होलाष्टक 7 मार्च से, ये टोटके कर देंगे मालामाल


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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फाल्गुन शुक्ल अष्टमी 7 मार्च 2025 से फाल्गुन पूर्णिमा 14 मार्च तक आठ दिन का समय होलाष्टक कहलाता है। ये आठ दिन तंत्र-मंत्रों की साधना-सिद्धियों के लिए अत्यंत विशेष दिन होते हैं। इन आठ दिनों में धन-संपदा की प्राप्ति, आकर्षण, वशीकरण, रोग मुक्ति, कार्यों में सफलता, संतान की प्राप्ति, विवाह में बाधा जैसी अनेक समस्याओं को दूर करने के उपाय करने चाहिए। आइए हम जानते हैं होलाष्टक में क्या करना चाहिए।

1. धन आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। धन के बिना जीवन चलाना कठिन हो जाता है। यदि आपके पास धन की कमी है। कर्ज बढ़ता जा रहा है और पैसों की आवक बहुत कम है तो होलाष्टक के आठ दिनों में यह विशेष प्रयोग करें। होलाष्टक प्रारंभ होने के दिन अपने घर में स्फटिक, अष्टधातु, पंचधातु, सोना, चांदी या तांबे का श्रीयंत्र स्थापित करें। इसे हर दिन गंगाजल से स्नान करवाकर इस पर केसर से नौ बिंदियां लगाएं। लाल पुष्प से पूजन करें और उत्तराभिमुख होकर लाल रंग के आसन पर बैठ जाएं। अब हर दिन 11 बार श्रीसूक्त का पाठ करें। अंतिम दिन मखाने की खीर और कमलगट्टे से 108 आहुतियां दें। आठवें दिन से आपके हर काम बनने लगेंगे। पैसा आने लगेगा।

2. कर्ज मुक्ति के लिए होलाष्टक के आठों दिन हर दिन 7 बार ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ करें। यह पाठ मंगल यंत्र के समक्ष करें। अंतिम दिन कमलगट्टे से 108 आहुतियां देकर हवन करें। सारा कर्ज धीरे-धीरे उतरने लगेगा।

3. शारीरिक रोग दूर करने के लिए होलाष्टक के हर दिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव का जल से अभिषेक करें। जल में केसर का इत्र मिलाएं। अंतिम दिन 108 आहुतियां देते हुए महामृत्युंजय मंत्र से हवन करें। सारे शारीरिक कष्ट दूर हो जाएंगे। रोग दूर होंगे।

4. आकर्षण और वशीकरण प्राप्ति के लिए होलाष्टक के आठों दिन अपने मस्तक पर केसर-चंदन का तिलक लगाएं। कामदेव गायत्री मंत्र ऊं कामदेवाय विद्महे पुष्प बाणाय धीमहि तन्नो अनंग प्रचोदयात की एक माला स्फटिक की माला से हर दिन करें। यह मंत्र अत्यंत चमत्कारी है और इसके जाप से आपके व्यक्तित्व में चुंबकीय आकर्षण पैदा हो जाएगा।

5. उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए भगवान श्रीकृष्ण के लड्डू गोपाल स्वरूप की पूजा करें, माखन मिश्री का भोग लगाएं और संतान गोपाल स्तोत्र का हर दिन पाठ करेंगे तो संतान की कमी दूर होगी।

6 . सर्वत्र रक्षा के लिए होलाष्टक के आठों दिन नित्य रूप से श्रीराम और हनुमानजी का पूजन करके राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें। कहीं भी जाएंगे कोई कष्ट नहीं रहेगा।

7. बुरी नजर, नकारात्मक ऊर्जा से बचाव के लिए होलाष्टक के आठों दिन घर में फिटकरी में कपूर और लौंग डालकर जलाएं। घर से सारी नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाएगी।

8. भूत-प्रेत आदि की बाधा यदि घर में महसूस हो रही है तो घर की दक्षिणी दीवार पर मोर पंख की झाड़ू लगाएं। हर दिन घर में कपूर में काले तिल डालकर जलाएं इससे भूत प्रेतादि की बाधा दूर होगी।

9. अपार धन-संपदा प्राप्त करने के लिए पीली सरसों, हल्दी की गांठ, गुड़, कनेर के पुष्प में शुद्ध घी डालकर श्रीं श्रीं श्रीं बीज मंत्र से 1008 आहुतियां हर दिन दें। इससे धन आने के मार्ग खुलेंगे और खूब पैसा बरसने लगेगा।

10. करियर में सफलता, उत्तम नौकरी और व्यापार के लिए जौ, तिल में शक्कर मिलाकर हवन करें।
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Holika Dahan 2025: कब जलेगी होलिका? जानिए तिथि और समय


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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* रात में 10:37 बजे भद्रा समाप्ति के पश्चात किया जाएगा होलिका दहन
* 14 मार्च को भी पूर्णिमा के मान के चलते पूरे देश में 15 को खेली जाएगी होली

इंदौर। होलिका दहन और होली खेलने को लेकर इस बार फिर मतभेद उभर रहे हैं। हालांकि यह स्थिति देशीय समयमान के कारण बन रही है। इसका अर्थ यह हुआ कि देश के अलग-अलग भागों में सूर्योदय का समय अलग-अलग होने के कारण तिथियों में घट-बढ़ होने से यह स्थिति बनी है।

इस बार काशी और देश के अन्य भागों में अलग-अलग दिन होली मनाई जाएगी। काशीवासी जहां परंपरानुसार 13 मार्च को होलिका दहन करके 14 मार्च को रंगोत्सव मना लेंगे, वहीं शेष देश में अगले दिन 14 मार्च को होलिका दहन करने के बाद 15 मार्च को रंगोत्सव मनाया जाएगा। इस बार यह अंतर पूर्णिमा तिथि के मान के चलते हो रहा है।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष, ज्योतिषाचार्य प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय, प्रो. विनय कुमार पांडेय व प्रो. गिरिजाशंकर त्रिपाठी ने बताया कि इस बार फाल्गुन पूर्णिमा 13 मार्च को प्रात: 10:02 बजे लगेगी, जो अगले दिन 14 मार्च को प्रात: 11.11 बजे तक रहेगी। रात्रिव्यापिनी पूर्णिमा में ही होलिका दहन का विधान होने के कारण होलिका दहन तो 13 मार्च की रात में ही हो जाएगा और इसी के साथ काशी में परंपरानुसार होलिकोत्सव आरंभ हो जाएगा, लेकिन होली खेलने का विधान शास्त्रानुसार चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में होने के चलते अगले दिन 15 मार्च को पूरे देश मे रंगोत्सव व धुरेंडी की धूम होगी। 15 मार्च को उदयातिथि में प्रतिपदा दोपहर 12.48 बजे तक है।

