 24 मई : शिव और शनि दोनों होंगे प्रसन्न


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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शनि प्रदोष 24 मई : शिव और शनि दोनों होंगे प्रसन्न

भारतीय धर्म-संस्कृति में व्रत और तिथियों का गहरा आध्यात्मिक एवं लौकिक महत्व है। सप्ताह के प्रत्येक दिन से संबंधित प्रदोष व्रतों में शनि प्रदोष एक अत्यंत प्रभावशाली और पुण्यदायी तिथि मानी जाती है। जब प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ता है, तब उसे शनि प्रदोष कहते हैं। यह व्रत भगवान शिव और शनिदेव दोनों को प्रसन्न करने का श्रेष्ठ अवसर माना गया है। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में शनि प्रदोष 24 मई 2025 को आ रहा है।

प्रदोष व्रत क्या है?
प्रदोष व्रत हर महीने के दोनों पक्षों (शुक्ल और कृष्ण) की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है। “प्रदोष” शब्द का अर्थ है – दोषों का नाश करने वाला समय। यह व्रत मुख्यतः संध्या काल में किया जाता है, जो दिन के सूर्यास्त से 1.5 घंटे पहले और 1.5 घंटे बाद तक का समय होता है। यह शिव उपासना के लिए सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त होता है। जब यह व्रत शनिवार को पड़ता है तो इसे शनि प्रदोष कहते हैं। यह विशेष रूप से शनि दोष, साढ़े साती, ढैय्या, शनि की महादशा/अंतर्दशा, कर्म बंधन और न्याय संबंधी कष्टों से मुक्ति का मार्ग है।

शनि प्रदोष से जुड़ी पौराणिक कथाएं

शिव-नीलकंठ कथा
समुद्र मंथन के समय जब विष निकला, तब सारा ब्रह्मांड विष की ज्वाला से जलने लगा। सभी देवता भगवान शिव की शरण में गए। शिव ने करुणावश विष को अपने कंठ में धारण कर लिया और यही त्रयोदशी का समय था। इसीलिए प्रदोष का काल भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है।

शनि प्रदोष की विशेष कथा
एक बार शनिदेव ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और वरदान मांगा कि शिव प्रदोष के दिन जो भक्त शनिदेव और शिवजी की संयुक्त पूजा करेगा, उसके जीवन से समस्त पाप और शनि दोष समाप्त होंगे। शिवजी ने उन्हें यह वरदान दिया। इसीलिए शनि प्रदोष की पूजा में शनिदेव का विशेष आह्वान किया जाता है।

शनि प्रदोष का ज्योतिषीय महत्व
शनि कर्म, न्याय, संयम, तपस्या, विनम्रता और जीवन के संघर्षों का ग्रह है। शनिदेव ही व्यक्ति के पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार फल देते हैं। इसलिए शनि को “न्यायाधीश” कहा जाता है। जिन लोगों की कुंडली में शनि पीड़ित हो, शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही हो, उन्हें शनि प्रदोष के दिन व्रत, दान और उपासना अवश्य करनी चाहिए। शनि प्रदोष का व्रत शनि के अशुभ प्रभावों को समाप्त कर देता है।

शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि
– व्रती को व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
– प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
– दिनभर फलाहार या केवल जल ग्रहण कर व्रत रखा जाता है।
– सूर्यास्त से पहले स्नान कर शिव मंदिर जाएं।
– पूजा संध्या काल (प्रदोष काल) में की जाती है।

पूजा सामग्री
जल, दूध, दही, शहद, घी, शुद्ध घी का दीपक, बेलपत्र, भस्म, धूप, चंदन, फूल, अक्षत, काले तिल, काला कपड़ा, लोहे की वस्तु (शनि पूजन हेतु), पंचामृत, नैवेद्य, जल कलश, शिवलिंग यदि घर पर हो।

पूजा विधि
(1) स्थान की शुद्धि और शिवलिंग की स्थापना:
पूजा स्थान को गंगाजल या गोमूत्र से शुद्ध करें। शिवलिंग पर जल और पंचामृत से अभिषेक करें। बेलपत्र, पुष्प, चंदन, धूप, दीप आदि अर्पित करें।

(2) मंत्रोच्चार:
शिव मंत्र:
ॐ नमः शिवाय (108 बार)
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।

शनि मंत्र:
ॐ शं शनैश्चराय नमः
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥

(3) दीपदान और आरती:
शिवलिंग के चारों ओर दीपक जलाकर परिक्रमा करें। शनि महाराज के लिए काले तिल और तेल का दीप अर्पण करें। शिवजी और शनिदेव दोनों की आरती करें।

शनि प्रदोष के दिन किए जाने वाले विशेष उपाय
शनि प्रदोष विशेष रूप से कष्ट निवारण, शनि शांति और शुभ फल प्राप्ति का दिन होता है। इस दिन कुछ विशेष उपाय अत्यंत फलदायी माने गए हैं:

1 शनि दोष निवारण हेतु:
पीपल वृक्ष के नीचे काले तिल का दीपक जलाएं और 7 बार परिक्रमा करें।
काले तिल, काला कपड़ा, लोहे का पात्र, उड़द दाल का दान करें।
“ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें।

2 रोजगार, व्यवसाय और आर्थिक कष्ट दूर करने हेतु:
शनि प्रदोष की संध्या को शिवलिंग पर जल और शहद चढ़ाकर यह प्रार्थना करें:
“हे प्रभो, मेरी आय में वृद्धि हो, कर्ज से मुक्ति मिले और समृद्धि प्राप्त हो।”
नीले रंग के कपड़े पहनकर तेल से शनिदेव को तिलक करें।

3 संतान सुख और विवाह हेतु:
शिवलिंग पर केसर और दूध से अभिषेक करें।
“ॐ सों सोमाय नमः” तथा “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जप करें।
गरीब कन्याओं को वस्त्र दान करें।

4 रोग और मानसिक कष्ट निवारण:
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें (108 या 1008 बार)।
रुद्राभिषेक कराएं अथवा स्वयं करें।
शनिदेव के चित्र या प्रतिमा पर सरसों का तेल चढ़ाएं।

6. शनि प्रदोष की काल विशेष साधना (उपयुक्त साधकों के लिए):

तंत्र साधना प्रेमियों हेतु:
शनि प्रदोष की रात, काली हल्दी, काला धागा, लोहे की कील और काले कपड़े में लपेटकर ताबीज बनाएं।
इसे गले या बाजू में धारण करें – यह शनि से रक्षा करता है।

शिव साधना हेतु:
11 या 21 बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
“शिव सहस्रनाम” या “शिव चालीसा” का पाठ करें।

7. शनि प्रदोष के लाभ (Benefits of Shani Pradosh):
– शनि दोषों से मुक्ति
– कार्यों में सफलता
– पारिवारिक सुख-शांति
– व्यवसाय और नौकरी में उन्नति
– मानसिक शांति और रोगों से राहत
– पूर्वजों की कृपा और पितृदोष से मुक्ति
– आत्मिक बल और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति

शनि प्रदोष से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य
तत्व विवरण
प्रमुख देवता भगवान शिव और शनिदेव
दिन शनिवार
तिथि त्रयोदशी (कृष्ण या शुक्ल पक्ष)
पूजा का समय संध्या प्रदोष काल (सूर्यास्त के 1.5 घंटे पूर्व से 1.5 घंटे बाद तक)
विशेष दान काले तिल, काला कपड़ा, लोहे का बर्तन, तेल, उड़द
प्रमुख मंत्र “ॐ नमः शिवाय”, “ॐ शं शनैश्चराय नमः”
विशेष स्थान शनि मंदिर, शिव मंदिर, पीपल वृक्ष के नीचे पूजा

शनि प्रदोष व्रत आध्यात्मिक और लौकिक दृष्टि से अत्यंत शुभ अवसर है। यह दिन न केवल शिव और शनि की कृपा पाने का माध्यम है, बल्कि अपने जीवन में चल रहे गंभीर कष्टों, विशेषकर शनि से संबंधित समस्याओं का समाधान भी है। यदि श्रद्धा और नियमपूर्वक इस दिन व्रत, पूजा और उपाय किए जाएं, तो व्यक्ति का जीवन सकारात्मक दिशा में बढ़ सकता है।

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बगलामुखी जयंती : शत्रु नाश कर, धन वर्षा करने वाली देवी


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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बगलामुखी देवी की साधना और हवन से जुड़ी जानकारी अत्यंत गूढ़, रहस्यमयी और शक्तिशाली होती है। इनका प्रयोग शत्रुनाश, आत्म-संयम, मानसिक शक्ति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए किया जाता है। इस लेख में हम बगलामुखी देवी की साधना, मंत्र, हवन विधि, सावधानियां और इससे होने वाले लाभों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। बगलामुखी जयंती 5 मई 2025 सोमवार को आ रही है।

बगलामुखी देवी: एक परिचय
बगलामुखी देवी दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या हैं। इनका नाम ‘बगला’ (बक = रोकना) और ‘मुखी’ (मुख = वाणी) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है– शत्रु की वाणी और बुद्धि को रोकने वाली देवी। इन्हें “स्तम्भन की देवी” भी कहा जाता है, जो किसी भी नकारात्मक शक्ति, शत्रु या विपरीत परिस्थिति को रोकने में सक्षम हैं। इनका स्वरूप पीला होता है, इसलिए इन्हें “पीताम्बरा देवी” भी कहा जाता है। देवी का रूप अत्यंत उग्र है। उनके एक हाथ में गदा होती है और दूसरे हाथ से वे शत्रु की जीभ पकड़ती हैं, जो यह दर्शाता है कि वे शत्रु की वाणी को नियंत्रित कर सकती हैं।

बगलामुखी साधना का महत्व
बगलामुखी साधना कोई सामान्य पूजा नहीं है, यह एक तांत्रिक साधना है। यह जीवन के विभिन्न संकटों– जैसे शत्रु बाधा, मुकदमा, मानसिक तनाव, तंत्र बाधा, राजकीय परेशानी, धन हानि, आदि से मुक्ति दिला सकती है। यह साधना केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक शत्रुओं– जैसे भय, मोह, लोभ, क्रोध, और असमंजस को भी समाप्त करती है।

बगलामुखी मंत्र और उनके प्रयोग
1. बीज मंत्र (Beej Mantra)
“ॐ ह्लीं”
यह मंत्र अत्यंत संक्षिप्त और शक्तिशाली है। इसका उच्चारण साधक के भीतर ऊर्जा और मानसिक शक्ति का संचार करता है। यह मंत्र तंत्र बाधाओं को समाप्त करता है। इस मंत्र का नियमित जाप करने से भूत प्रेत बाधाएं भी दूर हो जाती हैं।

2. मूल मंत्र (Mool Mantra)
“ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा”
इस मंत्र का जाप विशेष रूप से शत्रु की गतिविधियों को रोकने, मुकदमे में सफलता पाने और किसी व्यक्ति की हानिकारक योजना को निष्क्रिय करने के लिए किया जाता है।

3. स्तोत्र मंत्र (Stotra Mantra)
“ॐ ऐं ह्लीं क्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिव्हां कीलय कीटं मूषकं चूर्णय चूर्णय मारय मारय शोषय शोषय मंथय मंथय उद्पाटय उद्पाटय ह्लीं ऐं क्लीं ॐ फट्।”
यह मंत्र अधिक उग्र है और गूढ़ साधना के लिए प्रयोग होता है। इसे केवल गुरु के निर्देश से ही किया जाना चाहिए। इस मंत्र के प्रयोग में छोटी सी त्रुटि भी साधक पर भारी पड़ सकती है।

साधना की विधि (Baglamukhi Sadhana Vidhi)
सामग्री:
• पीला वस्त्र और पीला आसन
• हल्दी की माला
• पीले फूल
• पीले फल और मिठाई
• कनेर का पुष्प, हल्दी की गांठ
• बगलामुखी यंत्र (यदि हो सके)
• पूजा थाली, दीपक, धूपबत्ती
पूजा विधि:
1. स्नान करके पीले वस्त्र धारण करें और पूजा स्थान को शुद्ध करें।
2. पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
3. देवी की प्रतिमा या चित्र की स्थापना करें।
4. “ॐ ह्लीं” मंत्र से ध्यान करें।
5. पंचोपचार पूजा करें – गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
6. हल्दी माला से कम से कम 108 बार मूल मंत्र का जाप करें।
7. प्रार्थना करें और देवी से अपनी समस्या के समाधान की प्रार्थना करें।