काशी में चौसठ देवी के पूजन व परिक्रमा की है परंपरा
काशी में होलिका दहन के पश्चात सुबह होते ही 64 योगिनियों यानी 64 देवी का दर्शन व परिक्रमा करते हुए होली खेलने की मान्यता है। यह परिक्रमा व पूजन होलिका दहन की ठीक सुबह आरंभ हो जाता है, इसलिए काशीवासी पूर्णिमा हो या प्रतिपदा होलिका दहन होते ही होली मनाना आरंभ कर देते हैं, जबकि शेष देश में शास्त्रानुसार रंगोत्सव चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को होता है, इसलिए अनेक बार ऐसा होता है कि काशीवासी एक दिन पूर्व होली मना लेते हैं, जबकि शेष देश दूसरे दिन होली मनाता है। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। चूंकि, होलिका दहन पूर्णिमा व्यापिनी रात्रि में होता है, इसलिए यह 13 की रात्रि में हो जाएगा और चैत्र कृष्ण प्रतिपदा उदयातिथि में 15 मार्च को मिलेगी, अतएव पूरे देश में रंगोत्सव 15 को होगा।

रात 10.37 बजे के बाद होगा होलिका दहन का मुहूर्त
काशी के विद्वान ज्योतिषाचार्यों ने बताया कि 13 मार्च को पूर्णिमा की तिथि प्रात: 10.02 बजे आरंभ हो जा रही है, लेकिन इसके साथ ही भद्रा लग जा रही है। भद्रा में होलिका दहन का निषेध है। भद्रा रात 10.37 बजे समाप्त होगी, इसके पश्चात होलिका दहन किया जा सकेगा। प्रो. गिरिजाशंकर त्रिपाठी ने बताया कि चूंकि शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन अर्धरात्रि के पूर्व कर लिया जाना उचित होता है। अत: इसे रात 10.37 बजे के पश्चात रात 12 बजे के पूर्व कर लिया जाना चाहिए। होलिकादहन 13 की रात्रि में होने के पश्चात धुरड्डी व रंगोत्सव के लिए प्रतिपदा की तिथि 15 मार्च को मिलेगी।

ब्रज के मंदिरों में होली 14 मार्च को
जासं, मथुरा : ब्रज में मथुरा, वृंदावन के साथ ही अन्य स्थानों पर मंदिरों में 14 मार्च को होली होगी। बरसाना के राधारानी मंदिर, नंदगांव के नंदबाबा मंदिर, गोवर्धन के मंदिरों के साथ ही श्रीकृष्ण जन्मस्थान, ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर और प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर में 14 मार्च को ही होली मनाई जाएगी। इसकी तैयारियां मंदिरों में तेज हो गई हैं।

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लाजवर्त के फायदे जानकर चौंक जाएंगे आप


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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रत्न शास्त्र एक बहुत बड़ा विज्ञान है, जिसमें विभिन्न प्रकार के रत्न और मणियों का उपयोग करके जीवन को सुंदर सुखद बनाया जा सकता है। ये रत्न पहनने वाले मनुष्य को न केवल नाम, सम्मान, शौर्य, साहस और आत्मविश्वास देते हैं, बल्कि उसे धन-संपत्ति भी प्रदान करते हैं।

रत्न शास्त्र में अनेक मणियों का वर्णन मिलता है। जैसे घृत मणि, तैल मणि, भीष्मक मणि, उपलक मणि, स्फटिक मणि, पारस मणि, उलूक मणि, मासर मणि और लाजवर्त मणि। ये सभी मणियां विशिष्ट गुणों वाली होती है और धारण करने वालों को मनचाहा लाभ देती हैं। इन्हीं में से आज हम बात करने जा रहे हैं लाजवर्त मणि की। इसे लाजावर्त मणि भी कहा जाता है।


लाजवर्त के गुण और प्रकार
लाजवर्त एक चिकना, ठोस, अपारदर्शी, गहरे नीले रंग का रत्न होता है। इसमें नीले रंग के साथ हल्के नीले रंग की धारियां भी दिखाई देती हैं। शास्त्रों में इसका वर्णन करते हुए लिखा गया है कि लाजवर्त का रंग मोर की गर्दन के नीले रंग के समान होता है। लाजवर्त को शनि, राहु और केतु की पीड़ा को दूर करने के लिए धारण किया जाता है। यदि कुंडली में ये तीनों ग्रह दूषित हों, पीड़ा दे रहे हों तो इसे धारण करने से बहुत लाभ होता है।

रत्न ज्योतिष में नौ ग्रहों के नौ मुख्य रत्न और उनके सैकड़ों उपरत्न बताए गए हैं। इन्हें ग्रहों के अनुसार धारण करने से उन ग्रहों की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। शनि की पीड़ा से बचने के लिए नीलम, राहु के लिए गोमेद और केतु के लिए लहसुनिया पहनने की सलाह दी जाती है, लेकिन यदि तीनों ग्रह खराब हों तो तीन रत्न पहनने की जगह एक ही रत्न पहनाया जाता है, जिससे तीनों ग्रहों की पीड़ा से एक साथ मुक्ति मिल जाती है। वह रत्न है लाजवर्त। अंग्रेजी में इसे लेपिज लाजुली (lapis lazuli) कहा जाता है। लाजवर्त को ब्रेसलेट के रूप में, अंगूठी के रूप में, माला के रूप, पेंडेंट के रूप में धारण किया जा सकता है।

सिद्ध लाजवर्त मणि पहनने के लाभ
* सिद्ध लाजवर्त मणि माला शनि, राहु, केतु के दोषों और बुरे प्रभावों को दूर करती है।
* यदि बार-बार दुर्घटनाएं हो रही हों तो सिद्ध लाजवर्त मणि माला धारण करना चाहिए।
* यह आकस्मिक रूप से होने वाली धन हानि, स्वास्थ्य समस्याओं से बचाव करने में मदद करती है।
* सिद्ध लाजवर्त मणि माला बुरी नजर, जादू-टोना, नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में मदद करती है।
* राहु-केतु के कारण पितृ दोष का निर्माण भी होता है। सिद्ध लाजवर्त मणि माला पहनने से पितृ दोष शांत होता है।
* व्यापार-व्यवसाय या नौकरी में बाधा आ रही हो तो सिद्ध लाजवर्त मणि माला धारण करना उचित रहता है।
* यह दिमाग को शांत रखने का काम भी करती है। मानसिक स्थिरता सिद्ध लाजवर्त मणि माला से आती है।
* इसे पहनने से आर्थिक तंगी दूर होती है, पैसों के आगमन में आ रही रुकावटें दूर होती हैं।
* जिनकी जन्म कुंडली में सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण दोष है उन्हें भी यह पहनना चाहिए।
* घर में पैसों की बचत नहीं होती, सदस्यों को तनाव-डिप्रेशन रहता है तो लाजवर्त मणि की माला को घर की पश्चिम दिशा में लटकाएं।

कैसे धारण करें
सिद्ध लाजवर्त को धारण करने का सबसे शुभ दिन शनिवार है। इसे रत्न संस्कार करवाकर पहना जा सकता है। संस्कारित लाजवर्त ही धारण करना चाहिए। सीधे बाजार से लाकर नहीं पहनना चाहिए। इसके मोतियों की माला भी गले में धारण की जा सकती है। सिद्ध संस्कारित करने से पहले इसको सरसों या तिल के तेल में पांच घंटे तक डुबोकर रखा जाता है । इसके बाद नीले रंग के वस्त्र पर रखकर ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम: मंत्र की पांच माला जाप कर इसे संस्कारित किया जाता है । धूप-दीप, नैवेद्य करके पंचोपचार से पूजन किया जाता है । फिर इसे उसी नीले कपड़े से पोंछकर धारण करवाया जाता है।