बगलामुखी हवन विधि (Baglamukhi Havan Vidhi)
हवन बगलामुखी पूजा का एक शक्तिशाली भाग है, जो मानसिक, आध्यात्मिक एवं भौतिक लाभ देता है। यह हवन किसी विद्वान के मार्गदर्शन में ही किया जाना चाहिए।
1. हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित करें।
2. पूजा कर अग्नि देवता को प्रणाम करें।
3. “ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां…” मंत्र से आहुतियां दें।
4. कम से कम 108 आहुतियां दें। साधना में 1,250 या 10,000 आहुतियां भी दी जाती हैं।
5. अंत में पूर्णाहुति दें और हवन समाप्त करें।

बगलामुखी साधना और हवन से होने वाले लाभ
1. शत्रु नियंत्रण और विजय:
बगलामुखी साधना शत्रुओं की बुद्धि, वाणी और चालों को स्तम्भित करती है। व्यक्ति को अपने विरोधियों से राहत मिलती है।

2. न्यायिक मामलों में सफलता:
कानूनी मुकदमों, कोर्ट केस, झूठे आरोपों और पुलिस केस में देवी की साधना अत्यंत उपयोगी होती है। हवन से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिससे निर्णय अपने पक्ष में आता है।

3. मानसिक स्थिरता और आत्मबल:
देवी की साधना से चित्त स्थिर होता है। मानसिक तनाव, भ्रम, और निर्णय लेने में असमर्थता समाप्त होती है।

4. तंत्र, नजर, और ऊपरी बाधा से रक्षा:
बगलामुखी देवी की पूजा और हवन तांत्रिक शक्तियों से रक्षा करती है। यदि किसी ने बुरा तंत्र प्रयोग किया हो, तो वह निष्क्रिय हो जाता है।

5. वाणी और भाषण में शक्ति:
इस साधना से वाणी में प्रभाव आता है। यह नेताओं, वकीलों, शिक्षकों, वक्ताओं आदि के लिए अत्यंत लाभकारी है।

6. व्यापार और करियर में उन्नति:
शत्रु बाधा दूर होने से व्यवसायिक एवं करियर के रास्ते साफ होते हैं। अचानक आने वाली रुकावटें समाप्त होती हैं।

7. पारिवारिक कलह का नाश:
यदि घर में आपसी मतभेद, तनाव, और पारिवारिक शत्रुता हो, तो बगलामुखी पूजा से सामंजस्य बनता है।

8. आत्मिक शक्ति और तांत्रिक सिद्धियां:
उच्च स्तर की साधना से साधक को आत्मिक बल प्राप्त होता है। वह भयमुक्त होता है, उसकी सहजता और अंतर्ज्ञान बढ़ता है।

विशेष अवसरों पर बगलामुखी पूजा
• अमावस्या: अमावस्या की रात को की गई साधना विशेष फलदायी होती है।
• गुप्त नवरात्रि: यह समय तांत्रिक साधना का उत्तम काल है।
• मंगलवार और शनिवार: यह देवी के प्रिय दिन माने जाते हैं।

सावधानियां और नियम
• साधना के समय पूर्ण ब्रह्मचर्य और संयम का पालन करें।
• बगलामुखी मंत्रों का उच्चारण शुद्धता से करें।
• देवी की साधना किसी को हानि पहुंचाने के लिए नहीं करनी चाहिए।
• गुरु के मार्गदर्शन में साधना करना अधिक उचित होता है।
• यदि हवन की विधि नहीं आती, तो सिर्फ जप भी प्रभावी हो सकता है।

बगलामुखी देवी की साधना और हवन एक अत्यंत प्रभावशाली और गहन आध्यात्मिक प्रक्रिया है। यह न केवल बाहरी शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करती है, बल्कि आंतरिक दोषों– जैसे भय, भ्रम, मानसिक अस्थिरता, निर्णयहीनता को भी दूर करती है। उचित विधि, श्रद्धा, संयम और नियमों का पालन करते हुए यदि यह साधना की जाए, तो साधक को न केवल सांसारिक लाभ, बल्कि आत्मिक उन्नति भी प्राप्त होती है।
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रोहिणी नक्षत्र की अक्षय तृतीया पर धन धान्य का योग


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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– ज्योतिष, धर्म एवं लोक कहावतों में विशिष्ट फलदायी माना गया है रोहिणी संग इस पर्व का योग
– वैशाख शुक्ल तृतीया को पितरों के निमित्त किए स्नान-दान, सत्कर्म का पुण्य कभी नहीं होता क्षय

अक्षय तृतीया में रोहिणी नक्षत्र के संयोग को अत्यंत श्रेष्ठ माना गया है। सुयोग से इस वर्ष का अक्षय तृतीया पर्व रोहिणी नक्षत्र युक्त है। ज्योतिष, धर्मशास्त्र के अतिरिक्त लोक में भी इस संबंध में विशद वर्णन मिलता है। भड्डरी की प्रचलित लोक कहावत में कहा गया है कि – ‘आखै तीज रोहिणी न होई। पौष अमावस मूल न जोई। महि माहीं खल बलहिं प्रकासै। कहत भड्डरी सालि बिनासै।’ अर्थात् वैशाख की अक्षय तृतीया को यदि रोहिणी न हो, तो पृथ्वी पर दुष्टों का बल बढ़ेगा और उस साल धान की उपज अल्प होगी। यानी, इस वर्ष रोहिणी नक्षत्र का योग होने से दुष्टों का बल घटेगा और धान की फसल अच्छी होने की संभावना है।

अक्षय तृतीया धार्मिक आध्यात्मिक तथा सामाजिक चेतना का पर्व है। इस दिन कोई दूसरा मुहूर्त न देखकर स्वयंसिद्ध शुभ मुहूर्त के कारण अनेक मांगलिक कार्य संपन्न किए जाते हैं। इस दिन किए गए पुण्यकार्य, त्याग, दान- दक्षिणा, जप-तप, हवन, गंगा-स्नान आदि कार्य अक्षय फल को देने वाले होते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन किए गए सभी शुभ कर्मों का फल अक्षय हो जाता है, इसीलिए इस तृतीया का नाम ‘अक्षय’ पड़ा है।

इस तिथि के अक्षय फल को देखते हुए लोग इस दिन धन-संपत्ति की खरीदारी करते हैं तथा बहुत से लोग वैवाहिक बंधन में बंधने के लिए इस पवित्र तिथि की प्रतीक्षा करते हैं। इस वर्ष वैशाख शुक्ल पक्ष में तृतीया तिथि मंगलवार 29 अप्रैल, 2025 की शाम 8:09 बजे से 30 अप्रैल की शाम 5:58 तक है। इसलिए नियमानुसार अक्षय तृतीया का पर्व बुधवार 30 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस दिन प्रात: 4:00 बजे से 6:19 बजे तक वृष, प्रात: 10:51 बजे से दोपहर 1:05 बजे तक सिंह, सायं 5:34 बजे से 7:51 बजे तक वृश्चिक व रात 11:44 बजे से रात 1:00 बजे तक कुंभ जैसे स्थिर लग्न हैं। इन मुहूर्तों में किया गया कोई भी शुभ कर्म अनंत काल तक पुण्यदायी बना रहेगा।

उच्च राशियों पर होंगे ग्रह
वैसे तो अक्षय तृतीया स्वयं एक अपुच्छ मुहूर्त है जिसमें कोई भी मंगल कार्य कभी भी किया जा सकता है, फिर इस बार तो सर्वार्थ सिद्धि योग व रवि योग इसे अत्यंत विशिष्ट बना रहे हैं। यही नहीं आकाशमंडल में भी इस बार सूर्य, चंद्र एवं शुक्र जैसे महत्वपूर्ण ग्रह अपनी उच्च राशियों में विराजमान रहेंगे। सूर्य मेष राशि पर, शुक्र मीन राशि पर तथा चंद्रमा वृषभ राशि पर उच्च के होंगे। इतना अत्यंत शुभ संयोग दशकों बाद बनता दिखाई दे रहा है।

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घर की बिगड़ी दशा सुधारने के लिए करें दशामाता पूजन


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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चैत्र माच के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के दिन दशामाता का पूजन किया जाता है। यह पूजन विशेषकर सुहागिन महिलाएं अपने घर की बिगड़ी दशा सुधारने के लिए करती हैं। इस दिन महिलाएं परिवार की सुख-समृद्धि, संतान सुख, धन-धान्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखकर दशामाता का पूजन करती हैं। इस बार यह व्रत 24 मार्च 2025 सोमवार को किया जाएगा।

दशामाता कौन हैं?
दशामाता को शक्ति और सौभाग्य की देवी कहा गया है। कुछ स्थानों पर इन्हें माता लक्ष्मी या माता पार्वती का स्वरूप भी माना जाता है। दशा का अर्थ ‘दशा’ या ‘भाग्य’ से जुड़ा हुआ है, और यह व्रत व्यक्ति की जीवन दशा को सुधारने और समृद्धि प्रदान करने के लिए किया जाता है।

दशामाता व्रत एवं पूजा विधि
1. व्रत का संकल्प
• प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
• व्रत का संकल्प लें और दशामाता से परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।
2. पूजन विधि
• घर के किसी पवित्र स्थान पर एक लकड़ी के पटिए पर गेहूं का ढेर रखकर उस पर दशामाता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
• हल्दी-कुंकुम, अक्षत, पुष्प और धूप-दीप से दशामाता का पूजन करें।
• दशामाता कथा का पाठ करें।
• परिवार के सभी सदस्यों की सुख-समृद्धि के लिए विशेष प्रार्थना करें।
• इस दिन कच्चे सूत का दस तार का डोरा लेकर पीपल के पेड़ की पूजा करें और यह डोरा महिलाएं अपने गले में बांध लें।
3. विशेष परंपराएं
• कुछ स्थानों पर व्रत करने वाली महिला गेहूं के आटे से दीपक बनाकर उसमें घी का दीप जलाती हैं।
• इस दिन नमक रहित भोजन (सादा भोजन या फलाहार) करने का नियम होता है।
• परिवार के बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया जाता है और जरूरतमंदों को अन्नदान भी किया जाता है।
• इस दिन बाजार से कोई वस्तु नहीं खरीदी जाती है। जो खरीदना हो एक दिन पूर्व खरीद लें। कहने का तात्पर्य यह है कि इस दिन अपने घर की लक्ष्मी को बाहर नहीं ले जाया जाता है।

दशामाता व्रत कथा
पुराने समय की बात है, एक गांव में एक गरीब दंपती रहते थे। उनकी स्थिति बहुत ही दयनीय थी। एक दिन महिला ने अपने पति से कहा, “हमारे घर में धन-दौलत नहीं है, न खाने के लिए पर्याप्त अन्न है। कृपया कोई उपाय बताइए जिससे हमारे घर की दशा सुधर सके।”
पति ने कहा, “हे देवी! मैं गुरु बृहस्पति देव की उपासना करने के लिए तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं। शायद इससे हमारी स्थिति सुधर जाएगी।” इतना कहकर व्यक्ति तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़े।

इधर महिला अपनी स्थिति से बहुत परेशान थी। एक दिन जब वह जंगल में गई, तो उसने वहां कुछ स्त्रियों को पीले वस्त्र धारण कर बृहस्पति देव की पूजा करते हुए देखा। उसने उन स्त्रियों से पूछा, “आप यह किसकी पूजा कर रही हैं?”
स्त्रियों ने उत्तर दिया, “हम दशामाता और बृहस्पति देव की पूजा कर रहे हैं। जो भी स्त्री सच्चे मन से इनकी पूजा करती है, उसकी सभी परेशानियाँ दूर हो जाती हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है।”