टोने-टोटके, भूत-प्रेत बाधा दूर करती है
सिद्ध लाजावर्त मणि धारण करने से टोने-टोटके का असर समाप्त होता है। इसे पहनने से भूत-प्रेत की बाधा दूर होती है। नकारात्मक ऊर्जा से बचाव होता है। इसे पहनने से सभी तरह का काला जादू और किया-कराया समाप्त हो जाता है। यह सिद्ध मणि की माला पितृदोष को भी समाप्त कर देती है।

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माघी पूर्णिमा : सौभाग्य व शोभन योग में संगम में लगेगी पुण्यदायी डुबकी


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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12 फरवरी 2025, बुधवार को है महाकुंभ का पांचवां स्नान पर्व
स्नान करने के बाद महाकुंभ मेले से विदा होने लगेंगे संत और कल्पवासी

महाकुंभ नगर : प्रयागराज में इन दिनों विश्व का सबसे बड़ा आस्था का समागम महाकुंभ लगा हुआ है। दैहिक, दैविक, भौतिक तापों (कष्टों) से मुक्ति, मनोवांछित फलों की प्राप्ति की संकल्पना को पूरा करने के लिए देश-विदेश के करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना, सरस्वती के त्रिवेणी संगम के पवित्र जल में अध्यात्म की पुण्यदायी डुबकी लगा चुके हैं। महाकुंभ में अभी भी स्नानार्थियों के आने का क्रम जारी है।
महाकुंभ का पांचवां स्नान पर्व माघी पूर्णिमा 12 फरवरी 2025 बुधवार को पड़ रहा है। इस बार माघी पूर्णिमा पर ग्रह-नक्षत्रों का अद्भुत योग बन रहा है। इस शुभ योग में पुण्य की डुबकी लगाने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु संगम नगरी पहुंच रहे हैं। पंचांगों के अनुसार 11 फरवरी की शाम 6 बजकर 54 मिनट से पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो जाएगी, जो 12 फरवरी को शाम 7 बजकर 22 मिनट तक रहेगी। इस कारण बुधवार को पूरे दिन पूर्णिमा का संयोग रहेगा। इसके अलावा 12 फरवरी को शाम 7.34 बजे तक आश्लेषा नक्षत्र और सुबह 8:05 तक सौभाग्य योग रहेगा। इसके बाद शोभन योग लग जाएगा। कुंभ राशि में बुध व शनि, मीन राशि में शुक्र व राहु गोचर करेंगे। यह अत्यंत उत्तम योग माना जाता है। इस पुण्यदायी योग में पवित्र संगम में डुबकी लगाने से अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होगी और समस्त पापों का क्षय होगा।

समाप्त होगा कल्पवास
माघी पूर्णिमा स्नान पर्व के साथ संगम क्षेत्र में एक महीने से चल रहा कल्पवास समाप्त हो जाएगा। स्नान के बाद अधिकतर संत व श्रद्धालु मेला क्षेत्र से प्रस्थान कर जाएंगे।

स्नान-दान का है विशेष महत्व
माघ महीने की पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। पूर्णिमा के बाद फाल्गुन मास की शुरुआत हो जाती है। पौराणिक वर्णन के अनुसार इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने मत्स्य के रूप में अवतार लिया था। इस दिन गंगा स्नान, दान करने और भगवान सत्यनारायण की कथा सुनने, भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और चंद्रदेव की पूजा करने का विशेष महत्व है। माघी पूर्णिमा पर गाय, तिल, गुड़ और कंबल का दान विशेष पुण्य फल देता है। मोक्ष की कामना रखने वालों को इस दिन संगम और गंगा में डुबकी अवश्य लगाना चाहिए। जो गंगा आदि पवित्र नदियों में न जा पाएं उन्हें अपने घर में गंगा जल डालकर उस पानी से स्नान करना चाहिए।

गुरु 119 दिन बाद हो रहे हैं मार्गी, जानिए क्या होगा आप पर असर


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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बृहस्पति अर्थात् गुरु 119 दिन वक्री रहने के बाद 4 फरवरी 2025 मंगलवार को मार्गी होने जा रहा है। गुरु 9 अक्टूबर 2024 को वक्री हुआ था जो अब 4 फरवरी को दोपहर 3 बजकर 09 मिनट पर मार्गी होने जा रहा है। गुरु का मार्गी होना लगभग सभी राशि के जातकों को विशेष शुभ फल देने वाला रहेगा। जिन लोगों के विवाह की बात अटकी हुई है, या विवाह में कोई बाधा आ रही है, वह बाधा गुरु के मार्गी होने से दूर होगी और अविवाहितों के विवाह के योग बनेंगे।

गुरु का प्रभाव
जातक की जन्मकुंडली में विवाह का योग तभी बनता है जब उनकी कुंडली में गुरु की स्थिति ठीक हो। गुरु के बलवान, शुभ ग्रहों से दृष्ट और शुभ स्थानों में शुभ ग्रहों के साथ होने के कारण विवाह के योग बनते हैं। जिन युवक-युवतियों का गुरु कमजोर होता है उनके विवाह में विलंब होता है, विवाह में बाधा आती रहती है या विवाह होने के बाद वह सफल नहीं होता है। अब जब गुरु मार्गी हो रहा है तो ऐसे युवक-युवतियों का विवाह निर्विघ्न तय होकर संपन्न होने के प्रबल योग बनेंगे, जिनका विवाह अब तक अटका हुआ है।

राशियों पर असर
मेष : गुरु के मार्गी होेने से वाणी का शुभ प्रभाव मिलेगा। अपने व्यवहार से लोगों को जीत लेंगे। आर्थिक मजबूती आएगी।
वृषभ : गुरु मार्गी होने से आपको लोकप्रियता प्राप्त होगी, सप्तम पर दृष्टि होने से विवाह के उत्तम योग बनने वाले हैं।
मिथुन : गुरु मार्गी होने से खर्च पर लगाम लगेगी। पारिवारिक सौख्यता आएगी। सम्मान प्राप्त होगा। पद प्राप्त होने वाला है।
कर्क : गुरु का मार्गी होना सम्मान के साथ आपको पद और प्रतिष्ठा भी दिलाएगा। अटके हुए काम निर्विघ्न संपन्न होंगे।
सिंह : आपके अटके हुए कार्य और व्यवसाय में उन्नति होगी। समाज में पद और प्रतिष्ठा बढ़ेगी। मानसिक शांति रहेगी।
कन्या : भाग्योदय होने वाला है। सम्मान, धन, प्रेम, सुख, वैवाहिक जीवन मधुर रहेगा। विवाह के उत्तम योग बनने वालेे हैं।
तुला : वैवाहिक जीवन सुखद होने वाला है। अविवाहितों के विवाह के योग बनेंगे। धन आएगा, स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
वृश्चिक : वैवाहिक जीवन की अनबन दूर होगी। प्रेम और सामंजस्य बढ़ेगा। स्वास्थ्य खराब होगा। पैसा आएगा खर्च भी होगा।
धनु : गुरु छठे भाव में मार्गी होने से पुराने रोग दूर होंगे। शत्रुओं पर विजय हासिल होगी। पैसा आने के योग हैं।
मकर : प्रेम संबंध मजबूत होंगे। विवाह की बाधा दूर होगी। शिक्षा के क्षेत्र में सफलता मिलेगी। मान-सम्मान प्राप्त होगा।
कुंभ : किसी वरिष्ठ के मार्गदर्शन से अटके काम पूरे होंगे। पैसा आएगा। सुख और सम्मान के साथ प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
मीन : धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ेगी। प्रेम संबंध प्रगाढ़ होगा। भाई-बहनों की ओर से सुख मिलेगा। पराक्रम बढ़ेगा।