महिला ने भी यह व्रत करने का निश्चय किया। उसने बृहस्पति देव की विधिपूर्वक पूजा की और पीले रंग के धागे को अपने घर में बांधा। कुछ ही दिनों में उसकी स्थिति में सुधार होने लगा। उसके घर में धन-धान्य की वर्षा होने लगी, और सुख-समृद्धि लौट आई।
जब उसके पति तीर्थ यात्रा से लौटे, तो उसने अपने घर को सुंदर और समृद्ध देखकर आश्चर्य से पूछा, “यह सब कैसे हुआ?”
तब महिला ने उन्हें दशामाता के व्रत और पूजा के बारे में बताया।

दशामाता व्रत के लाभ
• यह व्रत परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार करता है।
• घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
• महिलाएं इसे पति की लंबी उम्र और संतान सुख के लिए करती हैं।
• यह व्रत नकारात्मक ऊर्जा और दोषों को दूर करता है।
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17 मार्च को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी, ये उपाय करेंगे गणेशजी को प्रसन्न


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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17 मार्च को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी, ये उपाय करेंगे गणेशजी को प्रसन्न
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की संकट चतुर्थी को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। सभी चतुर्थियों में यह चतुर्थी भगवान श्रीगणेश को अत्यंत प्रिय है। इस दिन भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए भक्त कठिन व्रत-उपवास तो करते ही हैं लेकिन इस दिन अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए अनेक उपाय भी किए जाते हैं। भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से संकट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यह चतुर्थी 17 मार्च 2025 सोमवार को आ रही है। इस दिन चंद्रोदय उज्जैन के समयानुसार रात्रि 9 बजकर 16 मिनट पर होगा।

इस व्रत की पूजा विधि और व्रत के नियम लोग जानते ही हैं, हम यहां विभिन्न कार्यों और कामनाओं की पूर्ति के लिए गणेशजी से जुड़े पूजा विधान और मंत्र प्रयोग दे रहे हैं, जिन्हें सात्विक रूप से घर में ही करके गणेशजी को प्रसन्न किया जा सकता है-

धन वृद्धि और धन प्राप्ति के लिए
गणेशजी का पूजन सदैव देवी महालक्ष्मी के साथ किया जाता है। भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के दिन दिन में दो बार आपको यह प्रयोग करना है। एक बार प्रात:काल और दूसरा सायंकाल। इस चतुर्थी के दिन गणेशजी के सिंदूरी रंग के चित्र या मूर्ति की स्थापना करके उनका पूजन करें। दूर्वा भेंट करें और मंत्र ऊं नमो गणपतये कुबेरयेकद्रिको फट् स्वाहा, इस मंत्र का एक माला स्फटिक की माला से जाप करें। फिर देखिए आपके घर में धन के भंडार भरने लगते हैं।

आकर्षण प्रभाव बढ़ाने और सभी को वश में करने के लिए
आज के जीवन में आपका लोकप्रिय और सभी का प्रिय होना आवश्यक हो गया है। यदि आप किसी को प्रभावित नहीं कर पाते हैं तो आपके अनेक काम अटके रह सकते हैं। जब किसी को प्रभावित कर लेते हैं तो आपके काम भी सहज रूप से होने लगते हैं। गणेशजी को प्रसन्न करने के अपने आकर्षण में वृद्धि करने के लिए निम्न मंत्र का प्रयोग करें-
ऊं श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा
इस मंत्र को गणेशजी को एक-एक दूर्वा अर्पित करते हुए 108 बार जपें। मंत्र जप करते समय अपने मस्तक और कंठ पर सिंदूर का तिलक लगाएं।

संतान प्राप्ति के लिए
कई दंपतियों को विवाह के लंबे समय बाद तक संतान नहीं होती है। ऐसे दंपतियों के लिए यह भालचंद्र संकष्ट चतुर्थी व्रत अत्यंत विशेष है। इस चतुर्थी का विधिवत व्रत रखें और संतान गणपति स्तोत्र के पाठ दंपति साथ बैठकर करें। इस स्तोत्र के 51 या 108 पाठ करें और गणेशजी के बाल स्वरूप का पूजन करें।

विद्या और व्यापार के लिए
शिक्षा में सफलता और व्यापार में वृद्धि के लिए संकट चतुर्थी के दिन गणेशजी की हरे रंग की मूर्ति को स्थापित करके उसका पूजन करें। गणेशजी को दूर्वा अर्पित करें। मीठी बूंदी का भोग लगाएं।

शीघ्र विवाह के लिए
यदि युवक-युवतियों के विवाह में बाधा आ रही है तो इस दिन गणेशजी की पीले रंग की मूर्ति घर में स्थापित करें। पीले पुष्पों से गणेशजी का श्रृंगार करें, पीली मिठाई का नैवेद्य लगाएं और गणेशजी का तिलक हल्दी से करें। इस हल्दी का तिलक युवक या युवती अपने मस्तक पर करें और फिर ऊं सर्वेश्वराय नम: मंत्र का जाप हल्दी की माला से करें। पांच माला जाप करने के बाद गणेशजी की मूर्ति को विसर्जित कर दें।

विवाह के लिए दूसरा प्रयोग
केले के पेड़ के नीचे गणेशजी की पीले रंग की मूर्ति को स्थापित करके पूजन करें और ऊं महाकर्णाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्ने दंती प्रचोयदात, मंत्र का 108 बार जाप करें। केले के वृक्ष में हल्दी का पानी डालें। शीघ्र विवाह का मार्ग खुलेगा।
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होलाष्टक 7 मार्च से, ये टोटके कर देंगे मालामाल


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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फाल्गुन शुक्ल अष्टमी 7 मार्च 2025 से फाल्गुन पूर्णिमा 14 मार्च तक आठ दिन का समय होलाष्टक कहलाता है। ये आठ दिन तंत्र-मंत्रों की साधना-सिद्धियों के लिए अत्यंत विशेष दिन होते हैं। इन आठ दिनों में धन-संपदा की प्राप्ति, आकर्षण, वशीकरण, रोग मुक्ति, कार्यों में सफलता, संतान की प्राप्ति, विवाह में बाधा जैसी अनेक समस्याओं को दूर करने के उपाय करने चाहिए। आइए हम जानते हैं होलाष्टक में क्या करना चाहिए।

1. धन आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। धन के बिना जीवन चलाना कठिन हो जाता है। यदि आपके पास धन की कमी है। कर्ज बढ़ता जा रहा है और पैसों की आवक बहुत कम है तो होलाष्टक के आठ दिनों में यह विशेष प्रयोग करें। होलाष्टक प्रारंभ होने के दिन अपने घर में स्फटिक, अष्टधातु, पंचधातु, सोना, चांदी या तांबे का श्रीयंत्र स्थापित करें। इसे हर दिन गंगाजल से स्नान करवाकर इस पर केसर से नौ बिंदियां लगाएं। लाल पुष्प से पूजन करें और उत्तराभिमुख होकर लाल रंग के आसन पर बैठ जाएं। अब हर दिन 11 बार श्रीसूक्त का पाठ करें। अंतिम दिन मखाने की खीर और कमलगट्टे से 108 आहुतियां दें। आठवें दिन से आपके हर काम बनने लगेंगे। पैसा आने लगेगा।

2. कर्ज मुक्ति के लिए होलाष्टक के आठों दिन हर दिन 7 बार ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ करें। यह पाठ मंगल यंत्र के समक्ष करें। अंतिम दिन कमलगट्टे से 108 आहुतियां देकर हवन करें। सारा कर्ज धीरे-धीरे उतरने लगेगा।

3. शारीरिक रोग दूर करने के लिए होलाष्टक के हर दिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव का जल से अभिषेक करें। जल में केसर का इत्र मिलाएं। अंतिम दिन 108 आहुतियां देते हुए महामृत्युंजय मंत्र से हवन करें। सारे शारीरिक कष्ट दूर हो जाएंगे। रोग दूर होंगे।

4. आकर्षण और वशीकरण प्राप्ति के लिए होलाष्टक के आठों दिन अपने मस्तक पर केसर-चंदन का तिलक लगाएं। कामदेव गायत्री मंत्र ऊं कामदेवाय विद्महे पुष्प बाणाय धीमहि तन्नो अनंग प्रचोदयात की एक माला स्फटिक की माला से हर दिन करें। यह मंत्र अत्यंत चमत्कारी है और इसके जाप से आपके व्यक्तित्व में चुंबकीय आकर्षण पैदा हो जाएगा।

5. उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए भगवान श्रीकृष्ण के लड्डू गोपाल स्वरूप की पूजा करें, माखन मिश्री का भोग लगाएं और संतान गोपाल स्तोत्र का हर दिन पाठ करेंगे तो संतान की कमी दूर होगी।

6 . सर्वत्र रक्षा के लिए होलाष्टक के आठों दिन नित्य रूप से श्रीराम और हनुमानजी का पूजन करके राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें। कहीं भी जाएंगे कोई कष्ट नहीं रहेगा।

7. बुरी नजर, नकारात्मक ऊर्जा से बचाव के लिए होलाष्टक के आठों दिन घर में फिटकरी में कपूर और लौंग डालकर जलाएं। घर से सारी नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाएगी।

8. भूत-प्रेत आदि की बाधा यदि घर में महसूस हो रही है तो घर की दक्षिणी दीवार पर मोर पंख की झाड़ू लगाएं। हर दिन घर में कपूर में काले तिल डालकर जलाएं इससे भूत प्रेतादि की बाधा दूर होगी।

9. अपार धन-संपदा प्राप्त करने के लिए पीली सरसों, हल्दी की गांठ, गुड़, कनेर के पुष्प में शुद्ध घी डालकर श्रीं श्रीं श्रीं बीज मंत्र से 1008 आहुतियां हर दिन दें। इससे धन आने के मार्ग खुलेंगे और खूब पैसा बरसने लगेगा।

10. करियर में सफलता, उत्तम नौकरी और व्यापार के लिए जौ, तिल में शक्कर मिलाकर हवन करें।
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Holika Dahan 2025: कब जलेगी होलिका? जानिए तिथि और समय


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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* रात में 10:37 बजे भद्रा समाप्ति के पश्चात किया जाएगा होलिका दहन
* 14 मार्च को भी पूर्णिमा के मान के चलते पूरे देश में 15 को खेली जाएगी होली

इंदौर। होलिका दहन और होली खेलने को लेकर इस बार फिर मतभेद उभर रहे हैं। हालांकि यह स्थिति देशीय समयमान के कारण बन रही है। इसका अर्थ यह हुआ कि देश के अलग-अलग भागों में सूर्योदय का समय अलग-अलग होने के कारण तिथियों में घट-बढ़ होने से यह स्थिति बनी है।

इस बार काशी और देश के अन्य भागों में अलग-अलग दिन होली मनाई जाएगी। काशीवासी जहां परंपरानुसार 13 मार्च को होलिका दहन करके 14 मार्च को रंगोत्सव मना लेंगे, वहीं शेष देश में अगले दिन 14 मार्च को होलिका दहन करने के बाद 15 मार्च को रंगोत्सव मनाया जाएगा। इस बार यह अंतर पूर्णिमा तिथि के मान के चलते हो रहा है।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष, ज्योतिषाचार्य प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय, प्रो. विनय कुमार पांडेय व प्रो. गिरिजाशंकर त्रिपाठी ने बताया कि इस बार फाल्गुन पूर्णिमा 13 मार्च को प्रात: 10:02 बजे लगेगी, जो अगले दिन 14 मार्च को प्रात: 11.11 बजे तक रहेगी। रात्रिव्यापिनी पूर्णिमा में ही होलिका दहन का विधान होने के कारण होलिका दहन तो 13 मार्च की रात में ही हो जाएगा और इसी के साथ काशी में परंपरानुसार होलिकोत्सव आरंभ हो जाएगा, लेकिन होली खेलने का विधान शास्त्रानुसार चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में होने के चलते अगले दिन 15 मार्च को पूरे देश मे रंगोत्सव व धुरेंडी की धूम होगी। 15 मार्च को उदयातिथि में प्रतिपदा दोपहर 12.48 बजे तक है।