गुरु मार्गी होने पर क्या करें
गुरु के मार्गी होने वाले दिन अर्थात् 4 फरवरी को सभी राशियों के जातक अपने गुरुजनों का पूजन करें, उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। उन्हें पीली मिठाई या पीले फल भेंट करें। भगवान दत्तात्रेय का पूजन करें। चने की दाल और हल्दी की गांठ भेंट करें।

गुरु की स्थति
राशि परिवर्तन : मिथुन में प्रवेश 14 मई 2025 बुधवार रात्रि 11:20 बजे

वक्री : 11 नवंबर 2025 मंगलवार रात्रि 10:11 बजे
मार्गी : 11 मार्च 2026 बुधवार प्रात: 8:58 बजे
कुल वक्री अवधि : 120 दिन

गुरु अस्त : 13 जून 2025 शुक्रवार सायं 7:46बजे
गुरु उदय : 9 जुलाई 2025 बुधवार प्रात: 5:03 बजे
कुल अस्त अवधि : 26 दिन

शुक्र का उच्च राशि में प्रवेश, बनेगा साल का पहला मालव्य पूर्ण राजयोग


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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वर्ष 2025 में पहली बार शुक्र 28 जनवरी को प्रात: 7 बजे अपनी उच्च राशि मीन में प्रवेश करने जा रहा है। शुक्र के उच्च राशि में जाने के कारण मालव्य योग बन रहा है। इस बार यह योग लगभग चार महीने तक बना रहेगा। शुक्र 31 मई 2025 को राशि बदलेगा, तब तक मालव्य योग बना रहेगा और इसका फल वैसे तो सभी राशि के जातकों को मिलने वाला है लेकिन सात राशियों को विशेष फल मिलेंगे और यह योग उन्हें मालामाल करने वाला है।

मालव्य योग कैसे बनता है
मालव्य योग की गिनती पंचमहापुरुष योग में होती है। शुक्र जब अपनी उच्च राशि मीन में होकर शुभ स्थान में बैठता है तो मालव्य योग बनता है। इसे मालव्य योग को पूर्ण राजयोग कहा जाता है। इस योग के बनने से शुभ फलों में वृद्धि होती है। जिन जातकों की जन्म कुंडली में शुक्र उच्च का होकर केंद्र स्थानों प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम में बैठता है ऐसा व्यक्ति राजा की तरह जीवन व्यतीत करता है।

मालव्य योग के लाभ
1. मालव्य योग धन संपदा प्रदान करता है। इस योग के बनने से धन-समृद्धि में वृद्धि होगी।
2. मालव्य योग जिन जातकों की कुंडली में बना होता है वे अत्यंत भाग्यशाली होते हैं।
3. मालव्य योग के कारण धन आने के मार्ग खुलते हैं और धन कोष में वृद्धि होने लगती है।
4. मालव्य योग जिन जातकों की कुंडली में होता है वे सौंदर्य और कला प्रेमी होते हैं।
5. मालव्य योग के प्रभाव से व्यक्ति आकर्षक बनेगा, प्रेमी होगा, प्रेम संबंध प्राप्त होंगे।

सात राशियां होंगी मालामाल
शुक्र के मीन राशि में प्रवेश करने के साथ ही बनने वाले मालव्य राजयोग का प्रभाव विशेष रूप से पांच राशियों को मिलने वाला है। ये राशियां बुध, गुरु, शुक्र और चंद्र से संंबंधित हैं। वृषभ, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, धनु, मीन राशियों का भाग्य खुलने वाला है। इन राशियों के जातकों को अपार धन-संपदा मिलने वाली है। यदि लंबे समय से कहीं पैसा फंसा हुआ है तो इन्हें मिल जाएगा। निवेश से लाभ होगा। भौतिक सुखों में वृद्धि होगी। प्रेम संबंध प्रगाढ़ होंगे। नए प्रेम संबंध बनेंगे। पारिवारिक जीवन सुखद होगा। भूमि, भवन, वाहन खरीदने के योग बनेंगे। पैतृक संपत्ति प्राप्त होगी। आकर्षण प्रभाव में वृद्धि होगी। संतान सुख मिलेगा। इन सात राशियों के जातकों को भाग्य का बल मिलेगा और जिस काम में हाथ डालेंगे वह पूरा होगा। वहां से धन कमाने में सफल होंगे।

शेष पांच राशियों को मिलेगा मिलाजुला फल
उपरोक्त सात राशियों के अलावा शेष पांच राशियों मेष, सिंह, वृश्चिक, मकर, कुंभ के लिए शुक्र का मीन राशि में गोचर मिलाजुला फल देने वाला रहेगा। इन राशि के जातकों को धन की प्राप्ति तो होगी लेकिन खर्च भी उसी अनुपात में होगा। रिश्तों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। दांपत्य जीवन में कुछ कठिनाइयां आ सकती हैं। पति-पत्नी को एक-दूसरे के साथ तालमेल बनाने में परेशानी आएगी। इन राशि के जातकों के प्रभाव में कमी आएगी।

क्या करें
1. मालव्य योग का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए सभी राशि के जातक इस दौरान साफ-स्वच्छ रहें।
2. अधिक से अधिक दिन सफेद या हल्के रंग के कपड़े पहनें।
3. अच्छे मध्यम खुशबू वाले इत्र या परफ्यूम का उपयोग प्रतिदिन करें।
4. केसर का तिलक हर दिन लगाएं।
5. नहाने के पानी में थोड़ा सा गुलाबजल डालकर हर दिन नहाएं।
6. चांदी का छल्ला स्त्रियां अपने बाएं हाथ में और पुरुष दाहिने हाथ में धारण करें।
7. घर में गुलाब का रूम स्प्रे डालें।
8. गुलाब की अगरबत्ती या धूप बत्ती हर दिन घर में लगाएं।
9. प्रत्येक शुक्रवार को शिवजी का अभिषेक जल में गुलाब का इत्र डालकर करें।
10. शुक्र के मंत्र ऊं द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम: का नियमित एक माला जाप पिंक स्फटिक की माला से करें।

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ग्रहों को करना है शांत तो कर लें ये उपाय