काशी में चौसठ देवी के पूजन व परिक्रमा की है परंपरा
काशी में होलिका दहन के पश्चात सुबह होते ही 64 योगिनियों यानी 64 देवी का दर्शन व परिक्रमा करते हुए होली खेलने की मान्यता है। यह परिक्रमा व पूजन होलिका दहन की ठीक सुबह आरंभ हो जाता है, इसलिए काशीवासी पूर्णिमा हो या प्रतिपदा होलिका दहन होते ही होली मनाना आरंभ कर देते हैं, जबकि शेष देश में शास्त्रानुसार रंगोत्सव चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को होता है, इसलिए अनेक बार ऐसा होता है कि काशीवासी एक दिन पूर्व होली मना लेते हैं, जबकि शेष देश दूसरे दिन होली मनाता है। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। चूंकि, होलिका दहन पूर्णिमा व्यापिनी रात्रि में होता है, इसलिए यह 13 की रात्रि में हो जाएगा और चैत्र कृष्ण प्रतिपदा उदयातिथि में 15 मार्च को मिलेगी, अतएव पूरे देश में रंगोत्सव 15 को होगा।

रात 10.37 बजे के बाद होगा होलिका दहन का मुहूर्त
काशी के विद्वान ज्योतिषाचार्यों ने बताया कि 13 मार्च को पूर्णिमा की तिथि प्रात: 10.02 बजे आरंभ हो जा रही है, लेकिन इसके साथ ही भद्रा लग जा रही है। भद्रा में होलिका दहन का निषेध है। भद्रा रात 10.37 बजे समाप्त होगी, इसके पश्चात होलिका दहन किया जा सकेगा। प्रो. गिरिजाशंकर त्रिपाठी ने बताया कि चूंकि शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन अर्धरात्रि के पूर्व कर लिया जाना उचित होता है। अत: इसे रात 10.37 बजे के पश्चात रात 12 बजे के पूर्व कर लिया जाना चाहिए। होलिकादहन 13 की रात्रि में होने के पश्चात धुरड्डी व रंगोत्सव के लिए प्रतिपदा की तिथि 15 मार्च को मिलेगी।

ब्रज के मंदिरों में होली 14 मार्च को
जासं, मथुरा : ब्रज में मथुरा, वृंदावन के साथ ही अन्य स्थानों पर मंदिरों में 14 मार्च को होली होगी। बरसाना के राधारानी मंदिर, नंदगांव के नंदबाबा मंदिर, गोवर्धन के मंदिरों के साथ ही श्रीकृष्ण जन्मस्थान, ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर और प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर में 14 मार्च को ही होली मनाई जाएगी। इसकी तैयारियां मंदिरों में तेज हो गई हैं।

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माघी पूर्णिमा : सौभाग्य व शोभन योग में संगम में लगेगी पुण्यदायी डुबकी


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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12 फरवरी 2025, बुधवार को है महाकुंभ का पांचवां स्नान पर्व
स्नान करने के बाद महाकुंभ मेले से विदा होने लगेंगे संत और कल्पवासी

महाकुंभ नगर : प्रयागराज में इन दिनों विश्व का सबसे बड़ा आस्था का समागम महाकुंभ लगा हुआ है। दैहिक, दैविक, भौतिक तापों (कष्टों) से मुक्ति, मनोवांछित फलों की प्राप्ति की संकल्पना को पूरा करने के लिए देश-विदेश के करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना, सरस्वती के त्रिवेणी संगम के पवित्र जल में अध्यात्म की पुण्यदायी डुबकी लगा चुके हैं। महाकुंभ में अभी भी स्नानार्थियों के आने का क्रम जारी है।
महाकुंभ का पांचवां स्नान पर्व माघी पूर्णिमा 12 फरवरी 2025 बुधवार को पड़ रहा है। इस बार माघी पूर्णिमा पर ग्रह-नक्षत्रों का अद्भुत योग बन रहा है। इस शुभ योग में पुण्य की डुबकी लगाने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु संगम नगरी पहुंच रहे हैं। पंचांगों के अनुसार 11 फरवरी की शाम 6 बजकर 54 मिनट से पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो जाएगी, जो 12 फरवरी को शाम 7 बजकर 22 मिनट तक रहेगी। इस कारण बुधवार को पूरे दिन पूर्णिमा का संयोग रहेगा। इसके अलावा 12 फरवरी को शाम 7.34 बजे तक आश्लेषा नक्षत्र और सुबह 8:05 तक सौभाग्य योग रहेगा। इसके बाद शोभन योग लग जाएगा। कुंभ राशि में बुध व शनि, मीन राशि में शुक्र व राहु गोचर करेंगे। यह अत्यंत उत्तम योग माना जाता है। इस पुण्यदायी योग में पवित्र संगम में डुबकी लगाने से अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होगी और समस्त पापों का क्षय होगा।

समाप्त होगा कल्पवास
माघी पूर्णिमा स्नान पर्व के साथ संगम क्षेत्र में एक महीने से चल रहा कल्पवास समाप्त हो जाएगा। स्नान के बाद अधिकतर संत व श्रद्धालु मेला क्षेत्र से प्रस्थान कर जाएंगे।

स्नान-दान का है विशेष महत्व
माघ महीने की पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। पूर्णिमा के बाद फाल्गुन मास की शुरुआत हो जाती है। पौराणिक वर्णन के अनुसार इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने मत्स्य के रूप में अवतार लिया था। इस दिन गंगा स्नान, दान करने और भगवान सत्यनारायण की कथा सुनने, भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और चंद्रदेव की पूजा करने का विशेष महत्व है। माघी पूर्णिमा पर गाय, तिल, गुड़ और कंबल का दान विशेष पुण्य फल देता है। मोक्ष की कामना रखने वालों को इस दिन संगम और गंगा में डुबकी अवश्य लगाना चाहिए। जो गंगा आदि पवित्र नदियों में न जा पाएं उन्हें अपने घर में गंगा जल डालकर उस पानी से स्नान करना चाहिए।

देवउठनी ग्यारस पर जगाएं अपना सोया हुआ भाग्य


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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12 नवंबर 2024 को देवउठनी ग्यारस पर न केवल भगवान विष्णु योग निद्रा से जागेंगे, बल्कि उनके साथ आप अपना सोया हुआ भाग्य भी जगा सकते हैं। कुछ उपाय आप इस दिन करेंगे तो आपकी किस्मत के दरवाजे खुल जाएंगे और आप जो चाहोगे वो मिल जाएगा। इन उपायों से आपके धन की कमी दूर होगी, खूब पैसा आएगा, जो काम करेंगे उसमें सफलता मिलेगी, विवाह में बाधा आ रही है तो वह भी दूर हो जाएगी, रोग दूर होगा, लक्ष्मी की कृपा आप पर बरसेगी। इनमें से आप एक या दो उपाय अवश्य करें निश्चित रूप से लाभ होगा।

1. देवउठनी ग्यारस के दिन एक विष्णु शंख लें, अपनी पूजा स्थान में एक चांदी के बर्तन में इस शंख को रखें। अच्छे से धोकर, पूजा करें और इसमें शकर भरकर रख दें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। इसके बाद अगले दिन इस शकर को निकालकर चींटियों की बांबी में डाल आएं। इससे आपके आर्थिक संकट दूर हो जाएंगी।

2. देवउठनी एकादशी के दिन शालिग्राम लाकर घर में रखें और विधिवत पूजा अर्चना करें। इससे धीरे-धीरे आपके सारे संकट दूर होने लगेंगे। पैसा आएगा, व्यापार में लाभ होगा और वैवाहिक जीवन में आ रही समस्याएं दूर हो जाएंगी।

3. देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी के पौधे में सायंकाल के समय घी का दीप लगाएं। इससे सुख –समृद्धि आएगी। विष्णु भगवान की कृपा प्राप्त होगी।

4. अपने सोए हुए भाग्य को जगाने के लिए देवउठनी ग्यारस के दिन पांच पीली कौड़ी लेकर इनका पूजन हल्दी से करें। इसके बाद ऊं विष्णवै नम: मंत्र की 11 माला जाप करके पीली कौड़ी को हल्दी की गांठ के साथ बांधकर रख लें। धन आने लगेगा।

5. धन की तंगी है तो देवउठनी ग्यारस के दिन पीपल के पांच पत्ते लें, इन पर अष्टगंध से अष्टदल कमल बनाएं। पीले पुष्पों से पूजन करें और ऊं अं वासुदेवाय नम: मंत्र का जाप करें। इसके बाद इन पत्तों को ले जाकर किसी कुएं में डाल आएं। खूब पैसा आने लगेगा।

6. देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के पूर्ण स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करना भी श्रेष्ठ रहता है। इस दिन श्रीकृष्ण का आकर्षक श्रृंगार कर मोर मुकुट सजाएं, माखन-मिश्री का भोग लगाएं।

7. देवउठनी एकादशी के दिन पीपल के पेड़ के नीचे सायंकाल प्रदोषकाल में सात दीपक में तिल का तेल भरकर प्रज्वलित करें। सोया हुआ भाग्य जाग जाएगा।

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धनतेरस पर धन की वर्षा करने वाले पांच टोटके


पं. गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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धन त्रयोदशी की रात्रि को धन की वर्षा करवाने वाली रात्रि कहा गया है। यह रात्रि भी दीपावली की रात्रि की तरह सिद्ध रात होती है। तांत्रिक लोग कार्तिक अमावस्या से पूर्व कार्तिक त्रयोदशी की रात में भी अनेक तांत्रिक क्रियाएं करते हैं। इनमें से कई क्रियाएं ऐसी होती हैं जो आमजन भी अपने घर में कर सकते हैं। उनसे हानि कुछ नहीं होती बल्कि धन लाभ ही होता है। ये सारे उपाय और टोटके तंत्र शास्त्रों में वणित हैं। इस धन तेरस 29 अक्टूबर को आप इन्हें आजमाकर अपने घर में धन की वर्षा कर सकते हैं।

1. धनतेरस पर प्रदोषकाल में कुबेर का पूजन करें। इसके बाद मिट्टी के 13 चौकोर दीपक लगाएं। इन दीपों में एक-एक सफेद कौड़ी डालें और सरसों का तेल भरकर प्रज्वलित करें। जब दीपक पूर्ण हो जाए तो इन कौड़ियों को निकालकर आधी रात के बाद घर के उत्तरी भाग में दबा दें। इससे आपको धन लाभ होने लगेगा और पैसों की बचत भी होने लगेगी।

2. धनतेरस के दिन मिट्टी के 13 दीपक लेकर इनका विधिवत पूजन करें। इन दीपकों में एक-एक केसर का धागा डालें। कुबेर देवता से प्रसन्न होने की प्रार्थना करें और इन्हें अपने घर के चारों ओर चारों दिशाओं में रख दें।

3. धनतेरस की मध्यरात्रि में एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। इस पर कुबेर यंत्र स्थापित करें। इसे गंगाजल से स्नान करवाकर केसर की नौ बिंदियां लगाएं। पूजन में केसर रंगे चावल का प्रयोग करें। श्रीसूक्त का पाठ करें और फिर इस यंत्र को उसी लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखें। धन की वृद्धि होगी। ध्यान रहे यह पूरी पूजा उत्तरमुखी बैठकर करना चाहिए। बैठने के लिए लाल कंबल के आसन का प्रयोग करें।

4. धनतेरस से पूर्व पेड़ देख आएं जिस पर उल्लू बैठता हो। फिर धनतेरस की रात्रि में उस पेड़ की एक टहनी तोड़कर ले आएं। उस टहनी का पूजन कर तिजोरी में रखने से कभी धन की कमी नहीं होती है। जो धन पास में होता है वह बढ़ने लगता है।

5. धनतेरस के दिन एक पीतल का कलश खरीदें। इसमें जल भरकर एक चौकी पर स्थापित करें। इस पर केसर-चंदन से स्वस्तिक बनाएं और इस पर श्रीं लिखें। कलश के मुख पर मौली बांधें। इसके ऊपर एक मिट्टी का दीपक रखकर प्रज्वलित करें। दीपक प्रदोष काल से लेकर रात्रि में 3.30 बजे तक जलना चाहिए। इससे धन का संकट दूर हो जाता है।

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धनतेरस पर लाल किताब के ये टोटके कर देंगे मालामाल
धन की तंगी है, लाल किताब के ये टोटके आजमाकर देखिए
दीपावली पूजन मुहूर्त, गुरुवार 31 अक्टूबर 2024