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में कोई न कोई ग्रह खराब या कमजोर होता है। उस ग्रह को ठीक करने के लिए उससे संबंधित वस्तुओं का दान किया जाता है। उस ग्रह के मंत्रों का जाप करवाया जाता है। आइए जानते हैं किस ग्रह की शांति के लिए किन वस्तुओं का दान करना चाहिए और कितने मंत्रों का जाप करवाना चाहिए।

सूर्य
सूर्य की शांति के लिए माणिक्य का दान सर्वश्रेष्ठ दान बताया गया है। इसके अलावा गोधूम, गुड़, गौ, कमलपुष्प, नया घर, लाल चंदन, लाल वस्त्र, सोना-तांबा, केसर, मूंगा का दान किया जाता है। सूर्य की शांति के लिए इसके 7000 मंत्रों का जाप किया जाता है किंतु कलयुग में इसका चार गुना अर्थात् 28 हजार जाप करवाना चाहिए।

चंद्र
चंद्र की शांति के लिए चांदी के बर्तन का दान किया जाता है। इसके अलावा चावल, श्वेत वस्त्र, श्वेत चंदन, श्वेत पुष्प, चीनी, चांदी, बैल, घी, शंख, दही, मोती, कपूर का दान करने से चंद्र की पीड़ा शांत होती है। चंद्र की शांति के लिए इसके 11 हजार मंत्रों का जाप किया जाता है किंतु कलयुग में इसका चार गुना अर्थात् 44 हजार मंत्रों का जाप करवाना चाहिए।

मंगल
मंगल ग्रह परेशान कर रहा है तो शांति के लिए मसूर की दाल, गोधूम, लाल बैल, गुड़, लाल चंदन, लाल वस्त्र, लाल पुष्प, सोना, तांबा, केसर, कस्तुरी आदि का दान किया जाता है। किसी ब्राह्मण को तांबे के कलश में गुड़ रखकर दान देना चाहिए। मंगल की शांति के लिए 10 हजार मंत्रों का जाप करवाना चाहिए। कलयुग में चार गुना 40 हजार मंत्रों का जाप करवाना चाहिए।

बुध
बुध की शांति के लिए कांसे का पात्र, हरे कपड़े, गजदंत, घी, पन्ना, सोना, सर्वपुष्प, रत्न, कपूर, शंख, अनेक प्रकार के फल, षटरस भोजन दान में देना चाहिए। बुध के लिए 9000 मंत्रों का जाप करवाना चाहिए। कलयुग में चार गुना अर्थात् 36 हजार जाप करवाना चाहिए।

गुरु
गुरु की शांति के लिए पीला अनाज, पीले कपड़े, सोना, घी, पीले पुष्प, पीले फल, पुखराज, हल्दी, धार्मिक पुस्तकें, शहद, नमक, शक्कर, भूमि, छत्र आदि का दान किया जाता है। गुरु के मंत्रों की जप संख्या 19 हजार होती है। कलयुग में इसका चार गुना अर्थात् 76 हजार जाप करवाना चाहिए।

शुक्र
शुक्र की शांति के लिए सफेद चावल, सफेद चंदन, सफेद वस्त्र या रंगबिरंगे वस्त्र, श्वेत पुष्प, चांदी, हीरा, घी, सोना, दही, सुगंधित द्रव्य, इत्र, शकर का दान करना चाहिए। शुक्र की शांति के लिए इसके 16 हजार मंत्रों का जाप करवाया जाता है। कलयुग में इसका चार गुना अर्थात् 64 हजार जप संख्या करवाना चाहिए।

शनि
शनि की शांति के लिए तिल या सरसो का तेल, नीलम, तिल, काले वस्त्र, लोहा, भैंस, काली गाय, काले पुष्प, सोना आदि का दान दिया जाता है। शनि के शांति मंत्रों की संख्या 23 हजार होती है। कलयुग में इसका चार गुना 92 हजार जाप करवाना चाहिए।

राहु
राहु की शांति के लिए पंचधातु का नाग, सप्तधान्य, नीले वस्त्र, गोमेद, काले पुष्प, तिल, खड्ग, तेल, लोहा, कंबल, तांबे का पात्र, सुवर्ण, रत्न आदि का दान दिया जाता है। राहु के मंत्र जाप की संख्या 18 हजार होती है। कलयुग में 72 हजार जाप करवाना चाहिए।

केतु
केतु की शांति के लिए उड़द, कंबल, कस्तुरी, वैदूर्यमणि, काले फूल, तिल, तेल, रत्न, सुवर्ण, लोहा, शस्त्र, सप्तधान्य का दान दिया जाता है। इसकी शांति के लिए 17 हजार मंत्रों का जाप करवाया जाता है। कलयुग में चार गुना अर्थात् 68 हजार जाप करवाए जाने चाहिए।

चार दिन बन रहा है अभिजीत योग, धन बरसाने वाला संयोग


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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माघ मास में सूर्य के अभिजीत नक्षत्र में प्रवेश करने के साथ ही अत्यंत शुभ योग का निर्माण हो रहा है जिसे अभिजीत राजयोग कहा जाता है। मुख्य नक्षत्र 27 होते हैं किंतु अभिजीत की शुभता और श्रेष्ठ फलों के कारण इसे 28वें नक्षत्र के रूप में शामिल किया गया है। सूर्य जब भी इस नक्षत्र में आता है तब यह समय अत्यंत श्रेष्ठ और उत्तम होता है। इसमें धन प्रदायक योग बनता है। लक्ष्मी योग बनता है और कुबेर योग बनता है। अभिजीत नक्षत्र का स्वामी ब्रह्मा और ग्रह बुध होता है।

सूर्य 20 जनवरी 2025 सोमवार को रात्रि में 10 बजकर 5 मिनट पर अभिजीत नक्षत्र में प्रवेश करने वाला है और यह 24 जनवरी को मध्य रात्रि के बाद (25 जनवरी) 1 बजकर 42 मिनट पर अभिजीत नक्षत्र को छोड़ देगा। इस प्रकार चार दिन का अत्यंत श्रेष्ठ मुहूर्त बन रहा है। इस महामुहूर्त में प्रारंभ किया गया कोई भी कार्य अत्यंत शुभ फलदायी होता है। इन चार दिनों में धन प्रदायक योग भी बनता है इसलिए यदि आप कहीं पैसों का निवेश करना चाहते हैं तो अवश्य करें लाभ होगा। इसके अलावा अनेक उपाय हैं जो इस मुहूर्त में किए जा सकते हैं।

अभिजीत नक्षत्र और इसका महत्व
ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार प्रजापति दक्ष की 27 कन्याओं से चंद्र ने विवाह किया था। ये 27 कन्याएं 27 नक्षत्र हैं और इनका एक भाई है जो अभिजीत है। इसे 28वें नक्षत्र की संज्ञा दी गई है। इस नक्षत्र की गिनती सर्वश्रेष्ठ शुभ नक्षत्रों में होती है। सूर्य जब भी अभिजीत नक्षत्र में गोचर करता है तब मनुष्यों में आत्मविश्वास की अधिकता रहती है। इस कारण सारे काम सफलतापूर्वक पूरे होते हैं। इस नक्षत्र में शुभ कार्य करना श्रेष्ठ रहता है। उन कार्यों में सफलता मिलती है। सगाई, विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, वाहन, भूमि-भवन संपत्ति की खरीदी करना श्रेष्ठ रहता है। इस नक्षत्र के दौरान धन का निवेश करना चाहिए।

चार दिन के श्रेष्ठ अभिजीत मुहूर्त समय
21 जनवरी, मंगलवार : दोपहर 12:16 से 1:00 बजे
22 जनवरी, बुधवार : दोपहर 12:17 से 1:00 बजे
23 जनवरी, गुरुवार : दोपहर 12:17 से 1:01 बजे
24 जनवरी, शुक्रवार : दोपहर 12:17 से 1:01 बजे

अभिजीत नक्षत्र में क्या करें
1. सूर्य के अभिजीत नक्षत्र में गोचर के दौरान गेहूं और गुड़ का दान करने से सूर्य की पीड़ा शांत होती है और मनुष्य को मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।
2. यदि पिता से विवाद चल रहा हो तो अभिजीत नक्षत्र के दौरान लाल चंदन की माला धारण करें और सूर्य को तांबे के कलश में लाल पुष्प डालकर जल का अर्घ्य दें। इससे पिता से संबंध सुधरने लगते हैं।
3. साहस, पराक्रम की प्राप्ति और शत्रुओं को परास्त करने के लिए सूर्य के अभिजीत नक्षत्र में गोचर करने के दौरान हर दिन 12 बार आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
4. धन की प्राप्ति के लिए सूर्य के अभिजीत नक्षत्र में गोचर के दौरान हर दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करना चाहिए।
5. भगवान श्रीहरि विष्णु को पीले पुष्प अर्पित करने से धन संबंधी समस्या दूर हो जाती है।
6. जिन लोगों का जन्म अभिजीत नक्षत्र में हो वे इन दिनों में अपने घर में सूर्य यंत्र की स्थापना करके नित्य पूजन करें।

अभिजीत नक्षत्र में जन्म का फल
अभिजीत नक्षत्र में जन्म लेने वाले बच्चे की राशि मकर, राशि स्वामी शनि, वर्ण वैश्य, योनि नकुल और महावैर योनि सर्प होती है। अभिजीत नक्षत्र में जन्म लेने वाला जातक धार्मिक प्रकृति का होता है। चतुर, बुद्धिमान, आभूषण एवं रत्नों का प्रेमी, क्रोधी, पर्यटन में रुचि रखने वाला होता है। ऐसा जातक दृढ़ निश्चयी, उत्साही, शोधकर्ता, अाविष्कारक होता है।

14 जनवरी को सूर्यदेव करेंगे मकर में प्रवेश, पूरे दिन रहेगा पुण्यकाल


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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सूर्य विभिन्न राशियों में गोचर करते हुए माघ कृष्ण प्रतिपदा दिनांक 14 जनवरी 2025 मंगलवार को प्रात: 8 बजकर 54 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही धनुर्मास (मलमास) समाप्त होगा और उत्तरायण प्रारंभ होगा। खगोलीय और ज्योतिषीय दृष्टि से यह दिन वर्ष का अत्यंत विशेष दिन होता है। इस दिन से सूर्य की गति उत्तरायण होती है जो देवताओं का दिन होता है। मकर संक्रांति से विवाह, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।

मकर संक्रांति प्रवेश के समय पुनर्वसु नक्षत्र का चतुर्थ चरण, कर्क राशि, विष्कुंभ योग, तात्कालिक बालव करण और मकर लग्न रहेगा। इसलिए मकर संक्रांति का पुण्यकाल सूर्योदय प्रात: 7:10 से लेकर सूर्यास्त तक सायं 6:01 बजे तक रहेगा। इस दिन दान-पुण्य आदि कर्म किए जाएंगे।

दान का महत्व
मकर संक्रांति का दिन दान पुण्य करने के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन होता है। इस दिन किया गया दान राजसूय यज्ञ के पुण्य फल के बराबर होता है। इसलिए इस दिन गरीबों को यथाशक्ति भोजन, वस्त्र आदि देना चाहिए। गायों को चारा खिलाएं, पशुओं की सेवा करें, मछलियों को दाना डालें, पक्षियों के लिए दाना-पानी का प्रबंध करें। मकर संक्रांति के दिन यथाशक्ति नूतन पात्र, श्वेत तिल, श्वेत वस्त्र, श्वेत धान्य चावल आदि, धातु, सूखा अन्न, पकवान्न, दूध, पायस, गुड़, खिचड़ी तथा श्रीफल सहित दक्षिणा का दान करें। गायों को गोशाला में जाकर घास खिलाएं। पुण्यकाल की अवधि में सात्विक वृत्ति का निर्वाह करते हुए संयमपूर्वक रहें।

मकर संक्रांति पर क्या करें
मकर संक्रांति के पुण्यकाल में सफेद तिल मिश्रित जल से स्नान करें। यह स्नान पवित्र नदियों, सरोवरों में किया जाए तो अत्यधिक पुण्यदायी होता है। पवित्र नदियां आपके आसपास न हो तो अपने घर में ही गंगा, नर्मदा आदि नदियों का जल डालकर उन तीर्थों का स्मरण करते हुए स्नान करें। इसके बाद सूर्य को जल का अर्घ्य दें, शिवजी का अभिषेक करें। रुद्राभिषेक करें अथवा ऊं नम: शिवाय का उच्चारण करते हुए सामान्य जल से शिवजी का अभिषेक करें। इसके बाद सूर्यदेव की पूजा करें। आदित्यहृदय स्तोत्र, अष्टोत्तरशतनामात्मक सूर्यस्तोत्र, सूर्य सहस्रनामावली या वेदोक्त सूर्य सूक्त का विशेष पाठ करें। सूर्य के वैदिक-पौराणिक बीज मंत्र अथवा ऊं घृणि सूर्याय नम: का जाप करें। सूर्यसूक्त के मंत्रों से हवन करें।

किस राशि के लोग क्या दान करें
मेष : कंबल का दान करें।
वृषभ : सफेद रंग के वस्त्रों का दान करें।
मिथुन : हरे खड़े मूंग अथवा मूंग की खिचड़ी का दान करें।
कर्क : सफेद अनाज जैसे चावल या दूध का दान करें।
सिंह : गुड़ और गेहूं का दान करना लाभदायक रहेगा।
कन्या : हरे वस्त्र दान करें अथवा गायों को हरा चारा खिलाएं।
तुला : कंबल का दान करें, श्वेत वस्त्र दान करें।
वृश्चिक : फलों का दान करना लाभदायक रहेगा।
धनु : सूखा अनाज या फलों का दान करना चाहिए।
मकर : काले तिल का दान करें।
कुंभ : गुड़ के साथ काले तिल का दान करें।
मीन : फल, अनाज अथवा दूध-दही का दान करना चाहिए।

मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त
लाभ : प्रात: 11:15 से दोप 12:36
अभिजित : दोप 12:14 से 12:58
अमृत : दोप 12:36 से 1:57
लाभ : सायं 7:40 से रात्रि 9:19
प्रदोष : सायं 6:01 से 7:52

2025 में शनि बदलेगा राशि, मेष को लगेगी साढ़ेसाती


गजेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य

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साल 2025 में सबसे बड़ा राशि परिवर्तन होने जा रहा है। यह राशि परिवर्तन है शनि का। शनि ढाई साल बाद अपनी राशि बदलने जा रहा है। 29 मार्च 2025 को शनि कुंभ राशि को छोड़कर मीन राशि में प्रवेश करने जा रहा है। कुंभ शनि की स्वयं की राशि है और अब वह गुरु की राशि मीन में प्रवेश करने जा रहा है। शनि के इस गोचर से साढ़ेसाती का गणित भी बदलने वाला है। मकर राशि साढ़ेसाती से मुक्त हो जाएगी, जबकि मेष राशि पर साढ़ेसाती प्रारंभ हो जाएगी। शनि 29 मार्च 2025 से 3 जून 2027 तक मीन राशि में ही रहेगा। शनि के मीन राशि में जाने से कुंभ, मीन, मेष पर साढ़ेसाती रहेगी जबकि सिंह और धनु राशि पर लघु कल्याणी ढैया प्रारंभ हो जाएगा।

आइए विस्तार से जानते हैं किस राशि पर शनि का क्या प्रभाव होने वाला है-

मेष राशि
मेष राशि के जातकों को लोहे के पाये से मस्तक पर शनि की साढ़ेसाती का प्रथम ढैय्या प्रारंभ होगा। शनि का दसवें और ग्यारहवें स्थान का स्वामी होकर बारहवें स्थान में भ्रमण करना शुभप्रद नहीं है। शासन की तरफ से परेशानी, निरर्थक यात्राएं, व्यापार-व्यवसाय व नौकरी में अड़चनें, पारिवारिक क्लेश, आर्थिक क्षेत्र में उतार-चढ़ाव, अपव्यय, स्वयं, पति-पत्नि एवं संतान को शारीरिक कष्ट, भाग्य में मंदी तथा कर्जा (ऋण) लेने की स्थिति आएगी। जन्मकालीन मंगल, शनि अथवा सूर्य पर से शनि का भ्रमण अत्यंत अरिष्टप्रद रह सकता है। आय के स्रोत में कमी आएगी। जन्मकुंडली में शनि बलवान हो तो उपर्युक्त अशुभ फलों में कमी आकर व्यावसायिक उन्नति, मित्रों से सहयोग तथा धनलाभ के योग बनेंगे।

वृषभ राशि
वृषभ राशि के जातकों पर शनि स्वर्ण पद से भ्रमण करेगा। नौकरी और व्यापार-व्यवसाय में अच्छी सफलता मिलेगी, धन लाभ, लोहा-भूमि- सीमेंट के कामकाजों से अच्छा लाभ अर्जित करेंगे। वाहन, मशीनरी और आटो पार्ट्स के काम से अच्छा लाभ कमाएंगे, जिनका विवाह नहीं हुआ है उनके विवाह का योग 2025 में बन जाएगा, यशोमान में वृद्धि होगी। इस राशि के जातकों को साल 2025 में कन्या संतान की प्राप्ति होगी। शारीरिक रोग दूर होंगे। जन्मकुंडली में यदि शनि निर्बल होगा तो पति/पत्नि व संतान पीड़ा रहेगी, मित्रों व आत्मीयजनों से विश्वासघात एवं आशा भंग होगी।

मिथुन राशि
शनि के मीन राशि में गोचर करने से मिथुन राशि के जातकों को विशेष लाभ प्राप्त होने वाले हैं। आपका भाग्योदय होगा जिससे बड़े आर्थिक लाभ मिलने वाले हैं। नौकरी, व्यवसाय में आशातीत उन्नति होगी, कोर्ट-कचहरी के मामलों में अनुकूलता, प्रभावशाली व्यक्तियों से परिचय होगा एवं उनसे लाभ होगा। पारिवारिक और सामाजिक जीवन में प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। यदि जन्मांग अर्थात् आपकी कुंडली में जन्मकालीन शनि बलहीन होगा तो माता-पिता को पीड़ा, राजभय, नौकरी-व्यवसाय में परिवर्तन-बाधा, दांपत्य जीवन में विरोध की स्थिति बनेगी। शारीरिक स्वास्थ्य कमजोर रहेगा।

कर्क राशि
कर्क राशि के जातकों के लिए शनि का मीन राशि में गोचर करना मिलजुला फलदायी रहने वाला है। शनि का लघु कल्याणी ढैया इस राशि से हट जाएगा। इस राशि के जिन जातकों की जन्मकुंडली में शनि मजबूत और शुभ स्थानों में होगा उन्हें तो अच्छी सफलताएं मिलने वाली है किंतु जिनकी कुंडली में शनि खराब स्थिति में है उन्हें विपरीत परिणाम भोगने पड़ेंगे। नौकरी-धन्धे में सफलता, धनलाभ, धर्म-कर्म में अभिरुचि, संत समागम, लाभकारी यात्राएं, यश-प्रतिष्ठा में वृद्धि एवं संतान सुख प्राप्त होगा। जन्मतः शनि निर्बल होने पर भाई- बहन व मित्रों को कष्ट, संतति से पीड़ा, शत्रुभय, आर्थिक परेशानी, अनिष्ट प्रसंग, पति/पत्नि के स्वास्थ्य में खराबी एवं कार्यों में विघ्न आएंगे।

सिंह राशि
सिंह राशि के जातकों को शनि के मीन राशि में गोचर करने से लघुकल्याणी ढैय्या अष्टम स्थान में लौह पाद से प्रारंभ होगा। शनि आपके छठे एवं सातवें स्थान का स्वामी होकर अष्टम स्थान में भ्रमण करेगा जो शुभप्रद नहीं है। स्वयं व जीवनसाथी को शारीरिक पीड़ा, नौकरी-व्यवसाय में परेशानी, आर्थिक हानि, कोर्ट के मामलों में प्रतिकूलता, मित्र, वाहन व पशु हानि, निरर्थक यात्राएं, दुर्जनों से संगति, मनस्ताप तथा स्वजनों को कष्ट होंगे। जन्मत: शनि की स्थिति अच्छी होने पर भागदौड़ के साथ धनलाभ होगा, सफलता मिलेगी एवं अटके हुए कार्य पूर्ण होगे। स्वास्थ्य में लाभ होगा।

कन्या राशि
मीन राशिगत शनि का कन्या राशि पर प्रभाव ज्यादा शुभ नहीं रहेगा। पति/पत्नि में दीर्घ रोग, नौकरी-व्यवसाय में परेशानी, भागीदारी के कार्यों में हानि, शारीरिक पीड़ा, परदेशवास, कष्टदायक प्रवास, पुरुष की जन्मकुंडली में द्विभार्या योग होने पर पत्नि को अनिष्ट, कार्यों में विलंब तथा धन हानि के योग बनेंगे। इस राशि के जिन लोगों की जन्मकुंडली में शनि शुभप्रद होगा उन्हें आर्थिक लाभ, व्यावसायिक उन्नति, कोर्ट कचहरी के मामलों में विजय एवं द्विभार्या योग होने में पुनर्विवाह के भी योग बनेंगे। जिन लोगों का विवाह नहीं हुआ है और कहीं तय भी नहीं हो पा रहा उनका विवाह इस साल होने के पूरे योग बनेंगे। धार्मिक यात्राएं होंगी।

तुला राशि
तुला राशि के जातकों के लिए शनि का राशि परिवर्तन कुछ मामलों में अत्यंत लाभदायक रहने वाला है। इस साल आपके सारे शत्रु समाप्त हो जाएंगे, आरोग्यता प्राप्त होगी, द्रव्यलाभ होगा, कोर्ट के मामलों में विजय, ऋण (कर्ज) से छुटकारा, नौकरी-व्यवसाय में सफलता, नए कामकाज प्रारंभ करेंगे, मित्रों से लाभ, स्थायी संपत्ति प्राप्ति होगी तथा पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी । जिन जातकों का जन्मकालीन शनि निर्बल होगा उन्हें एकाधिक बार स्थान परिवर्तन का सामना करना पड़ेगा, अनावश्यक व्यय होंगे, माता व संतान को पीड़ा होगी तथा विद्यार्थियों को शिक्षा में विघ्न बाध की स्थिति बनेगी। साल 2025 में बड़े बदलावों का सामन करना होगा।

वृश्चिक राशि
शनि के मीन राशि में जाने के कारण वृश्विक राशि के जातकों पर से लघु कल्याणी ढैया हट जाएगा। इसलिए मिलाजुला फल मिलने वाला है। संतति को लेकर चिंता, परिवार में अनिष्ट प्रसंग, स्थान परिवर्तन, शेयर्स में हानि, विद्याध्ययन में रूकावट, आय से अधिक व्यय, नौकरी-धन्धे में उतार-चढ़ाव, पति/पत्नि को शारीरिक पीड़ा एवं बुद्धि भ्रम होगा । इस राशि के जिन जातकों की जन्मकुंडली मंक शनि श्रेष्ठ और मजबूत होगा उन्हें शिक्षा में पूर्णता का योग, कन्या संतान सुख, स्थायी संपत्ति की प्राप्ति, मित्रों से सुख एवं नौकरी-व्यवसाय में उन्नति प्राप्त होगी।

धनु राशि
शनि के मीन राशि में जाने से धनु राशि के जातकों को शनि का लघुकल्याणी ढैय्या चतुर्थ स्थान में लोहे के पाये से प्रारंभ होगा। इनके लिए शनि द्वितीय व तृतीय स्थान का स्वामी है। इसलिए स्थान परिवर्तन के योग बन रहे हैं, यात्रा में कष्ट हो सकता है, सौख्यता में कमी आएगी, स्वजनों से विरोध का सामना करना पड़ेगा, माता-पिता को शारीरिक पीड़ा एवं राजकीय संकट की स्थिति बन सकती है। जन्मकुंडली में शनि बलवान हो तो जमीन-जायदाद व वाहन सुख प्राप्त होगा, नौकरी-व्यवसाय में सफलता, फंसा हुआ- डूबा हुआ (नष्टांश) धन की प्राप्ति एवं कार्य सिद्धि होगी।

मकर राशि
शनि के मीन राशि में जाने से मकर राशि के जातकों पर से शनि की साढ़ेसाती समाप्त हो जाएगी। इससे लाभ प्राप्त होने लगेगा। उद्योग-धन्धा-नौकरी में उत्कर्ष प्राप्त करेंगे, अनेक माध्यमों से धनलाभ होगा, सर्वत्र अनुकूलता प्राप्त होगी, पद-पराक्रम में वृद्धि होगी, भातृसुख में वृद्धि, शत्रुनाश, आरोग्यता, भूमिलाभ, अभीष्ट कार्यों में सफलता एवं यशोमान की प्राप्ति होगी। सामाजिक जीवन में नए और बड़े पद मिल सकते हैं। जन्मकुंडली में शनि कमजोर होने पर कष्टप्रद यात्राएं, भाई-बहन व सन्तान को पीड़ा, मानसिक अशांति, इच्छा विरूद्ध स्थान परिवर्तन, अपयश तथा कुटुंबिक क्लेश होगा।

कुम्भ राशि
कुंभ राशि के जातकों को चांदी के पाये से शनि की साढ़ेसाती का अंतिम ढैय्या चरणों से प्रारंभ होगा। आपकी राशि कुंडली के अनुसार शनि बारहवें और प्रथम स्थान का स्वामी होकर द्वितीय स्थान में भ्रमण करेगा जो शुभप्रद नहीं है। प्रियजन का वियोग, धनहानि, पैतृक संपत्ति में विवाद, कुटुंबिक क्लेश, कदाचित गृहत्याग, पति/पत्नि को शारीरिक कष्ट, यश में कमी, नकारात्मक विचार एवं ऋण (कर्ज) लेने की स्थिति बनेगी। यदि जन्मांग में शनि बलवान होगा तो आय में वृद्धि के योग बनेंगे। कोर्ट में अनुकूलता होगी। स्थायी संपत्ति की प्राप्ति होगी। यशोमान में वृद्धि होगी।

मीन राशि
मीन राशि के जातकों को सुवर्ण के पाद से शनि की साढ़ेसाती का दूसरा ढैय्या हृदय पर प्रारंभ होगा। शनि एकादश व द्वादश स्थान का स्वामी होकर प्रथम भाव में भ्रमण करने पर स्वास्थ्य में गड़बड़ी, नौकरी-धन्धे में उतार-चढ़ाव, कार्यों में रूकावट, स्वजनों का वियोग, स्थानांतरण, प्रवास योग, भागीदारी से हानि, नैराश्य भाव एवं पति/पत्नि को पीड़ा होगी। जन्म का शनि श्रेष्ठप्रद हो तो रूके हुए कार्य पूर्ण होंगे, आत्मबल में वृद्धि, लाभकारी यात्राएं व धनसुख योग बनेगा। प्रेम संबंध या विवाहेत्तर संबंध बन सकते हैं। उच्च शिक्षा के विद्यार्थी के लिए यह समय चुनौतीपूर्ण होगा।

शनि बदलेगा राशि
29 मार्च 2025 से मीन में
3 जून 2027 से मेष में

शनि वक्री समय
13 जुलाई 2025 से
28 नवंबर 2025 तक
कुल अवधि 138 दिन

शनि अस्त समय
28 फरवरी 2025 से
6 अप्रैल 2025 तक
अवधि कुल 37 दिन

29 मार्च 2025 तक साढ़ेसाती और लघु ढैया
मकर : अंतिम ढैया
कुंभ : दूसरा ढैया
मीन : पहला ढैया
कर्क और वृश्चिक पर लघु ढैया

29 मार्च 2025 से साढ़ेसाती और लघु ढैया
कुंभ : अंतिम ढैया
मीन : दूसरा ढैया
मेष : पहला ढैया
सिंह और धनु पर लघु ढैया